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ग्रहों के अतिदुर्लभ संयोग में हुआ था श्रीराम का जन्म
मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ) वै दिक युग में ज्योतिष का जन्म तो आकाशीय स्थितियों और यज्ञीय शुभ मुहूर्तो को जानने के लिए हुआ था. आज का ज्योतिष तो मुख्यतः वराह मिहिर के समय की देन है. पराशर, भृगु, रावण आदि के नाम से आये ग्रंथ भी परवर्ती ही हैं. तब सवाल होगा कि […]
मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)
वै दिक युग में ज्योतिष का जन्म तो आकाशीय स्थितियों और यज्ञीय शुभ मुहूर्तो को जानने के लिए हुआ था. आज का ज्योतिष तो मुख्यतः वराह मिहिर के समय की देन है. पराशर, भृगु, रावण आदि के नाम से आये ग्रंथ भी परवर्ती ही हैं.
तब सवाल होगा कि वाल्मीकीय रामायण में जो राम-जन्म के समय का आकाशीय आकलन है, वह क्या है? कुंडली का प्रचलन नहीं था, तो क्यों कहते हैं वाल्मीकि-
चैत्रे नवमिके तिथौ।
नक्षत्रेsदिति दैवत्ये स्वोच्च-संस्थेषु पंचसु।
ग्रहेषु कर्कटके लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोक-नमस्कृतम्।
कौसल्याजनयद् रामं दिव्यलक्षण-संयुतम्।।
अर्थात् चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न में कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त सबके लिए वंदनीय श्रीराम को जन्म दिया. उस समय पांच ग्रह उच्च के थे और बृहस्पति चंद्रमा के साथ लग्न में स्थित था.
यहां केवल बृहस्पति का तो स्पष्ट उल्लेख है, पर अगस्त्य संहिता ने सूर्य, मंगल, शुक्र और शनि के भी उच्च राशि में होने का उल्लेख किया है. इससे वाल्मीकि की बातों की पुष्टि हो जाती है.
दरअसल, ग्रहचार पर आधारित होने से कुंडली विज्ञान गणितीय है, इसलिए चैत्र शुक्ल नवमी को मध्याह्न में अयोध्या के स्थानीय समय पर देखा जायेगा तो कर्क लग्न ही मिलेगा और सूर्य भी प्रायः दशम भाव में मेष का ही रहेगा.
पुनर्वसु के अंतिम चरण व पुष्य नक्षत्र ही रहेगा, अर्थात चंद्रमा कर्कस्थ ही मिलेगा. हां, कभी-कभी अपवाद भी होता है. अब रही अन्य ग्रहों की बात, तो उनकी चाल की अवधि बहुत भिन्न होने से हर साल समान स्थान पर नहीं मिल सकते, इसलिए तो पांच-पांच ग्रहों के उच्चस्थ होने को अतिदुर्लभ संयोग माना गया है.
पराशर की स्पष्ट मान्यता है कि माता-पिता, जन्म-समय एवं संगति ये गुणों के कारण होते हैं, अर्थात इन चारों के कारण गुण-अवगुण आते हैं. इनमें ज्योतिष विषयक होने से जन्म समय की प्रधानता है-
माता-पिता जनुःकालः संसर्गःचोत्तरोत्तरम्।
गुणेषु प्रबलो हेतुः उत्तमादिषु जायते।।
जन्मकालसमः तस्माद् गुणःसंजायते जने।
विविच्यैवं सदा विज्ञैः विज्ञेयं सदसत्फलम्।।
श्रीराम ऐसे पिता के पुत्र रहे, जो क्षात्रधर्म में सर्वत्र विख्यात रहे. जिनका रथ दसों दिशाओं निर्बाध दौड़ता, अर्थात उनसे लोहा लेने की किसी में हिम्मत नहीं थी. पूर्व जन्मों के आख्यानों से भी ज्ञात होता है कि वे दानी, धर्मात्मा थे.
ऐसे ग्रहजन्य कुंडली में दुर्लभ संयोग भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में सोने में सुगंध का काम करते हैं. अवतार की अवधारणा को छोड़ भी दिया जाये तो इन सारे संयोगों के कारण ही महापुरुषत्व प्राप्त है. ग्रहस्थिति से पंच महापुरुष योगों में रुचक, हंस, शश ये तीन तो स्पष्ट ही हैं, गुरु-चान्द्री योग भी पराक्रमी, कुलश्रेष्ठ आदि बनाने ही वाला है-
‘विक्रान्तं कुलमुख्यमस्थिरमतिं वित्तेश्वरं सांगिरा’.
जातकाभरण के अनुसार जन्मकुंडली में पांच ग्रह उच्च के हों, तो वह सार्वभौम सम्राट होता है-
‘नभश्चराः पंच निजोच्चसंस्था यस्य प्रसूतौ स तु सार्वभौमः’ और श्रीराम अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आज भी अमर होकर पूरी दुनिया पर राज करते आ रहे हैं. हालांकि सप्तम भाव में उच्च का होकर भी मंगल ने उनके दाम्पत्य जीवन को सफल नहीं रहने दिया. कुल मिलाकर देखा जाये, तो श्रीराम की जन्मकुंडली का फल, उनका जीवन और चरित्र करीब ही हैं.
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