17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

देवघर में आया बदलाव, शोर पर हैं भारी, मौन डमरूधारी

डॉ उत्तम पीयूष लेखक साहित्यकार और सामाजिक एक्टिविस्ट हैं. शोर के फिदाईन ने हमारे सामाजिक सामरस्य पर इतने हमले कर दिये हैं कि हमारे जीवन का सुर-संगीत ही जैसे गायब होता जा रहा है. जीवन जैसे लंबे जाम में फंसा-धंसा है. कान में इयर फोन या हेड फोन लगाकर हम चाहे खुद को कितना ही […]

डॉ उत्तम पीयूष
लेखक साहित्यकार और सामाजिक एक्टिविस्ट हैं.
शोर के फिदाईन ने हमारे सामाजिक सामरस्य पर इतने हमले कर दिये हैं कि हमारे जीवन का सुर-संगीत ही जैसे गायब होता जा रहा है. जीवन जैसे लंबे जाम में फंसा-धंसा है. कान में इयर फोन या हेड फोन लगाकर हम चाहे खुद को कितना ही बहला-फुसला लें, पर शोर है कि बढ़ता ही जा रहा है..
हमने घर बना लिये, घर को बाउंड्री से घेर दिया, ऊंची दीवारों और बड़े भीमकाय गेट के अंदर खुद को महफूज रखने के सारे इंतजाम कर लिये, पर भूल गये दिल का दरवाजा लगाना. वहां तो दरवाजे हैं ही नहीं! और यहीं से कमबख्त शोर आकर हमले कर रहा. समझ नहीं आ रहा कि इस शोर से कैसे लड़ा जाये!!
दरअसल हम भूल गये हैं कि हम जहां रहते हैं और वहां जो ‘सुख के कुछ निर्लज्ज द्वीप’ उग आये हैं, वहां कल तक बहुत कुछ थे स्पंदित, आज जमींदोज हो गये हैं. शायद वही हों, जो वहां से आवाज कर रहे रह-रह कर..
कभी जब समय के पथ पर मील के पत्थर लगेंगे, उसमें यह भी जरूर लिखा जायेगा कि कभी यह एक सुरमयी इलाका था जहां मानवीय राग सजते थे और संगीत की एक लयबद्ध दुनिया थी- जहां के राजा थे अरण्य देव जो स्वयं साधना में लीन रहकर भी जीवन संगीत की हिफाजत कर रहे थे.
यहां एक ऐसी दुनिया थी, जहां देव, मनुष्य, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व, कोल, किरात, संत, मुनि, चिंतक, कलाकार, ज्ञानी, विदूषक, अहीर, बढ़ई, लुहार, कुंभकार, नाई, चर्मकार सभी साथ-साथ रहा करते थे मिलजुलकर. देखिए तो सहअस्तित्व का अनुपम उदाहरण अपने वैद्यनाथधाम का ही क्षेत्र था. यों भी यदि संभव हो, तो सन् 1500-1600 के आसपास के बाबा वैद्यनाथ क्षेत्र का सामाजिक अध्ययन किया जाना अपेक्षित है.
आप चाहें, तो सन् 1700 के बाद या आसपास की बाबा वैद्यनाथधाम की तस्वीरें देखें. सहज ही अनुमान हो जाता है कि जंगलों के बीच बसे मंदिर और उसके आसपास का परिवेश कितना मनोरम रहा होगा. घने जंगल, ऊंचे पहाड़, बहती नदियां, गाय बैल चराते ग्वाल बाल और वहां विराजे भोले शिवशंकर..
तो क्या महादेव को आज का यह भयानक शोर पसंद नहीं है! क्या वे एक मौन महासाधक की तरह स्वयं में ही लीन तल्लीन रहना पसंद करते हैं! आखिर स्वर्गलोक के वैभव से इतर महादेव ने तमाम वैसे स्थलों को ही अपना वास क्यों बनाया जहां कानफोड़ू शोर न रहा हो -जहां प्रकृति और जीवन का नैसर्गिक संगीत हो..
महादेव दरअसल, खुद एक महायोगी हैं. वे चिंतन के उत्कर्ष भी हैं. ये जो दो+दो =आठ का कथित व्यवस्थावादी सिस्टम है, जहां किसी शह और मात के लिए शतरंज की बिसात बिछायी जाती है, जहां लूट लाने और कूट खाने वाला एक खूंखार लोक बसने लगा है और दुर्भाग्यवश वही अपना एक मानवीय (!) चेहरा अपने ही लगाये आदमकद आईने में देख देखकर खुश होता रहता है – महादेव को यह सब हर्गिज पसंद नहीं.
वे इंद्रलोक के षड्यंत्री सियासत के खलीफाओं को जानते हैं और उन जैसों की हर कारस्तानियों को पहचानते भी हैं. शायद इसलिए लाख किसी ने उनकी अलग ब्रांडिंग करनी चाही हो -वे हमेशा उनके खिलाफ रहे हैं और जो बहुत शोर मचाकर यह जतला रहे हैं कि सबसे बड़े देव वे हैं- उन्हें और उन जैसों को देख महादेव सिर्फ मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं …

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें