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पीछा नहीं छोड़ रहीं ये बीमारियां, जानें क्‍या हैं कारण

जीवन की हर खुशी को आप तभी इंज्वाय कर पाते हैं, जब आप पूरी तरह स्वस्थ होते हैं. कई बीमारियों को जड़ से खत्म करने में हमें कामयाबी भी मिली है, लेकिन कुछ बीमारियां हमारा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही हैं. आइए ‘वर्ल्ड हेल्थ डे’ पर जानें कि कैसे इन बीमारियों के […]

जीवन की हर खुशी को आप तभी इंज्वाय कर पाते हैं, जब आप पूरी तरह स्वस्थ होते हैं. कई बीमारियों को जड़ से खत्म करने में हमें कामयाबी भी मिली है, लेकिन कुछ बीमारियां हमारा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही हैं. आइए ‘वर्ल्ड हेल्थ डे’ पर जानें कि कैसे इन बीमारियों के शुरुआती लक्षणों के प्रति जागरूक रह कर आप खुद को ‘स्वस्थ’ रख सकते हैं.
ब्रेस्ट कैंसर
यह कैंसर एक प्रकार से ब्रेस्ट में गांठ या ट्यूमर के विकास के रूप में सामने आता है. आमतौर, यह बीमारी महिलाओं में होती है, लेकिन इसे पुरुषों में भी पाया गया है. कैंसर के ट्यूमर मिल्क प्रड्यूसिंग ग्लैंड व डक्ट में डेवलप हो सकते हैं. विस्तार व पैटर्न के आधार पर ब्रेस्ट कैंसर को इनवेंसिव, नॉन इनवेंसिव और मिक्स्ड तीन हिस्सों में बांटा गया है.
कारण
आमतौर पर यह कोई नहीं जानता है कि एक व्यक्ति में किसी भी प्रकार का कैंसर कैसे विकसित हुआ. हालांकि, इसे पहचाने जाने वाले कई कारक हैं. यह एक ज्ञात तथ्य है कि डीएनए म्यूटेशन की वजह से शरीर में कैंसर की कोशिकाएं विकसित होती हैं. खास बात है कि अगर ब्रेस्ट कैंसर पहले स्टेज में ही है, तो इसे जड़ से ख़त्म करना बहुत आसान है.
ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क फैक्टर्स
शराब का सेवन.
गांठ को अनदेखा करना.
परिवार में अगर किसी को हो.
एक ब्रेस्ट में कैंसर हुआ हो तो दूसरे के भी चांसेज बढ़ जाते हैं.
उम्र और मेनोपाउज
कैसे करें इसकी पहचान
अगर ब्रेस्ट में दृश्य/अदृश्य गांठ हो.
अगर निप्पल्स इनवर्टेड हो.
अगर निप्पल से स्राव हो.
अगर ब्रेस्ट के शेप में अंतर हो.
अगर ब्रेस्ट के रंग में अंतर हो.
इसके इलाज के लिए अस्पताल
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई
अद्यार कैंसर इस्टीट्यूट, चेन्नई
सीएमसी, वेल्लोर
एम्स, नयी दिल्ली
पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम
(पीसीओएस)/ पॉलिसिस्टिक ओवरी डिसऑर्डर (पीसीओडी)
पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं में होने वाली एक तरह की बीमारी है. बदलती लाइफस्टाइल व अन्य कारणों से आजकल कम उम्र में ही महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं. यह एक हॉर्मोन डिसऑर्डर की स्थिति होती है, जो ओवरी की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है. इसके कारण ओवरी में सिस्ट हो जाती हैं. ये सिस्ट छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएं होती हैं, जिनमें तरल पदार्थ भरा होता है. ओवरी में ये जमा होती रहती हैं. यही स्थिति को ‘पीसीओएस’ कहते हैं.
कैसे पहचानें
चेहरे, पीठ, छाती व पेट पर बाल उग आना.
अनियमित पीरियड और हैवी ब्लीडिंग.
चेहरे, पीठ व छाती पर फुंसियां हो जाना.
डिप्रेशन.
लगातार बढ़ता वजन.
10-15 सालों में यह कम उम्र की महिलाओं में ज़्यादा होने लगी है.
15 फीसदी लड़कियां पीसीओएस की शिकार होती हैं शहरी इलाकों में.
पीसीओएस के रिस्क फैक्टर्स
स्ट्रेस
लाइफस्टाइल
मोटापा
परिवार में किसी को पहले हुआ हो
टाइप-2 डायबिटीज
इसके इलाज के लिए अस्पताल
मैक्स हॉस्पिटल, नयी दिल्ली
एम्स, नयी दिल्ली
प्रोस्टेट कैंसर
यह कैंसर पुरुषों में प्रोस्टेट ग्लैंड में होता है. प्रोस्टेट ग्लैंड अखरोट के आकार की एक ऐसी ग्रंथि है, जो यूरेथरा (पेशाब की नली) के चारों ओर फैला होता है. इसका काम स्पर्म को न्यूट्रिशन देना होता है. रिप्रोडक्टिव सिस्टम के लिहाज से यह ग्लैंड काफी महत्वपूर्ण होता है.
प्रोस्टेट का कैंसर सामान्यतया उम्रदराज व्यक्तियों यानी 65 वर्ष की उम्र को पार कर चुके लोगों में सामने आता है. लेकिन, भारत में 35 से लेकर 64 वर्ष की उम्र के लोगों में भी यह कैंसर पाया गया है. खासतौर से महानगरों में इसके मामले सामने आये हैं. भारत के पुरुषों में यह दूसरी सबसे पुरानी बीमारी है.
कारण
अन्य कैंसर की तरह प्रोस्टेट कैंसर के होने का कारण क्लियर नहीं है. इस कैंसर के लक्षणों का अगर शुरुआती दौर में ही पता चल जाये, तो इसकी रोकथाम में आसानी होती है.
40 वर्ष से कम उम्र में यह बहुत ही कम पाया जाता है.
10 में से 6 मरीज 60 साल से अधिक आयु के होते हैं.
10 साल में इसके मामले तेजी से बढ़े हैं.
1 लाख पुरुषों में 10 पुरुष इस रोग के शिकार हैं.
कैसे करें इसकी पहचान
रिस्क फैक्टर्स
अस्पताल
डायबिटीज
डायबिटीज एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है. हम जो भी खाना खाते हैं, वह ग्लूकोज में बदल कर खून में जाता है और एनर्जी देता है. पैंक्रियाज़ से निकलनेवाला इंसुलिन हॉर्मोन ग्लूकोज को ब्लड सेल्स में जाने और ब्लड लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है.
जब इंसुलिन लेवल गड़बड़ा जाता है, तो डायबिटीज की बीमारी होती है. इससे ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ जाता है. सही इलाज न हो तो डायबिटीज के मरीजों को हार्ट अटैक, लकवा, किडनी फेल्योर, आंखों की समस्या आदि हो सकती है.
कारण
डायबिटीज दो तरह के होते हैं. टाइप-1 में शरीर अचानक इंसुलिन हॉर्मोन बनाना बंद कर देता है. यह बचपन में ही हो जाता है. इसके मरीज बहुत कम होते हैं. इसमें शरीर के ग्लूकोज को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन देना पड़ता है. वहीं टाइप-2 डायबिटीज गलत लाइफस्टाइल, मोटापा और बढ़ती उम्र की वजह से होती है. इसमें शरीर में कम मात्रा में इंसुलिन बनता है.
डायबिटीज के रिस्क फैक्टर्स
टाइप-1
जेनेटिक : डायबिटीज सेंसेटिव जीन्स का प्रजेंस.
टाइप-2
गलत लाइफस्टाइल, एक्सरसाइज न करना, मोटापा.
कैसे करें इसकी पहचान
डायबिटीज हो जाने पर जल्दी-जल्दी यूरिन डिस्चार्ज होता है.
इसके अलावा खुजली होना, आंखों की रोशनी कम हो जाना.
कम काम में भी थकान और कमजोरी महसूस होना
शरीर के अलग-अलग हिस्सों का सुन्न हो जाना.
किसी भी जख्म का बहुत देर तक ठीक न होना.
हमेशा भूख महसूस होना भी डाटबीटीज के प्रमुख लक्षण हैं.
इसके इलाज के लिए अस्पताल
देश के सभी सरकारी अस्पतालों में इसका इलाज संभव है.
एम्स, नयी दिल्ली
हृदय रोग
हृदय हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. हमारा ह्रदय एक दिन में लगभग एक लाख बार एवं एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है. हृदय की मांसपेशियां जीवंत होती हैं और उन्हें जिंदा रहने के लिए आहार और ऑक्सीजन की जरूरत होती है. जब एक या ज्यादा आर्टरी रुक जाती है, तो हृदय की कुछ मांसपेशियों को आहार और ऑक्सीजन नहीं मिल पाती. इस स्थिति को हार्ट अटैक कहा जाता है. इसके अलावा हार्ट वॉल्व की समस्या, कंजीनाइटल हार्ट प्रॉब्लम आदि भी हार्ट रोग हैं.
कैसे पहचानें
अचानक सीने में दर्द दिल का दौरा पड़ने का संकेत हो सकता है.
बायें हाथ में दर्द की शिकायत हो सकती है.
सांस की तकलीफ, मतली आ सकते हैं.
व्यायाम या अन्य शारीरिक श्रम के दौरान सीने में दर्द होता हो.
हृदय रोग के रिस्क फैक्टर्स
हाइपरटेंशन (तनाव)
ब्लड कोलेस्टेरॉल लेवल का बढ़ जाना
मोटापा
डायबिटीज
अल्कोहल या तंबाकू का सेवन
इसके इलाज के लिए अस्पताल
एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट, मुंबई
बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर, कोलकाता
नारायणा हृदयालय, बेंगलुरु
केरल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, केरल

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