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किसानों की आय में वृद्धि के बिना कैसे बढ़ेंगे उद्योग-धंधे!

सुरेंद्र किशोर , राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन सिंह सरकार ने सन 2010 में धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 50 रुपये बढ़ा दिये थे. उस सरकार ने 2008 के लिए 155 रुपये कर दिये थे. उनकी सरकार ने 2012-13 के लिए 170 रुपये बढ़ाये. याद रहे कि 2009 में लोकसभा चुनाव हो चुका था. 2014 में […]

सुरेंद्र किशोर , राजनीतिक विश्लेषक

मनमोहन सिंह सरकार ने सन 2010 में धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 50 रुपये बढ़ा दिये थे. उस सरकार ने 2008 के लिए 155 रुपये कर दिये थे. उनकी सरकार ने 2012-13 के लिए 170 रुपये बढ़ाये. याद रहे कि 2009 में लोकसभा चुनाव हो चुका था. 2014 में चुनाव होने वाला था. अब जब 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाला है तो नरेंद्र मोदी सरकार ने एमएसपी में रिकॉर्ड बढ़ोतरी कर दी है. याद रहे कि 2015-16 में मोदी सरकार ने मात्र 50 रुपये की बढ़ोतरी की थी. यानी विभिन्न सरकारें चुनावों को ध्यान में रखकर किसानों की चिंता करती रही है. उधर, उद्योगपतियों और व्यापारियों पर सरकारी बैंकों के जरिये अरबों रुपये लुटाने में सरकार अतिरिक्त उदारता बरतती रही है. कभी जानबूझकर तो कभी अनजाने में. देश में उद्योग भी बढ़ने ही चाहिए. अधिक कर्जे उद्योग के लिए ही मिलते हैं.

पर जब तक कृषि व कृषकों का आर्थिक विकास नहीं होगा, तब तक उद्योग कैसे बढ़ेंगे? कारखानों में उत्पादित माल को खरीदने वालों की पहले संख्या तो बढाइए. इस साल सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के जरिये देश के किसानों को 15 हजार करोड़ रुपये देने जा रही है. मोटा-मोटी अनुमान के अनुसार इनमें से करीब 5 हजार करोड़ रुपये फिर भी बिचौलिये खा जायेंगे. पांच हजार करोड़ रुपये किसान अपनी खेती में लगायेंगे. बचे 5 हजार करोड़ रुपये में से किसान अपने बच्चों के लिए पोशाक, जूता, स्टेशनरीज, थैला और परिवार के लिए जरूरी सामान खरीदेंगे जिनका उत्पादन छोटे-बड़े कारखानों में होता है. इससे कारखानों के मुनाफा बढ़ेंगे. और नये कारखाने लगेंगे. यानी खेती के साथ-साथ उद्योग का भी विकास होगा. पर आजादी के बाद से ही हमारी सरकारों ने कृषकों की आय बढ़ाने के बदले कारखानों के विकास की ओर अधिक ध्यान दिया.

सरकार ने पब्लिक सेक्टर इकाइयों को बढ़ाया, ताकि सफेदपोश लोगों को अधिक से अधिक नौकरियां दी जा सके. पर पब्लिक सेक्टर के लिए जितनी कठोर ईमानदारी व कार्य कुशलता की जरूरत होती है, उन पर ध्यान नहीं दिया गया. नतीजतन अधिकतर लोक उपक्रम सफेद हाथी बनते चले गये. याद रहे कि आज भी इस देश के करीब 70 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी है. अन्य अनेक तरीकों से कृषकों की आय बढ़ानी जरूरी है.

बहु उद्देश्यीय जल प्रबंधन परियोजना : सारण प्रमंडल की मही नदी पर प्रस्तावित बहु उद्देश्यीय जल प्रबंधन परियोजना पर प्रारंभिक काम शुरू हो गया है. यह छोटी नदी गंडक नदी से निकल कर गोपालगंज और सीवान होते हुए सारण जिले के छितु पाकर गांव के पास गंगा नदी में मिल जाती है. इस प्रस्तावित परियोजना के तहत इस नदी में कई चेक बांध बना कर पानी को रोकने का प्रावधान होगा. स्लूइस गेट आवाजाही के लिए पुल का भी काम करेंगे. मछली पालन संभव होगा. सिंचाई के लिए सालों भर पानी उपलब्ध रहेगा. इस नदी के पानी को साफ करके पेयजल के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. वर्षा जल रुकने के कारण भूजल स्तर को बनाये रखने व बढ़ाने में सुविधा होगी. पर इसके साथ ही इस नदी में पास की जो नदी आकर मिलती है, उसके लिए भी ऐसी ही बहुद्देश्यीय योजना बनाने की जरूरत है. रिटायर्ड हेड मास्टर राघव प्रसाद सिंह की सलाह पर मुख्यमंत्री ने इस नदी परियोजना पर शुरुआती काम शुरू करवा दिया है. राज्य के अन्य जिलों में भी ऐसी छोटी-छोटी नदियों पर ऐसी परियोजनाएं बनें तो प्रदेश के किसानों की आय बढ़ेगी.

उधर क्या हो रहा यह सब! : डीएनए टेस्ट के लिए किस तरह के सेंपल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज में भेजे जाएं, इस विधा की पक्की जानकारी डॉक्टरों को होनी चाहिए. पर दुखद स्थिति है कि ऐसी बुनियादी जानकारी भी अनेक डाॅक्टरों को नहीं है. एक अन्य खबर के अनुसार आरक्षण कोटे की बनिस्पत भारी डोनेशन देकर मेडिकल काॅलेजों में दाखिला करवाने और डॉक्टर बन कर निकलने वालों से डाॅक्टरी पेशा का स्तर अधिक गिर रहा है. डाॅक्टरी पेशा की बात कौन करे, अब तो सीबीएसई अपनी परीक्षा की काॅपियां जांच करने वाले ऐसे योग्य शिक्षक भी नहीं खोज पा रहा है जो मार्क्स की सही- सही टोटलिंग भी कर सके. आये दिन यह खबर आती रहती है कि परीक्षाओं में गलत प्रश्न पत्र सेट कर दिये जाते हैं. इससे सेटरों के स्तर का पता चलता है. जब देश में शिक्षा-परीक्षा का स्तर ही लगातार नीचे की ओर जा रहा हो तो क्या कहना? हाल में यह खबर आयी कि लॉ कालेज के छात्रों ने धमकी दे दी कि यदि आप परीक्षा में चोरी नहीं करने देंगे तो हम परीक्षा का बहिष्कार कर देंगे. नयी नौकरी पाये जो शिक्षक लगातार तीन बार जांच परीक्षा में फेल कर जा रहे हैं, उनकी नौकरी भी बनाये रखी जा रही है. बिहार के डीजीपी ने पिछले दिनों कहा था कि कई जांच अधिकारियों को कानून का सामान्य ज्ञान भी नहीं है. अपने देश में यह सब क्या हो रहा है?

एक भूली-बिसरी याद : पूर्व उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम की पुण् तिथि पर उनकी याद में दो शब्द. बाबू जगजीवन राम जब सन 1984 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सासाराम लोक सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे, तब एक बात राजनीतिक हलकों में तैर रही थी. वह यह कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चाहते थे कि बाबू जी को लोकसभा में होना चाहिए. याद रहे कि इंदिरा जी की हत्या के कारण तब कांग्रेस के पक्ष में देश भर में सहानुभूति की लहर थी. तब कांग्रेस बिहार की लोकसभा की 54 सीटों में से 48 सीटें जीत गयीं थी. ‘बाबू जी’ भी जीते जरूर, पर सिर्फ 1300 मतों से. इस तरह हमेशा चुनाव जीतने का उनका रिकाॅर्ड कायम रह गया. सन 1986 में उनका निधन हो गया. याद रहे कि जगजीवन राम को लोग ‘बाबू जी’ कहा करते थे. 1977 में प्रधानमंत्री पद के लिए जगजीवन राम का नाम जरूर आया था. पर मोरारजी देसाई उनसे बीस पड़े. सबसे बड़ी बात यह थी कि मोरारजी पूरे आपातकाल जेल में थे. उन्होंने पेरोल पर छूट जाने की कोई कोशिश तक नहीं की. दूसरी ओर तब के मंत्री जगजीवन राम ने संसद में इमरजेंसी की मंजूरी का प्रस्ताव पेश किया था. चुनाव की घोषणा के बाद ही जगजीवन बाबू ने कांग्रेस छोड़ी थी. जगजीवन राम में इतने अधिक गुण थे जो किसी नेता को महान बना देने के लिए पर्याप्त हैं. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति के लिए अपना निजी कैरियर छोड़कर आजादी की लड़ाई में शामिल हो जाना भी एक बड़ी बात थी. वे प्रभावशाली वक्ता व कुशल प्रशासक के रूप में चर्चित हुए. जिस मंत्रालय को उन्होंने संभाला, उसमें बेहतर काम हुए. उन्हें इस देश व समाज की बेहतर समझ थी. बांग्लादेश युद्ध के समय वे रक्षा मंत्री थे.

और अंत में : पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंदर सिंह ने आदेश दिया है कि इस बात का पता लगाने के लिए सरकारी सेवकों की वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण होगा कि वे नशीली दवाएं लेते हैं या नहीं. दरअसल ड्रग्स के ओवरडोज लेने से पंजाब में बढ़ रही मौतों के कारण राज्य सरकार चिंतित है. वहां के एक मंत्री ने सलाह दी है कि बड़े पुलिस अफसरों की भी ऐसी ही जांच होनी चाहिए. उधर यह भी मांग उठी है कि मुख्यमंत्री सहित सभी जन प्रतिनिधियों की भी जांच जरूरी है. याद रहे कि पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली-भाजपा सरकार की हार का एक बड़ा कारण यही था. आरोप था कि पिछली सरकार ड्रग्स माफिया को संरक्षण दे रही थी. ऐसा ड्रग टेस्ट अन्य राज्यों में भी होना चाहिए.

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