बॉडी क्लॉक को अव्यवस्थित करती है नीली रोशनी…जानें कैसे
उच्च स्तरीय कृत्रिम प्रकाश शाम के समय सबसे ज्यादा आंखें व नींद को प्रभावित करता है. इससे बॉडी क्लॉक भी प्रभावित होता है. कृत्रिम प्रकाश का तात्पर्य वैसे लाइट्स से है, जो अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रारेड रेडिएशन उत्सर्जित करते हैं. सीएफएल व एलइडी बल्ब इसी श्रेणी में आते हैं. ऐसी स्थिति में दिमाग मेलाटोनिन कम स्त्रावित […]
उच्च स्तरीय कृत्रिम प्रकाश शाम के समय सबसे ज्यादा आंखें व नींद को प्रभावित करता है. इससे बॉडी क्लॉक भी प्रभावित होता है. कृत्रिम प्रकाश का तात्पर्य वैसे लाइट्स से है, जो अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रारेड रेडिएशन उत्सर्जित करते हैं. सीएफएल व एलइडी बल्ब इसी श्रेणी में आते हैं. ऐसी स्थिति में दिमाग मेलाटोनिन कम स्त्रावित करता है.
कृत्रिम प्रकाश का बड़ा स्त्रोत इलेक्ट्रॉनिक गैजेट भी हैं, जिनसे निकलनेवाले लाइट्स मस्तिष्क में सिग्नल देकर निर्माण होनेवाले हार्मोन मेलाटोनिन को अव्यवस्थित कर देते हैं. शरीर में मेलाटोनिन कम बनने से बॉडी क्लॉक अव्यवस्थित हो जाती है. खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है.
क्या कहता है रिसर्च : सुपराक्यासमेटिक न्यूक्लियस (एससीएन) दिमाग का वह हिस्सा है, जो बॉडी क्लॉक को कंट्रोल करता है. इसका पता ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता लगा चुके हैं.
यूसीएलए और जापान साइंस एंड टेक्नोलॉजी एजेंसी भी साबित कर चुकी है कि आर्टिफिशियल लाइट के कारण महिलाओं में मासिक चक्र प्रभावित होती है. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोध के मुताबिक नीली रोशनी कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और मोटापा को भी बढ़ावा देती है. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि जो महिलाएं जो कंसीव करना चाहती हैं, वे कम-से-कम आठ घंटे की नींद लें और अंधेरे में ही सोएं, ताकि मेलाटोनिन स्टीमुलेट हो और बॉडी की बॉयोलॉजिकल क्लॉक डिस्टर्ब न हो.
देर रात यूज न करें मोबाइल
देर रात तक मोबाइल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा मेलाटोनिन के निर्माण को प्रभावित करती है, जिसके कारण अनिद्रा की दिक्कत आती है. इससे निकलने वाली कृत्रिम रोशनी से महिलाओं में मासिक धर्म नियमित न होना, प्रेग्नेंसी में बाधा, भ्रम की स्थिति बनना और बर्थ में दिक्कत होना जैसी समस्याएं सामने आती हैं. वहीं पुरुषों में इस कारण शुक्राणु की क्वालिटी का स्तर भी गिरता है.
मेलाटोनिन हार्मोन का महत्त्व
फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार कृत्रिम प्रकाश रात में शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है. खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर. इससे दूर रहें तो प्रेग्नेंसी के दौरान भ्रूण में बेहतर डेवलपमेंट के परिणाम सामने आते हैं. मेलाटोनिन एक हार्मोन है, जो अंधेरा होते ही शरीर में पीनियल ग्लैंड से स्वतः रिलीज होता रहता है. इसलिए यह नींद लाने में मददगार है. अंडोत्सर्ग के दौरान के दौरान यह रसायन अंडों को सुरक्षा प्रदान करता है और क्षतिग्रस्त होने से बचाता है. शरीर से फ्री रेडिकल्स को बाहर निकालता है.
बचाव के लिए क्या करें आप
दिन में ज्यादा-से-ज्यादा प्राकृतिक रोशनी में रहें
अगर आप नाइट शिफ्ट में जॉब करते हैं या देर रात बहुत ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का प्रयोग करते हैं, तो नीली रोशनी से बचाव करनेवाला चश्मा पहनें. ऐसे एप्प भी हैं, जो ब्लू/ग्रीन वेबलेंथ को फिल्टर करती हैं.
गर्भवती महिलाएं भी होती हैं प्रभावित
डॉ पूजा रानी
आइवीएफ एक्सपर्ट, इंदिरा आइवीएफ हॉस्पिटल
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से निकलनेवाली नीली रोशनी का प्रेग्नेंट महिलाओं और उनके गर्भस्थ शिशु पर भी बुरा असर पड़ता है. कम-से-कम आठ घंटे की अंधेरे में नींद भ्रूण के विकास के लिए बेहद जरूरी है. अगर भ्रूण को एक तय मात्रा में मां से मेलाटोनिन हार्मोन नहीं मिलता है, तो बच्चे में कुछ रोग, जैसे- एडीएचडी और ऑटिज्म की आशंका होती है. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि आठ घंटे की नींद और हेल्दी डायट ली जाये. साथ ही कृत्रिम रोशनी से दूर रहा जाये, खासकर रात में, ताकि फर्टिलिटी को बेहतर रखा जा सके.