आज विश्व होम्योपैथी दिवस : बेहद सुरक्षित व बेहतरीन चिकित्सा विकल्प हैं होम्योपैथी, जानें कुछ खास बातें

आज विश्व होम्योपैथी दिवस है, जो महान जर्मन चिकित्सक व होम्योपैथी के संस्थापक डॉ सैमुअल हनीमैन (1755-1843) की जयंती के रूप में दुनियाभर में मनाया जाता है. आज जहां महंगा होता उपचार आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है, ऐसे में डॉ हनीमैन को श्रेय देना होगा कि उन्होंने वर्षों पहले आमजन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2018 6:21 AM
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आज विश्व होम्योपैथी दिवस है, जो महान जर्मन चिकित्सक व होम्योपैथी के संस्थापक डॉ सैमुअल हनीमैन (1755-1843) की जयंती के रूप में दुनियाभर में मनाया जाता है. आज जहां महंगा होता उपचार आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है, ऐसे में डॉ हनीमैन को श्रेय देना होगा कि उन्होंने वर्षों पहले आमजन के लिए एक बेहतरीन चिकित्सा विकल्प की खोज की.
आज स्वास्थ्य के प्रति लोगों की अवधारणा और समझ तेजी से बदल रही है. आधुनिक चिकित्सा के युग में दुनियाभर में एलोपैथ चिकित्सा पद्धति के बाद यह सबसे अधिक पसंद की जानेवाली और प्रयोग में लायी जानेवाली चिकित्सा पद्धति है. यह औषधियों के विषय में ज्ञान और इसके अनुप्रयोग पर आधारित चिकित्सा पद्धति है, जो इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि रोग का प्रारंभ स्थूल शरीर में नहीं, बल्कि उसके सूक्ष्म शरीर में आता है. यदि सूक्ष्म शरीर (जीवन शक्ति) स्वथ्य है, रोग प्रतिरोधक शक्ति मजबूत है, तो रोग का आक्रमण सूक्ष्म शरीर पर नहीं हो सकता और स्थूल शरीर स्वस्थ बना रहता है. यदि उपचार से इस सूक्ष्म शरीर को रोगमुक्त कर दिया जाता है, तो स्थूल शरीर अपने आप ही रोगमुक्त हो जाता है.
रोग के लक्षणों को महत्व : जिस प्रकार आयुर्वेद में कफ-पित्त और वायु है, उसी प्रकार होमियोपैथी में सोरा, सिफलिश और सायकोसिस है. 90 प्रतिशत रोगों का मूल कारण सोरा दोष का बढ़ना है. इसी दोष की सक्रियता के कारण शरीर में खाज, खुजली, सोरायसिस, कुष्ठरोग तथा पेट के अन्य रोग होते हैं. सायकोसिस विष के कारण शरीर में अतिरिक्त वृद्धि जैसे- रसौली, गांठ, मस्से, कैंसर आदि हो जाता है और सिफलिश के कारण यौन-रोग आदि होते हैं.
यह पद्धति ‘समः समम् समयते’ अर्थात similia similibus Curentur अर्थात् लक्षणों की समानता के आधार पर कार्य करती है. अत: एक ही रोग होने पर भी दो भिन्न व्यक्तियों के लक्षणों के आधार पर दोनों के लिए भिन्न-भिन्न औषधियां भी दी जाती हैं. स्पष्ट है कि इसमें रोग से उत्पन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों के आधार पर ही दवा दी जाती है, यानी बीमारी के आधार पर नहीं, बल्कि रोगी के तन-मन के हालात को देखते हुए चिकित्सा की जाती है.
हालांकि एलोपैथी चिकित्सा इसे हमेशा से खारिज करता रहा है. आज आधुनिक होम्योपैथी के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक है औपचारिक शिक्षा या प्रशिक्षण के बिना अभ्यास करनेवाले लोगों की उपस्थिति. वे गलत दवाइयों, गलत खुराक के साथ रोगियों का इलाज करते हैं, जिससे यह बदनाम होती है. यह एक जटिल विज्ञान और कला है, जिसमें चिकित्सा, खुराक, नुस्खे आदि का पालन करने के बारे में गहरी जानकारी शामिल है. यह स्नातक की डिग्री और उचित प्रशिक्षण के बिना हासिल नहीं की जा सकती. यह प्राकृतिक तौर पर काम करती है. इसकी खासियत है कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता.
क्रोनिक रोगों का भी इलाज : इससे क्रोनिक रोगों का भी इलाज किया जा सकता है. यह बहुत ही सुरक्षित पद्धति है. सांस की बीमारी, पेट, त्वचा और मानसिक विकार जैसी पुरानी बीमारियों में प्राकृतिक समाधान प्रदान करती है. जो लोग एलोपैथी और सर्जरी के जरिये जल्दी राहत चाहते हैं, वे केवल आधा जीवन ही जीते हैं और जो स्थायी सुधार के लिए होम्योपैथी को अपनाते हैं, वे पूर्ण जीवन का आनंद लेते हैं.
आज भी यह सोच पनप नहीं पायी है कि अगर किसी एक चिकित्सा पद्धति से इलाज संभव नहीं है, तो डॉक्टर दूसरी पद्धति से इलाज कराने की सलाह मरीज को दे सकें. जबकि इंटीग्रेटेड ट्रीटमेंट को अपना लिया जाये तो मरीजों का बहुत भला हो सकता है. जैसे इमरजेंसी में एलोपैथी में ग्लूकोज, इन्जेक्शन से मरीज को बहुत जल्दी और अधिक आराम पहुंचाया जा सकता है, उसके बाद रोग को जड़ से खत्म करने के लिए होम्योपैथी का प्रयोग हो सकता है. अन्य चिकित्सा के मुकाबले यह काफी किफायती भी है. इसे बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें तेजी से कार्य कर रही हैं.
डॉ रंजना शर्मा, होम्योपैथिक स्नातक, दिल्ली
होम्योपैथिक दवाएं
सभी पैथियों में दवाइयां मूलतः वही होती हैं, अंतर केवल इनके निर्माण एवं प्रयोग में होता है. होम्योपैथी विधि में औषधि के स्थूल रूप को इतने सूक्ष्मतम रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है कि दवा का स्थूल अंश तो क्या, उसके सूक्ष्म अंश का भी पता नहीं चलता. होम्योपैथी की शक्तिकृत दवा 6 शक्ति के बाद 30, 200, 1000, 10000, 50000 तथा 1 लाख पोटेंसीवाली होती है.
होम्योपैथी परिषद की रिपोर्ट
केंद्रीय होम्योपैथी परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक हर 5वां रोगी होम्योपैथिक इलाज करा रहा है. आपात स्थितियों को छोड़कर करीब 8० फीसदी रोगों के इलाज के लिए होम्योपैथी कारगर है. होम्योपैथी चिकित्सा कम खर्चीली, सुरक्षित, सरल एवं प्रमाणित चिकित्सा पद्धति है.
दुनिया के अन्य देशों में यह चिकित्सा
दुनिया के 90 देशों में होम्योपैथिक चिकित्सा को अपनाया जा रहा है. भारत में इसका तेजी से विकास हुआ है. होम्योपैथी महामारियों जैसे स्वाइन फ्लू, डेंगू, खसरा, चिकन पॉक्स, माक्स, कॉलरा, मलेरिया, दिमागी बुखार जैसे खतरनाक रोगों से बचाव में कारगर है.
होम्योपैथी दवाओं का सेवन कुछ अंगरेजी दवाओं के साथ भी किया जा सकता है, जैसे- जो डायबिटीज रोगी है और इंसुलिन पर निर्भर है, उसका इंसुलिन बंद नहीं किया जा सकता. वहीं वह किसी एक्यूट और क्रोनिक डिजीज जैसे एग्जिमा, सोराइसिस से ग्रसित है, तो बिना इंसुलिन बंद किये होम्योपैथी दवा का प्रयोग कर सकता है और लाभ पा सकता है.
कुछ खास बातें
होम्योपैथिक दवा की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती. यदि इन दवाइयों को धूप, धूल, धुंआ, तेज गंध व केमिकल्स से बचाकर रखा जाये तो यह दवा वर्षों तक चलती रहेंगी.
इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता.
इन दवाओं से कोई विशेष परहेज नहीं होता.
दवा को लेने के आधा घंटा पहले और आधा घंटा बाद तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए.
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