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बिहार से जुड़ी अटल की यादों को कुछ इस तरह किया याद….मैं तो अटल बिहारी हूं
अटल बिहारी वाजपेयी से बिहार को मिली थीं कई सौगातें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बिहार को कई सौगातें दीं, जो राज्य के विकास में मील का पत्थर साबित हुईं. इनमें परिवहन व्यवस्था को लेकर कई परियोजनाएं शामिल हैं. 171 किमी लंबी परियोजना का उद्घाटन हाजीपुर-सुगौली रेलखंड की 171 किमी लंबी परियोजना का उद्घाटन […]
अटल बिहारी वाजपेयी से बिहार को मिली थीं कई सौगातें
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बिहार को कई सौगातें दीं, जो राज्य के विकास में मील का पत्थर साबित हुईं. इनमें परिवहन व्यवस्था को लेकर कई परियोजनाएं शामिल हैं.
171 किमी लंबी परियोजना का उद्घाटन
हाजीपुर-सुगौली रेलखंड की 171 किमी लंबी परियोजना का उद्घाटन वर्ष 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. उस समय नीतीश कुमार रेलमंत्री थे. हालांकि यह परियोजना समय पर पूरी नहीं हो सकी. यह अब वर्ष 2019 में पूरा होने की संभावना है. काम तेजी से चल रहा है.
बिहार को भी हुआ दूरसंचार क्रांति का लाभ
वाजपेयी सरकार की नयी दूरसंचार नीति ने निश्चित लाइसेंस शुल्क की जगह भारत में दूरसंचार क्रांति की शुरुआत की. उन्होंने टेलीकॉम कंपनियों के लिए कई नीतियां और कानून बनाये. भारत संचार निगम लिमिटेड के लिए एक अलग पॉलिसी बनी. इससे विदेश संचार निगम लिमिटेड का आधिपत्य खत्म हुआ. इसका लाभ बिहार को भी हुआ.
204 किमी सड़क का निर्माण मिथिलांचल के लिए बड़ा योगदान
प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने मिथिलांचल की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा करते हुए मैथिली को अष्टम अनुसूची में जगह देने का फैसला लिया था. बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी पर महासेतु के निर्माण कार्य की शुरुआत भी उनके प्रधानमंत्री रहते हुए हुई थी. इस योजना ने दो भाग में बंट चुके मिथिलांचल को एक करने का काम किया था. वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका शिलान्यास किया था.
सर्व शिक्षा अभियान
अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ही सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई थी. यह भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसके तहत 6-14 साल के बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान को मौलिक अधिकार बनाया गया है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यालयों के प्रबंधन में समुदाय की सक्रिय भागीदारी के साथ सामाजिक, क्षेत्रीय और लिंग संबंधी अंतरालों के अंतर को खत्म करना है.
बिहार से जुड़ी अटल की यादों को कुछ इस तरह किया याद
अब हम सब के बीच कवि-राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी की यादें रह जायेंगी. वाजपेयी एक ऐसे राजनेता थे, जिनका पक्ष के साथ विपक्षी दलों के नेताओं से भी मधुर संबंध था. इस संवेदनशील राजनेता का बिहार के लोगों के प्रति भी खासा स्नेह था. एक बार वे लोकसभा में बोलने के लिए खड़े हुए. अध्यक्ष ने कहा, माननीय अभी बिहार पर चर्चा हो रही है. बिहार के ही सदस्य बोलेंगे. इस पर उन्होंने कहा था कि मैं तो अटल बिहारी हूं.
उनकी बातों में बिहार का नहीं होते हुए भी अपने को बिहारी मानने की ठोस अभिव्यक्ति महसूस हो रही थी. बिहार की सभी सभाओं में वे लोगों से सीधा संवाद करते थे. उनके दुख में अपने को शामिल और साथ रहने का पुरजोर एहसास दिलाते थे. यही कारण था कि गया के बारा नरसंहार के बाद व वर्ष 2005 के विस चुनाव के समय भागलपुर में हुईं इनकी सभाओं में लोग भावुक भाषण सुन कर आंसू नहीं रोक पाये थे. आइए, पढ़िए बिहार से जुड़े यादगार संस्मरणों को.
मेरा किसलय कहां है कोई लौटा दो मेरे किसलय को
भागलपुर : बिहार में फैले अपहरण उद्योग के खिलाफ जनता के दिल में आग सुलग रही थी. हर घर में यह डर व्याप्त था कि जाने कब कहां से किसी को अपराधी उठा ले जाये और संदेश आ जाये फिरौती का.
ऐसे हालात में अटल बिहारी वाजपेयी के इस संवाद ने जनता के दिल पर मरहम का काम किया था कि ‘मेरा किसलय कहां है’. अटल बिहारी वाजपेयी जी वर्ष 2005 में बिहार विधानसभा के चुनाव प्रचार में आये हुए थे. सैंडिस कंपाउंड में आयोजित सभा में लाखों लोग जमा थे. वह जब अपना भाषण शुरू किये, तो दोनों हाथ फैला कर कहा कि मेरा किसलय कहां है, कोई तो मुझे मेरे किसलय से मिला दो. यह सुनते ही भीड़ में सन्नाटा छा गया. सारे लोग स्तब्ध थे. जनता के नब्ज को समझना और सीधे संवाद करना अटल बिहारी वाजपेयी जी की खासियत रही है.
उन्होंने अपने घुटना का ऑपरेशन कराया था, इसलिए उनके लिए जो मंच बना था, उस सीढ़ी की ऊंचाई चार इंच से अधिक नहीं थी. इस मंच पर भाजपा नेता अभय वर्मन को भी भाषण देने का अवसर प्राप्त हुआ था. जनता अटल जी को सुनना चाहती थी. वह अन्य वक्ताओं को हुटआउट कर रही थी.
एक वाकया है. अटल जी लाजपत पार्क के मंच से बोल रहे थे. जब लोगों ने उनसे कहा कि आप बहुत दिनों के बाद भागलपुर आये हैं, तो उन्होंने कहा ‘मैं बिना बुलाये तो भगवान के पास भी नहीं जाने वाला हूं.’ उनके भाषण में चुटीला अंदाज रहता था, व्यंग रहता था. पूरे बिहार में बाढ़ आयी हुई थी.
उन्होंने कहा कि पूरा बिहार डूबा, मगर एक व्यक्ति नहीं डूबे, वह हैं बिंदेश्वरी दुबे. उस समय बिंदेश्वरी दुबे बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. अटल बिहारी वाजपेयीजी प्रधानमंत्री बनने के बाद भागलपुर आये थे. वे अधिकतर समय तो सर्किट हाउस में रहते थे. लेकिन कई बार वे नाथनगर के पूरनमल बाजोरिया के घर भोजन पर जाया करते थे.
(भाजपा नेता अभय वर्मन व संघ से जुड़े वनवारी लाल दलानिया से प्रभात खबर की बातचीत पर आधारित)
वाजपेयी ने जब दी थी हिदायत…
जागते रहो… अंधेरा छानेवाला है…
अजय कुमार
जागते रहो… अंधेरा छानेवाला है… पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के ये शब्द उस वक्त पटना के गांधी मैदान में गूंज रहे थे, जब उनकी तेरह दिनों की सरकार चली गयी थी और नया चुनाव होने वाला था. कोई दो दशक पहले की यह बात है.
गांधी मैदान में उस भाषण के गवाह रहे वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं: वाजपेयी भाषण के लिए खड़े हुए थे. हजारों की भीड़ थी. पर कोलाहल नहीं था. सब लोग उन्हें सुनना चाहते थे. अचानक आवाज आयी- जगाते रहो… अंधेरा छानेवाला है… उनके इन शब्दों का अर्थ वहां मौजूद लोग बखूबी समझ थे. ऐसा लगा जैसे समूचा माहौल प्रकल्लपित हो गया. वह बताना चाह रहे थे कि ऐसी राजनीतिक ताकत दो, जो देश का अंधेरा दूर कर सके. मणिकांत ठाकुर कहते हैं: आज भी उनके शब्द माकूल हैं.
भाकपा नेता के साथ वह दोस्ताना संबंध
बिहार के साथ अटल बिहारी वाजपेयी का गहरा नाता था. भले ही वह जनसंघ की राजनीति से जुड़े रहे पर पटना आने पर भाकपा के सांसद रहे रामअवतार शास्त्री का हालचाल जरूर लेते थे. शास्त्री जी पटना संसदीय सीट से कई बार सांसद रहे. गरीब और मध्य वर्ग के चहेते थे शास्त्री. भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह कहते हैं:
दोनों के बीच अच्छी समझ थी. दोनों का मिलना-जुलना था. अटल जी पटना जब भी आते, शास्त्री जी से मिलना नहीं भूलते थे. वरिष्ठ पत्रकार सुकांत बताते हैं: दोनों दो राजनीतिक धारा के लोग थे. इसके बावजूद दोनों की मैत्री जबरदस्त थी. आज के दौर में वैसी बात अब कहां? अलग-अलग वैचारिक धरातल पर होने के बावजूद दोनों के रिश्तों की गरमाहट कभी कम नहीं हुई.
बाबा नागार्जुन का लिया हालचाल
बात 1998 की है. हिंदी के जाने-माने कवि बाबा नागार्जुन बीमार थे. उन्हीं दिनों किसी प्रसंग में सुकांत जी को शिवानंद तिवारी के साथ दिल्ली जाना हुआ. संसद भवन में शिवानंद जी की वाजपेयी जी से मुलाकात हुई. मिलते ही उन्होंने बाबा के बारे में पूछा. उनकी बीमारी के संदर्भ में बात की.
सुकांत जी कहते हैं: मुझे हैरानी हुई कि वह बाबूजी का हालचाल पूछ रहे थे. उन्हें बाबूजी की बीमारी के बारे में खबर थी. एक राजनीतिज्ञ का किसी साहित्यकार के साथ उसके सरोकार से ऐसा संभव था. बाबा का पूरा साहित्य सत्ता विरोध दस्तावेज है. वह आम जन की बेहतरी की बात करते हैं.
जब पैदल ही कॉफी हाउस की ओर चल दिये वाजपेयी
डाक बंगला चौराहे का स्वरूप आज जैसा नहीं था. तब ऐसी इमारतें नहीं थीं. न्यू डाक बंगला की ओर जाने वाली सड़क पर मशहूर कॉफी हाउस हुआ करता था. बात 1974-75 की है. तब वाजपेयी जनसंघ के शीर्ष नेतृत्व में थे.
किसी कार्यक्रम के सिलसिले में उनका पटना आना हुआ था. सुकांत जी बताते हैं: हमने देखा कि अटल बिहारी वाजपेयी पैदल ही चले आ रहे हैं. डाक बंगला चौराहे से वह कॉपी हाउस की ओर मुड़ गये. उनके साथ कई लोग थे. तब का कॉफी हाउस बौद्धिक विमर्श का केंद्र हुआ करता था.
साहित्याकार, राजनीतिज्ञ, कार्यकर्ता और सामाजिक सरोकारी लोग वहां आते थे. भले ही उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता कुछ भी हो. वे आपस में संवाद करते थे.
बीहड़ रास्ते से होकर जब कोसी इलाके की स्थिति को जाना था
पथ निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव ने पुराने यादों को ताजा करते हुए कहा कि 1983 में वे भाजपा पटना महानगर के अध्यक्ष थे. भाजपा की कार्यसमिति की बैठक में हम उन्हें 2़ 83 लाख रुपये से भरी थैली देने के लिए गये थे.
थैली देखते ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि तुम जिलाध्यक्ष हो. जिलाध्यक्ष बन गये हो. मेहनत करो तो तरक्की होती रहेगी. उस क्षण को वे तस्वीर में कैद कर लिये थे. उस क्षण को याद कर नंद किशोर यादव भावुक हो गये. उन्होंने कहा कि उनकी बातें आज तक मेरे जेहन में घुमती रहती है. पथ निर्माण मंत्री ने वर्ष 1999 -2000 के समय को याद करते हुए कहा कि उस समय वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे. उस समय रेल मंत्री नीतीश कुमार थे.
अटल बिहार वाजपेयी ने गंगा नदी पर दीघा- सोनपुर रेल पुल, मुंगेर में गंगा नदी पर रेल सह सड़क पुल की निर्माण की घोषणा की थी. कोसी इलाके की स्थिति को देखने वे खुद गये थे. बीहड़ रास्ता होने के बाद बावजूद गये थे. कोसी इलाके की स्थिति को देख कर उन्होंने कहा कि मिथिलांचल को राज्य के अन्य भागों से रेल व सड़क मार्ग से जोड़ेंगे. कोसी नदी पर महासेतु बना कर मिथिलांचल को जोड़ने का काम किया.
बारा की गलियों में घूम-घूम कर अटल ने सुनी थी पीड़ितों की व्यथा
नरसंहार वाले गांव में पहुंचे थे वाजपेयी…
गया के बारा में 12 फरवरी 1992 को एक दुखद घटना हो गयी. यह एक भयंकर नरसंहार था. अटल बिहारी वाजपेयी घटना के एक सप्ताह के अंदर बारा गांव पहुंचे थे. तब अटल जी गांव की गलियाें में पैदल चल कर घूम-घूम कर लोगों से मिले थे, बातें की थीं. घटना की जानकारी ले रहे थे. घटना से जुड़ी बातें सुन कर बुरी तरह द्रवित हो उठे वाजपेयी जी एक घर के बरामदे में बैठ गये.
वहां भी लोग जुट गये. सबसे उस हृदय विदारक घटना की दास्तान सुनी. काफी दुखी दिख रहे थे. लग रहा था मानो बीमार पड़ गये हों. मन दुखी था उनका. उठ खड़े हुए. गांव के लाेगाें काे ढाढ़स बंधाया. वहां से लौटने के बाद गया के गांधी मैदान में भारी भीड़ के बीच उनका भाषण हुआ. उन्हें सुननेवाले अधिकतर लोग मानो गम के समंदर में डूब गये. यूं जैसे हर श्रोता ने खुद ही बारा नरसंहार को अपनी नग्न आंखों से ही देखा हो. कई तो आंखें पोंछते दिखे. ऐसा था श्रोताओं के साथ अटल जी के कम्युनिकेशन का तरीका.
बात 1991 की है. देश में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी. गया की रहनेवाली भाजपा की एक नेत्री ललिता सिंह बेगूसराय से चुनाव मैदान में उतरी थीं. पार्टी ने वहां से उन्हें ही टिकट दिया था. एक दिन वहां की एक चुनाव सभा में अटल जी बेगूसराय पहुंचे. पड़ाेसी क्षेत्र के उम्मीदवार जगदंबी प्रसाद यादव भी उस मंच पर तब बैठे हुए थे.
वाजपेयी जी ने अपने सम्बोधन के बीच ही पूछा, ‘जगदंबी बाबू, मुझे बतलाया गया था कि यहां से पार्टी की उम्मीदवार काेई महिला हैं. वह कहां हैं ? मुझे तो मंच पर महिला दिखायी नहीं दे रहीं !’ तभी जगदंबी बाबू ने पास बैठी ललिता सिंह की आेर इशारा किया. वाजपेयी जी तपाक से बाेल उठे, ‘ अरे, इन्हें काैन महिला कह सकता है. इनमें ताे मुझे सुदीप्त पाैरूष दिखायी दे रहा है.’
फिर थोड़ी दूरी पर मंच पर खड़ी ललिता सिंह की तरफ संकेत करते हुए अटल जी ने कहा, ‘सुना है, दूसरी पार्टी प्रचारित कर रही है कि ललिता सिंह बैठ गयी हैं, चुनाव मैदान से हट गयी हैं ! आपलाेग खुद ही देख लीजिए कि ललिता जी बैठी नहीं हैं. वह तो खड़ीं हैं आैर बता रही हैं कि शेरनी हूं, खड़ी ही रहूंगी.’ हालांकि ललिता स्थानीय समीकरण में उलझन की वजह से ललिता सिंह चुनाव जीत नहीं सकीं. लेकिन वह अटल जी के उस सम्बोधन से इस तरह उर्जास्वित थीं कि चुनाव हारने के थकान को महसूस ही नहीं कर सकीं.
ललिता जी की मां की दिली इच्छा अटल जी से मिलने की थी. मंच से उतरते ही वाजपेयी जी से अनुराेध कर उन्हें मिलवाया गया. उनसे मिलने के लिए वह रुक गये. उनकी मां ने उनसे ममतावश एक बात कह दी.
वह यह कि आपने ललिता काे लाेकसभा का टिकट तो दिया, पर वह हार गयी. वाजपेयी जी ने कहा, ‘नहीं-नहीं, नहीं ऐसा न साेंचें. वह हारी नहीं हैं. वह तो उस बंजर भूमि काे जाेत दी हैं, जहां कभी भाजपा का हल नहीं चल सका था. फसलें अवश्य उगेंगी.’ कालांतर में अटल जी की भविष्यवाणी सही निकली. बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से कई बार भाजपा ने जीत दर्ज की.
गया में अपनी ऊपरोक्त सभा के बाद वह सर्किट हाउस पहुंचे. धनबाद की सांसद रीता वर्मा साथ थीं. ललिता जी से रीता जी ने कहा, ‘मुझे अपने घर ले चलाे. ललिता जी अपनी बहन नम्रता के एपी कॉलाेनी स्थित मकान में उन्हें ले गयीं. वहां से लौटने के बाद अटल जी ने सबसे पूछा, ‘ आपलोग कहां गयी थीं?’ बातें सुनने के बाद उन्होंने ललिता जी से कहा कहा, ‘मेरे लिए आपकी बहन के घर में छाेटी सी भी जगह नहीं थी?’ ललिता जी काे लगा जैसे साै घड़ा पानी सिर पर गिर गया हाे. कुछ बाेल न सकीं. ऐसी सरलता व सहजता थी अटल जी की बाेली में.
दूसरे दिन सभी लोग जहानाबाद गये. वहां कुछ दिन पहले ही लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार हुआ था. गुरुवार का दिन था. ललिता जी उपवास पर थीं. कुछ खाने काे आया. ललिता जी ने खाने से मना कर दिया. वाजपेयी जी ने पूछा, क्याें नहीं खा रही हाे, तो जवाब में गुरुवार हाेने की बात बतायी. उन्होंने कहा कि गुरुवार को उपवास पर रहती हूं. इससे पहले रीता जी ने मंगलवार काे उपवास रखा था.
वाजपेयी जी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘ रीता मंगलवार को उपवास रखती हैं और ललिता गुरुवार काे. बेचारे बुधवार ने क्या बिगाड़ा है ? आपलोग पहले बतलातीं ताे मैं बुधवार को उपवास रख लेता. ऐसा था अटल जी का लोगों से बातचीत का तौर-तरीका. बिल्कुल सामान्य को विशिष्ट बना देनेवाला.
(भाजपा की पूर्व गया जिलाध्यक्ष ललिता सिंह से प्रभात खबर की बातचीत पर आधारित)
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