आजाद होते वक्त देश के सामने चुनौतियों का अंबार था, विदेशी गुलामी ने उद्योग-धंधों को चौपट कर दिया था और ज्ञान-विज्ञान की परंपराएं रौंद डाली थीं, पर आज हम न सिर्फ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं, हमारी आर्थिकी का करीब एक तिहाई हिस्सा उद्योग पर आधारित है. खेती की मुश्किलों के बावजूद अन्न-भंडार भरे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य और विनिर्माण में व्यापक विस्तार हुआ है तथा विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विकास की कई मंजिलें तय की गयी हैं. गरीबी और वंचना में निर्णायक कमी आयी है. हमारी उपलब्धियां निश्चित रूप से गौरवपूर्ण हैं, पर कुछ मोर्चों पर बढ़त संतोषजनक नहीं है. आगामी वर्षों में बेहतरी के संकल्प के साथ सात दशकों के आजाद भारत की यात्रा को रेखांकित करती यह विशेष प्रस्तुति…
अंग्रेजी हुकूमत की पराधीनता से मिली मुक्ति के बाद राष्ट्र के नवनिर्माण के समक्ष कई चुनौतियां थीं. लंबे संघर्ष के बाद और विभाजन के दर्द के साथ आजादी तो मिल गयी, लेकिन देश के कोने-कोने में पसरी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौैतियां कहीं अधिक विकराल नजर आने लगी थीं. देश को खड़ा करने की जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी.
ऐसे वक्त में जब देश अपना 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, तो बीते 71 वर्षों में हमारी विभिन्न मोर्चों पर हुई प्रगति का मूल्यांकन करने का यह अच्छा अवसर है. आत्म-निर्भरता के लक्ष्य को हासिल करने के बाद जिस तेजी से देश ने तरक्की की राह पकड़ी, उसी का नतीजा है कि आज हम दुनिया की सर्वाधिक उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो चुके हैं, तो दूसरी ओर दुनिया के सबसे बड़े और जीवंत लोकतंत्र के रूप में हमारी पहचान स्थापित हुई है.
हालांकि, दूसरा पहलू थोड़ा अचंभित करता है. यकीनन, 1947 के बाद से देश बहुत आगे निकल चुका है, लेकिन जिस तेजी आर्थिक समानता बढ़ी है, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और महिला सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियां बढ़ी हैं, वे भयावह कल की चेतावनी दे रही हैं. हम यहां कुछ ऐसे क्षेत्रों की पड़ताल कर रहे हैं, जहां बहुत कुछ करने के बाद अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत महसूस की जा रही है.
इन क्षेत्रों में लगातार सुधार की दरकार
शिक्षा
आजादी के समय देश में महज 12 फीसदी आबादी को शिक्षा नसीब थी, लेकिन 72 वर्षों के सफर के बाद आज तीन चौथाई से अधिक आबादी शिक्षित हो चुकी है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 74 फीसदी आबादी शिक्षित हो चुकी है, लेकिन एक चौथाई आबादी का शिक्षा से महरूम रह जाना दुर्भाग्य पूर्ण है.
हालांकि, यूनेस्को की 2015 की रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत में 28.7 करोड़ लोग अशिक्षित हैं. रिपोर्ट में प्राथमिक शिक्षा छोड़ देनेवाले आठ करोड़ से अधिक बच्चों का भी जिक्र किया गया था. देश में आज भी प्राथमिक और उच्च शिक्षा की ढांचागत व्यवस्था और शोध आदि के क्षेत्रों में सुधार के लिए व्यापक प्रयास की दरकार है. अनिवार्य और सर्व सुलभ शिक्षा मुहैया कराने के लिए तय लक्ष्य को ध्यान में रखकर सतत प्रयास करने की जरूरत है.
कुपोषण
दुनिया की तेज उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने के दावे के बीच देश की बड़ी आबादी का कुपोषण का शिकार होना बेहद शर्मनाक है. देेश के तमाम हिस्सों में कुपोषण की स्थिति अफ्रीकी देशों से भी भयावह है. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में जन्म लेनेवाले शिशुओं में 20 से 30 फीसदी निर्धारित वजन से कम वजन के होते हैं.
महिलाओं और शिशुओं के स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्टें अक्सर चौंकानेवाले तथ्यों से हमारा सामना कराती हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 119 देशों की सूची में 100वें स्थान पर रखा गया है. ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट-2017 के अनुसार, कुपोषण का सामना कर रहे भारत में आधे से अधिक महिलाएं अपने प्रजनन अवस्था में रक्ताल्पता का शिकार हो जाती हैं. माताओं के शरीर में आयरन की कमी होने की वजह से जन्म के समय शिशुओं का वजन निर्धारित मानक से कम होता है.
स्वास्थ्य
बढ़ती आबादी के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की चुनौती लगातार बढ़ रही है. हालांकि, वर्ष 1951 में जो जीवन प्रत्याशा मात्र 37 वर्ष थी, वह 2011 में लगभग दोगुनी होकर 65 वर्ष पहुंच चुकी थी.
पोलियो, टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से निपटने में सफलता मिली है, तो वहीं बेहतर प्रयासों के चलते मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्युदर में व्यापक कमी दर्ज की गयी. हालांकि, देश में स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों और कर्मचारियों की कमी एक प्रमुख चिंता है. भारत आज भी अपने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का मात्र 4.2 प्रतिशत (अमेरिका 18 प्रतिशत) ही स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो दुनिया के तमाम देशों में निचले पायदान पर है. स्वास्थ्य सेवाएं काफी हद तक निजी क्षेत्र के जिम्मे हैं, जो गरीब आबादी पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं.
महिला सशक्तीकरण
आजाद देश के रूप में 71 वर्ष पूरा कर लेने के बाद भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर लैंगिक समानता का सपना अभी कोसों दूर प्रतीत होता है. विकास के क्रम में महिलाओं ने सामाजिक बंधनों को तोड़ने में कामयाबी हासिल की.
आज तमाम क्षेत्रों में महिलाएं तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रही हैं. देश के तमाम राज्यों में लिंगानुपात एक बड़ी चिंता का विषय है. हालांकि, लैंगिक समानता को लेकर बड़ी जागरूकता की कवायद वर्षों से चल रही हैं, लेकिन अपेक्षित कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिला शिक्षा क्रमश: 59 और 80 प्रतिशत रही, जोकि पुरुषों की तुलना में बहुत कम है. समग्र विकास का सपना आधी आबादी के विकास के बिना पूरा नहीं हो सकता, लिहाजा, महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और हर प्रकार से सशक्तीकरण की दिशा में बड़ा प्रयास करना होगा.
भ्रष्टाचार
भारतीय अर्थव्यवस्था भ्रष्टाचार के मकड़जाल से वर्षों से जूझ रही है. भ्रष्टाचार से लड़ने के तमाम प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं. राजनीति और अपराध का गठजोड़ भारतीय लोकतंत्र को वर्षों से दीमक की तरह चाट रहा है. उच्च स्तर पर होनेवाले भ्रष्टाचार का प्रवाह निचले स्तर तक होता है, जिसका सर्वाधिक खामियाजा देश के आमजनमानस को ही भुगतना पड़ता है. सरकारी तंत्र से लेकर निजी क्षेत्र तक फैली घूसघोरी से होनेवाले दुष्प्रभाव शासन-प्रशासन की गुणवत्ता को सर्वाधिक प्रभावित कर रहे हैं. भाई-भतीजावाद, गबन, अपराध को प्रश्रय और फ्रॉड के बढ़ते मामले न केवल देश के लिए चिंताजनक हैं, बल्कि इससे पूरी दुनिया में देश की छवि खराब होती है.
न्याय व्यवस्था
लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने में न्यायिक प्रणाली की अहम भूमिका होती है. बीते 71 वर्षों में अदालतों से हुए कई फैसलों ने देश और समाज को नयी राह दिखायी है. हालांकि, जिस तेजी से अदालतों में लंबित मामलों का बोझ बढ़ा है, उससे अदालतें हांफ रही हैं. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड स्टेटिस्टिक्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देशभर की विभिन्न अदालतों में दो करोड़ 67 लाख से अधिक मामले लंबित हैं. इसमें देश के 24 उच्च न्यायालयों में 10 लाख से अधिक मामले विचाराधीन हैं. न्याय मिलने की आस में लोग वर्षों नहीं, बल्कि दशकों तक अदालतों के चक्कर काटते रह जाते हैं. इससे समय और धन की बर्बादी होती है. बढ़ती लंबित मामलों की संख्या हमारे न्याय तंत्र के लिए चिंता और चुनौती का विषय है.
रक्षा क्षेत्र
आज भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति बन चुका है. हमारी सेना के पास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित अग्नि, आकाश, ब्रह्मोस, धनुष व त्रिशूल समेत तमाम अत्याधुनिक मिसाइलें हैं. इसके साथ ही अरिहंत, चक्र, कलवारी, सिंधुघोष समेत अनके पनडुब्बी व युद्धपोत भारतीय नौसेना की शक्ति को दर्शाते हैं और इसे विश्व की सबसे बड़ी नौसेनाओं में से एक बनाते हैं.
आधारभूत संरचना
आधारभूत संरचना का क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है. ऊर्जा उत्पादन, सड़क, बांध और शहरी विकास में हमारे देश में काफी काम हो रहा है. यही वजह है कि वर्ष 2016 के विश्व बैंक लॉजिस्टिक परफॉर्मेंस इंडेक्स में 19 स्थान की छलांग लगाकर 160 देशों के बीच भारत 35वें स्थान पर पहुंच गया.
विनिर्माण क्षेत्र के लिए भारत ने वर्ष 2000 से 2017 के बीच 24.67 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त किया है. ये निवेश ज्यादातर विकसित देशों द्वारा किये गये थे.
भारतीय लॉजिस्टिक सेक्टर के 10.5 प्रतिशत कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट से वृद्धि की उम्मीद जतायी जा रही है. अगर यह अनुमान सही साबित होता है तो 2017 के 160 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2020 तक यह क्षेत्र 215 बिलियन डॉलर पर पहुंच जायेगा.
भारत के पास विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रोड नेटवर्क है. हमारे यहां सड़क मार्ग द्वारा देश के 60 प्रतिशत से अधिक वस्तुओं की ढुलाई होती है और यह 85 प्रतिशत यात्रियों के यातायात का साधन है.
वर्तमान में प्रतिदिन 22 किलोमीटर सड़क का निर्माण हो रहा है और भारत के सड़कों की कुल लंबाई 52 लाख किलोमीटर तक पहुंच गयी है, जिसमें 96,000 किलोमीटर हाई-वे हैं.
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 47,337 किलोमीटर सड़क का निर्माण हो चुका है, जिसे ग्रामीण जीवन का शहर से संपर्क आसान हुआ है और उन्हें सहूलियत हुई हैं.
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत विश्व का दूसरा सबसे आकर्षक बाजार है. विंड पावर कैपेसिटी इंस्टॉलेशन में हमारा विश्व में चौथा स्थान है.
हमारे देश की कुल इंस्टॉल्ड रिन्यूएबल एनर्जी कैपेसिटी मई, 2018 तक 114.43 गीगावाट तक पहुंच चुकी है, जो देश के कुल ऊर्जा क्षमता का 33 प्रतिशत है.
71 वर्षों में हासिल उपलब्धियों पर एक नजर
4 अगस्त, 1956 को भारत ने एशिया का पहला परमाणु रिएक्टर डिजाइन किया. मार्च, 2018 तक देश में सात नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों में कुल 22 परमाणुरिएक्टर हैं.
भारत ने अपना पहला अंतरिक्ष उपग्रह, 1975 में डिजाइन किया था. इस उपग्रह का नाम भारत के पहले खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था.
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने मंगल ग्रह पर अपने पहले अभियान ‘मंगलयान’ को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. इस प्रकार सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने वाला वह चौथा देश बन गया. भारत को मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने वाले पहले एशियाई देश होने का गौरव भी हासिल है. भारत से पहले किसी भी देश ने पहले प्रयास में सफलता प्राप्त नहीं की थी.
भारत ने पहला चंद्रयान चंद्रमा की कक्षा में भेजा. अपने पहले ही प्रयास में इस यान ने चंद्रमा की कक्षा को भेद दिया. चंद्रयान के जरिये ही भारत को पता चला कि चंद्रमा पर बड़ी मात्रा में पानी के कण मौजूद हैं. यह हमारी एक बड़ी उपलब्धि रही.
इसरो ने नौवहन उपग्रह से जुड़े सटीक भौगोलिक आंकड़ों को मापने के लिए एक परमाणु घड़ी तैयार की है. इस उपलब्धि के साथ भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास यह तकनीक है.
इसरो ने एक अकेले रॉकेट के जरिये 104 सेटेलाइट को लॉन्च करने का रिकॉर्ड बनाया है. यह उपलब्धि भारतीय स्पेस एजेंसी की क्षमता को दर्शाती है.
इसरो द्वारा देश के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके III को स्वदेश निर्मित इंजन के साथ अंतरिक्ष में छोड़ा गया.
भारत ने पहला स्वदेशी सुपरकंप्यूटर परम तैयार कर दुनिया को दिखा दिया की आधुनिक तकनीक क्षेत्र में उसके पास प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है.
हमारा आईएनएसएटी सिस्टम
एशिया-पैसिफिक क्षेत्र की सबसे बड़ी
डोमेस्टिक कम्यूनिकेशन सेटेलाइट सिस्टम है. इस सिस्टम ने भारत के कम्यूनिकेशन सेक्टर में क्रांति की शुरुआत की है और कम्यूनिकेशन, एजुकेशन व मटीरियोलॉजी समेत कई क्षेत्रों में इसने हमें सहूलियतेंप्रदान की है.
हवाई यातायात
भारतीय उड्डयन क्षेत्र नये आयाम को छू रहा है. उड्डयन क्षेत्र वर्ष 2006 से सालाना औसतन 16.52 प्रतिशत की वृद्धि के साथ बढ़कर 308.75 मिलियन पर पहुंच गया है.
जहां तक घरेलू हवाई यात्रियों की बात है, तो वह 18.28 प्रतिशत बढ़कर वर्तमान वर्ष तक 243 मिलियन पर पहुंच गया. जबकि अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की संख्या 10.43 से बढ़कर 65 मिलियन पर पहुंच गयी.
मार्च 2018 तक देश में व्यावसायिक विमानों की संख्या 550 थी.
रेल नेटवर्क
1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण हुआ था. वर्तमान में यह 67,368 किलोमीटर लंबे मार्ग व 7,349 स्टेशनों के साथ 121,407 किलोमीटर ट्रैक वाला विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क बन गया है. भारतीय रेल से 1.3 करोड़ यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं.
अपने पहले स्वदेशी अत्याधुनिक हाई हॉर्स पावर के साथ तीन चरणों में इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव बनानेवाला यह दुनिया का पहला विकासशील देश और विश्व का पांचवां देश बन गया है.
अर्थव्यवस्था
1947 से अबतक भारत की अर्थव्यवस्था में काफी अंतर आ चुका है. जीडीपी के आधार पर आज हम विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति क्षमता यानी पीपीपी के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं.
विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भारत का योगदान लगातार बढ़ रहा है. करेंट प्राइस पर वर्ष 2014 में भारत का योगदान 2.6 प्रतिशत से 2017 में बढ़ कर 3.1 प्रतिशत हो गया.
1950 में हमारी जीडीपी जहां 30.6 बिलियन डॉलर थी, वह 2017 में 2.54 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गयी.
कृषि क्षेत्र
वर्ष 1947 में भारत जहां 50.8 मिलियन टन अनाज का उत्पादन करता था, वह पांच गुना बढ़कर वर्ष 2017 में 272 मिलियन टन पर पहुंच गया. वर्ष 1960 के बाद से भारत अनाज उत्पादन के मामले में न केवल आत्मनिर्भर बना, बल्कि आज वह अनेक प्रकार के खाद्यान्न का निर्यात भी करता है.
आज भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन चुका है और कुल वैश्विक उत्पादन का 18 प्रतिशत से अधिक दूध का उत्पादन भारत अकेले करता है.
यह विश्व में दाल, ताजे फल, ऑयल सीड्स, सनफ्लॉवर सीड्स का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. इतना ही नहीं, गेहूं, चावल, गन्ना, आलू, चाय कॉफी आदि खाद्यान्न का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है.
कपास उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है और यह 6.5 मिलियन टन से अधिक रेशे यानी फाइबर का उत्पादन करता है.
अन्य उपलब्धियां
आजादी के समय हमारे देश की साक्षरता दर जहां 12 प्रतिशत थी, वह बढ़कर 74 प्रतिशत पर पहुंच गयी.
1947 में भारतीय जीवन प्रत्याशा जहां 32 वर्ष थी वह आज बढ़कर 68.8 प्रतिशत पर पहुंच गयी है.
देश में कुल वन क्षेत्र 1990 में 21.5 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 24 प्रतिशत पर पहुंच चुका है.
शिशु मृत्यु दर की अगर बात करें, तो 1960 के प्रति हजार पर 165 के मुकाबले वह घटकर 38 पर आ गयी है.
भारत उन चंद देशों में शामिल है, जो बेहद कम कीमत पर वायरलेस टेलीफोन उपलब्ध कराता है.
यह उन चुने हुए देशों में है जो न्यूनतम कीमत पर स्टील, एल्युमीनियम, सीमेंट व फर्टिलाइजर का उत्पादन करता है.
हमारा देश न्यूनतम कीमत पर नाभिकीय ऊर्जा (1700 डॉलर प्रति किलोवाट) का उत्पादन करता है.
विश्व में सबसे ज्यादा थोरियम आपूर्तिकर्ता देशों में से एक भारत भी है.
हमारे देश में पोलियो का सफलतापूर्वक उन्मूलन हो चुका है जो एक अरब से अधिक आबादी वाले देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. पोलियो का अंतिम मामला देश में 2011 में पश्चिम बंगाल में सामने आया था.