प्रभात खबर स्थापना दिवस पर विशेष :…ये आग का दरिया है और डूब कर जाना है
साकेत कुमार पुरी मिशन, सेवा व राष्ट्र निर्माण जैसे भावों से गुजरता हुआ मीडिया ग्लैमर तक पहुंचा और अब चौतरफा दबाव के दौर से गुजर रहा है. कभी मीडिया में काम करने का मतलब मिशन माना जाता था. मीडिया कर्मियों में राष्ट्र निर्माण व समाज निर्माण के लिए काम करने का भाव होता था और […]
साकेत कुमार पुरी
मिशन, सेवा व राष्ट्र निर्माण जैसे भावों से गुजरता हुआ मीडिया ग्लैमर तक पहुंचा और अब चौतरफा दबाव के दौर से गुजर रहा है. कभी मीडिया में काम करने का मतलब मिशन माना जाता था.
मीडिया कर्मियों में राष्ट्र निर्माण व समाज निर्माण के लिए काम करने का भाव होता था और होता था सत्ता और सिस्टम से टकराने का माद्दा. बाद के दिनों में मीडिया ग्लैमर की तरह देखा जाने लगा. युवा इसके ग्लैमर की चकाचौंध से प्रभावित होकर इसकी ओर आकर्षित होने लगे, लेकिन अब दौर चौतरफा दबाव का है. विडंबना यह है कि आज पत्रकार या पत्रकारिता पर सच लिखने, दिखाने का दबाव नहीं, बल्कि अपना-अपना सच लिखने व दिखाने का दबाव है.
कन्फ्यूज न हों अपना-अपना सच सुनकर. आज हर कोई चाहता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी की गड़बड़ियां तो अखबार में छपे पर उसकी नहीं. इसमें सभी शामिल हैं, जो सत्ता में हैं, जो विपक्ष में हैं और जो कहीं नहीं हैं वह भी. अब हरेक का अपना समूह है, जो मन मुताबिक बातें न छपे, न दिखायी जायें तो आपके बहिष्कार तक की घोषणा कर देते हैं. कुछ मीडिया हाउस के व्यवसाय को प्रभावित करते हैं, तो कुछ सर्कुलेशन को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं.
हालात को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक सच्ची घटना बताता हूं. एक पंचायत में काम कर रहा पत्रकार बड़ी ईमानदारी से अपने काम को अंजाम दे रहा था. पंचायत में मुखिया का चुनाव हुआ. दो साल बाद चुनाव में मुखिया जी के प्रतिद्वंद्वी रहे व्यक्ति ने मुखिया जी की गड़बड़ी पकड़ी और पत्रकार से संपर्क किया. पत्रकार ने खबर की जांच की.
हर तरह से आश्वस्त होने के बाद उसने खबर छाप दी. खबर सही थी सो मामले में कार्रवाई भी हुई और मुखिया को नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन बाकी के पूरे तीन साल उस मुखिया ने बेचारे उस पत्रकार का कोई काम उस पंचायत में नहीं होने दिया. बताते चलें कि पत्रकार भी एक आम आदमी ही होता है.
उसकी भी वही सारी जरूरतें होती हैं, जो किसी आम आदमी की. उसे भी वही प्रक्रियाएं पूरी करनी होती हैं, जो किसी और को. सो कई काम के लिए उसे मुखिया के पास जाना पड़ता था और वह काम नहीं होता था. पांच साल बाद फिर चुनाव हुआ. इस बार पहले वाले मुखिया जी हार गये और उनका प्रतिद्वंद्वी रहा व्यक्ति चुनाव जीत गया. अब सबने कहा पत्रकार के दिन फिर जायेंगे. साल भर बाद पूर्व मुखिया महोदय नये मुखिया की गड़बड़ी की खबर पत्रकार के पास लेकर पहुंचे.
पत्रकार ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए फिर से मामले की जांच-पड़ताल कर खबर छाप दी. इस बार भी खबर सही थी सो फिर मामले में कार्रवाई हुई और इस बार नये मुखिया जी फंस गये. अब उन्होंने पत्रकार को अपना दुश्मन मान लिया. फिर उन्होंने भी अपने पूरे कार्यकाल में उस पत्रकार का कोई काम उस पंचायत में नहीं होने दिया. जिन योजनाओं का लाभ गांव के हर किसी को मिल रहा था, उसका भी लाभ बेचारे पत्रकार को नहीं मिला. अब पत्रकार समझ चुका है कि यहां सिर्फ सच कहने से काम नहीं चलेगा. यहां वह शृंगार करना पड़ेगा, जो पिया मन भाये.
इस घटना में चिंता की बात क्या है? पत्रकार अपना काम कर रहा था. वह काम जिससे आम आदमी का भला होता है. उसके अधिकार बचे रहते हैं. उसके हक पर डाका नहीं पड़ता. लेकिन हर बार मुखिया उस पर भारी पड़ा, क्यों?
क्योंकि जिसके लिए पत्रकार लड़ रहा था, वही उसके साथ खड़े नहीं हो सके. क्या उस पंचायत के हर आदमी को पत्रकार के साथ खड़ा नहीं होना चाहिए था? मुखिया की मनमानी का प्रतिकार नहीं करना चाहिए था? पर ऐसा नहीं हुआ. इस छोटी घटना को जितने बड़े फलक पर लाकर सोचें, स्थिति वही रहती है.
पत्रकार अपना काम कर रहा होता है, पर उसी काम के लिए जो कभी उसकी प्रशंसा कर रहे थे, स्थिति बदलते ही वही उसका दुश्मन हो जाता है. पत्रकार पेशे से एक अल्प वेतनभोगी जीव है. अधिकतर को तो सरकारी महकमे में काम करनेवाले फोर्थ ग्रेड कर्मी से भी कम वेतन मिलता है. इसके बावजूद वह आम आदमी की आवाज बनने की कोशिश करता है. उनके हक के लिए सत्ता और सिस्टम से टकराता है.
निश्चित है कि उसे इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. उसका सबसे बड़ा संबल समाज से उसे मिलनेवाला समर्थन है. आम आदमी ही उसकी ताकत है. उसे सिस्टम से कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होता है, फिर भी वह सबसे भिड़ने-जूझने के लिए तैयार रहता है. लेकिन तब क्या हो जब समाज भी अपने-अपने हिसाब से सच देखने की जिद पकड़ ले. ऐसे में तो पत्रकारिता के लिए यही कहा जा सकता है:-
यह पेशा नहीं आसां, बस इतना समझ लिजै
एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है