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डीप ब्रेन स्टीम्युलेशन द्वारा संभव है मिरगी का इलाज, जानें

उड़ीसा का 12 वर्षीय दिब्यांशु, जन्म से ही मिरगी के दौरों से पीड़ित था. उसे 5-10 दौरे रोज पड़ते थे. न्यूरोलॉजी टीम ने पूरी जांच के बाद इलाज के तौर पर डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (डीबीएस) का सुझाव दिया. यह सर्जरी भारत में 12वीं बार और आर्टेमिस अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस की न्यूरोलॉजी टीम द्वारा […]

उड़ीसा का 12 वर्षीय दिब्यांशु, जन्म से ही मिरगी के दौरों से पीड़ित था. उसे 5-10 दौरे रोज पड़ते थे. न्यूरोलॉजी टीम ने पूरी जांच के बाद इलाज के तौर पर डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (डीबीएस) का सुझाव दिया. यह सर्जरी भारत में 12वीं बार और आर्टेमिस अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस की न्यूरोलॉजी टीम द्वारा पांचवीं बार की जा रही थी.
आमतौर पर मिरगी के लिए जो सर्जरी की जाती है, उसमें मस्तिष्क के उस भाग को निकाल दिया जाता है, जहां आसामान्यता पायी जाती है. मस्तिष्क के जिस प्रभावित भाग के कारण दौरे पड़ते हैं, उसका पता लगाने के लिए एमआरआइ, इइजी और पीइटी जैसी कई जांच की गयीं.
पता चला कि दौरे मस्तिष्क के अलग-अलग भागों के कारण ट्रिगर हो रहे हैं, इसे मेडिकल टर्म में मल्टी-फोकल एपिलेप्सी कहते हैं. चूंकि मस्तिष्क के सभी प्रभावित क्षेत्रों को निकालना संभव नहीं था, इसलिए टीम ने डीप ब्रेन स्टीम्युलेशन सर्जरी करने का निर्णय लिया. यह सर्जिकल प्रक्रिया उन मामलों में बहुत सहायक होती है, जहां दवाइयां का प्रभाव काम नहीं करता है.
अभी तक इस सर्जरी ने डिसटोनिया और पार्किंसन डिजीज का उपचार करने में सर्वश्रेष्ठ परिणाम दिये हैं. लेकिन भारत में, डीबीएस बहुत ही कम मामलों में मिरगी के दौरों से पीड़ित मरीज के उपचार के लिए इस्तेमाल की गयी है. प्रक्रिया में, मस्तिष्क के विशेष भागों में इलेक्ट्रॉड का आरोपण किया जाता है, जो सीधे पेसमेकर से जुड़े होते हैं.
यह पेसमेकर मस्तिष्क के न्यूनतम करंट को बनाये रखता है और उसे नियंत्रित करता है, जो दौरे रोकने में मस्तिष्क के केंद्रीय भाग को सहायता करता है. यह पेसमेकर लगभग उसी तरह है, जैसा हृदय के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सफल आरोपण के बाद मरीज का दो दिनों तक ऑब्जर्व किया गया. कोई प्रतिकूल घटना नहीं देखी गयी. मरीज को दौरे नहीं पड़े और अब वह सामान्य है.
डीप ब्रेन स्टीम्युलेशन (डीबीएस) क्या है
डीबीएस में सर्जन मस्तिष्क के विशेष भाग में इलेक्ट्रॉड्स आरोपित करते हैं. इन इलेक्ट्रॉडों को जनरेटर से जोड़ दिया जाता है, जिसे कॉलर बोन के पास छाती में आरोपित किया जाता है, जो मस्तिष्क को विद्युतीय स्पंदन भेजता है, जिससे दौरे पड़ना बंद हो जाते हैं. डीबीएस द्वारा उपचार का सुझाव उन लोगों को दिया जाता है, जिन पर दवाइयों का प्रभाव खत्म हो जाता है और एक दिन में 12-15 दौरे पड़ते हैं.
दो चरणों में होती है सर्जरी
मस्तिष्क के सही स्थान को डायग्नोस करने के लिए जहां मिरगी के दौरे उत्पन्न होते हैं, मरीज का एमआरआइ, पीइटी और सीटी स्कैन किया जाता है. फिर दो चरणों में सर्जरी की जाती है. पहले चरण में खोपड़ी में छोटे-छोटे चीरे लगाकर प्रभावित क्षेत्र में दो इलेक्ट्रॉड आरोपित किये जाते हैं. दूसरे चरण में, न्यूरोट्रांसस्टीम्युलेटर को कॉलर बोन की त्वचा के नीचे लगाया जाता है और एक्सटेंशन को लीड्स से जोड़ दिया जाता है.
डीप ब्रेन स्टीम्युलेशन (डीबीएस)
डीबीएस सिस्टम तीन भागों में करता है कार्य
1 लीड
2 एक्सटेंशन
3 न्यूरोस्टीम्युलेटर
लीड : यह एक पतला इंसुलेटेड वायर होता है, जो खोपड़ी की एक छोटी-सी ओपनिंग में आरोपित किया जाता है. वायर मस्तिष्क के विशेष भाग में जाता है, जहां मिरगी से संबंधित गतिविधियां होती हैं. दौरे तब पड़ते हैं जब तीव्र विद्युतीय गतिविधियां अचानक तेज हो जाती हैं.
एक्सटेंशन : एक इंसुलेटेड वायर, जो न्यूरोस्टीम्युलेटर से जुड़ा हुआ रहता है और सिर, गर्दन और कंधे की त्वचा के नीचे से गुजरता है.
न्यूरोस्टीम्युलेटर : एक यंत्र जिसे पेसमेकर कहा जाता है, उसे छाती की त्वचा के नीचे लगाया जाता है.
यह मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह छोटा-सा बैटरी युक्त यंत्र होता है, जो मस्तिष्क को विद्युतीय आवेश भेजता है. ये आवेग लीड्स से होते हुए इलेक्ट्रॉड्स तक पहुंचते हैं, जिसे थैलेमस (दौरों के प्रसार के लिए जिम्मेवार) के एंटेरियर न्युक्लियस में स्थापित किया जाता है.
डॉ सुमित सिंह
डायरेक्टर न्यूरोलॉजी
अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम
जहां दवाइयां काम नहीं करतीं, वहां डीबीएस उपचार को प्राथमिकता
डीबीएस उपचार को तब प्राथमिकता दी जाती है, जब दवाइयों का प्रभाव शरीर पर पूरी तरह काम करना बंद कर देता है और इसके परिणामस्वरूप दवाइयों का सेवन बढ़ जाता है. अगर दवाइयों को एक दिन में तीन बार लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन प्रभाव कम होने पर इन्हें एक दिन में आठ बार से अधिक लेने की आवश्यकता पड़ सकती है. इससे मरीज के जीवन की गुणवत्ता पर बहुत प्रभाव पड़ता है.
ऐसे समय में डीबीएस सर्जरी बहुत लाभदायक है, क्योंकि यह मस्तिष्क के उस भाग को स्टीम्युलेट कर देती है, जहां मिरगी के दौरे उत्पन्न होते हैं. डीबीएस इसलिए भी कारगर है, क्योंकि इसका प्रभाव मरीज पर लगातार चौबीस घंटे रहता है और उसके जीवन की गुणवत्ता में सुधार आता है. मिरगी के मरीज के लिए आधुनिक चिकित्सा में यह तकनीक वरदान से कम नहीं.

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