इन बीमारियों पर हमने पायी विजय
स्मॉल पॉक्स केवल दो सफल वैश्विक अभियान में ही इस बीमारी का पूरी उन्मूलन किया जा चुका है. डब्ल्यूएचओ द्वारा वर्ष 1980 में स्मॉल पॉक्स यानी चेचक के पूरी तरह समाप्त होने की घोषणा की गयी. डब्लूएचओ के अनुसार, चेचक का अंतिम प्राकृतिक मामला वर्ष 1977 में सोमालिया में सामने आया था. तब से एकमात्र […]
स्मॉल पॉक्स
केवल दो सफल वैश्विक अभियान में ही इस बीमारी का पूरी उन्मूलन किया जा चुका है. डब्ल्यूएचओ द्वारा वर्ष 1980 में स्मॉल पॉक्स यानी चेचक के पूरी तरह समाप्त होने की घोषणा की गयी. डब्लूएचओ के अनुसार, चेचक का अंतिम प्राकृतिक मामला वर्ष 1977 में सोमालिया में सामने आया था.
तब से एकमात्र ज्ञात मामला एक साल बाद इंग्लैंड के बर्मिंघम में एक प्रयोगशाला दुर्घटना के बाद था. वर्ल्ड हेल्थ एसेंब्ली द्वारा इसके पूरी तरह समाप्त किये जाने के पहले दशकों तक काफी प्रयास किये गये. इस बीमारी की वजह से 35 प्रतिशत पीड़ितों को मृत्यु हो जाती थी, जबकि अन्य लोग अंधेपन के शिकार तक हो जाते थे.
नियोनैटल टेटनस
याज की समाप्ति की आधिकारिक घोषणा के साथ जुलाई, 2016 में मातृ एवं नवजात टेटनस (एमएनटी) की समाप्ति के लिए भी वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों द्वारा भारत को सम्मानित किया गया था. अनहाइजेनिक प्रसव के समय माताओं और बच्चों को अक्सर एमएनटी का खतरा रहता है, जो गंभीर रूप से मृत्यु दर को प्रभावित करता है.
यूनिसेफ के मुताबिक, 1988 में इस टेटनस की वजह से भारत में 1 लाख 60 हजार बच्चों की मृत्यु हो गयी थी. इसे स्वच्छता से रोका जा सकता है, हालांकि, भारत में इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है. इसके उन्मूलन की आधिकारिक घोषणा अगस्त, 2015 में की गयी थी.
पोलियो
डब्ल्यूएचओ अब भी इस रोग को खत्म करने के अपने प्रयासों में जुटी हुई है, खास बात है कि इसे भारत से पूरी तरह समाप्त किया जा चुका है. दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र को मार्च 2014 में पोलियो मुक्त होने के तौर पर प्रमाणित किया गया था, साथ ही वैश्विक आबादी के 80 प्रतिशत आबादी को पोलियो मुक्त चिह्नित किया गया है. अपने देश में पोलियो का सबसे अंतिम मामला पश्चिम बंगाल में वर्ष 2011 में दर्ज किया गया था.
वहीं दिल्ली में इसका आखिरी मामला 2009 में दर्ज किया गया था. अभी पूरी दुनिया में केवल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया ऐसे देश हैं, जहां वाइल्ड पोलियो वायरस सक्रिय है.