पाकिस्तान आम चुनाव में इमरान की जीत, आसान नहीं होगी आगे की राह
-पाकिस्तान तवारीख में नयी तहरीर इस हफ्ते के चुनाव और उनके नतीजे न सिर्फ पाकिस्तान के लिए, बल्कि दक्षिण एशिया के लिए खासा मायने रखते हैं. इमरान खान की जीत के साथ पारंपरिक रूप से स्थापित पार्टियों का असर सिमटता दिख रहा है. चूंकि वहां की राज्य-व्यवस्था में सेना की सबसे बड़ी भूमिका होती है […]
-पाकिस्तान तवारीख में नयी तहरीर
इस हफ्ते के चुनाव और उनके नतीजे न सिर्फ पाकिस्तान के लिए, बल्कि दक्षिण एशिया के लिए खासा मायने रखते हैं. इमरान खान की जीत के साथ पारंपरिक रूप से स्थापित पार्टियों का असर सिमटता दिख रहा है. चूंकि वहां की राज्य-व्यवस्था में सेना की सबसे बड़ी भूमिका होती है तथा अदालतें और नौकरशाही भी दखल देने पर अक्सर आमादा रहती हैं. इन सबके बीच संतुलन बनाते हुए सरकार चलाने की बड़ी चुनौती इमरान खान के सामने है. इन संदर्भों के साथ चुनावी नतीजों और आगे की चुनौतियों पर एक नजर…
डॉ अमित रंजन
रिसर्च फेलो, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) पार्टी 25 जुलाई के आम चुनावों में विजय हासिल कर पाकिस्तान की अगली सरकार बनाने को तैयार थी. इसके अलावा, इस पार्टी ने पंजाब और सिंध के प्रांतीय चुनावों में भी अप्रत्याशित प्रदर्शन किया, जबकि खैबर पख्तूनख्वा में यह अपनी सत्ता बनाये रखने में भी सफल रही.
चुनावों में कदाचार के आरोप
इसके पूर्व, मतगणना आरंभ होने पर पीटीआइ की बढ़त से नाखुश अन्य दो प्रमुख सियासी पार्टियों-पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) (पीएमएल-एन) एवं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने इसे चुनावी कदाचार का परिणाम बताया. पीएमएल-एन के अध्यक्ष शाहबाज शरीफ ने एक ट्वीट में कहा, ‘हमारी पार्टी स्पष्ट तथा व्यापक अनियमितताओं की वजह से इन आम चुनावों के नतीजे पूरे तौर पर खारिज करती है. हमारे एजेंटों को फॉर्म 45 नहीं दिये गये, नतीजे रोक दिये गये और हमारे एजेंटों की गैर-मौजूदगी में ही मतगणना निबटा दी गयी. यह असहनीय तथा अस्वीकार्य है.’ पीपीपी के अध्यक्ष, बिलावल भुट्टो जरदारी ने चुनावी नतीजों में विलंब पर आक्रोश प्रकट करते हुए पूरे देश में अपने मतदान एजेंटों को मतदान केंद्रों से बाहर कर दिये जाने का आरोप लगाया.
मगर सीधी तौर पर शिकार बने इन दो दलों के अतिरिक्त भी पाकिस्तान के भीतर तथा बाहर विश्लेषकों के एक हिस्से का दावा है कि पाकिस्तानी व्यवस्था (मुख्यतः फौज) ने इन चुनावों के नतीजे पीटीआइ के पक्ष में ‘तय’ कर दिये, क्योंकि सत्ता में रहने के दौरान पीएमएल-एन इस व्यवस्था से संघर्षरत रही. क्या सही है यह जानना कठिन है, पर व्यवस्थाएं ऐसे खेल खेलती रही हैं और पाकिस्तानी फौज तो इसके लिए कुख्यात ही है. वह परदे के पीछे से और बगैर किसी सियासी जिम्मेदारी के देश पर शासन करती आयी है. मगर पाकिस्तानी मतदाताओं को यह श्रेय दिया ही जाना चाहिए कि हिंसा के खतरे के बावजूद वे अपने मत डालने से पीछे नहीं हटे. आखिर मतदान के दिन बलूचिस्तान के क्वेटा में हुए एक आत्मघाती हमले में 31 मतदाताओं ने अपने प्राण गंवा ही दिये.
लंबे संघर्ष से जमे पांव
पाकिस्तान के नेता के रूप में इमरान खान की उम्मीदवारी के विषय में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के पहले हमें यह समझना होगा कि वे पाकिस्तानी सियासत के लिए कोई नयी हस्ती नहीं हैं. उन्होंने 1996 में पीटीआइ की स्थापना की और 1997 में राष्ट्रीय असेंबली के लिए संपन्न हुए चुनावों में लड़कर शिकस्त खाई. फिर वे 2002 के चुनावों में हिस्सा लेकर मियांवाली से विजयी रहे. उनकी पार्टी ने 2008 के चुनावों का बहिष्कार कर दिया, जबकि 2013 में वह राष्ट्रीय असेंबली की 35 सीटें जीतने और खैबर पख्तूनख्वा की प्रांतीय सरकार बनाने में सफल रही.
इस बार कई मुद्दों की शृंखला और इस पार्टी द्वारा अपनायी सियासी रणनीति की वजह से नतीजे उसके पक्ष में गये. पीटीआइ ने पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार तथा बेरोजगारी की विकराल होती समस्या के अलावा लोगों के मन में बढ़ती असुरक्षा के मुद्दे उठाये. अर्थव्यवस्था की स्थिति ने शहरी मध्यवर्ग युवाओं के एक बड़े धड़े को पीटीआइ की ओर आकृष्ट किया. अतीत में भी इस पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर प्रदर्शन किये थे और यहां तक कि 2016 में इस्लामाबाद को ठप कर देने की धमकी दी थी. पनामा पेपर्स में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का नाम आने से पार्टी के इस मुद्दे को और बल मिला.
इसी तरह, देश के उत्तरी कबीलाई हिस्सों पर ड्रोन हमले के मुद्दे को लगातार उठाते रहने के कारण पीटीआइ को इन क्षेत्रों के अलावा देश के कई और हिस्सों में बेपनाह समर्थन मिला. इमरान खान ने वर्ष 2013 में इसी मुद्दे पर खैबर-पख्तूनख्वा होकर अफगानिस्तान में जमी विदेशी सेनाओं के लिए जानेवाली आपूर्ति व्यवस्था बाधित कर देने की चेतावनी दी थी. उन्होंने पश्तून तहफ्फुज आंदोलन के प्रति भी अपना समर्थन व्यक्त किया, जिसकी मांगों में खैबर पख्तूनख्वा एवं देश के अन्य संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों से बारूदी सुरंग हटाना, राजनीतिक कैदियों को रिहा करना और लापता व्यक्तियों का पता लगाना शामिल हैं.
आजमायी रणनीति का सहारा
पाकिस्तानी जनता को आकृष्ट करने के लिए पीटीआइ सदस्य प्रायः अहमदिया-विरोधी भावनाएं प्रकट करते रहे. मिसाल के तौर पर ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के अनुसार, वर्ष 2017 में खैबर पख्तूनख्वा के सूचना मंत्री शाह फरमान ने अहमदियों को अपना भाई बताने पर पीएमएल-एन से पंजाब के कानून मंत्री राणा सनाउल्लाह की निंदा की थी. उन्होंने कहा कि ‘सनाउल्लाह ने 1973 के उस संविधान का उल्लंघन किया, जिसने अहमदी समुदाय को गैर-मुसलिम घोषित किया था.’ यह दूसरी बात है कि फरमान के इस बयान के कुछ ही दिनों बाद पीटीआइ से राष्ट्रीय असेंबली के सदस्य असद उमर ने एक पत्रकार द्वारा किये प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘मैं यह समझता हूं कि यह उनका व्यक्तिगत बयान है और आप किसी ईसाई, हिंदू अथवा अहमदी को अपना भाई बताते या नहीं बताते हैं, तो यह एक सामाजिक मुद्दा है, न कि कोई सियासी मुद्दा.’
इसी तरह, पीएमएल-एन और पीपीपी का पुराना खेल खेलते हुए पीटीआइ ने पाकिस्तान के शक्तिशाली पारंपरिक उच्च वर्ग के उम्मीदवार भी मैदान में उतारे, जो वस्तुतः अपने क्षेत्रों के लोगों पर शासन करते हैं और वहां की जनता पर अपने प्रभाव की वजह से अपनी सीटें निकाल ले जाने की क्षमता रखते हैं. पार्टी ने अपने कुछ पुराने सदस्यों के असंतोष की कीमत पर भी ऐसे उम्मीदवार खड़े करने के फैसले किये, क्योंकि यह पार्टी द्वारा किये उस वादे के विरुद्ध था कि सत्ता आम लोगों के हाथों तक पहुंचाने हेतु वह बड़े बदलाव लायेगी.
अब जब पीटीआइ सत्ता की दहलीज पर खड़ी है, तो सबकी निगाहें इमरान खान पर लगी हैं. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था, पाकिस्तानी फौज से निपटने की है. कहने की जरूरत नहीं कि इस पूर्व क्रिकेट कप्तान को एक बिलकुल ही भिन्न पिच पर अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए देखना खासा दिलचस्प होगा.
अनुवाद: विजय नंदन
महिलाओं के उच्च मतदान प्रतिशत के मायने
इस वर्ष हुए आम चुनाव में रिकॉर्ड महिलाओं ने मतदान में भाग लिया है. खैबर-पख्तूनख्वा व पंजाब प्रांत के रूढ़ीवादी हिस्सों से भी इस बार बड़े पैमाने पर महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. आतंकवादी खतरों के बावजूद बलूचिस्तान में भी महिलाएं मतदान के लिए आगे आयीं. इस चुनाव में महिलाओं की इस अभूतपूर्व भागीदारी का श्रेय निश्चित रूप से पाकिस्तान के चुनाव आयोग (इसीपी) की उस शानदार नीति को जाता है, जिसके अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र में कुल मतदान प्रतिशत में महिला मतदान का प्रतिशत 10 से कम होने पर चुनाव अमान्य माना जायेगा. इस चुनाव में महिलाओं के उच्च मतदान प्रतिशत के मायने हैं कि पाकिस्तान अब और अधिक प्रतिनिधि और समावेशी समाज की तरफ बढ़ रहा है.
(‘द नेशन’ के संपादकीय का अंश)
इमरान खान के वादे
पाकिस्तान में मदीने जैसा राज कायम करेंगे और इस्लामिक परंपराओं के मुताबिक कल्याणकारी सरकार चलायेंगे.
प्रधानमंत्री बनकर देश की सेवा करूंगा और खजाने की हिफाजत करूंगा. अगर पाकिस्तान को समृद्धशाली बनाने का वादा नहीं निभाया, तो जो चाहे सजा दीजिए.
पाकिस्तान को दो खानदानों ने लूटा है. भुट्टो और शरीफ खानदान की इस लूट से आपको मुक्त कराऊंगा. इन्हें देश लूटने नहीं दूंगा.
जिन लोगों ने पाकिस्तान की जनता का पैसा लूटकर विदेशी बैंकों में जमा किया, उसकी एक-एक पाई वापस लेकर आयेंगे और जनता के लिए इस्तेमाल करेंगे.
कोई बचेगा नहीं, भ्रष्टाचार का नामोनिशां मिटा दिया जायेगा. राजनेताओं और कारोबारियों को भी नहीं छोड़ा जायेगा, चाहे वो कितना बड़ा क्यों न हो.
ये कोई छिपी बात नहीं है कि इमरान खान सेना की मदद से ही सत्ता के शिखर पर पहुंच पाये हैं. इसलिए वे बार-बार दोहरा रहे हैं कि उनके विरोधी पाकिस्तान की महान सेना के खिलाफ साजिश कर रहे हैं, ताकि भारत को फायदा हो.
और भी वादे किये हैं अवाम से
नया पाकिस्तान बनाऊंगा.
एक करोड़ लोगों को नौकरियां दूंगा.
किसानों की आमदनी बढ़ाऊंगा, ताकि खेती मुनाफे वाला धंधा बने.
गरीबी दूर करके दिखाऊंगा, देश के खजाने पर पहला हक गरीबों का.
सबका विकास होगा, अल्पसंख्यकों का भी.
विदेशी निवेश ज्यादा-से-ज्यादा लायेंगे.
टैक्स का दायरा बढ़ायेंगे, राजनेताओं को भी नहीं छोड़ेंगे.
नौजवानों को स्किल देने के लिए खास व्यवस्था करेंगे.
इमरान खान
पूरा नाम : इमरान अहमद खान नियाजी
जन्म : पांच अक्तूबर, 1952, लाहौर, पंजाब
पिता : इकरामुल्ला खान नियाजी (सिविल इंजीनियर)
माता : शौकत खानम
शिक्षा : ग्रेजुएट (केबल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड)
प्रोफेशन : क्रिकेट खिलाड़ी, राजनीतिज्ञ
राजनीतिक पार्टी : पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआइ)
अवॉर्ड : प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस (1983), हिलाल-ए-इम्तियाज (1992)
इमरान के सामने प्रमुख चुनौतियां
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पद पर बैठना अपनेआप में कांटों भरा ताज है, जहां इमरान खान को तमाम चुनौतियाें से जूझना होगा. सबसे पहले उन्हें यह तय करना होगा कि वे अपने नये पाकिस्तान के बुलंद नारे को हकीकत में कैसे बदलेंगे. उन्हें यह तय करना होगा कि वे सेना की शागिर्दी में पाकिस्तान को और बड़े आतंकिस्तान में बदलेंगे या फिर वाकई पाकिस्तान की जनता को वह पाकिस्तान देंगे, जिसका उन्होंने सपना दिखाया है. साथ ही, इमरान को यह भी तय करना होगा कि भारत के साथ वह कैसा रिश्ता चाहते हैं. हालांकि, वोटिंग से पहले जिस तरह के उनके बयान सामने आये हैं, वे रिश्ते बेहतर करने वाले तो नहीं हैं. इमरान का यही भारत विरोधी चरित्र उन्हें पाकिस्तानी सेना का मनपसंद बनाता है.
पाकिस्तान : एक नजर में
आधिकारिक नाम : इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान
जीडीपी (कुल) : 304.4 बिलियन डॉलर
जीडीपी (प्रति व्यक्ति) : 1,629 डॉलर
नतीजों पर सवाल
इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ केंद्र में सरकार बनाने जा रही है. खैबर-पख्तूख्वा के साथ उसे देश के सबसे बड़े प्रांत पंजाब की सत्ता भी मिलती दिख रही है. पाकिस्तान की व्यापारिक राजधानी कहे जानेवाले शहर कराची में इस पार्टी ने दशकों से चले आ रहे मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के वर्चस्व को तोड़ दिया है. इन नतीजों को मुस्लिम लीग-नवाज समेत अनेक दलों की बैठक ने खारिज करते हुए फिर से चुनाव कराने की मांग की है. बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने भी इस मांग का समर्थन किया है. भुट्टो ने कहा है कि साफ-सुथरे चुनाव की जिम्मेदारी पाकिस्तान के चुनाव आयोग की है और इस संस्था ने अपना काम ठीक से अंजाम नहीं दिया है. यूरोपीय संघ के पर्यवेक्षकों ने भी कहा है कि चुनाव में ‘अवसर की समानता का अभाव’ रहा है तथा यह चुनाव 2013 के चुनाव की तुलना में कम अच्छा रहा है. चुनाव नतीजों को लेकर इमरान-विरोधी दल भले ही आंदोलन या अदालत का रास्ता अख्तियार करें, पर इसकी धार कमजोर होती दिख रही है. एक तो पीपुल्स पार्टी अनेक विरोधी दलों के साझा मंच से अलग है. दूसरे यह कि मुस्लिम लीग-नवाज ने नेशनल एसेंबली और प्रांतों की एसेंबलियों में विपक्ष में बैठने की घोषणा कर दी है, पर वह पंजाब में सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण सरकार बनाने की कोशिश भी कर सकती है. पीपुल्स पार्टी सिंध में सरकार बनायेगी.
दो दशकों से अधिक का है इमरान का सियासी सफर
25 अप्रैल, 1996
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का गठन किया इमरान खान ने.
अक्तूबर, 1999
परवेज मुशर्रफ के उस बयान का स्वागत किया, जब बतौर शासनाध्यक्ष उन्होंने एक मजबूत पाकिस्तान बनाने की बाद कही.
10 अक्तूबर, 2002
आम चुनाव में इमरान सांसद निर्वाचित हुए.
19 नवंबर, 2007
परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल की आलोचना के लिए उन्हें जेल भेजा गया.
13 दिसंबर, 2007
पाकिस्तान में कैंसर अस्पताल की स्थापना के लिए क्वालालंपुर में आयोजित एशियन स्पोर्ट्स अवॉर्ड्स में ह्यूमैनिटेरियन अवॉर्ड दिया गया.
2008
मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी पार्टी पीटीआइ ने वर्ष 2008 के आम चुनाव का बहिष्कार किया.
30 अक्तूबर, 2011
सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ मीनार-ए-पाकिस्तान के पास पीटीआइ ने एक बड़ी रैली आयोजित की थी.
दिसंबर, 2012
पाकिस्तान में कराये गये एक ओपीनियन पोल में इमरान सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में उभर कर सामने आये.
7 मई, 2013
लाहौर में एक रैली में गिर जाने से घायल हुए इमरान.
11 मई, 2013
नया पाकिस्तान का स्वप्न पारित किया.
12 मई, 2013
आम चुनावों में पीटीअाइ को 77 लाख वोट मिले और नेशनल एसेंबली की 28 सीटों पर जीत दर्ज करने के साथ केपीके में सरकार बनायी.
25 जून, 2016
पनामा पेपर लीक में पाकिस्तान के राजनेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत सामने आने पर व्यापक जन-प्रदर्शन.
2 नवंबर, 2016
मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए पीएमएल-एन के हनीफ अब्बासी ने इमरान के अयोग्य करार देने का मामला दर्ज कराया.
15 दिसंबर, 2017
अयोग्य करार दिये जाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान के पक्ष में फैसला सुनाया.
24 जून, 2018
पीटीआइ पाकिस्तान आम चुनावों में चौथी बार चुनाव में शामिल हुई.