भयावह जल संकट से जूझता देश
50 फीसदी राज्यों में भूजल प्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं हमारे देश में उपलब्ध पानी का करीब ७० फीसदी हिस्सा दूषित है. पानी की गुणवत्ता के लिहाज से हम १२२ देशों में १२०वें स्थान पर हैं. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि वर्ष २०2० तक पानी की मांग उपलब्धता से दोगुनी […]
50 फीसदी राज्यों में भूजल प्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं
हमारे देश में उपलब्ध पानी का करीब ७० फीसदी हिस्सा दूषित है. पानी की गुणवत्ता के लिहाज से हम १२२ देशों में १२०वें स्थान पर हैं. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि वर्ष २०2० तक पानी की मांग उपलब्धता से दोगुनी हो जायेगी. साठ करोड़ लोग जल-संकट से सीधे प्रभावित हैं और एक दशक के बाद इस समस्या से सकल घरेलू उत्पादन में छह फीसदी की कमी आ सकती है. संकेत साफ हैं. तुरंत समाधान के उपायों पर ध्यान देना होगा. जल संकट से जुड़े विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण पर आधारित आज के इन-दिनों की प्रस्तुति…
जलाशयों में बचा है
महज 17 फीसदी पानी
दे शभर में 91 वृहत आकार वाले जलाशय हैं, जिनकी कुल जल भंडारण की क्षमता 161 बिलियन क्यूबिक मीटर है. इनमें से 37 बड़े जलाशयों से प्रत्येक से 60 मेगावॉट से अधिक हाइड्रो पावर का उत्पादन किया जाता है. हाल में संबंधित विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, इन जलाशयों में जल का स्तर 17 फीसदी तक शेष बचा है. पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 21 फीसदी तक था और यदि पिछले एक दशक की बात करें, तो औसत भंडारण 19 फीसदी तक रहा है. जानते हैं देश के किस क्षेत्र में हैं कितने जलाशय और कितना पानी बचा है उनमें :
क्षेत्र जलाशय क्षमता मौजूदा हालात
उत्तरी 6 18.01 2.55
पूर्वी 15 18.83 4.7
पश्चिमी 27 31.36 4.62
केंद्रीय 12 42.3 10.6
दक्षिणी 31 51.59 6.31
नोट : जलाशयों में पानी का भंडारण और उनमें बचा शेष पानी बिलियन क्यूबिक मीटर में है. (स्रोत : केंद्रीय जल आयोग)
तिलैया में केवल छह फीसदी पानी
झारखंड के तिलैया जलाशय में केवल छह फीसदी तक ही पानी बचा है, जबकि पिछले साल इसी अवधि यानी जून के पहले सप्ताह के करीब 25 फीसदी तक पानी शेष था.
गुजरात का सरदार सरोवर जलाशय तकरीबन सूख चुका है, जबकि पिछले साल इस अवधि में इस जलाशय में 20 फीसदी तक
पानी था.
हिमाचल प्रदेश के गोबिंद सागर जलाशय में केवल छह फीसदी जल शेष है, जबकि पिछले साल इस अवधि में 22 फीसदी तक पानी मौजूद था.
मध्य प्रदेश के बारना जलाशय में भी केवल पांच फीसदी ही भंडार बचा है, जो पिछले साल 28 फीसदी
तक था.
तमिलनाडु में अलियार जलाशय पूरी तरह सूख चुका है, जबकि पिछले साल इसमें 23 फीसदी तक
पानी था.
गैर-हिमालयी बड़े राज्यों की रैंकिंग
गुजरात 76
मध्य प्रदेश 69
आंध्र प्रदेश 68
कर्नाटक 56
महाराष्ट्र 55
पंजाब 53
तमिलनाडु 51
तेलंगाना 50
छत्तीसगढ़ 49
राजस्थान 48
गोवा 44
केरल 42
ओड़िशा 42
बिहार 38
उत्तर प्रदेश 38
हरियाणा 38
झारखंड 35
वर्षा जल संचयन में भी पीछे हैं हम
1,170 मिलीमीटर वार्षिक औसत के हिसाब से भारत में बारिश होती है.
6 प्रतिशत ही वर्षा जल संग्रह हो पाता है हमारे यहां, जल संग्रहण की खराब व्यवस्था के कारण.
250 प्रतिशत तक जल संग्रह कर लेते हैं विकसित देश, उन्नत तरीकों से. (स्रोत : जल संसाधन मंत्रालय)
2030 तक होगी 50 फीसदी पानी की कमी
स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता भारत के लिए एक बड़ी समस्या है. ग्रामीण इलाकाें में तो यह समस्या काफी गंभीर है. हालांकि, इसमें काफी सुधार हुआ है, लेकिन अब भी बहुसंख्यक ग्रामीण आबादी के लिए स्वच्छ पेयजल आज भी
एक सपना है.
30 प्रतिशत ग्रामीणों काे ही स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है देश में, वर्ष 2013 के सरकारी आंकड़े के अनुसार.
7.6 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पाता है. इस मामले में भारत दुनिया के निचले पायदान के देशों में शामिल है, ‘वाटरएड’ की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक.
50 प्रतिशत तक पानी की कमी होगी 2030 तक भारत में, एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार.
1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष पानी की जरूरत है देश में, जिसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 1,200 बिलियन क्यूबिक मीटर और 2050 तक 1,447 बिलियन क्यूबिक मीटर होने का अनुमान है.
45,053 गांव में नल और हैंडपंप के द्वारा लोगों को पानी सुलभ हो पाता था वर्ष 2016-17 के अंत तक, जबकि सितंबर, 2017 तक देश के करीब 19,000 गांव नियमित जलापूर्ति से वंचित थे, पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय के हालिया आंकड़ों के मुताबिक.
61 प्रतिशत की कमी आयी है 2007 से 2017 के बीच देश के भूजल स्तर में, एक रिपोर्ट के मुताबिक.
सरकार द्वारा उठाये गये कदम
तमिलनाडु ने तैयार किया बुनियादी ढांचा
वर्षा जल संचयन के लिए वर्ष 2001 में तमिलनाडु सरकार ने बुनियादी ढांचा तैयार करना हर घर के लिए जरूरी कर दिया था. फलस्वरूप पांच वर्षों के भीतर ही प्रदेश की जल गुणवत्ता बेहतर होने लगी. ठीक ऐसा ही निर्देश बेंगलुरु और पुणे की हाउसिंग सोसायटीज को भी दिया गया था. इन चंद उदाहरणों को अगर छोड़ दें, तो देशभर में वर्षा जल संचयन के बुनियादी ढांचे शायद ही कहीं देखने को मिलेंगे.
भूजल में खतरनाक यूरेनियम
एक शोध से पता चला है कि भारत के 16 राज्यों में भूजल में यूरेनियम की मात्रा खतरनाक स्तर पर है. यह मात्रा ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के मानक से बहुत अधिक है. अमेरिका के ड्यूक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का यह अध्ययन ‘एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स’ में प्रकाशित हुआ है. इसके लिए उन्होंने 16 राज्यों तथा राजस्थान और गुजरात के 324 कुओं से नमूने लिये थे. मानकों के अनुसार, भारत में एक लीटर पानी में अधिक-से-अधिक 30 माइक्रोग्राम यूरेनियम होना चाहिए.
इसके बावजूद सरकार की निगरानी संस्था ‘ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स’ ने पेयजल शुद्धता के लिए तय मानकों में यूरेनियम को शामिल नहीं किया है. इसकी अधिकता किडनी की बीमारियों के लिए जिम्मेदार है. भूजल स्तर घटने और नाइट्रेट प्रदूषकों के कारण यूरेनियम अधिक होता जा रहा है. इसका एक बड़ा कारण भूजल के स्रोतों में हिमालय से आते पानी में ग्रेनाइट पत्थरों के यूरेनियम का मिश्रण भी है. पेयजल और सिंचाई के इस प्रमुख जल-संसाधन को बेहतर करने के लिए जरूरी है कि यूरेनियम की मात्रा मापने की प्रक्रिया अपनायी जाये, ताकि इससे बड़ी आबादी को होनेवाले नुकसान को रोका जा सके.
भूगर्भ संरक्षण कार्यक्रम को मंजूरी
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार विश्व बैंक ने छह हजार करोड़ की योजना को हरी झंडी दे दी है, जिसके तहत कुछ चुनिंदा इलाकों में भूजल संरक्षण कार्यक्रम बनाया गया है. ‘अटल भूजल योजना’ नामक इस परियोजना को जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी मिलने की उम्मीद है. वर्ष 2018-19 से 2022-23 तक इस परियोजना को गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लागू करने का प्रस्ताव है. देश में भूजल का जहां सर्वाधिक दोहन हुआ है, उनमें से 25 फीसदी इलाके इन राज्यों में हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के 6,584 प्रखंडों में से 1,034 प्रखंड बुरी तरह प्रभावित हैं और उन्हें ‘डार्क जोन’ के रूप में चिन्हित किया गया है. इनके अलावा 934 प्रखंड ऐसे हैं, जहां हालात गंभीर हैं. प्रस्तावित योजना से इन राज्यों के 78 जिलों के 8,350 ग्राम पंचायतों के लाभान्वित होने की आशा है.
अधिक पेड़ लगाने से होगा जल संरक्षण
भारत में जलापूर्ति के दो प्रमुख स्रोत हैं- नदी और भूजल. लेकिन औद्योगिकरण व आबादी बढ़ने से भूजल का अधिक दोहन हो रहा है. वन क्षेत्र सिमटते जा रहे हैं, नतीजा भूजल स्तर गिरता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन भी जल संकट के प्रमुख कारणों में से एक है. नदी किनारे औद्योगिक संयंत्र स्थापित कर दिये गये हैं, जिससे पेड़ खत्म हो गये हैं, जो नदी जल स्तर बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं.
सिंगापुर से सीखने की जरूरत
वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और घरेलू उपयोग के बाद निकलने वाले अपशिष्ट जल का उपचार कर उसे खेती के काम में लाया जा सकता है.
ड्रीप एरिगेशन के जरिये कम पानी से खेतों की सिंचाई हो सकती है.
जलाशय, तालाब, पोखर, हौज जैसे क्षेत्र बनाकर प्राकृतिक जल संचयन किया जा सकता है. इससे भूजल स्तर बढ़ने में मदद मिलती है.
कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स
देश में जल की उपलब्धता, वितरण और प्रबंधन को समझने के लिए नीति आयोग ने कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. इस इंडेक्स के निर्माण में नौ सेक्टर्स को प्रमुखता से शामिल किया गया है. इसमें सभी राज्यों को दो भागों में बांटा गया है (नॉन-हिमालयन स्टेट्स और नॉर्थइस्टर्न व हिमालयन स्टेट्स). हाल ही में जारी यह इंडेक्स वर्ष 2016-17 के आंकड़ों पर आधारित है. पहली बार यह इंडेक्स एक साल पहले यानी 2015-16 में जारी किया गया था, जिसका इस्तेमाल तुलनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है. इंडेक्स में शामिल किये गये प्रमुख सेक्टर्स इस प्रकार हैं :
स्रोत संवर्धन और जल-निकायों की मरम्मत
भूमिगत जल का स्रोत संवर्धन
बड़े और मध्यम सिंचाई प्रबंधन
वाटरशेड डेवलपमेंट से जुड़ा सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई के विविध माध्यमों का व्यापक प्रबंधन
ग्रामीण इलाकों में पेयजल
शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति और साफ-सफाई
नीति और सुशासन.
60 करोड़ से अधिक लोगों को देशभर में अत्यधिक जलसंकट की चुनौतियों से निबटना पड़ता है.
75 फीसदी गृह-स्वामियों को उनके घर के अहाते में नहीं उपलब्ध है स्वच्छ पेयजल की सुविधा.
84 फीसदी ग्रामीण घरों में पाइप के जरिये पानी नहीं पहुंचाया जा सका है अब तक.
70 फीसदी से अधिक पेयजल प्रदूषित है देश में.
120 वीं रैंकिंग है भारत की, हालिया जारी ‘वाटर क्वालिटी इंडेक्स’ में, जिसमें 122 देशों को शामिल किया गया है.
इन 10 राज्यों में हुई
ज्यादा प्रगति
राज्य प्रगति की दर
राजस्थान 8.87
झारखंड 6.54
हरियाणा 5.71
गुजरात 5.19
मध्य प्रदेश 5.16
तेलंगाना 4.55
छत्तीसगढ़ 2.57
आंध्र प्रदेश 2.51
पंजाब 2.03
कर्नाटक 1.80
नोट : प्रगति की दर प्वॉइंट में है.
इसे अधिकतम 10 प्वाॅइंट के आधार पर मापा गया है.
भूजल स्तर में गिरावट चिंताजनक
भा रत स्वच्छ और बेहतर पेयजल, खासकर भूजल की गंभीर कमी से जूझ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में यह संकट और बढ़ेगा, जिसका प्रमुख कारण होगा जल का अत्यधिक दोहन और जलवायु परिवर्तन. इसी वर्ष अप्रैल में ‘वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ के अध्ययन से यह बात सामने आयी है कि भारत में जलाशयों के कम होने के कारण लोगों के घरों तक पहुंचने वाले पानी के नलों के पूरी तरह सूख जाने की आशंका है. इस अध्ययन में भूजल स्तर के गिरते जाने पर भारत में कृषि पर निर्भर लोगों को लेकर भी चिंता जतायी गयी है.
भूजल पर निर्भरता
70 से 80 प्रतिशत के करीब दक्षिण एशिया (जिसमें भारत भी शामिल है) की आबादी पीने के पानी व कृषि सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर है.
8 और 5 क्यूबिक किलोमीटर प्रतिवर्ष भूजल स्तर नीचे जा रहा है क्रमश: उत्तरी और पूर्वी भारत में, ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित आइआइटी खड़गपुर के हाइड्रोजियोलॉजिस्ट अभिजित मुखर्जी की रिपोर्ट के मुताबिक.
230 क्यूबिक किमी भूजल का प्रतिवर्ष इस्तेमाल होता है भारत में, जो विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा है. इस प्रकार भूजल के कुल वैश्विक इस्तेमाल का एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा भारत उपयोग में लाता है, विश्व बैंक के 2012 के रिपोर्ट के अनुसार.
70 प्रतिशत से अधिक भूजल ‘ओवरड्रॉफ्ट’ में हैं भारत में यानी जमा होने से ज्यादा जल उपभोग किया जाता है, जल संरक्षक राजेंद्र सिंह के मुताबिक.
रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य
50%राज्यों में भूजल प्रबंधन के लिए कोई नियामक ढांचा नहीं है.
54%कुओं के जलस्तर में हुई है व्यापक कमी, जिस कारण भूजल की समस्या सबसे ज्यादा बढ़ गयी है.
80%राज्यों ने सिंचाई प्रबंधन के लिए नियामक ढांचा तैयार किया है, जिससे सिंचाई करनेवालों को आपस में समेकित रूप से जोड़ा गया है.
15% तक बढ़ोतरी हुई है औसत स्कोर में, ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की दशा में सुधार की दृष्टि से.
40% पानी लीकेज की समस्या के कारण बर्बाद हो जाता है, जिसमें सेंसर जैसी स्मार्ट तकनीक का इस्तेमाल करते हुए शहरी क्षेत्रों में इसे सुधारा जा सकता है.
अधिकांश राज्यों में शहरी आबादी बढ़ी है़ इस आबादी तक पेयजल मुहैया कराना बड़ी चुनौती साबित हो रही है.
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे ज्यादा शहरी आबादी वाले राज्यों में पेयजल मुहैया कराने में सबसे अधिक सुधार देखा गया है.
इस्तेमाल हो चुके पानी को दोबारा से इस्तेमाल लायक बनाने की क्षमता सभी राज्यों में अलग-अलग है. कुछ राज्य इसमें बहुत आगे हो चुके हैं, तो कुछ बहुत पीछे हैं.
ट्रीटमेंट की क्षमता बढ़ाते हुए पानी का पर्याप्त तरीके से इस्तेमाल हो सकता है.