इंसानियत की हिफाजत का पाठ पढ़ाता है रोजा
रुक जाना यानी सुबह सादिक से सूरज के डूबने तक खाने-पीने की चीजों से खुद को रोके रखना ही रोजा है. साथ ही उन व्यवहारों से भी खुद को बचाना, जिससे रोजे पर असर पड़ता हो. इस तरह पूरे रमजान के माह में कम बोलने, गुस्से पर काबू रखने, औरों पर रहम करने आदि की […]
रुक जाना यानी सुबह सादिक से सूरज के डूबने तक खाने-पीने की चीजों से खुद को रोके रखना ही रोजा है. साथ ही उन व्यवहारों से भी खुद को बचाना, जिससे रोजे पर असर पड़ता हो. इस तरह पूरे रमजान के माह में कम बोलने, गुस्से पर काबू रखने, औरों पर रहम करने आदि की प्रैक्टिस बन जाती है.
इससे मनुष्य के अंदर सकारात्मक सोच की प्रवाह हो जाती है. इसका असर बाकी ग्यारह महीनों तक अवश्य ही रहता है. आम दिनों की पांच वक्त की नमाज के अतिरिक्त तरावीह (विशेष नमाज) भी सेहत की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. अर्थात इस्लाम धर्म पूरे तौर पर एक साइनटिफिक मजहब है और इंसानियत की हिफाजत का पाठ पढ़ाता है.
ईद की खुशी में न सिर्फ मुसलमान, बल्कि विभिन्न धर्मों के लोग शामिल होकर मुसलमानों की खुशी को दोबाला करते हैं. तमाम भेद-भाव मिटते नजर आते हैं. इस तरह ईद, एक मजहबी त्योहार के रूप में हमारी जिंदगी में खुशियों की धारा तेज करने के साथ समाज में आर्थिक संतुलन कायम करने और सामाजिक सरोकार को मजबूत बनाने का सबक भी सिखाता है.
सेहत की दृष्टि से देखें तो, तो रोजा इंसान के लिए बड़ा ही लाभदायक है, क्योंकि साल के ग्यारह महीने तक हमारे शरीर में खाने-पीने से जो हानिकारक वसा और चर्बी जमा हो जाती है, वह इस रोजे के दिनों में खुद-ब-खुद संतुलन में आ जाता है. इसकी वजह से हमारा शरीर कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पाता है.