पंचपरगनिया गीतों में बारहमासा

II डॉ हाराधन कोइरी II झारखण्ड की राजधानी रांची के पूर्वी भाग सिल्ली, राहे, बारेंदा, बुंडू और तमाड़ को पाँचपरगना क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. पंचपरगनिया यहां की संपर्क भाषा है. जन-जीवन में गीतों का विशेष महत्व है, उसमें भी बारहमासा का. पंचपरगनिया में बारहमासा को उसे ‘बारो-मासिआ’ के नाम से जाना जाता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 30, 2018 6:23 AM

II डॉ हाराधन कोइरी II

झारखण्ड की राजधानी रांची के पूर्वी भाग सिल्ली, राहे, बारेंदा, बुंडू और तमाड़ को पाँचपरगना क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. पंचपरगनिया यहां की संपर्क भाषा है. जन-जीवन में गीतों का विशेष महत्व है, उसमें भी बारहमासा का. पंचपरगनिया में बारहमासा को उसे ‘बारो-मासिआ’ के नाम से जाना जाता है. जिसका प्रतिपाध्य विषय है-नायक-नायिका का विरह.

भागवत महापुराण के दशम् स्कंद में वर्णित कथानुसार कृष्ण के ब्रजभूमि छोड़कर मथुरा चले जाने के बाद, विरह में व्यथित राधा के मनोदशा को महसूस कर पंचपरगनिया के रसिकों ने बारहमासा गाया है, जिसमें विरह का लालित्यपूर्ण वर्णन, अष्लीलता का भान नहीं, बल्कि भाभना (चिंतन) से भगवान तक के मिलन की गीति-यात्र है.

राधा कृष्ण से कहती हैं फाल्गुन मास आ गया है, पुष्प् खिल गयें हैं, मधुमास छा गया है. परंतु चैत्र रूपी भ्रमर (भौंरा) बिंध रहा है-‘‘फाल्गुन मासेते बसंत काले/ चारि दिगे कत’अ फूल आर फूटे/ से फूल गेल’ बिफल रे/ चइते ते भमर बिंधी छे भमर/ सामेरी बिरना मने रे/ कां दिछे मधु मासे रे.’’

बैशाख में वह (राधा) कहती हैं कि यदि कृष्ण पास होते तो, मैं उनके साथ मिलकर सांझ के समय भ्रमण करतीं. थकने के बाद दोनों कदम्ब पेड़ के नीचे बैठते, किंतु प्रियतम के परदेश जाने से ज्येष्ठ मास की गर्मी असह्य हो गयी है-‘‘बइसाख मासे ते मृदु बतासे आमिअ जाइताम सामेर, साथे/ बदूसताम कदम्बेर, तले हे/ जेठे ते गरम बिंधी छे मरम/ सामेरी बिरहा नले रे, कांदिछे..’’

आषाढ़-श्रावण के काले-काले मेघों को देखकर नायिका (राधा) के मन में चिकन काला (कृष्ण) याद आते हैं. जिनके विरह में रात-दिन, झमा-झम वर्षा की भांति प्रेमाश्रु झर रहे हैं-‘‘आसाढ़ मासेते नव, मेघेर माला/ मने पइडे़ छे चीकन काला/ बिचछे देते प्रान गेल‘रे/ सावन मासेते सघन बारिसे/ बसन भींजिल लरे रे/ कांदिछे राई बिर, हिनी.’’

भाद्र महीना के पूर्णिमा को मेरे प्रियतम निश्चय आयेंगे. इसी आशा से वह मन-ही-मन भाभना करती है-‘‘भादर मासेते पुरनिमार दिने/ बइसे आछी आमी भाभी मने-मने/ श्री सामरे चरन पुजीते रे.’’

राधा कहती हैं कि-आसीन का महीना है सबके प्रियतम उनके पास हैं, किंतु मेरे प्रियतम मेरे पास नहीं है, इसलिए वह विलाप करती हुई कहती हैं-‘‘आसिन मासे ते सबार पति/ मर पति परदेसे रे/ कांदिछे राई बिरहिनी.’’

कार्तिक मास में वह अकेले कानन में बैठी हुई, वह सोचती हैं- वह आयेंगे, ‘‘कारतिक मासेते आमा बइसार दिने/ बइसे आछी आमी निकुंज कानाने /श्री सामेर चरन पुजीते रे.’’

अगहन महीना सभी आनंदित है, परंतु विरहिणी अपने प्रिय को याद कर बिना खाये, अनाहार वह बिलख रह हैं-‘‘आघन मासेते सभी आनंदिते/ आभागिनी अनाहारे रे कांदिछे.’’

राधा कहती है कि पूर्व में वे मकर के दिन आये थे, जिसे देखकर मन प्रफुल्लित हो गया था. हम दोनों जमुना के तट पर भ्रमण के लिए गये थे, परंतु इस वर्ष वह आये नहीं-‘‘पुस मासेते मकर दिन/ आसि लेन राई गपीनेर साथे/ आनंदिते प्रान मांसेरे/ माघ मासेते प्रान पति साथे/ गे छिलाम जमुनार घारे रे/ कांदिछे राई बिराहिनी/ कांदिछे मधु मासे रे.’’

Next Article

Exit mobile version