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सृष्टि के निर्माण का उत्सव है चैत्र नवरात्र, जानें कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त और चैत्र नवरात्रि तिथि के बारे में

II दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी II ज्योतिषाचार्य askfrompanditji@gmail.com नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है. इस समय शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है, क्योंकि ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है. मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है- विक्रम संवत के पहले अर्थात् चैत्र […]

II दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी II
ज्योतिषाचार्य
askfrompanditji@gmail.com
नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है. इस समय शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है, क्योंकि ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है. मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है- विक्रम संवत के पहले अर्थात् चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नवमी तक. इसी प्रकार इसके ठीक छह मास पश्चात आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात् विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक नवरात्र मनाया जाता है.
ज्योतिषीय दृष्टि से चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है, क्योंकि इस नवरात्र की अवधि में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है. सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं. सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्ववाले हैं, इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है.
धार्मिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि ब्रह्मपुराण के अनुसार नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थीं और देवी के कहने पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय के समय ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का काम शुरू किया था, इसलिए इसे सृष्टि के निर्माण का उत्सव भी कहा जाता है. इसी तिथि से हिंदू नववर्ष शुरू होता है. इसके अतिरिक्त सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था.
चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी. इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है, वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था, इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बाकी नवरात्रों की तुलना में ज्यादा महत्व है. नवरात्र के दौरान जहां मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है, वहीं चैत्र नवरात्रों के दौरान मां की पूजा के साथ-साथ अपने कुल देवी-देवताओं के पूजा का विधान भी है, जिससे यह नवरात्र विशेष हो जाता है.
इस बार बन रहा सर्वार्थ सिद्धि योग : इस बार चैत्र नवरात्र इसलिए भी खास है, क्योंकि विरोधीकृत्य नव संवत्सर 2075, रविवार 18 मार्च, 2018 से प्रारंभ हो रहा है. इस साल उतरा-भाद्रपद नक्षत्र और मीन राशि में नया साल विक्रम संवत 2075 व नवरात्र शुरू हो रहे हैं. इससे सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है.
इस साल के राजा सूर्य और मंत्री शनि होंगे. यह लगातार चौथा साल है जब नवरात्र 8 दिनों का होगा. 25 मार्च को रविवार को नवमी तिथि का क्षय हो गया है, इसलिए नवरात्र 8 दिनों का ही है. ग्रंथों में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी 1 रविवार था. इसलिए आनेवाला नव संवत्सर 2075 बहुत ही भाग्यशाली होगा, क्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है, शुदी एवं शुक्ल पक्ष एक ही है.
माता का आगमन हाथी पर : इस वर्ष माता रानी का आगमन हाथी पर हो रहा है. यह आगमन सुख-सुविधाओं के साथ जलवृष्टि वाला रहेगा. माता का आगमन रविवार के दिन हो रहा है और माता का प्रस्थान सोमवार के दिन हो रहा है. सोमवार के दिन गमन से कष्ट एवं अन्य अनावश्यक परेशानियां भी देखने को मिलेंगी.
संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय : आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो यह प्रकृति और पुरुष के संयोग का भी समय होता है. प्रकृति मातृशक्ति होती है, इसलिए इस दौरान देवी की पूजा होती है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय है और हम जिसे पुरुष रूप में देखते हैं, वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति यानी स्त्री रूप है. स्त्री से यहां तात्पर्य यह है कि जो पाने की इच्छा रखनेवाला है, वह स्त्री है और जो इच्छा की पूर्ति करता है, वह पुरुष है.
कलश स्थापन शुभ मुहूर्त
धर्म शास्त्र के अनुसार कलश स्थापन प्रतिपदा तिथि में प्रातः काल सर्वोत्तम होता है. अगर कोई अड़चन होती है तो मध्यान अभिजीत मुहूर्त 11:30 बजे से दिन के 12:24 तक का बेहतर विकल्प आपके पास है. वैसे प्रतिपदा तिथिपर्यंत कलश स्थापना करने में कोई दोष नहीं. नवमी पूजा के नाम से प्रचलित महानिशा पूजा 24 मार्च शनिवार की रात्रि में की जायेगी. महा अष्टमी का व्रत 24 मार्च रवि उदय उदया तिथि में किया जायेगा. 25 मार्च रविवार को नवमी तिथि है.
अतः इसी दिन अनुदेशन नवमी तिथि में नवमी का व्रत ही किया जायेगा. साथ ही श्रीराम नवमी का सनातन पर्व के अवतार के विभिन्न आयोजनों के साथ संपन्न होगा. नवरात्र संबंधित हवन पूजन 25 मार्च, रविवार को प्रातः 7:30 के बाद दिन-रात किसी भी समय किया जा सकता है. नवरात्र व्रत का पारण 26 मार्च, सोमवार को प्रातःकाल में किया जायेगा.
चैत्र नवरात्रि तिथि
18 मार्च : कलश स्थापना, मां शैलपुत्री की पूजा
19 मार्च: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
20 मार्च: देवी दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की आराधना
21 मार्च : कुष्मांडा स्वरूप की उपासना
22 मार्च : माता स्कंदमाता की पूजा
23 मार्च : मां कात्यायनी की पूजा
24 मार्च : मां कालरात्रि की पूजा. इस वर्ष अष्टमी के दिन की जानेवाली मां महागौरी की पूजा भी इसी दिन की जायेगी. कन्या पूजन.
25 मार्च : मां सिद्धिदात्री की पूजा के साथ नवदुर्गा पूजन पूर्ण. प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव.
26 मार्च : व्रत का पारण दशमी तिथि को. कलश वेदी पर लगाये गये सतनज की कटाई.

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