कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती : जिनके विचारों ने दुनिया बदल दी

अगर विश्व इतिहास में झांक कर किसी ऐसे दार्शनिक-चिंतक की तलाश करें, जिनके विचारों ने दुनिया पर सबसे ज्यादा असर डाला तो उनमें कार्ल मार्क्स का नाम अग्रणी है. विचारों का असर इतना गहरा था कि दुनिया की व्यवस्थाएं बदल दी गयीं. मार्क्स ने कहा था, विचारकों ने दुनिया की अलग अलग व्याख्या की है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 5, 2018 3:53 AM
अगर विश्व इतिहास में झांक कर किसी ऐसे दार्शनिक-चिंतक की तलाश करें, जिनके विचारों ने दुनिया पर सबसे ज्यादा असर डाला तो उनमें कार्ल मार्क्स का नाम अग्रणी है. विचारों का असर इतना गहरा था कि दुनिया की व्यवस्थाएं बदल दी गयीं. मार्क्स ने कहा था, विचारकों ने दुनिया की अलग अलग व्याख्या की है, असल काम उसे बदलना है. आज उनकी जयंती के 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं. पेश है इस अवसर पर विशेष आयोजन.
पिछले वर्ष ही यानी 2017 में रूसी क्रांति का शताब्दी वर्ष मनाया गया है, लेकिन जिनके विचारों पर इस क्रांति को अंजाम दिया गया, क्या वह आज भी प्रासंगिक हैं?
हालांकि, जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने 19वीं शताब्दी में बहुत कुछ लिखा, लेकिन आज भी निर्विवाद रूप से यह स्वीकार किया जाता है कि उनकी दो कृतियाें- ‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ और ‘दास कैपिटल’ ने एक समय दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था.
हालांकि, मार्क्स और एंगेल्स ने जिस तरह से कल्पना की थी और लिखा था, उस तरह साम्यवाद वास्तविकता के धरातल पर नहीं उतर पाया.
आखिरकार समाजवादी खेमा खत्म हो गया और पूंजीवाद लगभग पूरी दुनिया में पसर गया. ऐसे में आज मार्क्स के उन चार विचारों को आज संजीदगी से जानने की जरूरत है, जो साम्यवाद की नाकामयाबी के बावजूद आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं.
राजनीतिक कार्यक्रम :
‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ समेत अपने अनेक लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में ‘वर्ग संघर्ष’ की बात की है. उन्होंने इन तथ्यों पर जोर दिया है कि संघर्ष में आखिरकार कैसे सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता को अपने शिकंजे में ले लेगा. सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति ‘दास कैपिटल’ में उन्होंने अपने इन विचारों को बहुत तथ्यात्मक और वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया है.
ब्रिटेन के फ्रांसिस व्हीन ने मार्क्स की जीवनी में लिखा है, ‘मार्क्स ने उस सर्वग्राही पूंजीवाद के खिलाफ दार्शनिक तरीके से तर्क रखे, जिसने पूरी मानव सभ्यता को गुलाम बना लिया.’ इसके बाद बीसवीं सदी में मजदूरों की क्रांति के बूते रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासकों को सत्ता से बाहर कर दिया गया और निजी संपत्ति व उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया.
ब्रिटेन के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में जर्मनी के इतिहासकार अलब्रेख्त रिसल ने लिखा है कि, ‘मार्क्स दुनिया में भूमंडलीकरण के पहले आलोचक थे. इसके नतीजे से दुनिया में पैदा होने वाली आर्थिक असमानता के बारे में उन्होंने पहले ही चेतावनी दे दी थी.’ वर्ष 2007-08 में आयी वैश्विक मंदी ने उनके विचारों को प्रासंगिक बना दिया.
मंदी की बारंबारता में वृद्धि :
अर्थशास्त्र के ‘जनक’ एडम स्मिथ के ‘वेल्थ ऑफ नेशन’ से इतर कार्ल मार्क्स का मानना था कि बाजार को गति प्रदान करने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती. मार्क्स का कहना है कि मंदी का बार-बार आना तय है और इसके लिए जिम्मेदार तत्व पूंजीवादी व्यवस्था में ही शामिल है. अलब्रेख्त के अनुसार, ‘उनका विचार था कि पूंजीवाद के पूरी तरह खत्म होने तक ऐसा होता रहेगा.’ वर्ष 1929 में वैश्विक शेयर बाजार धड़ाम से नीचे गिर गया था और हाल के समय तक इसके झटके आते रहे. लेकिन वर्ष 2007-08 की वैश्विक मंदी चरम तक पहुंच गई और दुनिया का आर्थिक कारोबार अभूतपूर्व रूप से संकट में घिर गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि इन संकटों का असर भारी उद्योग-धंधों की जगह वित्तीय क्षेत्र पर अधिक देखा गया.
मजदूरी बढ़ोतरी दर में कमी और एकाधिकार :
मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है- ‘अतिरिक्त मूल्य.’ मजदूर जब अपनी मजदूरी के अलावा पैदा करता है, तो उसे अतिरिक्त मूल्य कहा जाता है.
मार्क्स के मुताबिक, समस्या यह है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की कीमत पर अपने मुनाफे को ज्यादा-से-ज्यादा करने की जुगत में जुट जाते हैं. इस प्रकार से पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है, जिस कारण से बेरोजगारी बढ़ती है और मजदूरी कम होती जाती है. और यह प्रवृत्ति मौजूदा दौर में भी देखी जा सकती है.
‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपने एक विश्लेषण में बताया है कि पिछले दो दशकों में अमेरिका जैसे देशों में मजदूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुना की वृद्धि हुई है.
वैश्वीकरण और आर्थिक असमानता :
फ्रांसिस व्हीन का कहना है कि पूंजीवाद अपनी कब्र खुद खोदता है, मार्क्स की यह बात सही नहीं है, जबकि हुआ इसके विपरीत ही है. साम्यवाद जब समाप्त हुआ, तो पूंजीवाद सर्वव्यापी होता जा रहा है.
पेरिस यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर और मार्क्सवादी विचारक जैक्स रैंसियर कहते हैं, ‘चीनी क्रांति के कारण आजाद हुए शोषित और गरीब मजदूरों को आत्महत्या की कगार पर ला खड़ा किया गया है, ताकि दुनिया के पश्चिमी इलाकों में भरपूर सुख-सुविधा कायम हो सके, जबकि वास्तविकता यह है कि अमेरिका चीन के पैसे से जिंदा है, वरना वह दिवालिया हो जायेगा.’
कार्ल मार्क्स भले ही अपनी भविष्यवाणी में असफल हो गये हों, लेकिन जिस तरह से उन्होंने पूंजीवाद की आलोचना की थी, वह बेहद सटीक साबित हो रही है.
‘कम्युनिस्ट घोषणा’ पत्र में उन्होंने यह आशंका जाहिर की थी कि पूंजीवाद का वैश्वीकरण ही अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बनेगा. बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में पैदा हुए आर्थिक संकट ने इसे सही साबित भी किया.
यही कारण है कि मौजूदा दौर में भी जब वैश्वीकरण की समस्याओं पर बहस होती है, तो मार्क्सवाद का न केवल जिक्र किया जाता है, बल्कि कहा जा सकता है कि बिना उसके यह बहस पूरी नहीं हो सकती.
मार्क्स के विश्लेषणों की दूरदृष्टि
कार्ल मार्क्स ने इतिहास और पूंजीवादी व्यवस्था के शोषक स्वरूप का बारीक चारित्रिक विश्लेषण किया है. विश्व की पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं के आधुनिक अध्ययन के अनुसार, पूरी दुनिया में व्याप्त आर्थिक मंदी या फिर सूचना प्रौद्योगिकी में चल रहे प्रौद्योगिकी परिवर्तनों की प्रकृति में (जो मानवीय श्रम को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से विस्थापित करने जैसे खतरे पैदा कर रही है) मार्क्स के विश्लेषणों की दूरदृष्टि का अनुभव आज भी किया जाता है.
नव-उदारवादी पूंजीवाद ने हमारे पर्यावरण के अंधाधुंध विनाश तथा जलवायु परिवर्तन समेत मानव जाति के समक्ष संकट पैदा कर दिया है. मार्क्सवाद और समाजवाद इन संकटों से पार पाने और भविष्य के लिए एक टिकाऊ सामाजिक व्यवस्था के सृजन की दिशा में विविध उपायों और विचारों के अहम स्रोत बने ही रहेंगे.
जीवन-वृत
जन्म तिथि 5 मई, 1818
जन्म स्थान रेनिश प्रशिया (वर्तमान जर्मनी)
मृत्यु 14 मार्च, 1883 (लंदन).
पिता हेनरिक मार्क्स (वकील)
माता हेनरिएट प्रेसबर्ग मार्क्स
शिक्षा डॉक्टरेट (बर्लिन यूनिवर्सिटी)
कार्यक्षेत्र लेखन, पत्रकारिता, इतिहासकार, अर्थशास्त्री और दर्शनशास्त्री.
संपादन राइनिशे जितुंग, नेउ राइनिशे जितुंग.
विचारधारा साम्यवादी.
धर्म नास्तिक (पूर्व में ईसाई).
संतति तीन बेटियां (जेनी, लौरा और एलिनॉर).
पत्नी जेनी वॉन वेस्टफेलेन (19 जून, 1843 – 2 दिसंबर 1881).

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