…जब हॉबी बना इनकम सोर्स, बैग्स के बिजनेस से बनायी पहचान
रचना प्रियदर्शिनी ‘कुछ करना है’, ‘जिंदगी में एक अलग मुकाम पाना है’… ऐसा सोचनेवाले तो इस दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग हैं, पर उनमें से बहुत कम ही हैं, जो वास्तव में कुछ कर जाते हैं. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी राह में कितनी मुश्किलें हैं और सिर पर कितनी जिम्मेदारियां. […]
रचना प्रियदर्शिनी
‘कुछ करना है’, ‘जिंदगी में एक अलग मुकाम पाना है’… ऐसा सोचनेवाले तो इस दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग हैं, पर उनमें से
बहुत कम ही हैं, जो वास्तव में कुछ कर जाते हैं. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी राह में कितनी मुश्किलें हैं और सिर पर कितनी जिम्मेदारियां. ऐसी ही एक शख्सीयत हैं अनिता खंडेलवाल.
छह बहनों और तीन भाइयों में आठवें नंबर पर रहीं मधुपुर, झारखंड निवासी अनिता खंडेवाल की शादी 22 वर्ष की उम्र में हो गयी. उस वक्त वह बीए पार्ट-टू में पढती थीं. उनका ससुराल बिहार के खगड़िया में था. पति एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे. शादी के तीन सालों बाद पति के जॉब ट्रांसफर की वजह से पटना आना पड़ा. फिलहाल पिछले 20 वर्षों से वह पटना के राजेंद्र नगर रोड नंबर-2 में रह रही हैं और वहीं से अपना बिजनेस संचालित करती हैं.
आर्थिक परेशानी ने दी प्रेरणा
पति के प्राइवेट जॉब में होने की वजह से अनिता के लिए घर-परिवार के साथ-साथ अपने चार बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को मैनेज करना मुश्किल हो रहा था. तब अनिता ने घर से अचार, पापड़, बड़ी आदि बना कर दुकानों में बेचना शुरू किया. इससे थोड़ी-बहुत आमदनी तो हो जाती थी, लेकिन बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने का सपना पूरा नहीं हो सकता था.
कुछ सालों बाद अनिता ने कुछ अलग करने की सोची. तब उन्होंने मायके में अपने भइया के एक दोस्त, जिनका कि जूट के बैग्स बनाने का अपना कारखाना है, से संपर्क किया. उनसे कुछ बैग्स खरीद कर ले आयीं और फिर उसे अपने व्यक्तिगत संपर्क से बेचा.
इसका मुनाफा उन्हें बेहतर लगा. धीरे-धीरे इस बिजनेस में अनिता का रूझान बढ़ने लगा, क्योंकि उन्हें कम समय व मेहनत का निवेश करके अधिक मुनाफा मिला. पति और बच्चों ने भी पूरा सहयोग किया, तो उनका यह बिजनेस बढ़िया चल निकला.
मेले और जान-पहचान में होती है मुख्य बिक्री
अनिता पिछले 10 वर्षों से पटना और उसके आस-पास के इलाकों में लगनेवाले मेलों में वह सक्रिय भागीदारी निभाती आ रही हैं. अब तक वह सरस मेला, उद्योग मेला, हस्तशिल्प मेला आदि में अपनी सक्रिय भागीदारी निभा चुकी हैं.
अनिता बताती हैं कि ‘मैं अपना ज्यादातर सामान मेले के जरिये ही बेचती हूं. इसके अलावा कुछ सामान व्यक्तिगत जान-पहचान के आधार पर भी बिक जाता है. हर साल इस तरह के दो-तीन मेलों में बिक्री से करीब लाख-डेढ लाख का मुनाफा हो जाता है. सामान कभी तो जरूरत और कभी कस्टमर्स की डिमांड के अनुसार लाती हूं. पूरे साल की बात करूं, तो 70-80 हजार रुपये निवेश हो ही जाता है.’
भविष्य में अपना शो रूम खोलने की है चाहत
अनिता आनेवाले समय में डायरेक्ट मार्केट का हिस्सा बनना चाहती हैं. इसके लिए अपनी एक दुकान या फिर शो रूम खोलने का उनका सपना है.
आज के दौर में सोशल मीडिया मार्केटिंग के बढ़ते ट्रेंड के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि ‘मैं स्मार्टफोन तो यूज करती हूं, पर समय की कमी के कारण सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा एक्टिव नहीं हूं.’ अनिता को अब तक घर-परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से बिहार से बाहर के मेलों में भागीदारी निभाने का मौका नहीं मिला है, पर उनका कहना है कि ‘बच्चे जब बड़े हो जायें, तो इस बारे में जरूर सोचूंगी.’