चुनौती के रूप में लें असफलता को, माता-पिता सबसे बड़े काउंसेलर
मार्कशीट का खराब होना जीवन में सफलता का आधार तय नहीं करता. जो फेल हो गये हैं, वे असफलता से निराश न हों और न ही घबराएं. इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए. ऐसा नहीं है कि उनके लिए ऑप्शंस नहीं हैं. परीक्षा में असफल होने के बाद भी आप उच्चतम स्तर पर पहुंच […]
मार्कशीट का खराब होना जीवन में सफलता का आधार तय नहीं करता. जो फेल हो गये हैं, वे असफलता से निराश न हों और न ही घबराएं. इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए. ऐसा नहीं है कि उनके लिए ऑप्शंस नहीं हैं. परीक्षा में असफल होने के बाद भी आप उच्चतम स्तर पर पहुंच सकते हैं. शिखर पर सिर्फ पढ़ाई करके ही नहीं पहुंच सकते हैं. इसके लिए कई और भी चीजों की जरूरत होती है. कई अन्य ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बेहतर ऑप्शंस होते हैं. कई बड़ी हस्तियों से भी सीख ली जा सकती है, जो परीक्षा में फेल हुए, लेकिन जीवन की परीक्षा में वे काफी उच्च स्तर पर विद्यमान हैं. वहीं कुछ लोग पहले पढ़ाई में कमजोर थे, फेल भी हुए, लेकिन बाद में उन्होंने बड़ी परीक्षाओं में सफलता हासिल की और आज अच्छे मुकाम पर हैं.
आगे कई हैं रास्ते
इंटर की परीक्षा के बाद कई आगे ऐसे ऑप्शंस आयेंगे, जिनमें बेहतर किया जा सकता है. परीक्षा में अगर फेल हुए हैं, तो सुधार कर सकते हैं. या फिर कोई विषय कठिन लग रहा है, तो उसे बेझिझक बदल दें और जिसमें मन लगे वही पढ़ें. या फिर क्षेत्र में जाने की इच्छा है, उसमें भी आगे बढ़ सकते हैं. सिर्फ पढ़ाई करके ही जीवन में कुछ किया जा सकता है, ऐसा नहीं है. सिर्फ मार्कशीट योग्यता का मूल्यांकन नहीं कर सकती है.
अभिभावकों की भूमिका अहम
परीक्षा के बाद जब रिजल्ट आता है, उस समय अभिभावकों की भूमिका अहम हो जाती है. पहले तो अभिभावक पढ़ाई में कमजोर बच्चों को हीन भावना से देखना बंद करें. उन्हें कम नहीं आंकें, बल्कि यह देखें कि उनमें और क्या योग्यता है या फिर किसमें इंटरेस्ट है. वहीं, ज्यादा पढ़ाई करने वाले बच्चे या किसी दोस्त से उसकी तुलना न करें और न ही तिरस्कार करें. यह बच्चों के दिमाग पर काफी खराब प्रभाव डालता है और उन्हें डिप्रेशन की ओर से जाता है. सभी बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार रखें, ताकि उन्हें ऐसा न महसूस हो कि फेल होने की वजह से घर में कुछ और माहौल है या माता-पिता निराश हैं.
घर का माहौल लाइट रखें व बच्चों पर नजर रखें
घर का माहौल लाइट रखें, जैसे लगे कि रिजल्ट आने से कोई बहुत बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा. साथ ही बच्चे की गतिविधियों पर ध्यान दें. कहीं वह निराशा में कोई गलत कदम न उठा ले. उसकी काउंसेलिंग करें. याद रखें कि माता-पिता से बड़ा काउंसेलर कोई नहीं हो सकता. इसके बाद भी अगर बच्चा असहज दिखे तो फिर काउंसेलर के पास ले जाएं. स्कूलों में भी काउंसेलर बहाल होने चाहिए. प्राइवेट हों या सरकारी, सभी में. जरूरत पड़ने पर बच्चों की काउंसेलिंग करते रहें, खासकर पढ़ाई में कमजोर बच्चों की.