5जी और इंटरनेट ऑफ स्काई से साकार होगा यात्री ड्रोन का सपना, ये है दुनिया की पहली ड्रोन टैक्सी
दुनियाभर में अनेक कार्यों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल होने लगा है, लेकिन इसे विशिष्ट पहचान नहीं मिल पायी है. 5जी और इंटरनेट ऑफ स्काई के जरिये विशेषज्ञों को इस दिशा में एक बड़ी आरंभिक कामयाबी मिली है, जिससे बड़े शहरों में यात्री परिवहन को सुगम बनाने के लिहाज से एक नयी उम्मीद जगी है. […]
दुनियाभर में अनेक कार्यों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल होने लगा है, लेकिन इसे विशिष्ट पहचान नहीं मिल पायी है. 5जी और इंटरनेट ऑफ स्काई के जरिये विशेषज्ञों को इस दिशा में एक बड़ी आरंभिक कामयाबी मिली है, जिससे बड़े शहरों में यात्री परिवहन को सुगम बनाने के लिहाज से एक नयी उम्मीद जगी है. क्या है यह आरंभिक कामयाबी और कैसे होगा भविष्य में परिवहन आसान, इससे जुड़े विविध मसलों को रेखांकित कर रहा हैआज का इन्फो टेक पेज …
मौजूदा समय में ड्रोन का परिचालन सीमित दायरे में होता है. 5जी के प्रायोगिक परीक्षण के बाद ड्रोन का दायरा बढ़ाया जा सकता है. ड्रोन के मामले में एक बड़ी समस्या यह देखी जा रही है कि दुनियाभर के कई एयरपोर्ट के आसपास इससे व्यवधान पैदा हो रहा. लेकिन, जेलों और अन्य संवेदनशील जगहों की सुरक्षा व गश्ती के लिहाज से सक्षम पाये जाने से इसकी उपयोगिता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.
आसान होगी
ड्रोन की ट्रैकिंग
क्या हम राडार के जरिये ड्रोन को ट्रैक कर सकते हैं? फिलहाल कॉमर्शियल या सिविलियन ड्रोन इतने छोटे हैं कि उन्हें ट्रैक कर पाना मुश्किल होता है. लिहाजा, जीएसएमए यानी ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन एसोसिएशन एक सिम कार्ड के जरिये इसे नियंत्रित करने की योजना बना रहा है.
हालिया आयोजित ‘मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस’ में इस पर जोर दिया गया है. इससे न केवल प्रत्येक ड्रोन को पहचान आईडी मुहैया करायी जा सकेगी, बल्कि आपस में इनके टकराने की आशंकाओं को खत्म किया जा सकेगा. साथ ही, एयरपोर्ट या जेलों समेत संवेदनशील जगहों पर इसके दुरुपयोग की आशंकाओं को खत्म किया जा सकेगा.
5जी और एआई की अहम भूमिका
इस यात्री ड्रोन के संचालन में 5जी और एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अहम भूमिका है. विशेषज्ञों ने उम्मीद जतायी है कि दुनिया का सबसे इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम जल्द ही हकीकत रूप में लोगों के सामने आ सकता है.
दुबई में रोड और ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी इस पर तेजी से काम कर रहा है. जीएसएमए के इंटरनेट ऑफ थिंग्स के प्रोग्राम मार्केटिंग डायरेक्टर एंड्रयू पार्कर का कहना है कि दुबई में वर्ष 2030 तक इसके पूरी तरह से संचालित होने का अनुमान है. इसे दूर से ही नियंत्रित किया जा सकेगा और इसमें बैठे हुए यात्री को केवल सफर का आनंद लेना होगा. 5जी के जरिये इसमें अनेक सॉफ्टवेयर को संचालित किया जा सकेगा.
इंटरनेट ऑफ स्काई
ड्रोन में लगे हुए सिम कार्ड को नियमित रूप से मोबाइल नेटवर्क से जुड़े रहने के लिए 100 एमबीपीएस की स्पीड की जरूरत होगी. यह सब नवीन तकनीक के जरिये ही मुमकिन होगा, जिसमें 5जी की अहम भूमिका होगी. इसमें उन्नत कैमरा और लिडार स्कैनर्स का इस्तेमाल होगा. यहां सिम का मतलब यह हुआ कि यदि आसमान में कोई ड्रोन खो गया, तो उसे सिम के जरिये आसानी से खाेजा जा सकेगा. यह सब मोबाइल नेटवर्क के जरिये ही होगा, जिसे इंटरनेट ऑफ स्काई नाम दिया गया है.
दुनिया की पहली ड्रोन टैक्सी
‘मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस 2018’ में उम्मीद जतायी गयी है कि मोबाइल इंडस्ट्री का भविष्य ड्रोन टैक्सी से जुड़ा होगा. चीन के उद्यमियों ने यात्री ड्रोन के रूप में ‘इहांग 184’ का यहां सफल परीक्षण किया.
ड्रोन टैक्सी, फ्लाइंग टैक्सी, पायलटरहित हेलीकॉप्टर व अनमैंड एरियल वेहिकल समेत अनेक नामों से पुकारा जाने वाला यह एक यात्रीवाहक यान है. ‘सीएनएन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस यान से हाल ही में एक हजार टेस्ट फ्लाइट पूरे कर लिये हैं. हालांकि, अभी इस ड्रोन के लिए रेडियो पोजिशनिंग सिस्टम को विकसित करने के लिए 4जी आधारित ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ का ही प्रयोग किया गया है. 4जी मॉडम और सिम आरोपित करते हुए प्रत्येक ड्रोन को रीयल-टाइम में ट्रैक किया जा सकता है.
इंटरनेट ऑफ स्काई मोबाइल नेटवर्क के लिए एक नयी चीज है. इसकी जरूरत इसलिए महसूस की गयी है, क्योंकि आसमान में विविध प्रकार के ट्रैफिक की बढ़ती गतिविधियों से उनके आपस में टकराने का जोखिम बढ़ गया है. इससे बचाव के लिए उन्नत संचार सिस्टम की जरूरत होगी. उड़ने वाली तकरीबन सभी चीजों को सिम आधारित पहचान मुहैया कराते हुए 5जी के जरिये इस जोखिम को कम किया जा सकता है.
– एंड्रयू पार्कर, प्रोग्राम मार्केटिंग डायरेक्टर, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, जीएसएमए.
इहांग 184 की खासियतें
125 किमी प्रति घंटे की होगी औसत स्पीड.
16 किमी तक एक बार में यात्रा में सक्षम.
4.5 फिट के विंगस्पैन होंगे, जिसमें सोलर पैनल लगा होगा.
8 प्रोपेलर्स और चार आर्म्स होंगे इस यान में.
100 किलो वजन तक का व्यक्ति इसमें आसानी से सफर कर सकता है.
क्या होगा सिस्टम
ऑटोमेटेड फ्लाइट सिस्टम पर आधारित होगा, जो कंप्यूटर जनित आंकड़ों और सेंसर के जरिये संचालित होगा.
सेटेलाइट आधारित नेवीगेशन से निर्धारित करेगा सबसे सुरक्षित रास्ता.
इसे एेसे डिजाइन किया गया है, ताकि क्षतिग्रस्त होने पर सुरक्षित रूप से सतह पर आ सके.
सोलर विद्युत से संचालित होगा यह यान.
इसमें रीयल-टाइम ट्रैकर, ऑपरेटर कंट्रोल, प्रोटेक्टिव जियोफेंसिंग समेत इमर्जेंसी रीमोट कंट्रोल होगा.
सिम आधारित ई-आइडेंटिफिकेशन और मालिक का रजिस्ट्रेशन.
क्रॉप डिजीज डिटेक्टर एप से फसल की बीमारी का निदान
एक नये एप के जरिये किसान अब खुद ही फसल की बीमारियों का निदान कर सकते हैं. फसलों की पत्तियों का सामान्य फोटोग्राफ इस्तेमाल करते हुए इस एप की मदद से उनकी बीमारियों को दूर किया जा सकता है. ‘एग्रो न्यूज’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मैनचेस्टर मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों द्वारा विकसित किया गया यह एप किसानों के लिए व्यापक रूप से उपयोगी साबित हो सकता है.
इस ‘क्रॉप डिजीज डिटेक्टर एप’ का मकसद किसानों को अपनी फसल को सुधार लाने में सहायता करना है, ताकि वे बीमारी को नियंत्रित करने के लिए रणनीतियों के आधार पर तेज और अधिक सटीक आंकड़ा दे सके और इस तरह से फसल पर बीमारियों का संक्रमण न हो सके.
40 फीसदी फसलों का नुकसान
बीमारियों के कारण दुनियाभर में 40 फीसदी फसलों का नुकसान हो जाता है. यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग, मैथेमेटिक्स व डिजिटल टेक्नोलॉजी विभाग के कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर लिआंगकू हान का कहना है, विविध बीमारियों से खराब होने वाली फसलों को इस तकनीक की मदद से 40 फीसदी तक बचाया जा सकेगा. भविष्य में इसके आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकी संबंधी फायदे भी देखने में आ सकते हैं.
फोटो खींचने की तरह आसान
स्मार्टफोन से फोटो खींचने की तरह ही यह आसान है. इनोवेटिव क्लाउड आधारित प्रोसेसिंग सिस्टम से इस एप को कनेक्ट करन पर स्वत: इसे पत्तियों की सतह में किसी तरह की गड़बड़ी का पता चल जाता है. इसमें एक मिनट से भी कम समय लगता है. इसमें निदान भी बताया जाता है.
बतायेगा तीन बीमारियों के बारे में
फिलहाल इस एप को तीन बीमारियों को जानने के हिसाब से प्रोग्राम किया गया है. खासकर गेहूं की फसल के लिए इसका प्रोटोटाइप तैयार किया गया है. चीन में इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. भविष्य में इसके जरिये अन्य कई फसलों की बीमारियों को जाना जा सकेगा.