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अर्थव्यवस्था के विकास से दुनियाभर में बढ़ रहा शहरीकरण

दुनियाभर में शहरीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग की रिपोर्ट का आकलन है कि 2050 तक 68 फीसदी वैश्विक आबादी नगरों की वासी होगी. इसमें भारत 41.6 करोड़, चीन 25.5 करोड़ और नाइजीरिया 18.9 करोड़ के साथ सबसे अधिक योगदान देंगे. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के साथ संख्या, […]

दुनियाभर में शहरीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग की रिपोर्ट का आकलन है कि 2050 तक 68 फीसदी वैश्विक आबादी नगरों की वासी होगी. इसमें भारत 41.6 करोड़, चीन 25.5 करोड़ और नाइजीरिया 18.9 करोड़ के साथ सबसे अधिक योगदान देंगे. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के साथ संख्या, आबादी और आकार के स्तर पर शहर भी बढ़ रहे हैं.

साथ ही, समुचित योजना और प्रबंधन की चुनौती भी हमारे सामने है. शहरी योजनाकारों की उपलब्धता भी हमारे यहां अत्यंत न्यून (एक लाख आबादी पर महज 0.23) है. एक अन्य शोध के अनुसार, अगले दो दशक में हर मिनट 30 लोग गांव से शहर की ओर रुख करेंगे. यह गति रही, तो हमें करीब 500 नये शहरों की दरकार होगी. शहरीकरण की प्रक्रिया और समस्याओं के विविध पहलुओं के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों…

मुनाफे पर टिकी हुई है शहरीकरण की नीति

भारत सरकार ही नहीं, तीसरी दुनिया की सारी सरकारें वैश्वीकरण को आगे बढ़ा रही हैं. यह सब किसी व्यक्ति विशेष की इच्छा से नहीं, बल्कि बड़ी आर्थिक और पूंजीवादी ताकतों की इच्छा से चल रहा है. यह इसलिए, चूंकि पूंजीवादी ताकतें चाहती हैं कि शहरीकरण हो. शहर में उत्पादकता और मुनाफा, दोनों है और शहरीकरण से यह कई गुना बढ़ जाते हैं. इस संबंध में 1998 के प्लानिंग कमीशन के अध्ययन के साथ कई सारी एजेंसियों के अध्ययन आ चुके हैं.

इनसे पता चला है कि मजदूर को ग्रामीण परिवेश से शहर के परिवेश में लाने से उसकी उत्पादकता चार से आठ गुना बढ़ जाती है. दूसरी बात यह है कि उत्पादकता ही मुनाफा बढ़ाती है, इसलिए लोग शहरों में पूंजी का निवेश करना चाहते हैं, ताकि उत्पादकता से मुनाफा कमाया जा सके. इससे शहरीकरण बढ़ता है, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान मजदूर की मेहनत का होता है.

शहर आकर वह आठ गुना मेहनत तो करता है, लेकिन मेहनताना आठ गुना नहीं मिलता. यानी शहर में आया एक मजदूर आठ गुनी उत्पादकता देकर भी 100 रुपये ही कमा पाता है, 800 नहीं. मतलब एक मजदूर की आठ गुनी मेहनत पर उसे 100 रुपये पकड़ाकर पूंजीपति या मालिक 700 रुपये अपनी जेब में भर लेता है. इसलिए पूंजीपति सरकारों की नीतियों में दखल देते हैं और कहते हैं कि शहरीकरण को बढ़ावा दिया जाये, जिससे मुनाफा बढ़ेगा. इसी कारण दुनियाभर में शहरीकरण बढ़ रहा है. इसी के साथ बड़ी समस्याएं भी जन्म ले रही हैं. हमारे शहरों के प्रदूषित होने का कारण शहरी विकास की नीति और उसका खराब प्रबंधन है, जो महज मुनाफे पर टिकी है.

शहरों में ही सबकुछ

सरकारी नीति में एक शहर, विकास का इंजन होता है. सरकारों के लिए विकास का यह मतलब नहीं होता कि इससे लोगों का भला होता है, बल्कि यह कि मुनाफा बढ़ रहा है कि नहीं. प्लानिंग कमीशन के चेयरमैन, आरबीआइ के गवर्नर और कई मंत्री कह चुके हैं कि भारत में शहरीकरण होगा और साल 2040 तक भारत की आधी आबादी शहर में शिफ्ट हो जायेगी. इसका मतलब यह नहीं है कि लोग शहरों में भागना चाहते हैं, बल्कि इसका सीधा अर्थ यह है कि सरकार यह चाहती है कि लोग गांव छोड़कर शहर आएं इसलिए सरकारें शहरीकरण के लिए नीतियां बनाती हैं, गांवों के लिए नहीं, ताकि वे वहां उत्पादन कर सकें और रोजगार बढ़ सके. कृषि में भी जो भी नीतियां चल रही हैं, वे सभी उन्नत फसल, उन्नत मशीनरी और नयी बीजों के लिए प्रोत्साहित करनेवाली नीतियां हैं, जो पूंजी से संचालित होती हैं.

वैश्विक जीडीपी का 80 प्रतिशत शहरों से आता है. सरकार के नीति-निर्धारकों और पूंजी निवेशकों की चिंता में केवल जीडीपी बढ़ने और मुनाफा कमाने की बात है. लोग कंपनियों या फैक्ट्रियों में काम तो करेंगे, लेकिन इतने लोगों के लिए घर, पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि का प्रबंध कैसे होगा. और जब भीड़ बढ़ेगी, तो प्रदूषण बढ़ेगा. पर्यावरण बिगड़ेगा, तो केवल मजदूर वर्ग के लिए ही नहीं बिगड़ेगा, बल्कि कंपनियों और पूंजीपतियों के लिए भी बिगड़ेगा. इस बात कि चिंता किये बगैर शहरीकरण करना बेहद मूर्खतापूर्ण काम है.

स्मार्ट सिटी पर जोर

शुरू की शहरी नीतियों में, चौथी-पांचवीं पंचवर्षीय योजना में देखें, मुख्य रूप से आवास पर ज्यादा जोर था. उसके बाद जवाहरलाल शहरी रोजगार योजना शुरू हुई, फिर शहर पुनर्जीवीकरण और फिर अब आया है स्मार्ट सिटी. हर शहर में स्मार्ट सिटी उस छोटे से हिस्से की बात करता है, जो सबसे वर्चस्व वाला हिस्सा होता है और जहां सबसे अमीर लोग रहते हैं. स्मार्ट सिटी की सारी व्यवस्थाएं निजी कंपनियों के हाथों में होंगी, जिनसे सरकार टैक्स वसूलेगी. यह निजीकरण है.

कंपनियों के बारे में आपको पता ही है कि वे लोगों का शोषण ही करती हैं. इस वक्त अगर स्मार्ट सिटी को बनाने में सरकार के शहरी योजनाकारों की लिस्ट देखें, तो आप पायेंगे कि इसमें से 90 प्रतिशत योजनाकारों को योजना बनाने ही नहीं आता. ये सभी लोग केवल वित्तीय कंसलटेंट हैं, योजनाकार नहीं. ऐसे में अगर स्मार्ट सिटी बन भी जाये, तो यह संभव नहीं कि वह शहरी पर्यावरण के लिए घातक होगा? यह कितनी बड़ी विडंबना है.

हम जैसे सलाहकार को सरकार इसलिए नहीं बुलायेगी, क्योंकि उसे पता है कि हम जनता का पक्ष लेंगे. और जब हम जनता का पक्ष लेंगे, तो सरकार के शहरीकरण में मुश्किलें आयेंगी. इसलिए सरकार महज ऐसे लोगों को ही सलाहकार रखती है, जो यह बता सके कि शहरीकरण से मुनाफा कितना होगा, भले ही इसके लिए पर्यावरण और जनता का नुकसान हो.

पहले यह माना जाता था कि सरकार जनता के लिए है और इसे ही जनतंत्र कहा जाता है. लेकिन सरकार ने 1990 में ही अपने हाथ खड़े कर दिये थे कि वह जनता की तरफ से नहीं, बल्कि पूंजी निवेशकों की तरफ से समाज को चलायेंगे. यह तो एक लिखित सरकारी उद्घोषणा है- हम अब इन्वेस्टर फ्रेंडली हैं. इसका मतलब ही यही है कि सरकार पूंजी की रक्षा करेगी, जनता की नहीं.

सरकार महज चिंता करने का नाटक करती है, उसकी मंशा में पर्यावरण बचाना नहीं है. इसका बेहतरीन उदाहरण गंगा है. आपने देखा होगा, नमामि गंगे के जरिये गंगा साफ करने की चिंता को सरकार ने व्यक्त किया. लेकिन क्या गंगा मां साफ हुईं? हमारे ज्यादातर शहर गंगा घाटी में ही हैं. ऐसे में अगर गंगा बर्बाद होगी, तो शहरी संस्कृति भी खत्म हो जायेगी. इसलिए, सरकार की कोई मंशा नहीं है कि वह शहरीकरण करके जन-जीवन का उन्नत और स्वस्थ विकास करे, बल्कि उसे महज पूंजी की चिंता है.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

शहरीकरण पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) के जनसंख्या प्रभाग द्वारा पेश विश्व शहरीकरण संभावनाओं के पुनरावलोकन 2018 रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक शहरी आबादी में तेज गति से वृद्धि के कारण वर्ष 2050 तक शहरी आबादी 70 प्रतिशत तक पहुंच जायेगी. हालांकि, इस वृद्धि के कुछ देशों तक ही सीमित रहने का अनुमान है. रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य :

55 फीसदी वैश्विक आबादी आज शहरों में निवास करती है, लेकिन आबादी बढ़ने और ग्रामीणों का शहरों की ओर रुख करने से वर्ष 2050 तक यह 68 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है.

2.5 अरब लोग और जुड़ सकते हैं शहरी आबादी में वर्ष 2050 तक. एशिया और अफ्रीकी देशों में इसमें ज्यादा तेजी दिखाई दे रही है.

10 मिलियन से अधिक आबादी वाले 43 महानगर हो जायेंगे वर्ष 2030 तक विश्व में, जिनमें से ज्यादातर विकासशील देशों में होंगे.

2050 तक दुनिया की शहरी आबादी में भारत का योगदान सर्वाधिक होने के आसार हैं.

35 प्रतिशत योगदान होगा भारत, चीन और नाइजीरिया का कुल शहरी आबादी की वृद्धि में.

416 मिलियन की वृद्धि हो सकती है भारत की शहरी आबादी में 2050 तक, जबकि चीन की 255 मिलियन और नाइजीरिया की 189 मिलियन बढ़ सकती है शहरी जनसंख्या.

3.7 करोड़ आबादी के साथ वर्ष 2028 में दिल्ली विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला शहर बन जायेगा.

अफ्रीका व एशिया में सर्वाधिक ग्रामीण आबादी

वर्ष 1950 से वैश्विक ग्रामीण आबादी की गति धीमी हो गयी है और आनेवाले कुछ वर्षों में इसमें और कमी आने की उम्मीद है. अभी वैश्विक ग्रामीण आबादी 3.4 अरब के करीब है और इसमें थोड़ी और वृद्धि का अनुमान है. इसके बाद इसमें गिरावट आयेगी और 2050 तक यह 3.1 अरब तक पहुंच जायेगी. वहीं कुल वैश्विक ग्रामीण आबादी प्रतिशत में अफ्रीका और एशिया अव्वल हैं.

शहरीकरण की नीतियों

के तीन आयाम

शहरीकरण की नीतियों की कामयाबी के लिए शहरीकरण नीतियों को तीन महत्वपूर्ण आयामों के साथ देखा जा सकता है :

राष्ट्रीय आर्थिक नीतियां

क्षेत्रीय नीतियां

शहरों के आंतरिक प्रबंधन की नीतियां

समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है सतत शहरीकरण

दुनिया जिस तरह शहरीकरण की राह पर आगे बढ़ रही है, शहर का समग्र विकास सफल मैनेजमेंट पर निर्भर हो गया है. खासकर, कम और मध्यम आमदनी वाले देशों में, जहां वर्ष 2050 तक सर्वाधिक तेजी से शहरीकरण में बढ़ोतरी का अनुमान है. शहरी और ग्रामीण, दोनों आबादी के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए एकीकृत नीतियों को अपनाने और उन्हें आपस में जोड़ते हुए मजबूती प्रदान करने की जरूरत है.

शहरों का सतत विकास इन तीन प्रमुख आयामों से करीबी तौर पर जुड़ा है : आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण. दीर्घावधि के लिए आबादी की प्रवृत्ति को समझते हुए शहरीकरण को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है. इससे पर्यावरण की रक्षा के साथ हुए शहरी नागरिकों पर संभावित विपरीत असर को भी न्यूनतम किया जा सकता है.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि शहरीकरण का फायदा सभी को मिले, शहरी गरीबों पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है. इसके अलावा, शहरों में वंचित तबकों के लिए मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और स्वच्छ पर्यावरण मुहैया कराना बेहद जरूरी है. इसके लिए बुनियादी ढांचे तक सभी की पहुंच को आसान बनाना होगा.

लैटिन अमेरिका में शहरीकरण

लैटिन अमेरिका में यूरोपीय देशों के मुकाबले ज्यादा तेजी से और अधिक केंद्रीभूत तरीके से व्यापक पैमाने पर अंजाम दिया गया है. दुनिया के अन्य विकासशील देशों के लिए लैटिन अमेरिका के अनुभवों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. चूंकि इस इलाके में शहरीकरण काफी पहले हुआ, लिहाजा यहां बेहतर नीतियां बनायी गयी हैं. वेनेजुएला की औद्योगिक नीतियों ने इस क्षेत्र में शहरीकरण के एक नये मानदंड को कायम किया.

ब्राजील से हमें यह सीखने की जरूरत है कि पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए कैसे हम शहरीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि सार्थक प्रयासों के जरिये मैक्सिको में बड़े शहरों में यातायात की सुविधाओं को बेहतर तरीके से विकसित किया गया है. दक्षिण कोरिया ने इस मामले में बड़ी कामयाबी हासिल की है. वहां आबादी का घनत्व अधिक है और महज 20 फीसदी जमीन ही उपयोगी है. शहरीकरण की बेहतर नीतियों के जरिये उसने राजधानी और अन्य क्षेत्रों में तेजी से विकास किया है.

भारत में शहरीकरण की स्थिति

97.5 फीसदी आबादी के साथ दिल्ली और 97.25 प्रतिशत आबादी के साथ चंडीगढ़ भारत में सर्वाधिक शहरीकृत हैं.

75.2 फीसदी के साथ दमन व दीव और 68.3 प्रतिशत के साथ पुड्डुचेरी का स्थान है, सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में.

62.2 फीसदी शहरी जनसंख्या के साथ गोवा भारत का सबसे शहरीकृत राज्य है, जबकि 2001 तक इस राज्य की शहरी आबादी महज 49.8 प्रतिशत थी.

47.7 प्रतिशत केरल की शहरी आबादी है, जो एक दशक पहले तक महज 25.9 प्रतिशत थी.

51.5 प्रतिशत शहरी आबादी वाला मिजोरम पूर्वोत्तर राज्यों में प्रथम स्थान पर है.

25 प्रतिशत शहरीकरण हो चुका है सिक्किम का 2011 तक, जबकि इसके एक दशक पहले तक इस राज्य के 11 प्रतिशत इलाके ही शहरीकरण के दायरे में आते थे.

सर्वाधिक शहरीकरण (% में)

वाले राज्य

तमिलनाडु 48.4

केरल 47.7

महाराष्ट्र 45.2

न्यूनतम शहरीकरण (% में)

हिमाचल प्रदेश 10.0

बिहार 11.3

असम 14.1

ओडिशा 16.7

एशिया में 54 फीसदी शहरी आबादी

एशिया की शहरी आबादी 75.1 करोड़ से 4.2 अरब हो गयी वर्ष 1950 से 2018 के बीच. जबकि तुलनात्मक रूप से धीमी गति से हाेनेवाले शहरीकरण के बावजूद विश्व की कुल शहरी आबादी का 54 प्रतिशत एशिया में निवास करती है. इसके बाद 13-13 प्रतिशत जनसंख्या के साथ यूरोप और अफ्रीका का स्थान आता है.

शहरी आबादी मेंमहाराष्ट्र अव्वल

शहरी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या के मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है. यहां 5.08 करोड़ लोग शहरी क्षेत्र में रहते हैं, जो कुल शहरी आबादी का 13.5 फीसदी है. करीब 4.44 करोड़ के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे और 3.49 करोड़ के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है.

(स्रोत : आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार)

3.62 करोड़ के साथ टोक्यो सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर है. हालांकि, अनुमान है कि 2020 तक यहां की आबादी कम होना शुरू हो जायेगी. टोक्यो के बाद दिल्ली है, जिसकी आबादी 2.9 करोड़ है. 2.6 करोड़ आबादी है शंघाई की, जबकि मेक्सिको सिटी व साउ पाउलो की आबादी 22-22 मिलियन है. वहीं काहिरा, मुंबई, बीजिंग और ढाका की आबादी करीब 20-20 मिलियन है.

उत्तरी अमेरिका में सर्वाधिक शहरी जनसंख्या

उत्तरी अमेरिका में सबसे ज्यादा यानी 82 प्रतिशत जनसंख्या शहरी है, जबकि दक्षिणी अमेरिका व कैरिबिया की 81 प्रतिशत, यूरोप की 74 प्रतिशत और ओशानिया की 68 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है. वहीं एशिया में यह 50 फीसदी है. अफ्रीका की महज 43 प्रतिशत आबादी ही शहरी क्षेत्र में निवास करती है.

शहरीकरण से जुड़े कार्यक्रम

भारत में शहरीकरण की गति तेज करने के लिए बीते वर्षों में सरकार ने स्मार्ट सिटी, अमृत, स्वच्छ भारत अभियान, हृदय, प्रधानमंत्री आवास योजना, समेत अनेक योजनाओं की शुरुआत की है. ये कार्यक्रम सुचारु रूप से चलते रहेें, इसके लिए मौजूदा वित्त वर्ष में आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के बजट में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि की गयी.

स्मार्ट सिटी योजना

इसके तहत करीब 100 शहरों का चयन किया गया है. इनके विकास पर 2,01,981 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है. इसका उद्देश्य उन शहरों को प्रोत्साहित करना है, जो अवसंरचना मुहैया कराने के साथ ही नागरिकों को बेहतर जीवन स्तर व स्वच्छ वातावरण प्रदान करते हैं.

अमृत

अटल मिशन फॉर रीजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन नामक कार्यक्रम सभी नागरिकों को जलापूर्ति, सीवेज, शहरी परिवहन, पार्क समेत आधारभूत नागरिक सुविधाएं मुहैया कराने व इन्हें बेहतर बनाने के लिए शुरू की गयी है. अमृत योजना पर पांच वर्षों के दौरान 50,000 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे.

स्वच्छ भारत अभियान

इस अभियान के तहत 2019 तक 66.42 लाख घरेलू शौचालय, 2.52 लाख सामुदायिक शौचालय और 2.56 लाख सार्वजनिक शौचालय बनाने और ठोस कचरा प्रबंधन समेत अन्य कई उपायों के साथ शहरी इलाकों को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य तय किया गया है.

हृदय

हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड अग्मेंटेशन नामक इस योजना को ऐतिहासिक महत्व के शहरों यानी हेरिटेज सिटी को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से शुरू की गयी. इस योजना के तहत मार्च, 2017 तक 500 करोड़ रुपये की लागत से 12 चिह्नित शहरों का पुनरुद्वार किया जा चुका है.

प्रधानमंत्री अावास योजना

अनुमान है कि एक दशक में झोपड़पट्टी में रहने वाले परिवारों की संख्या 18 मिलियन तक पहुंच जायेगी.

सरकार का उद्देश्य इस योजना के माध्यम से दो मिलियन गैर झोपड़पट्टी शहरी गरीब परिवारों को 2022 तक आवास मुहैया कराना है.

दुनू रॉय

निदेशक, हजार्ड सेंटर

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