अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : ये हैं महिला सशक्तीकरण के अग्रणी सूत्रधार, हर पुरुष को पढ़नी चाहिए ये किताबें
इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम है-“टाइम इज नाउ : रूरल एंड अर्बन एक्टिविस्ट ट्रांसफॉर्मिंग वीमेंस लाइव्स” यानी अब शहरी महिलाओं के साथ ग्रामीण महिलाएं भीविकास की दौड़ में भागीदारी निभा रही हैं. कहते हैं एक स्त्री की समस्या को एक स्त्री ही बेहतर समझ सकती है और वही इनके हक के लिए लड़ […]
इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम है-“टाइम इज नाउ : रूरल एंड अर्बन एक्टिविस्ट ट्रांसफॉर्मिंग वीमेंस लाइव्स” यानी अब शहरी महिलाओं के साथ ग्रामीण महिलाएं भीविकास की दौड़ में भागीदारी निभा रही हैं.
कहते हैं एक स्त्री की समस्या को एक स्त्री ही बेहतर समझ सकती है और वही इनके हक के लिए लड़ भी सकती है. शायद इसीलिए दुनियाभर में वीमेन लीडरशिप में महिलाओं के मुद्दे केंद्र में हैं और उनके उत्थान के लिए ढेरों प्रयास हो रहे हैं. मगर हमें नहीं भूलना चाहिए कि आधी आबादी को पुरुषों के बराबर हक व सम्मान दिलाने की कोशिश में कई पुरुषों का भी बेहद अहम योगदान रहा है.
जहां 18वीं सदी में अाबादी बानो बेगम, सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की समस्याओं को आवाज दी, वहीं राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद विद्यासागर, महादेव गोविंद रानाडे जैसे भी समाज सुधारक हुए, जिन्होंने महिलाओं को रूढ़िवादिता की जंजीरों से आजादी दिलाने में बड़ी भूमिका निभायी है. निश्चित तौर पर आज इस कड़ी में एक-एक कर और भी नाम जुड़ रहे हैं, जिन्हें दुनिया भले नहीं जानती, मगर भारत के अलग-अलग हिस्सों में ये अपने-अपने तरीके से महिलाओं के मुद्दे पर सराहनीय प्रयास कर रहे हैं. यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं इनकी एक छोटी-सी तस्वीर.
हर पुरुष को पढ़नी चाहिए ये किताबें
स्त्री उपेक्षिता
लेखिका : प्रभा खेतान
यह किताब बताती है कि एक स्त्री जन्म नहीं लेती. समाज उसे अपनी जरूरत के हिसाब से गढ़ता है.
आजादी मेरा ब्रांड
लेखिका : अनुराधा बेनीवाल
हरियाणा के एक छोटे-से गांव से 30 देशों की यात्रा पर अकेले निकली एक लड़की यात्रा वृतांत.
गॉन गर्ल
लेखक : गिलियन फ्लिन
वर्तमान में हर लड़की पर मॉडर्न के साथ ट्रेडिशनल बने रहने का भी जो प्रेशर होता है, उसे बयां करती है.
ऐमा
लेखिका : जॉन ऑस्टिन
इंग्लैंड में रहनेवाली कुलीन महिलाओं के जीवन की मुश्किलों और चिंताओं का अन्वेषण करतीं किताब.
द एंड ऑफ मेन : एंड द राइज ऑफ वुमेन
लेखिका : अन्ना रोजिन
पुरुषवादी मानसिकता के विरूद्ध महिलाओं द्वारा उठाये गये कदम के बारे में
महिला मुद्दों पर बनी अर्थपूर्ण फिल्में
मातृभूमि
भ्रूण हत्या तथा महिलाओं की घटती संख्या के भयावह परिणामों को बयां करती है.
डोर
महिला विरोधी सामाजिक कुप्रथाओं व रीति-रिवाज़ों पर चोट करती फिल्म.
लागा चुनरी में दाग
गरीबी के कारण वैश्यावृति चुननेवाली महिलाओं की मनोस्थिति का दृश्यांकन.
चक दे इंडिया
यह फिल्म बताती है कि महिलाएं अगर ठान लें,तो उनके लिए सब आसान है.
वुमेन विदाउट मैन
पुरुष प्रताड़ना के विरोध में चार ईरानी महिलाओं के एकल जीवन की कहानी.
आसमां
एड्स पीड़ित एक इजिप्शियन सिंगल मदर के जीवन संघर्ष का चित्रण.
एंग्री इंडियन गॉडेस
भारतीय महिलाओं की समस्याएं दर्शाती फिल्म. सभी मुख्य पात्र महिलाएं हैं.
पिंक
पुरुषों एवं महिलाओं के प्रति विभेदी मानसिकता के खिलाफ संदेश देती फिल्म.
पार्च्ड
भारत की ग्रामीण महिलाओं की दयनीय स्थिति को बयां करती एक बेहतरीन फिल्म.
महिला सशक्तीकरण के अग्रणी सूत्रधार
राजा राममोहन राय
जन्म : 22 मई 1772 िनधन : 27 सितंबर 1833
भारतीय पुनर्जागरण का शिल्पकार और आधुनिक भारत का पिता माना जाता है. इन्होंने ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना करके सती प्रथा, जाति प्रथा, धार्मिक अंधविश्वास आदि अमानवीय प्रथाओं का विरोध किया था.
ईश्वर चंद्र विद्यासागर
जन्म : 26 सितम्बर,1820िनधन : 29 जुलाई, 1891
प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षा शास्त्री, स्वाधीनता सेनानी, गरीबों व दलितों के संरक्षक थे. भारत में शिक्षा और महिलाओं की स्थिति को सुधारने में उनका उल्लेखनीय योगदान है.
हर बिलास शारदा
जन्म : 1867िनधन : 1955
इनके प्रयासों से ही 28 सितंबर 1929 को बाल विवाह निरोधक कानून स्वीकृत हुआ था. इसे ‘शारदा एक्ट’ के नाम से भी जाना जाता है. यह एक्ट आज भी लागू है.
गोविंद रानाडे
जन्म : 18 जनवरी,1842िनधन : 16 जनवरी, 1901
इन्हें ‘महाराष्ट्र का सुकरात’ कहते है. वह बाल विवाह के कट्टर विरोधी थे और स्त्री शिक्षा तथा विधवा विवाह के समर्थक थे. उन्होंने ‘विधवा विवाह मंडल’ की स्थापना की थी.
ज्योतिराव गोविंदराव फुले
जन्म : 11 अप्रैल, 1827 िनधन : 28 नवंबर, 1890
महान भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रांतिकारी कार्यकर्ता, जिन्होंने नारी-शिक्षा, विधवा-विवाह और किसान हित के लिए कार्य किया.
अरुणाचलम मुरुगनाथम
महिलाओं के स्वास्थ को ध्यान में रख कर सस्ते सेनेटरी नैपकिन बनानेवाली वेंडिंग मशीन का आविष्कार किया. इसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा गया. उनके जीवन संघर्ष पर ही ‘पैडमैन’ फिल्म बनी है.
ल्यूक मार्टिन
दुनिया भर में हर चार में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार है. अमेरिका निवासी ल्यूक मार्टिन अपनी संस्था‘ वॉयलेंस अगेंस्ट वुमेन एंड गर्ल्स’ (VAWG) के तहत फ्रंटलाइन प्रोफेशनल्स को घरेलू तथा लैंगिक हिंसा के खिलाफ लड़ने की ट्रेनिंग देते हैं.
आनंद माधब
लैंगिक समानता एवं महिला विकास के क्षेत्र में कार्यरत लोगों में मूलत: बिहार के भागलपुर जिले के रहनेवाले आनंद माधब का नाम भी शामिल है. वह ‘वर्ल्ड सीएसआर डे’ की तरफ से दुनियाभर के प्रभावशाली 100 सीएसआर (यानी कंपनीज सोशल रिस्पोन्सेबिलिटीज) नेताओं की सूची का हिस्सा भी रह चुके हैं.
अजय कु. जायसवाल
झारखंड के बोकारो जिले के रहनेवाले अजय कुमार जायसवाल डायन प्रताड़ना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. वह अपनी संस्था ‘एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस’ (ASHA) के तहत गांव-कस्बों में घूम-घूम कर जागरूकता अभियान चलाते हैं.
सादिक खान
2016 में लंदन के मेयर पद पर चयनित होनेवाले सादिक खान हमेशा से महिलाओं एवं पुरुषों के समानता के पक्षकार रहे हैं. इस असमानता के खिलाफ उन्होंने लंदन के सिटी हॉल में पहला जेंडर पे ऑडिट पेश किया. इसका उद्देश्य आय के लैंगिक अंतर को खत्म करना है.
सावित्रीबाई फुले
जन्म : 3 जनवरी, 1831 िनधन : 10 मार्च, 1897
इन्हें भारत की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है. विधवाओं की स्थिति सुधारने, सती-प्रथा तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और विधवा पुनर्विवाह के क्षेत्र में उनका योगदान बेहद उल्लेखानीय माना जाता है.
पंडिता रमाबाई सरस्वती
जन्म : 23 अप्रैल, 1858 िनधन : 5 अप्रैल, 1922
प्रख्यात विदुषी और समाजसुधारक, जिन्होंने विधवा विवाह तथा बाल विधवा का समर्थन और अनाथ बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए काम किया. उन्हें ‘कैसर-ए-हिंद’ की उपाधि मिली थी.
भीकाजी रुस्तम कामा
जन्म : 24 सितंबर, 1861 िनधन : 13 अगस्त, 1936
इन्हें ‘मैडम कामा’ के नाम से भी जाना जाता है. इन्होंने लैंगिक विभेद के खिलाफ आवाज उठायी. अनाथ बच्चियों को पढ़ाने और उनका जीवन संवारने के लिए काम किया.
उमाबाई कुंडपुर
जन्म : 1892 िनधन : 1992
इन्होंने अपने समाज सुधारक ससुर आनंदराव कुंडपुर के सहयोग से मुंबई में गणदेवी महिला समाज की स्थापना करके महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया और महिलाओं को स्वदेशी आंदोलन से जोड़ा.
अाबादी बानो बेगम
जन्म : 1850 िनधन : 13 नवबंर, 1924
सक्रिय तौर पर भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेनेवाली देश की पहली मुस्लिम महिला, जिन्होंने महिला शिक्षा के समर्थन और पर्दा प्रथा के विरोध में आवाज उठायी.
अंजू रावत नेगी
रेप तथा एसिड अटैक की शिकार लड़कियों के लिए मुफ्त कोर्ट केस लड़नेवाली वकील, जो अब तक 40 से ज्यादा महिलाओं को न्याय दिलवा चुकी हैं. जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए ‘फरिश्ते ग्रुप’एनजीओ चलाती हैं.
मानसी प्रधान
महिला अधिकारों की समर्थक मानसी रावत को संयुक्त राष्ट्र ने 2011 में ‘आउडस्टैंडिंग वुमेन अवॉर्ड’ से नवाजा था. उन्होंने ऑनर फॉर वुमेन नेशनल कैंपन के तहत ‘निर्भया वाहिनी’ ईकाई का गठन किया. इसका उद्देश्य महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को खत्म करना है.
मुना अबु सुलेमान
सउदी अरब में पॉपुलर टीवी शो’कलम नवीम’ की फाउंडर और को-होस्ट मुना अबु सुलेमान लैंगिक समानता की प्रबल समर्थक हैं. अपने कार्यक्रम में वह समलैंगिकता, लैंगिक प्रताड़ना, तलाक जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने व लैंगिक विभेद को कम करने का प्रयास करती हैं. 2007 में उन्हें पहली सउदी यूएनडीपी गुडविल एबेस्डर होने का गौरव प्राप्त है.
लक्ष्मी अग्रवाल
12 साल पहले खुद एसिड अटैक का शिकार हुई लक्ष्मी अग्रवाल आज अपने एनजीओ ‘छांव फाउंडेशन’ के माध्यम से ऐसी अन्य पीड़िताओं के लिए काम कर रही है. उनकी कोशिशों के परिणामस्वरूप देश में एसिड की बिक्री और एसिड अटैकर्स के खिलाफ कड़े कानून बने है.
चेतना गाला सिन्हा
चेतना ने महाराष्ट्र के अकालग्रस्त क्षेत्र में रहनेवाले लोगों का जीवन संवारने के लिए मानदेसी फाउंडेशन का गठन किया. यह आरबीआइ से लाइसेंस प्राप्त करनेवाली देश की पहली कोऑपरेटिव संस्था है, जो लोगों को छोटी बचत और निवेश के बारे में जागरूक करती है.