फर्जीवाड़े के जाल में उलझती बैंकिंग व्यवस्था, वसूली में आ रही ये मुश्किलें!
II सतीश सिंह II बैंक अधिकारी पंजाब नेशनल बैंक में हाल में एक बड़ी धोखाधड़ी का खुलासा हुआ है. हालांकि, किसी भारतीय बैंक में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और धाेखाधड़ी के इस मामले को एकाध दिन में अंजाम नहीं दिया गया है. यह काफी समय से जारी है. लेकिन, क्या ऐसे मामलों की […]
II सतीश सिंह II
बैंक अधिकारी
पंजाब नेशनल बैंक में हाल में एक बड़ी धोखाधड़ी का खुलासा हुआ है. हालांकि, किसी भारतीय बैंक में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और धाेखाधड़ी के इस मामले को एकाध दिन में अंजाम नहीं दिया गया है. यह काफी समय से जारी है. लेकिन, क्या ऐसे मामलों की पहचान समय रहते नहीं की जा सकती है और उन पर लगाम कसने का कोई मुकम्मल तरीका या नियम नहीं है? अरबों रुपये की रकम के व्यापक धोखाधड़ी के हालिया मामले समेत इससे जुड़े विविध पहलुओं को जानने का प्रयास किया गया है आज की इस विशेष प्रस्तुति के जरिये …
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के एक कनिष्ठ अधिकारी और एक लिपिक ने कथित तौर पर फर्जी तरीके से नामचीन आभूषण कारोबारी नीरव मोदी समूह की फर्मों, यथा ‘सोलर एक्सपोर्ट’, ‘स्टेलर डायमंड्स’ और ‘डायमंड्स आर अस’ से बिना कोई गारंटी लिये विदेश में स्थित भारतीय बैंकों की शाखाओं से बायर्स क्रेडिट लेने के लिए लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किया. शुरुआती ऊहापोह की स्थिति के बाद मामले में हस्तक्षेप करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने पीएनबी को एलओयू से संबंधित देनदारियों का भुगतान संबंधित बैंकों को करने का निर्देश दिया.
हैरानी की बात है कि इसी तर्ज पर वर्ष 2011 से पीएनबी में फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जा रहा था. कई बड़ी आभूषण कंपनियां, जैसे गीतांजलि, गिन्नी, नक्षत्र आदि की भूमिका भी संदेह के घेरे में है. पीएनबी द्वारा जांच एजेंसियों को घोटाले की जानकारी देने के बाद सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है.
सवाल है कि क्या बैंकों में ऐसी धोखाधड़ी पहली बार हुई है, जिसका जवाब ‘नहीं’ है? साफ तौर पर कहा जाये तो बैंकों में इस तरह की गड़बड़ियों को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन इस तरह के घटनाओं की पुनरावृत्ति को जरूर कम किया जा सकता है. जहां भी पैसों का लेन-देन होता है, वहां फर्जीवाड़े की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है. बैंकों का परिचालन परिपत्रों के माध्यम से किया जाता है. इस आलोक में बैंकों के नियामक भी समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं, जिनका अनुपालन करना बैंकों के लिये जरूरी होता है.आमतौर पर फर्जीवाड़े को बैंकों में तभी अंजाम दिया जाता है, जब विविध परिपत्रों में निर्देशित नियमों की अवहेलना की जाती है.
कर्मचारियों की कुशलता बढ़ाने की जरूरत
वैसे, परिपत्रों से इतर, जोखिम प्रबंधन के माध्यम से भी धोखाधड़ी के वारदातों को रोका जा सकता है. बीते सालों में धोखाधड़ी के प्रकारों में बढ़ोतरी होने से जोखिम प्रबंधन के दायरे को बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है, जिसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा जोखिम की पहचान करने में बैंककर्मियों की अक्षमता और पहचान होने के बाद इसकी रिपोर्टिंग में देरी होना है.
बैंककर्मियों को जागरूक बनाना जरूरी है. इस क्रम में बैंक कर्मियों को प्रशिक्षण देना एवं प्रोत्साहित करना मुफीद हो सकता है. बैंकिंग व्यवस्था में धोखाधड़ी के डेटाबेस को मजबूत करने से भी लाभ हो सकता है. धोखाधड़ी का पता लगाने में डेटाबेस की अहम भूमिका हो सकती है. बैंकों द्वारा संबंधित सूचनाओं को आपस में साझा करने से जोखिम को कम किया जा सकता है. इस संदर्भ में बैंकों को स्वयं को तकनीक कुशल बनाना भी फायदेमंद होगा.
वसूली में आने वाली मुश्किलें!
आमतौर पर फर्जीवाड़े के मामले अदालत में चले जाते हैं, जिसके बाद बैंकों के लिये वसूली सपना बनकर रह जाता है. अदालतों में वादों के निपटारे में सालों-साल लग जाते हैं. अदालत के बाहर ऐसे मामलों में समझौता करना मुश्किल होता है, क्योंकि ऋणी कुछ अपवादों को छोड़कर बैंकों को पैसा लौटाना नहीं चाहते हैं. उदाहरण के तौर पर दिवालिया कानून के आने के बाद भी मामले में अपेक्षित परिणाम आने शेष हैं.
अन्य बैंकों पर असर की आशंका!
पीएनबी के अलावा ताजे फर्जीवाड़े का आंशिक असर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक पर पड़ सकता है. इन तीनों बैंकों ने पीएनबी द्वारा जारी किये गये एलओयू के आधार पर नीरव मोदी की कंपनियों को कर्ज दिया था. अगर पीएनबी में हुए फर्जीवाड़े की पूरी रकम एनपीए में तब्दील होती है, तो बैंक की अनुमानित 480 अरब रुपये की हैसियत पर 25 प्रतिशत तक का असर पड़ सकता है. हालांकि, फर्जीवाड़े वाले लेन-देन की प्रकृति आकस्मिक है.
लिहाजा, जिस रकम की वास्तविक देनदारी बनेगी, उतनी ही बैंक को अतिरिक्त प्रावधान करना होगा, जिससे चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में बैंक की संपत्ति की गुणवत्ता उल्लेखनीय रूप से प्रभावित होगी. बहरहाल, मामले में एक अच्छी प्रगति यह है कि फर्जीवाड़े की लगभग आधी रकम नीरव मोदी से वसूल किये जाने की बात कही जा रही है.
1.79 अरब रुपये का गबन
बैंकिंग कारोबार में फर्जीवाड़े की घटनाएं घटित होती रहती हैं. भारत ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं घटती रहती हैं. वर्ष 2015 में भी बैंक ऑफ बड़ौदा में दिल्ली के दो कारोबारियों द्वारा 6,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गयी थी. वर्ष 2012 से वर्ष 2016 के बीच सरकारी बैंकों को विभिन्न बैंकिंग धोखाधड़ी के चलते कुल 227.43 अरब रुपये का नुकसान उठाना पड़ा. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के हवाले से संसद में हाल ही में कहा था कि बैंकिंग धोखाधड़ी के 25,600 से ज्यादा मामले दिसंबर, 2017 तक दर्ज हुए, जिसके जरिये 1.79 अरब रुपये की धोखाधड़ी की गयी.
रोकने के लिए प्रावधान
धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं कोदेखते हुए रिजर्व बैंक ने लेन-देन के वर्गीकरण व रिपोर्टिंग के लिए जुलाई, 2014 में परिपत्र के माध्यम से स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किया था.
परिपत्र के अनुसार 25 करोड़ रुपये से ज्यादा के लेन-देन के बारे में सरकारी बैंकों को सीबीआई की बैंकिंग सिक्योरिटी एंड फ्रॉड सेल को जानकारी देनी है, जबकि निजी बैंकों को एक करोड़ से ज्यादा के धोखाधड़ी वाले लेन-देन की जानकारी कंपनी मामलों के मंत्रालय के गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय को देनी है. सभी बैंकों को 25 लाख या इससे ज्यादा राशि की धोखाधड़ी की जानकारी केंद्रीय बैंक की सेंट्रल फ्रॉड मॉनिटरिंग सेल को देनी होती है.
पिछले साल मार्च में रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2017 के पहले नौ महीनों में एक लाख रुपये या इससे ज्यादा की राशि वाली धोखाधड़ी वाले 455 मामले आईसीआईसीआई बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में 244 मामले और एचडीएफसी बैंक में 237 ऐसे मामले पाये गये. इस सीमा की जद में सरकारी बैंक भी फर्जीवाड़े से अछूते नहीं थे. ऐसे मामलों में बैंक कर्मियों की संलिप्तता अक्सर देखी जाती रही है.
नियमों का सख्ती से पालन होना जरूरी
कहा जा सकता है कि बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता है. हां, ऐसी घटनाओं को सावधानी बरतकर एवं नियमों का कड़ाई से अनुपालन करके जरूर कम किया जा सकता है. पीएनबी में हुए ताजे फर्जीवाड़े में फिलहाल कुछ बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत की बात कही जा रही है, लेकिन हकीकत का पता जांच के बाद चलेगा. मामले में नामचीन कारोबारियों की संलिप्तता भी गंभीर सवाल खड़ी करती है.
दिवालिया कानून के तहत पहले 12 और बाद में 28 बड़े कारोबारियों के नाम का खुलासा चूककर्ता के रूप में किया जा चुका है. देश में ऐसे कारोबारियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है, जो निश्चित रूप से चिंता की बात है.
फंसे कर्ज का बढ़ता बोझ
जब कोई कर्जदार ऋण के रूप में ली गयी रकम का तय नियमों के अनुसार व निश्चित अवधि में भुगतान नहीं करता है, एेसे में फंसे हुए कर्ज को बैड लोन मान लिया जाता है. अमूमन ऐसे फंसे हुए कर्ज का भुगतान नहीं हो पाता है. भारतीय बैंकों के साथ यह बड़ी समस्या है.
भारतीय बैंकों का फंसा हुआ कर्ज लगभग 10 लाख करोड़ रुपये का हो गया है. यह कर्ज तकरीबन 137 देशों के सकल घरेलू उत्पाद से भी बड़ा है. एफएसआर की मानें तो मार्च, 2017 में बैंकिंग क्षेत्र की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां जहां 9.7 प्रतिशत थीं, उनके मार्च, 2018 तक बढ़कर 10.2 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है. वहीं, सितंबर 2016 में बैंकिंग क्षेत्र पर 9.2 प्रतिशत सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का बोझ था. इसका सबसे बुरा प्रभाव राज्य संचालित बैंकों पर पड़ा है. मार्च, 2017 की बात करें, तो उस समय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का औसत फंसा हुआ कर्ज उनके कुल मूल्य का 75 प्रतिशत था. ये फंसे हुए कर्ज बैंकों के लाभ और उनकी पूंजी को कम कर रहे हैं, जिसकी वजह से कुछ बड़े बैंकों की स्थिति खराब हो रही है.
यह स्थिति काफी चिंताजनक है, क्योंकि इन्हीं बैंकों का भारतीय बैंकिंग प्रणाली पर प्रभुत्व है. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इन अनर्जक संपत्ति में कमी लाने के लिए कुछ कदम उठाये हैं. बावजूद इसके उसने अपनी चिंता जाहिर करते हुए एक रिपोर्ट में सावधान किया है कि अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले किसी भी तरह के दबाव से यह स्थिति बदतर हो सकती है.
बैंक फ्रॉड भी है चिंता का विषय : बैड लोन के अतिरिक्त भारतीय बैंकों के जरिये फर्जी लेन-देन भी बैंकिंग नियामकों के लिए चिंता का विषय बन चुका है. इस चिंता के बढ़ने का कारण बैंकों का इन मामलों की रिपोर्ट करने को लेकर लापरवाही बरतना है. इसी कारण बीते पांच वर्षों में बैंक धोखाधड़ी के मामले 19.6 प्रतिशत बढ़ गये हैं.
इन तरीकों से होता है बैंकिंग फ्रॉड
बैंक प्रतिरूपण : जब एक या अधिक व्यक्ति फर्जी कंपनी या वेबसाइट की स्थापना कर उसे वित्तीय संस्थान की तरह चलाते हैं. इनका उद्देश्य लोगों से पैसे प्राप्त करना होता है.
चेक चोरी करना : इस तरह के अपराध में किसी कंपनी का चेक चोरी कर उसे फर्जी बैंक खाते में जमा करा दिया जाता है.
जालसाजी : इस तरह का अपराध तब होता है, जब कोई व्यक्ति गलत मंशा से चेक के नाम, राशि में बदलाव करता है या फिर हस्ताक्षर की नकल कर चेक पर दस्तखत करता है.
धोखे से ऋण प्राप्त करना : जब कोई व्यक्ति यह जानते हुए भी कि वह दिवालिया होनेवाला है, या गलत पहचान बताकर बैंक से ऋण लेता है.
इंटरनेट फ्रॉड : इस धोखाधड़ी में बैंक या दूसरे वित्तीय संस्थान की वेबसाइट के समान वेबसाइट तैयार की जाती है ताकि दूसरों के पैसे हड़पे जा सकें.
बीते चार वर्षों मे 22 हजार करोड़ रुपये का बैंकों को चूना!
भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक, भारत के सरकारी बैंकों को वर्ष 2012 से 2016 के बीच फर्जीवाड़े से कुल 22.74 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है.
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों का हवाला देते हुए संसद में बताया था कि एक जनवरी से 21 दिसंबर, 2017 तक 179 करोड़ रुपये के बैंक फर्जीवाड़े के 25,800 से ज्यादा मामले सामने आये. मार्च, 2017 में आरबीआई द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 के पहले नौ महीनों में आईसीआईसीआई बैंक से एक लाख रुपये और ज्यादा की रकम के 455 फर्जी लेन-देन पकड़े गये, जबकि एसबीआई के 429, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के 244 और एचडीएफसी बैंक के 237 फर्जी लेन-देन सामने आये. अप्रैल से दिसंबर, 2016 के बीच 177.50 अरब रुपये के फर्जीवाड़े के 3,870 मामले दर्ज करवाये गये.
साल-दर-साल बढ़ते रहे धोखाधड़ी के मामले
वर्ष 2011
सीबीआई को जानकारी मिली कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक, ऑरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और आईडीबीआई में 10 हजार फर्जी खाते खोले गये और 1.5 अरब रुपये का लोन दे दिया गया.
वर्ष 2014
मुंबई पुलिस ने सात अरब रुपये के एफडी फ्रॉड में सरकारी बैंकों के कुछ अधिकारियों के खिलाफ नौ एफआईआर दर्ज की थी.
एक कंपनी ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को 4.36 अरब रुपये का चूना लगाया. कोलकाता के एक उद्योगपति ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे 1.4 अरब रुपये का लोन लेकर कथित तौर पर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से ठगी कर ली.सिंडिकेट बैंक के पूर्व चेयरमैन और एमडी एस के जैन द्वारा रिश्वत लेकर 80 अरब रुपये का लोन देने का मामला.
वर्ष 2015
जैन इन्फ्रा प्रॉजेक्ट्स के कर्मचारियों ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के साथ कथित तौर पर 2.12 अरब रुपये के फर्जीवाड़े को अंजाम दिया.
विभिन्न बैंकों के कर्मचारियों ने विदेशी एक्सचेंज स्कैम में 60 अरब रुपये का फर्जीवाड़ा किया.
वर्ष 2016
चार लोगों ने सिंडिकेट बैंक में 386 अकाउंट्स खुलवा कर 10 अरब रुपये का फर्जीवाड़ा किया. बैंक को चूना लगाने के लिए फर्जी चेक, लेटर ऑफ क्रेडिट (लेटर ऑफ अंडरस्टेंडिंग) और एलआईसी पॉलिसीज का सहारा लिया.
वर्ष 2017
सीबीआई ने आईडीबीआई बैंक का 9.5 अरब रुपये का लोन वापस नहीं करने के आरोप में विजय माल्या और 10 अन्य के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया.
लगभग 11.61 अरब रुपये की दोषपूर्ण हानि के आरोप में पांच सरकारी बैंकों के खिलाफ सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की और डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग्स के खिलाफ छह चार्जशीट दायर किये.
करीब 20 बैंकों को 22.23 अरब रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में कोलकाता के नामी कारोबारी नीलेश पारेख को सीबीआई ने गिरफ्तार किया.
दो सरकारी बैंकों को 2.9 अरब रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में अभिजीत ग्रुप के प्रमोटर्स और कैनरा बैंक के पूर्व डीजीएम को गिरफ्तार किया गया.
करीब 8.36 अरब रुपये मूल्य के कथित घोटाला मामले में बैंक ऑफ महाराष्ट्र के पूर्व जोनल हेड और सूरत की एक प्राइवेट लॉजिस्टिक्स कंपनी के डायरेक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया.
वर्ष 2018
प्रवर्तन निदेशालय ने आंध्र बैंक के डायरेक्टर को पांच अरब रुपये के कथित बैंक फ्रॉड के आरोप में गिरफ्तार किया.
साख पत्र से दांव पर बैंकों की साख
लेटर ऑफ अंडरटेकिंग या साख पत्र एक प्रकार से बैंक गारंटी होती है. यह आयात के लिए ओवरसीज भुगतान करने के लिए जारी किया जाता है. इसे जारी करने वाला बैंक गारंटर बन जाता है और वह अपने क्लाइंट के लोन पर मूलधन और उस पर लगने वाले ब्याज को भुगतान करना स्वीकार करता है. जब यह जारी किया जाता है, तो इसमें इसे जारी करने वाला बैंक, स्वीकार करने वाला बैंक, आयातक और विदेश में इससे लाभान्वित होने वाली कंपनी शामिल होती है.
क्या है स्विफ्ट
किसी बैंक की तरफ से जब साख पत्र जारी किया जाता है, तो इसके बाद क्रेडिट ट्रांसफर की जानकारी विदेश में स्थित बैंक को दी जाती है. यह जानकारी स्विफ्ट यानी सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरनेट फाइनेंशियल के जरिये दी जाती है. इस जानकारी के जरिये बैंक अपनी सहमति और गारंटी देता है. स्विफ्ट की जानकारी देने के लिए बैंक अधिकारी को लॉग इन करना पड़ता है और इसमें गोपनीय जानकारी दर्ज करनी पड़ती है. इसमें अकाउंट नंबर और स्विफ्ट कोड होता है. सामान्य रूप से इसमें तीन चरण होते हैं. कोर बैंकिंग सिस्टम में एक मेकर (कोड तैयार करने वाला), चेकर (जांच करने वाला) और वेरीफायर (जानकारी पुख्ता करने वाला) होता है, जिनसे गुजरने के बाद ही यह जारी होता है.