क्या आप भी हो चुके हैं स्मार्टफोन के आदी, इस तरह पा सकते हैं छुटकारा…जानें
क्या यदि आप कुछ क्षण अपने स्मार्टफोन से दूर रहते हैं, तो स्वयं को अकेला महसूस करते हैं? स्मार्टफोन के प्रति हमारा बढ़ता लगाव या फिर उपयोगिता के कारण शायद ऐसा होता है. यह दशा केवल भारत में ही नहीं है, दुनियाभर में ऐसा पाया जाने लगा है. एक अमेरिकी रिसर्च रिपोर्ट से बड़ी चिंता […]
क्या यदि आप कुछ क्षण अपने स्मार्टफोन से दूर रहते हैं, तो स्वयं को अकेला महसूस करते हैं? स्मार्टफोन के प्रति हमारा बढ़ता लगाव या फिर उपयोगिता के कारण शायद ऐसा होता है. यह दशा केवल भारत में ही नहीं है, दुनियाभर में ऐसा पाया जाने लगा है.
एक अमेरिकी रिसर्च रिपोर्ट से बड़ी चिंता उभर कर सामने आयी है कि स्मार्टफोन की लत दुनियाभर में किस तरीके से बढ़ती जा रही है और यह लोगों को पूरी तरह से अपने चपेट में ले रहा है. आज के इन्फो टेक पेज में जानते हैं कैसे स्मार्टफोन के इस्तेमाल को कुछ हद तक कम करते हुए कैसे दूर करें अपनी इस आदत को और इससे जुड़े विविध पहलुओं के बारे में …
देश-दुनिया में स्मार्टफोन एडिक्शन यानी इसकी बुरी लत लगने के अनेक मामले सामने आ रहे हैं. हाल के दिनों में इस मसले ने डॉक्टरों, शोधकर्ताओं और यूजर्स का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है.
टेक्नोलॉजी इंश्योरेंस प्रोवाइडर ‘एजुरियन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में लोग दिनभर में करीब 80 बार अपना फोन चेक करते हैं. इस अध्ययन में पाया गया है कि एक औसत इनसान अपना स्मार्टफोन चेक किये बिना अधिकतम चार घंटों तक रह सकता है.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सक डॉक्टर एना लेंबके का कहना है कि मोबाइल के लगातार बढ़ते इस्तेमाल के बीच यूजर्स को अब इससे पैदा होने वाली समस्या या उसे इंगित करने वाले तथ्यों की ओर गौर करना महत्वपूर्ण है.
वे कहती हैं, टेक्नोलॉजी एडिक्शन के मरीज बड़ी संख्या में बढ़ रहे हैं और निश्चित रूप से यह एक चिंता का विषय है. हालांकि, स्मार्टफोन की बढ़ती हुई लत पर अब तक व्यापक तरीके से कोई खास शोध नहीं किया गया है, लेकिन अब तक जो भी तथ्य उभर कर सामने आये हैं, वे अपनेआप में इसकी गंभीरता को इंगित करने के लिए काफी हैं.
इसके लत की पहचान होने के बाद इसके बुरे असर को समझने के लिए विशेषज्ञ इससे जुड़े प्रमुख पहलुओं- नियंत्रण, अनिवार्यता और नियमित इस्तेमाल आदि पर ध्यान देते हैं. इस संदर्भ में कुछ खास व्यवहार देखे गये हैं, जो स्मार्टफोन एडिक्शन के लिए सक्षम सूचक के तौर पर पाये गये हैं. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
प्लानिंग से अधिक फोन का इस्तेमाल.
अनुचित तरीके से इस्तेमाल, जैसे ड्राइविंग के दौरान इस्तेमाल.
फोन में व्यस्त रहने के काण अन्य जरूरी गतिविधियों से वंचित रह जाना.
फोन पास में नहीं रहने पर व्यथित महसूस करना.
रिश्तों पर निगेटिव असर पड़ना.
विपरीत दशाओं में सुरक्षा कवच के तौर पर आप अपने फोन का इस्तेमाल करते हैं.
स्मार्टफोन की लत से बचाव के तरीके
सीमित समय के लिए बनायें दूरी
प्रत्येक सप्ताह किसी खास समयावधि के दौरान आप इससे दूरी बनायें. विशेषज्ञों की सलाह है कि बहुत अधिक जरूरत न हो, तो सप्ताह में कम-से-कम एक बार 24 घंटे का फोन ब्रेक लें.
फिजिकल लेबोरेटरी
अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ समय या जगह ऐसी तय करें, जहां आप फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. जैसे- भोजन के वक्त या सोते समय हमें फोन के इस्तेमाल को यथासंभव वर्जित करना करना चाहिए.
फोन में कलर सेटिंग का इस्तेमाल
स्मार्टफोन में आजकल कलर सेटिंग के जरिये अनेक लोग विविध तस्वीरों को मनपसंद तरीकों से रंगों में बदलाव करते हैं. हालांकि, यह सब करना बेहद अच्छा लगता है, लेकिन इनमें बहुत समय की बर्बादी होती है और प्रोडक्टिव भी कुछ नहीं होता है.
ऐसे में हमें इससे बचना चाहिए. गूगल के पूर्व नीतिशास्त्री ट्रिस्टन हैरिस का कहना है कि फोन की लत से बचने के लिए हमें इन सब चीजों से बचना चाहिए.
नोटिफिकेशन से भटकता है ध्यान
सेंटर फॉर इंटरनेट एंड टेक्नोलॉजी एडिक्शन के मनोविज्ञानी डॉक्टर डेविड ग्रीनफील्ड का कहना है कि स्मार्टफोन के इस्तेमाल के दौरान विविध प्रकार के अलर्ट और नोटिफिकेशन व्यवधान पैदा करते हैं. लिहाजा यदि आपको इसकी लत पड़ गयी हो, तो बेहतर होगा कि इसे बंद ही रखें.
दरअसल, आपके फोन में जब ‘पिंग’ या ‘डिंग’ का अलर्ट आता है, तो दिमाग में ‘डोपामाइन’ रीलिज होता है, जो एक तरीके का खुशनुमा रसायन का बहाव होता है, जिससे आपको कुछ पा लेने का एहसास होता है. यह ‘पिंग’ आपको बताता है कि वहां आपके पाने के लिए किसी प्रकार की कुछ चीज है. यह ‘पिंग’ आपको दूसरी ओर से ध्यान खींच कर फोन तक लाता है.
खो जाने का भय
यदि आपको अक्सर यह आशंका रहती है कि कहीं आपका फोन खो तो नहीं गया, तो समझिये कि आपके लिए यह गंभीर समस्या है. इसलिए इस तरह की आदत से हमें बचना चाहिए.
अपनी आदत को रिप्लेस करने से बदलेगा माहौल
किसी बुरी आदत को बदलने का एक बेहतर तरीका हाेता है, उसके बदले में कोई दूसरी अच्छी आदत लगाना. स्मार्टफोन के इस्तेमाल की बढ़ती प्रवृत्ति को भी इसी से जोड़ कर देखा जा सकता है और इसे अपनाया जा सकता है. बेहतर है कि आप कुछ पढ़ने, दोस्तों से मिलने, टहलने या कुछ नयी हॉबी की आदत डालें.
हटायें गैर-जरूरी एप्स
गैर-जरूरी एप्स से न केवल फोन की स्टोरेज क्षमता प्रभावित होती है, बल्कि यह आपका समय भी बर्बाद करते हैं. ऐसे एप्स को आप स्वयं पहचान सकते हैं और उन्हें अपने फोन से हटा सकते हैं. इसके अलावा, जो एप्स आपका समय ज्यादा खपत कर रहे हैं, और जरूरी नहीं हैं, तो उन्हें भी हटायें.
अन्य माध्यमों के मुकाबले मोबाइल फोन पर वीडियो विज्ञापन देखने की प्रवृत्ति भारत में बढ़ रही है. डाटा एनालिटिक्स कंपनी ‘मोमैजिक टेक्नोलॉजीज’ ने एक सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर दावा किया है कि भारत में 40 फीसदी लोग वीडियो फॉरमेट में विज्ञापनों को देखना पसंद करते हैं, जबकि 24 फीसदी लोग इन्हें इमेज के प्रारूप में देखना पसंद करते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में टेक्स्ट मैसेज के रूप में विज्ञापन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है. मोमैजिक टेक्नोलॉजीज के फाउंडर और सीइओ अरुण गुप्ता कहते हैं, वर्ष 2017 में भारत में मोबाइल विज्ञापनाें में 80 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है.
बैनर विज्ञापनों की बजाय बेहतर कंटेंट वाले वीडियो के प्रति ग्राहकों का रुझान बढ़ रहा है. आने वाले समय में इस प्रवृत्ति में और बढ़ोतरी हो सकती है. इस सर्वेक्षण में देश के महानगरों के अलावा अन्य शहरों के 35,000 लोगों की राय ली गयी है.
सर्वे के मुताबिक, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में स्मार्टफोन की उच्च सघनता के साथ 4जी तकनीक के उभार से मोबाइल फोन के जरिये डाटा की खपत की लागत कम हो रही है. बदलती प्रवृत्ति में इस फैक्टर का प्रमुख योगदान है.
स्मार्टफोन पर वीडियो देखते हैं 40 फीसदी भारतीय
60 फीसदी से अधिक लोगों ने बताया कि वे घर और कार्यस्थल पर अलग-अलग यानी कम-से-कम दो फोन का इस्तेमाल करते हैं
37 फीसदी ने स्वीकार किया कि इंटरनेट गतिविधियों के हाई वॉल्यूम के कारण एक घंटे में करीब छह बार अपना मोबाइल फोन देखते हैं.
28 फीसदी लोगों ने बताया कि वे गेम्स में क्रेडिट हासिल करने के लिए मोबाइल विज्ञापन देखते हैं.25 फीसदी यूजर्स ने स्वीकार किया है कि वे ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान मोबाइल विज्ञापन देखते हैं.
56 प्रतिशत लोगों ने यह बताया कि वे दिनभर में कम-से-कम दो से तीन बार ये वीडियो विज्ञापन इसलिए भी देख पाते हैं, क्योंकि डाटा की कीमत अपेक्षाकृत कम हो गयी है.