….जब मां की मौत ने इन्‍हें बना दिया राइटर

II स्वाति कुमारी II लेखिका, पटना मैं एक नॉर्मल लाइफ जी रही थी, जिसमें सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था. एमबीए पूरा करने के बाद मैं बैंग्लुरु में जॉब ज्वॉइन करने की प्लानिंग कर रही थी, पर इसी बीच मेरी मां के आत्महत्या की खबर ने मेरी जिंदगी को बदल कर रख दिया. मुझे इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 2, 2018 5:39 AM
II स्वाति कुमारी II
लेखिका, पटना
मैं एक नॉर्मल लाइफ जी रही थी, जिसमें सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था. एमबीए पूरा करने के बाद मैं बैंग्लुरु में जॉब ज्वॉइन करने की प्लानिंग कर रही थी, पर इसी बीच मेरी मां के आत्महत्या की खबर ने मेरी जिंदगी को बदल कर रख दिया. मुझे इस बात की जरा भी भनक नहीं लगी कि वह ऐसा कुछ सोच रही हैं.
मैं यह तो जानती थी कि पर्सनल और फैमिली लेवल पर उनको कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं, लेकिन वह इतना बड़ा फैसला ले लेंगी, इस बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था. उस वक्त मैं 23 साल की और मेरा भाई 19 साल का था.
मां की मौत को स्वीकारने में मुझे लंबा समय लग गया. मैं जब कुछ नॉर्मल हुई, तो मैंने आत्महत्या, चिंता और अवसाद विषय पर रिसर्च करना शुरू किया. इस दौरान मुझे ऐसे संगठनों के बारे में पता चला, जो सुसाइडल प्रीवेंशन की दिशा में कार्य करते हैं.
मैंने उनमें से कुछ संगठनों का दौरा भी किया. मैं भले अपनी मां को नहीं बचा पायी, पर चाहती थी कि अन्य लोग जो चिंता और अवसाद की स्थिति से गुजर रहे हैं, उन्हें बचा पाऊं. उन्हें यह समझा पाऊं कि जिंदगी की उलझनों का समाधान आत्महत्या से नहीं हो सकता. मैं उनमें फिर से जीने की उम्मीद पैदा करना चाहती थी.
इस दिशा में मेरा पहला प्रयास मेरी किताब थी, जिसमें मैंने एक ऐसी लड़की की कहानी बतायी है, जो एक दिन अपने जीवन का अंत करने का निर्णय लेती है.
इसे मैंने अपनी मां को डेडिकेट किया था. उसके जरिये मैंने आत्महत्या की प्रवृति के बारे में लोगों को आगाह करने और इसके लक्षणों, नकारात्मक परिणामों और उपचार के बारे में जानकारी देने की कोशिश की है. अपनी मां के समान मानसिक स्थिति से जूझ रहे लोगों की मदद करने के उद्देश्य ने मुझे अपनी दूसरी किताब लिखने के लिए प्रेरित किया. आगे मैं एक काल्पनिक फोटो बुक भी बनाना चाहती हूं.

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