आत्मघाती बंदूक संस्कृति : अपने ही हथियारों से लहूलुहान अमेरिका, क्यों हैं इतनी बंदूकें अमेरिका के पास
फरवरी में फ्लोरिडा के एक स्कूल में हुई गोलीबारी की घटना ने अमेरिका में बंदूकों पर रोक लगाने की बहस को तेज कर दिया है. छात्रों-किशोरों के नेतृत्व में आंदोलन तेज हो गये हैं और बीते शनिवार को वाशिंगटन समेत विभिन्न शहरों में बीस लाख से अधिक लोगों ने प्रदर्शन किया है. बंदूक खरीदने और […]
फरवरी में फ्लोरिडा के एक स्कूल में हुई गोलीबारी की घटना ने अमेरिका में बंदूकों पर रोक लगाने की बहस को तेज कर दिया है. छात्रों-किशोरों के नेतृत्व में आंदोलन तेज हो गये हैं और बीते शनिवार को वाशिंगटन समेत विभिन्न शहरों में बीस लाख से अधिक लोगों ने प्रदर्शन किया है. बंदूक खरीदने और रखने के बेहद आसान कानूनों का खामियाजा यह है कि अमेरिका में बंदूक से मरनेवालों की संख्या आतंकवाद से मरनेवालों से 1,400 फीसदी अधिक है.
लंबे समय से वहां बंदूकों पर रोक की मांग हो रही है, पर नेशनल राइफल एसोसिएशन जैसी ताकतवर लॉबी के असर के कारण दोनों प्रमुख पार्टियां (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) ठोस कदम उठाने से कतराती रही हैं, क्योंकि बंदूक निर्माताओं और बंदूक समर्थकों की यह लॉबी दोनों पार्टियों को बहुत धन और वोट मुहैया कराती है. अमेरिकी बंदूक संस्कृति के विश्लेषण के साथ आज के इन-डेप्थ की प्रस्तुति…
अमेरिका में तीस करोड़ से अधिक बंदूकें हैं. इसका मतलब यह है कि प्रति व्यक्ति बंदूक का औसत एक से अधिक (112 फीसदी) है. यह दुनिया के किसी भी देश के आंकड़े से बहुत अधिक है. दूसरे स्थान पर सर्बिया है, जहां औसत दर 60 फीसदी है. ज्यादातर देशों में 100 निवासियों पर 20 बंदूकें हैं. अमेरिका में अन्य देशों के मुकाबले बंदूक संबंधी कानून बेहद लचीले हैं. एरीजोना विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री जेनीफर डॉन कार्लसन बताती हैं कि 1960 के दशक के अंतिम वर्षों में ज्यादातर अमेरिकी यह मानने लगे कि बंदूक रखने पर कानूनी बंदिश नहीं होनी चाहिए. उसके बाद से अब तक अमेरिकियों की बड़ी तादाद यही सोच रखती है.
दरअसल, 1960 और 1970 के दशक में अमेरिका में बंदूकों और उन्हें रखने के अधिकार को अपराध के मुद्दे के तौर पर देखा जाने लगा था. इस वजह से इस मसले पर राजनीतिक विभेद पैदा हो गया, जबकि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दा होना चाहिए था. यह विभाजन आज भी बरकरार है कि बंदूकें अपराध रोकने का जरिया हैं या फिर अपराध का कारण.
अन्य देशों में इस मुद्दे पर अपराध बहस का केंद्र-बिंदु नहीं है. उदाहरण के लिए, कनाडा में 1989 के मॉन्ट्रियल जनसंहार के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बंदूकों पर नियंत्रण को महिला अधिकार के रूप में देखा था. उस घटना में छह छात्राएं मारी गयी थीं. दक्षिण अफ्रीका और ग्वाटेमाला जैसे देशों में बंदूकों को आत्मरक्षा के हथियार के रूप में देखा जाता है और वहां बंदूक से हिंसा की दर बहुत ज्यादा है.
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून के प्रोफेसर एडम विंकलर भी 1960 के दशक की बहसों को अमेरिका की मौजूदा बंदूक संस्कृति का अहम कारक मानते हैं. वे कहते हैं कि बंदूक रखने का अधिकार अमेरिकी संविधान में है और उन्नीसवीं सदी में राज्यों की अदालतों ने भी इसका समर्थन किया था, किंतु हालत में बड़े बदलाव 1960 के दशक में ही शुरू हुए. उसी दौर में नेशनल राइफल एसोसिएशन ने शिकार खेलने और उसका प्रशिक्षण देनेवाली संस्था के अपने रूप को बदलकर राजनीति में दखल देनेवाले समूह में बदल दिया.
विंकलर का मानना है कि इसे रोका जा सकता था. एसोसिएशन के नेताओं ने बंदूकों को नियंत्रित करने के 1968 के कानून का समर्थन किया था. वे वॉशिंगटन से कोलोराडो जाने के लिए भी तैयार थे. लेकिन, संस्था के कुछ उग्र सदस्यों ने इसका विरोध किया और रातों-रात एसोसिएशन को बंदूक के अधिकार के समर्थक के रूप में बदल दिया.
रक्षा के लिए हथियार का तर्क!
राजनीति के मैदान में खेल जीतने के लिए एसोसिएशन ने लोगों के डर से खेलना शुरू कर दिया. अमेरिका में 1970 के दशक में अपराध बहुत तेजी से बढ़े थे, जब बड़े शहर दिवालिया होने की कगार पर थे और गर्त की ओर बढ़ रहे थे.
विंकलर के मुताबिक, उसी दौर में एसोसिएशन ने बंदूक पर बहस के केंद्र में अपराध को स्थापित कर दिया. उसका तर्क था कि अपनी रक्षा के लिए लोगों को बंदूकें चाहिए. अपने विज्ञापनों में उसने हथियारबंद लोगों को घुसपैठियों से अपना बचाव करते हुए दिखाया. प्रोफेसर विंकलर का कहना है कि नेशनल राइफल एसोसिएशन पूरी तरह से एक अमेरिकी परिघटना है.
अन्य औद्योगिक देशों ने बीसवीं सदी के शुरू में ही बंदूक से जुड़े कानूनों को मजबूत बनाना शुरू कर दिया था. जब अमेरिका में बंदूकों के अधिकार का आंदोलन शुरू हुआ, तो अन्य देशों के नागरिकों के पास अधिक बंदूकें नहीं थीं. इसलिए वहां कुछ कम होने का मामला भी नहीं था.
(‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में प्रकाशित अमांडा एरिकसन
के लेख से संपादित अंश, साभार)
एनआरए का वैश्विक प्रभाव
अमेरिका का नेशनल राइफल एसोसिएशन (एनआरए) देश के बाहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बंदूकों से संबंधित कानूनों में दखल देता रहा है. वर्ष 2013 में जब संयुक्त राष्ट्र में जनसंहारों व युद्ध अपराधों में लिप्त सरकारों को हथियार बेचने पर रोक के लिए प्रयास हो रहे थे, तब एनआरए ने इसे रोकने की कोशिश की थी.
उसकी नजर में यह आजादी पर हमला और अमेरिका में हथियारों को नियंत्रित करने की दिशा में कदम था. वर्ष 1997 में बंदूक निर्माताओं व संबंधित कार्यकर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘द वर्ल्ड फोरम ऑन शूटिंग एक्टिविटीज’ ने भी संयुक्त राष्ट्र की पहल का विरोध किया था.
नतीजा यह हुआ कि भले ही इस समझौते पर ओबामा प्रशासन ने दस्तखत कर दिया, पर इसे मान्यता नहीं मिली. संयुक्त राष्ट्र के अन्य प्रयासों का भी यही हाल हुआ़ और ऑक्सफैम इंटरनेशनल के स्कॉट स्टीजान भी कहते हैं कि आज एके-47 की तुलना में केला के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने के लिए ज्यादा कानून हैं.
अन्य देशों तक असर
एनआरए ने अपने नेताओं के राजनीतिक असर का इस्तेमाल कर कनाडा, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में बंदूकों के विरुद्ध बन रहे कानूनों को कमजोर करने की कामयाब कोशिश की है. उदाहरण के लिए, 1990 के दशक में कनाडा में एनआरए ने बंदूक समर्थकों से शिकार खेलने का बहिष्कार कराया, जिसके कारण वहां के पर्यटन उद्योग पर बुरा असर पड़ा.
एनआरए के नेता कनाडा में भाषणबाजी भी करते रहे हैं और उन्होंने कनाडियन शूटिंग स्पोर्ट्स एसोसिएशन जैसे स्थानीय समूहों के साथ मिलकर लॉबिंग भी किया है. वर्ष 2005 में इसने ब्राजील में बंदूक विरोधी कानून को पारित होने से रोक दिया था. उस समय ब्राजील में औसतन हर 15 सेकेंड पर एक व्यक्ति की मौत बंदूक से हो रही थी. बंदूकों पर रोक के लिए हर तरफ से कठोर कानूनों की मांग हो रही थी, लेकिन एनआरए के सक्रिय प्रचार के कारण यह कानून 36 के मुकाबले 64 फीसदी मतों से गिर गया.
प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एनआरए दुनिया के अन्य देशों में आजादी और अपनी सुरक्षा का हवाला देकर बंदूक रखने और इससे जुड़े कानूनों को कमजोर करने के लिए राजनेताओं, मीडिया और सिलेब्रिटी लोगों का इस्तेमाल करता है.
प्रत्येक 100 लोगों पर इन देशों में सर्वाधिक बंदूक
देश का नाम बंदूकों की संख्या
अमेरिका 89
यमन 55
स्विट्जरलैंड 46
फिनलैंड 45
साइप्रस 36
सऊदी अरब 35
इराक 34
उरुग्वे 32
कनाडा 31
ऑस्ट्रिया 30
(स्रोत : स्मॉल आर्म्स सर्वे, 2011)
इन देशों में हैं सबसे कम बंदूकें
– ट्यूनीशिया
– ईस्ट तिमोर
– सोलोमन आईलैंड
– घाना
– इथियोपिया
– सिंगापुर
– इरिट्रिया
– फिजी
– बांग्लादेश
इन देशों में हुए सर्वाधिक सामूहिक नरसंहार
देश संख्या
अमेरिका 90
फिलीपींस 18
रूस 15
यमन 11
फ्रांस 10
नोट : वर्ष 1966 से 2012 के दौरान इन देशों में इतनी संख्या में हुई घटना.
(स्रोत : यूनिवर्सिटी ऑफ अलबामा, 2016)
किस वर्ष कितनी गोलीबारी (मास शूटिंग) की घटना
वर्ष घटना की संख्या
2013 253
2014 270
2015 333
वर्ष घटना की संख्या
2016 383
2017 346
(स्रोत : गन वॉयलेंस आर्काइव)
आधुनिक अमेरिका के इतिहास में हुई सबसे घातक गोलीबारी की घटना में तीन, पिछले छह महीने के भीतर हुई है.गोलीबारी से प्रभावित होनेवालों में यहां अधिक संख्या अश्वेत पुरुषों की है. ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के मुताबिक, वर्ष 2015 में गोलीबारी के कारण मारे गये या घायल हुए दो-तिहाई पीड़ित अश्वेत थे, जिनमें 72 प्रतिशत पुरुष थे.औसतन प्रतिदिन करीब 20 अमेरिकी बच्चे गोलीबारी का शिकार होते हैं.
17 वर्ष से कम उम्र के 5,790 अमेरिकी किशोर प्रतिवर्ष गोलीबारी के शिकार होते हैं. बच्चों और किशारों से संबंधित होनेवाली इन गोलीबारी में 22 प्रतिशत जानलेवा साबित होती हैं.
बंदूक चलाकर जान ले लेने की प्रवृत्ति में वयस्कों को लेकर जो नस्लीय भेद दिखाई देता है, उससे बच्चे भी यहां अछूते नहीं हैं. इस तरह की घटनाओं में अश्वेत बच्चों के मरने की संख्या श्वेत बच्चों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा है.
घरेलू हिंसा के कारण गोलीबारी
हर 16 घंटे में एक अमेरिकी महिला को उसके साथी द्वारा गोली मारकर बुरी तरह घायल कर दिया जाता है.एसोसिएटेड प्रेस एनालिसिस के अनुसार, प्रतिवर्ष औसतन 760 अमेरिकी नागरिकों की उनके पति/ पत्नी या पूर्व पति/ पत्नी या अंतरंग साथी द्वारा गोली मार कर जान ले ली जाती हैै. एेसे मामलों में 80 प्रतिशत शिकार महिलायें ही होती हैं.
घरेलू हिंसा भी यहां कई बार गोलीबारी की वजह बनती है. 2009 से 2015 के आंकड़ों के मुताबिक, 57 प्रतिशत गोलीबारी में कम से कम चार लोगों की मौत हुई. इन घटनाओं में हमलावर ने या तो परिवार के सदस्यों पर गोली चलायी या साथी पर.
वर्ष 2014 में बंदूक से की जानेवाली हत्याओं में अश्वेत महिलाओं की तादात श्वेत महिलाओं की दोगुनी थी. इन अश्वेत महिलाओं में 57 प्रतिशत की हत्या उनके अंतरंग साथी ने की थी.
दो-तिहाई आत्महत्या के मामले
बंदूक की गोली से मरने वालों में दो-तिहाई मामले आत्महत्या के होते हैं.गोली मार कर खुद को खत्म करनेवालों में 80 प्रतिशत पुरुष शामिल होते हैं, जिनमें 83 प्रतिशत श्वेत होते हैं.10-19 वर्ष के 2,553 अमेरिकी नागरिकों ने वर्ष 2016 में खुदकुशी की थी, जिनमें तकरीबन 43 प्रतिशत ने आत्महत्या के लिए बंदूक का सहारा लिया था.