26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ईरान परमाणु समझौते से अलग हुआ अमेरिका वैश्विक प्रभाव की आशंका, जान‍िए भारत पर कैसे पड़ेगा असर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान परमाणु समझौते से अलग होने के फैसले ने मध्य-पूर्व की राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नये सवाल खड़े कर दिये हैं. हालांकि, इस करार में शामिल अन्य देश ट्रंप से सहमत नहीं है, इसलिए यह समझौता अभी कायम है, किंतु ईरान पर अमेरिका के कठोर आर्थिक प्रतिबंध फिर […]

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान परमाणु समझौते से अलग होने के फैसले ने मध्य-पूर्व की राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नये सवाल खड़े कर दिये हैं. हालांकि, इस करार में शामिल अन्य देश ट्रंप से सहमत नहीं है, इसलिए यह समझौता अभी कायम है, किंतु ईरान पर अमेरिका के कठोर आर्थिक प्रतिबंध फिर से लागू हो जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार के मोर्चे पर जटिल तनावों की आशंकाएं बढ़ गयी हैं. इस पूरे प्रकरण के प्रमुख आयामों पर आधारित इन-डेप्थ की प्रस्तुति…

ईरान परमाणु समझौते से अलग होते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि यह करार एकतरफा और दोषपूर्ण था तथा इससे ईरान के परमाणु आकांक्षाओं पर रोक लगाने में कामयाबी नहीं मिली है.

अब ईरान को कठोर अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. इसके जवाब में ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा है कि उनका देश इस करार पर दस्तखत करनेवाले अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा. उन्होंने अमेरिकी फैसले को ‘अस्वीकार्य’ बताया है.

अन्य कई प्रमुख देशों के नेताओं ने भी राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अमेरिका के निर्णय पर अफसोस जताया है. उन्होंने अपने बयान में फ्रांस के साथ जर्मनी और ब्रिटेन को भी जोड़ा है.

मैक्रों ने आशंका जाहिर की है कि परमाणु अप्रसार व्यवस्था आज खतरे में है. तीनों देशों के साथ मिलकर काम करने की बात करते हुए उन्होंने कहा है कि वे मध्य-पूर्व, खासकर सीरिया, यमन और इराक, में शांति स्थापित करने के लिए प्रयास करेंगे. फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां-वे ले द्रिआं ने साफ कहा है कि यह करार अभी खत्म नहीं हुआ है.

उन्होंने यह भी जानकारी दी है कि अगले हफ्ते यूरोपीय नेता ईरानी प्रतिनिधि से मुलाकात कर परमाणु समझौते के भविष्य के बारे में विचार-विमर्श करेंगे. जर्मनी के विदेश मंत्री हीको मास ने कहा है कि उनका देश कोई ऐसा आधार नहीं पा सका है, जिसके कारण उसे करार से बाहर आने का निर्णय लेना पड़े. ब्रिटिश विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन ने भी अमेरिका के हटने पर अफसोस जाहिर किया है.

यूरोपीय संघ के शीर्ष कूटनीतिक फेदरिका मोगेरिनी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस करार को बचाने का आह्वान किया है. उन्होंने कहा है कि संघ इस करार को बचाने और उसे पूरी तरह से लागू करने के लिए जी-तोड़ प्रयास करेगा. इस समझौते में शामिल देशों में रूस और चीन ने भी यूरोप की तर्ज पर ही प्रतिक्रिया दी है.

दूसरी तरफ, मध्य-पूर्व में अमेरिका के मित्र देशों- इस्राइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात- ने ईरान परमाणु करार पर अमेरिकी फैसले का समर्थन और स्वागत किया है. इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि उनका देश शुरू से ही इस करार का विरोधी है, क्योंकि इससे ईरान को रोकने के बजाये उसे परमाणु हथियार बनाने की सहूलियत दी है.

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले नेतन्याहू ने कुछ दस्तावेज जारी किये थे जिनमें ईरान द्वारा परमाणु हथियार विकसित करने के कथित दावे किये गये थे. राष्ट्रपति ट्रंप ने इन दस्तावेजों को अपने फैसले का एक आधार बनाया है.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस फैसले को दिशाहीन बताया है. उन्होंने कहा है कि यह करार कारगर है और इस बात का उदाहरण भी है कि कूटनीति से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है.

ईरान और अन्य देशों के साथ यह करार ओबामा के शासनकाल में ही हुआ था. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेरेस ने ट्रंप की घोषणा पर गंभीर चिंता जतायी है. ऑस्ट्रेलिया, तुर्की और जापान भी अमेरिका के फैसले के साथ नहीं है.

इन प्रतिक्रियाओं से साफ जाहिर है कि आनेवाले दिनों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों तथा शेष विश्व के बीच तनातनी की हालत पैदा हो सकती है. नयी स्थितियों के साथ कूटनीति अगर कामयाबी से संतुलन नहीं बना पाती है, तो हिंसक झड़पों की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.

ट्रंप के फैसले से नाराज अंतरराष्ट्रीय समुदाय

संभावित नतीजे

इस समझौते से दुनिया के अनेक इलाकों में विविध प्रकार के परिणाम हो सकते हैं़. इसमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं :

इस समझौते से ईरान पर दोबारा आर्थिक प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं, जिससे वैश्विक तेल कंपनियों पर ईरान से तेल नहीं खरीदने का दबाव बढ़ेगा. इससे तेल की कीमतों में तेजी आ सकती है.

भारत जैसे अमेरिका के करीबी देशों ने ईरान के साथ तेल पर समझौता किया है, जो ट्रंप के फैसले से विवाद में आयेंगे.

पूरी दुनिया में अमेरिका के प्रति

नफरत की भावना बढ़ेगी और ईरान अपनी परमाणु गतिविधियों को बढ़ा सकता है.

इससे एक दूसरी आशंका यह भी पैदा हो सकती है कि ईरान अब मिसाइल परीक्षण भी शुरू कर सकता है.

इस समझौते का बड़ा असर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग की शिखर वार्ता पर पड़ सकता है. यह मुमकिन है कि किम इस फैसले के बाद शिखर वार्ता रद्द कर दें.

भारत पर हो सकते हैं नकारात्मक असर

ईरान परमाणु करार से अमेरिका के अलग होने की घोषणा के साथ ही राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की भी बात कही है. उन्होंने यह भी कहा है कि जो देश इन प्रतिबंधों को नकारते हुए ईरान से लेन-देन करेंगे, उन्हें भी खराब नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं. भारत और ईरान के बीच व्यापक द्विपक्षीय संबंध हैं और ट्रंप का यह फैसला दोनों देशों के साझा हितों पर असर डाल सकता है. इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं :

तेल की कीमतें

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने का दबाव भारत पर बढ़ रहा है. ईरान पर प्रतिबंध इसे और बढ़ा सकता है, क्योंकि इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान हमारा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश है. कीमतों में इजाफा डॉलर के मुकाबले रुपये की हालत खराब कर सकता है और मुद्रास्फीति में वृद्धि हो सकती है. बीते सप्ताह तेल की कीमतें चार साल में उच्च्तम स्तर पर पहुंच गयी हैं. इस साल ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी के भारत दौरे के समय तेल का आयात बढ़ाने का करार हुआ था.

उम्मीद जतायी जा रही थी कि 2017-18 में 2,05,000 बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति को मौजूदा वित्त वर्ष में 3,96,000 बैरल प्रतिदिन कर दिया जायेगा. दोनों देशों के बीच कुल 12.89 बिलियन डॉलर के व्यापार में तेल के अलावा 2.69 बिलियन डॉलर का कारोबार है. बीते कुछ महीनों में रुपये में निवेश और लेन-देन के नये तरीके निकालने के कारण इस पर असर होने की आशंका नहीं है.

चाबहार बंदरगाह

दोनों देशों के आर्थिक सहयोग और दक्षिणी एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति में हस्तक्षेप के लिहाज से चाबहार परियोजना बहुत महत्वपूर्ण है. अमेरिकी प्रतिबंध इसकी गति को अवरुद्ध कर सकते हैं या इसे स्थगित कर सकते हैं. बंदरगाह की कुल 500 मिलियन डॉलर की लागत में भारत 85 मिलियन डॉलर पहले ही देने पर रजामंद हो चुका है.

इस बंदरगाह से अफगानिस्तान जानेवाली रेल परियोजना पर 1.6 बिलियन डॉलर खर्च का अनुमान है. पिछले साल भारत से इस बंदरगाह के जरिये 1.1 मिलियन टन गेहूं भेजे जाने पर अमेरिका ने यह कहते हुए नरम रुख अख्तियार किया था कि वह ईरानी सरकार पर दबाव डालना चाहता है, न कि ईरान के लोगों पर. ट्रंप प्रशासन में बदलाव और नयी घटनाओं मद्देनजर चाबहार परियोजना के भविष्य पर बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है.

शंघाई सहयोग संगठन

अगले माह चीन में आयोजित इस संगठन की बैठक में ईरान को भी शामिल किये जाने की संभावना है. इसमें चीन और रूस मुख्य भूमिका में हैं तथा भारत के साथ पाकिस्तान भी इस संगठन का सदस्य है.

ईरान के शामिल होने से अमेरिका इस संगठन को अपने हितों के विरोधी के बतौर चिह्नित कर सकता है तथा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इस्राइल जैसे देशों के साथ भारत के संबंध प्रभावित हो सकते हैं, जो ईरान के परंपरागत विरोधी हैं. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत इलाके में सहयोग विकसित करने की भारतीय कोशिशों को भी झटका लग सकता है.

उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारा

चाबहार के साथ ईरान से मध्य एशिया होते हुए रूस तक यातायात गलियारा विकसित करने की परियोजना में भी भारत शामिल है. इस गलियारे से सामान जल्दी पहुंचाये जा सकेंगे. जब परमाणु करार के बाद 2015 में ईरान से प्रतिबंध हटाये गये थे, तब इस योजना पर तेजी से काम बढ़ा था. अब यह देखना होगा कि अमेरिका के कठोर प्रतिबंध इसे किस हद तक प्रभावित कर सकेंगे.

अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर असर

भारत यह कहता रहा है कि द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों का आधार नियम-आधारित व्यवस्था होनी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस में भी इस बात को रेखांकित किया है. परमाणु करार और पेरिस जलवायु सम्मेलन जैसे कुछ अहम समझौतों से ट्रंप का किनारा करना विश्व-व्यवस्था के लिए बड़ी चोट है. ऐसे में ईरान पर प्रतिबंध, चीन के साथ व्यापार-युद्ध, संरक्षणवाद को देखते हुए भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करनी पड़ सकती है.

क्या है यह समझौता

ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के बीच वर्ष 2015 के जुलाई में यह समझौता हुआ था. ज्वॉइंट कंप्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन नामक इस समझौते में ईयू व जर्मनी भी शामिल थे.

उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा थे, जिन्होंने इस समझौते के तहत ईरान को परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले में प्रतिबंधों से कुछ राहत प्रदान की थी. मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने काफी समय पहले ही इस बारे में इशारा कर दिया था कि वे इस समझौते के विपरीत जा सकते हैं. समझौते से ट्रंप के अलग होने के बाद दुनियाभर में इसका प्रभाव पड़ सकता है. इससे ईरान की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ेगा व पश्चिमी एशिया में तनाव बढ़ेगा.

परमाणु करार : टाइमलाइन

अगस्त, 2002 : पश्चिमी खुफिया सेवाओं व ईरान के विपक्षी दल ने नटांज शहर में एक गुप्त परमाणु स्थल का पता लगाया. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने यहां निरीक्षण किया और कहा कि इसका इस्तेमाल यूरेनियम संवर्धन के लिए किया गया था.

जून, 2003 : ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने परमाणु कार्यक्रमों पर रोक लगाने के लिए एक वार्ता आयोजित की और इसमें ईरान को शामिल किया, लेकिन अमेरिका ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया.

अक्टूबर, 2003 : ईरान ने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम स्थगित कर दिया.

फरवरी, 2006 : कार्यक्रम फिर शुरू करने की घोषणा की.

जून, 2006 : अमेरिका, रूस और चीन ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ मिलकर एक समूह बनाया, ताकि परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए ईरान को राजी किया जा सके.

दिसंबर, 2006 : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने ईरान पर पहली बार प्रतिबंध लगाते हुए संवेदनशील परमाणु तकनीक की बिक्री पर रोक लगा दी.

जून, 2008 : अमेरिका पहली बार परमाणु वार्ता में शामिल.

अक्टूबर, 2009 : बराक ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका के वरिष्ठ राजनयिक ईरान के शीर्ष परमाणु वार्ताकार से मिले.

फरवरी, 2010 : ईरान ने घोषणा की कि उसने 20 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन करना शुरू कर दिया है.

जनवरी, 2011 : ईरान व छह देशों के बीच वार्ता भंग हो गयी.

जनवरी, 2012 : आईएईए ने बताया कि ईरान 20 प्रतिशत संवर्धन तक पहुंचनेवाला है. इसके बाद यूरोपीय यूनियन ने ईरान के सेंट्रल बैंक की परिसंपत्ति और ईरानी तेल आयात पर रोक लगा दी.

अप्रैल, 2012 : ईरान व विश्व शक्तियों के बीच वार्ता शुरू हुई.

नवंबर, 2013 : ईरान और छह देशों ने अंतरिम समझौते की घोषणा की, जिसके तहत तेहरान के परमाणु कार्यक्रमों पर अस्थायी रूप से रोक लग गयी और कुछ ईरानी परिसंपत्तियों पर रोक हटा ली गयी.

14 जुलाई, 2015 : ईरान और विश्व शक्तियों ने व्यापक परमाणु समझौते की घोषणा की.

अक्तूबर, 2015 : ईरान ने अपना पहला बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण किया.

16 जनवरी, 2016 : आईएईए ने माना कि ईरान ने अपनी प्रतिबद्धताएं निभायी हैं. उस पर लगे अधिकांश प्रतिबंध हटा लिए गये.

17 जनवरी, 2016 : अमेरिका ने नये प्रतिबंध लगाये. इसका कारण ईरान द्वारा बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण था.

नवंबर, 2017 : अमेरिका, पश्चिमी देश और यूएन ने आरोप लगाया कि ईरान यमन में शित्त विद्रोहियों को बैलिस्टिक मिसाइल मुहैया करा रहा है.

9 मई, 2018 : ट्रंप ने परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने और ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें