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दक्षिण चीन सागर में चीन-अमेरिका में टकराव, चीन की आक्रामता के पीछे हैं ये राज
व्यापार के मसले पर जारी तनातनी के बाद अब दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी और चीनी नौसेना एक-दूसरे के वर्चस्व को चुनौती देने के इरादे से सक्रिय हैं.स्वतंत्र नौवहन के लिए इस्तेमाल होनेवाले इस बेहद महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्ग का सामरिक नजरिये से भी अहम होना मौजूदा विवाद का एक बड़ा कारण है. दक्षिण चीन […]
व्यापार के मसले पर जारी तनातनी के बाद अब दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी और चीनी नौसेना एक-दूसरे के वर्चस्व को चुनौती देने के इरादे से सक्रिय हैं.स्वतंत्र नौवहन के लिए इस्तेमाल होनेवाले इस बेहद महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्ग का सामरिक नजरिये से भी अहम होना मौजूदा विवाद का एक बड़ा कारण है. दक्षिण चीन सागर में चीन कुछ वर्षों से आक्रामक तरीके से अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, जिससे तटीय देशों और पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ रही हैं. इस पूरे मसले के विभिन्न पहलुओं पर नजर डालते हुए प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ पेज…
दक्षिण चीन सागर में अमेरिका का सैन्य प्रदर्शन
अमेरिका और चीन के रिश्तों में कटुता बढ़ती जा रही है. व्यापार युद्ध के गहराने के बाद अब दक्षिण चीन सागर को लेकर दोनों देशों में टकराव बढ़ गया है. इस टकराव का कारण अमेरिका द्वारा दक्षिण चीन सागर में विमानवाहक पोतों का गश्त लगाना है.
इस बीच 10 अप्रैल को यहां 20 एफ-18 लड़ाकू विमानों ने 20 मिनट के अंतराल पर उड़ान भरी और अमेरिका के यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट विमानवाहक पोत पर उतर कर सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया. परमाणु शक्ति संपन्न अमेरिका के इस जंगी जहाज के साथ एक कैरियर स्ट्राइक ग्रुप ने विवादित दक्षिण चीन सागर में गश्त लगायी और अपने रक्षा सहयोगी फिलीपींस के बंदरगाह की तरफ बढ़ गया. हालांकि, अमेरिकी सेना ने इस विवादित क्षेत्र में गश्त को नियमित प्रशिक्षण बताया है.
गश्त लगाने वाला अकेला देश नहीं अमेरिका
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस सागर क्षेत्र में नौसैनिक गश्त करने वाला अमेरिका अकेला देश नहीं है. चीन, जापान समेत कुछ दक्षिणपूर्व एशियाई देशों की नौसेनाएं भी यहां गश्त करती रहती हैं, इस वजह से अक्सर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ जाता है.
अमेरिकी युद्धपोतों के गश्ती से कुछ दिनों पहले ही चीन की हवाई सेना व नौसेना ने बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में अभ्यास किया था. कुछ विश्लेषकों की मानें, तो चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर में इस तरह बड़े पैमाने पर अभ्यास करने का मतलब नौसेना की बढ़ती ताकत का प्रदर्शन करना था.
अमेरिकी अभ्यास से नाराज चीन
अमेरिकी युद्धपोतों के दक्षिण चीन सागर में इस तरह के शक्ति प्रदर्शन ने चीन को नाराज कर दिया है. चीन की नौसेना ने अमेरिकी गश्त के एक दिन बाद ही सोशल मीडिया पर अन्य जहाजों को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि वे 13 तारीख तक दक्षिण-पश्चिम चीन के हैनान प्रांत के सान्या शहर के दक्षिणी क्षेत्र में बिना अतिरिक्त विवरण दिए अभ्यास करेंगे.
चीन के प्रभाव से चिंतित पश्चिमी देश
इस सागर में चीनी सेना की मौजूदगी से पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ गयी हैं. क्षेत्र में कृत्रिम द्वीपों पर चीन द्वारा सैन्य तैनाती की अमेरिका ने निंदा की है. मालूम हो कि इस क्षेत्र के बड़े हिस्से पर चीन अपना दावा जताता रहा है और यहां अमेरिकी सैन्य अभियानों का विरोध करता रहा है.
यहां तक कि वह उस क्षेत्र को लेकर भी विरोध जताता है, जिसे अमेरिका अंतरराष्ट्रीय मार्ग बताते हुए स्वतंत्र नौवहन पर जोर देता है. लेकिन, चीन के इस विरोध को गलत बताते हुए अमेरिका इस क्षेत्र में हवाई और नौसैनिक अभ्यास द्वारा स्वतंत्र नौवहन के अपने अधिकार को मजबूती से रखता आ रहा है.
चीन ने इलाके में इंस्टॉल किया जैमर
अमेरिकी राडार व संचार ध्वस्त होने की आशंका
अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया है कि दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों पर चीन ने जैमर सरीखे उपकरण इंस्टॉल कर दिये हैं, जिनके जरिये वह शत्रुओं के राडार और संचार प्रणालियों को ब्लॉक कर देगा.
व्यापक सैन्य रणनीति के तहत चीन ने अपना ध्यान इन द्वीपों पर पूरी तरह से केंद्रित कर दिया है. प्रसिद्ध पत्रिका ‘द वाल स्ट्रीट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस जैमिंग सिस्टम को बीते महज तीन माह के दौरान इंस्टॉल किया गया है. अमेरिका रक्षा विभाग के एक अधिकारी के हवाले से इस पत्रिका में दावा किया गया है कि ‘मिलिट्री जैमिंग इक्विपमेंट’ को इस द्वीप पर बनाये गये सैन्य बेस के निकट स्थापित किया गया है.
बताया गया है कि कॉमर्शियल सेटेलाइट कंपनी ‘डिजिटल ग्लोब’ द्वारा मुहैया करायी गयी सेटेलाइट तस्वीरों के आधार पर अमेरिका ने यह दावा किया है. हालांकि, चीन के रक्षा मंत्रालय ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है. सेटेलाइट से भेजे गये तस्वीरों के आधार पर यह माना जा रहा है कि इस इलाके में सात कृत्रिम द्वीपों में से एक पर एंटीना लगाया गया है, जो जैमिंग सिस्टम के रूप में काम करता है. वर्ष 2014 से चीन यहां पर अपना सैन्य बेस बना रहा है.
अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत लगाया गश्त
स्टीव कोहलर
दक्षिण चीन सागर में सैन्य अभ्यास और इस रास्ते से होकर गुजरने को लेकर स्ट्राइक ग्रुप के कमांडर रीयर एडमिरल स्टीव कोहलर ने कहा कि दक्षिण चीन सागर और इसके आसपास या अन्य किसी भी जलक्षेत्र में हम जो भी ऑपरेशन करते हैं, इसे लेकर जो अंतरराष्ट्रीय कानून है, हम उसका पालन करते हैं.
इस बार भी हमने जो किया, वह किसी प्रतिक्रिया के तौर पर नहीं था. चीन के पास भी हमारी ही तरह अपने तटीय क्षेत्रों को लेकर अधिकार है लेकिन, यह पूरा इलाका केवल उसका नहीं है.
फिलीपींस ने किया अमेरिका का समर्थन : दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी पोतों के अभ्यास का फिलीपींस के सेना प्रमुख रोलांडो बातिस्ता ने समर्थन किया है. बातिस्ता ने कहा कि यह अमेरिकी सैन्य बल की ताकत को दर्शाता है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका फिलीपींस का दोस्त है और जरूरत पड़ने पर वह उसका साथ देगा.
व्यापार में तकरार
साउथ चाइना सी में जहां अमेरिका और चीन अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं दोनों व्यापार के मोर्चे पर भी भिड़ गये हैं. इन दो आर्थिक महाशक्तियों ने एक-दूसरे के यहां उत्पादित वस्तुओं पर कर बढ़ा कर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए कई चिंताएं पैदा कर दी हैं.
दोनों राष्ट्रपतियों (डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग) अपने-अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए कमर कस चुके हैं. ऐसे में इस ट्रेड वार के संभावित परिणामों पर नजर डालना जरूरी है.
हालांकि दोनों नेता एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक टिप्पणियां करते रहे हैं, पर जिनपिंग रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक कार और फार्मास्युटिकल समेत कई क्षेत्रों में चीन को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में स्थापित करने की चाह रखते हैं, तो ट्रंप की प्राथमिकता अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की क्षमता बढ़ाना है. साथ ही इन नेताओं की गहरी रूचि सैन्य ताकत की बढ़ोतरी में भी है.
यह ध्यान में रखना जरूरी है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से संबद्ध है. इस स्थिति में खींचतान के अन्य मोर्चे भी अहम हो जाते हैं. ट्रंप ने बौद्धिक संपदा की चोरी का मुद्दा उठाकर और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन से मुलाकात पर रजामंदी देकर तनातनी के हिसाब-किताब को जटिल बना दिया है.
बीते दिनों जोंग की अचानक चीन यात्रा को इसी कड़ी में देखा जाना चाहिए. इस दौरे में जिनपिंग यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि उत्तर कोरिया पर उनका प्रभाव बेहद मजबूत है और संभावित ट्रंप-जोंग बातचीत के नतीजों में उनकी भूमिका अहम है.
आधिकारिक संबंध न होने के बावजूद अमेरिका और ताइवान के बीच नजदीकी है. इस कारण इस द्वीपीय देश पर आगामी दिनों में चीनी दबाव बढ़ने की आशंका है. साउथ चाइना सी से भी ताइवान के दावे और हित जुड़े हुए हैं.
अमेरिका के नये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में आक्रामक जॉन बोल्टन की नियुक्ति, सरकारों से संबंध बेहतर करने के अमेरिकी कानून तथा ताइवान को पनडुब्बी निर्माण तकनीक देने की मंजूरी जैसे हालिया कदम भी चीन के साथ तनाव को बढ़ायेंगे. चीन ने ताइवान से नजदीकी पर अमेरिका को चेतावनी भी दी है.
सत्तारुढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में जिनपिंग का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और वे लंबे समय तक राष्ट्रपति के पद पर रह सकते हैं. अमेरिकी फैसलों से देश के भीतर उनकी साख के और मजबूत होने की उम्मीद है.
इसके बरक्स ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी को इस साल कांग्रेस सदस्यों के चुनाव में अमेरिकी मतदाताओं का सामना करना है. चीन के साथ ट्रेड वार के नकारात्मक परिणामों से खेतिहर और उद्योगों से जुड़े मतदाता ट्रंप से नाराज हो सकते हैं, क्योंकि चीन द्वारा आयात शुल्क बढ़ाने से उनके आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं. इस स्थिति का लाभ जिनपिंग और उनकी नीतियों को मिल सकता है, जो ट्रंप की नीतियों से कहीं अधिक सुविचारित हैं और जिनपिंग ट्रंप के मुकाबले ज्यादा आत्मविश्वास से भरे भी दिखते हैं.
इन मसलों पर विश्लेषण की एक समस्या यह है कि चीन के भीतर की नीतिगत बहसों के बारे में शेष दुनिया को कम जानकारी है, जबकि ट्रंप की हर पहल पर सबकी नजर होती है.
चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 2017 में 375 बिलियन डॉलर था. चीन को अमेरिकी निर्यात जहां मात्र 130 बिलियन डॉलर है, वहीं चीन से आयात 506 बिलियन डॉलर है. पिछले महीने ट्रंप ने इस अंतर में सौ बिलियन डॉलर की कमी का आह्वान किया था. जिनपिंग ने इस साल के अंत तक कारों के आयात कर में कमी का भरोसा दिलाया है.
परंतु, वैश्विक उदारवादी बाजार का नेतृत्व करने के अमेरिकी दावे तथा ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि आनेवाले दिनों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव घटने के बजाये बढ़ेगा ही. इसका असर राजनीतिक और सामरिक संबंधों पर भी पड़ना स्वाभाविक है. इसका एक हिससा हम साउथ चाइना सी में सैन्य ताकत के प्रदर्शन के रूप में देख रहे हैं.
दक्षिण चीन सागर का भौगोलिक विस्तार
करीब 35 लाख वर्गमील जल क्षेत्र में बसा ‘साउथ चाइना सी’ यानी दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का हिस्सा है, जिसके तटों से इंडोनेशिया का करिमाता, मलक्का, फारमोसा जलडमरूमध्य और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप जुड़ते हैं. दक्षिणी इलाका चीनी मुख्यभूमि को छूता है, तो दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ताइवान दावेदारी करता है. इस सागर के पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया हैं. पश्चिम में फिलीपींस है, तो दक्षिण चीन सागर के उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के बंका व बैंतुंग द्वीप हैं.
द्वीपों पर दावेदारी है विवाद की जड़
चीन के अलावा ताइवान और वियतनाम ‘स्पार्टलेज’ द्वीपसमूह पर दावेदारी करते हैं. स्पार्टलेज, दक्षिण चीन सागर का दूसरा सबसे बड़ा द्वीपसमूह है. यहां के 20 द्वीप वियतनाम के कब्जे में हैं, जबकि फिलीपींस के हिस्से में नौ हैं और आठ पर चीन ने आधिपत्य जमा रखा है. इसके अलावा, पांच मलयेशिया और एक द्वीप ताइवान के कब्जे में है.
प्राकृतिक संपदा पर गड़ी हैं नजरें
साउथ चाइना सी से सटे हुए लगभग सभी देश विवादों के संजाल में उलझे हैं. ‘यूएस एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन’ के अनुसार, इसकी परिधि में करीब 11 अरब बैरल तेल, अंदाजन 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस, और मुंगे के वृहद भंडार हैं.
मछली व्यापार में शामिल देशों के लिए इसका जलक्षेत्र आर्थिक रीढ़ का काम कर रहा है. इसकी सामरिक अवस्थिति ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा, खुफियागिरी को बढ़ावा दिया है. हिंद महासागर से प्रशांत महासागर को जोड़ने के लिए यह निकटतम समुद्री मार्ग है.
चीन की आक्रामता के पीछे हैं कई राज
दक्षिणी चीन सागर के 90 फीसदी हिस्से पर चीन अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है. चीन ने जाने कहां-कहां से ऐतिहासिक आधार तैयार किये, और ‘नाइन डैश लाइन’ के नाम से दक्षिण चीन सागर की हदबंदी कर दी. नानशा द्वीप समूह को चीन ने विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसइजेड) में परिवर्तित कर दिया. इसका फिलीपींस, वियतनाम, मलयेशिया, ब्रुनेई और इंडोनेशिया ने व्यापक रूप से विरोध किया था.
भारत-अमेरिका का भी जुड़ा है सरोकार
वर्ष 2011 में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने जब वियतनाम में तेल की खोज आरंभ की, तो चीन ने कड़ा प्रतिरोध किया था. मई, 2014 में चीन ने पारासेल आइलैंड के पास तेल दोहन वाले रिग खड़े कर दिये, जिससे कई दुर्घटनाएं हुईं.
चीन कई बार अमेरिका को धमका चुका है कि वह दक्षिण चीन सागर से दूर रहे. चीन भारत को भी चेतावनी दे चुका है कि भारत यदि वियतनाम में तेल की खोज कर सकता है, तो पाक अधिकृत कश्मीर में उसके प्रोजेक्ट क्यों नहीं लग सकते.
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