21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चैत्र नवरात्र : नव संवत्सर में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य

II विनीता चैल II आदिकाल से ही न केवल मनुष्य, बल्कि ईश्वर भी आद्याशक्ति की उपासना करते रहे हैं. देवी स्वरूप में ऊषा की स्तुति ऋग्वेद में तीन सौ बार करने का उल्लेख है. गुड़ी पड़वा अर्थात चैत्र नवरात्र के प्रारंभ होने के साथ ही विक्रम संवत् का भी प्रारंभ होता है. कहते है यह […]

II विनीता चैल II

आदिकाल से ही न केवल मनुष्य, बल्कि ईश्वर भी आद्याशक्ति की उपासना करते रहे हैं. देवी स्वरूप में ऊषा की स्तुति ऋग्वेद में तीन सौ बार करने का उल्लेख है.

गुड़ी पड़वा अर्थात चैत्र नवरात्र के प्रारंभ होने के साथ ही विक्रम संवत् का भी प्रारंभ होता है. कहते है यह पंचांग राजा विक्रमादित्य के शासनकाल से ही जारी हुआ था, इसी कारण इसे विक्रम संवत् नाम से जाना जाता है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि युगादि तिथि है एवं दक्षिण भारत में इसे उगादी कहा जाता है. इस दिन लोग नवीन वस्त्र पहनते हैं, घरों की सफाई कर उसे सुसज्जित करते हैं, रंगोली सजाकर द्वार पर आम्रपत्र से लरी बना कर द्वार सजाते हैं.

वैसे तो धुलेड़ी के दिन से ही वसंतोत्सव के साथ चैत्र मास का आरंभ होता है, किंतु इसका कृष्णपक्ष हिंदू संवत्सर समापन का तथा शुक्लपक्ष नये हिंदू संवत्सर का प्रारंभ पक्ष माना जाता है. नववर्ष की स्वागत की तैयारी प्रकृति फाल्गुन मास के वासंती बहार के साथ ही प्रारंभ कर देती है.

वसंत के मनमोहक सौंदर्य की आभा लिये प्रकृति रानी हरीतिमा की चुनरिया ओढ़े नयी दुल्हन की भांति संवर जाती है. खेतों में खिले सरसों के पीले-पीले फूल और गेहूं की बालियां मंद-मंद लहराते हुए झूमती हैं. निर्जर सघन घने जंगलों में खिले पलाश और सेमल के फूलों का अनुपम सौंदर्य मिलकर प्रकृति के सुंदरता में चार चांद लगाते हैं.

आम्र के वृक्ष आम्र मंजरियों से लद जाती हैं. वृक्षों में नयी-नयी सुंदर कोपलें आती हैं. कोयल की मधुर कूक भौंरों को आकर्षित करने लगती है. चारों ओर प्रकृति का ही उत्सव चल रहा होता है और इस मधुमासीय रंगोत्सव के साथ नव संवत्सर का आगमन होता है.

शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की रचना के साथ नौ दिनों तक आद्याशक्ति मां भगवती की आराधना का नवरात्र उत्सव प्रारंभ होता है. नवरात्रि के प्रथम दिन, नव संवत्सर की प्रथम रात्रि का चैत्र शुक्ल प्रथम दर्शन ही चैत्र चंद्र दर्शन है, जिसे उत्सव रूप में मनाया जाता है. इसे ही ‘चैतीचंद्र महोत्सव कहा जाता है. इस दिन झूलेलाल और मातारानी की आराधना की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम ने अत्याचारी शासक बाली का वध कर किष्किंधा की प्रजा को मुक्ति दिलायी थी.

बाली के अत्याचार से मुक्त हो प्रजा इसी दिन विजय ध्वज फहराकर उत्सव के आनंद के साथ झूम उठी थी. इस दिन नयी साड़ी पहनाकर बांस में तांबे या पीतल का लोटा और आम्र पल्लव रखकर गुड़ी बनायी जाती एवं उसका और श्रीराम-हनुमानजी की पूजा किये जाने का विधान है. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था.

द्वापर काल मवारिका में रहनेवाले प्रसेनजीत की हत्या के कलंक से कलंकित श्रीकृष्ण जब मणि का पता लगाने हेतू अंधेरी गुफा में प्रवेश किये, तब समस्त ब्रजवासियों ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ कर चैत्र शुक्ल नवमी तक सोपवास माता भगवती की आराधना की एवं रात्रि जागरण किया था, ताकि श्री कृष्ण गुफा से सकुशल लौट आएं. नव संवत्सर के दिन प्रातः पंचांग की पूजा करके वर्षफल का श्रवण किया जाता है.

नवरात्रि उपासक कक्ष की पूर्व दिशा की ओर गोबर लीपकर माता भगवती को स्थापित कर मिट्टी की वेदी बनाकर कलश रखते हैं एवं विधिवत गेहूं, जौ आदि धान्य बोते हैं. श्री गौरी, गणपति, नवग्रह आदि की पूजा कर भगवती मां अम्बा की फल-फूलों से पूजा करते हैं.

प्राचीन काल में ऋतु और राशि परिवर्तन के ऐसे समय में स्वयं को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए लोग सोपवास मां भगवती की आराधना करते थे. सात्विक आहार, व्रत-उपवास से शरीर और मन दोनों को शुद्ध करने का सशक्त उपक्रम है चैत्र नवरात्रि.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें