अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति शेष… : अटल जी के भाषण के थे सभी मुरीद
अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे, उस समय संसद में विश्वास मत के दौरान उन्होंने बहुत प्रभावी भाषण दिया था, उन्होंने सदन में भारतीय जनता पार्टी को व्यापक समर्थन हासिल नहीं होने के आरोपों पर कड़ा जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि यह कोई चमत्कार नहीं है कि हमें इतने वोट […]
अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे, उस समय संसद में विश्वास मत के दौरान उन्होंने बहुत प्रभावी भाषण दिया था, उन्होंने सदन में भारतीय जनता पार्टी को व्यापक समर्थन हासिल नहीं होने के आरोपों पर कड़ा जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि यह कोई चमत्कार नहीं है कि हमें इतने वोट मिल गये हैं.
यह हमारी 40 साल की मेहनत का नतीजा है. हम लोगों के बीच गये हैं और हमने मेहनत की है. हमारी 365 दिन चलने वाली पार्टी है. यह चुनाव में कोई कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होने वाली पार्टी नहीं है. उन्होंने कहा था कि आज हमें सिर्फ इसलिए कटघरे में खड़ा कर दिया गया, क्योंकि हम थोड़ी ज्यादा सीटें नहीं ला पाये. राष्ट्रपति ने हमें सरकार बनाने का मौका दिया और हमने इसका फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन हमें सफलता नहीं मिली, यह अलग बात है, पर हम अब भी सदन में सबसे बड़े विपक्ष के तौर पर बैठेंगे. प्रस्तुत है उनके चुनिंदा भाषणों का अंश.
संसद में अक्सर इंदिरा गांधी से होती रहती थी तीखी नोकझोंक
देश के राजनीतिक फलक पर छाप छोड़ने वाले चुनिंदा प्रधानमंत्रियों का जब जिक्र होता है, तो इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम शीर्ष पर आता है.
अपनी सख्त छवि के लिए मशहूर इंदिरा गांधी से शायद ही कोई नेता उलझना चाहता था, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर उन्हें तमाम मुद्दों पर संसद में घेर लेते और सवालों का जवाब देने पर मजबूर कर देते. यह किस्सा है वर्ष 1970, यानी भाजपा के गठन से करीब एक दशक पहले का. तब जनसंघ हुआ करता था और अटल बिहारी वाजपेयी इसके शीर्ष नेताओं में से एक थे. तारीख थी 26 फरवरी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सदन में खड़ी हुईं और उन्होंने ‘भारतीयता’ के मुद्दे पर जनसंघ को घेर लिया और तंज कसते हुए कहा कि, ‘मैं जनसंघ जैसी पार्टी से पांच मिनट में निबट सकती हूं’.
अटल बिहारी वाजपेयी सदन में जनसंघ के नेता थे. पार्टी पर इंदिरा गांधी की इस टिप्पणी से वे बिफर पड़े. अटल जी अपनी सीट से खड़े हुए और कहा कि ‘पीएम कहती हैं कि वे जनसंघ से पांच मिनट में निबट सकती हैं, क्या कोई लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री ऐसा बोल सकता है? मैं कहता हूं कि पांच मिनट में आप अपने बालों को ठीक नहीं कर सकती हैं, फिर हमसे कैसे निबटेंगी’. एक बार तो इंदिरा गांधी ने अटल जी की आलोचना करते हुए कहा था कि ‘वह बहुत हाथ हिला-हिलाकर बात करते हैं’. इसके बाद अटल जी ने जवाब में कहा कि ‘वो तो ठीक है, आपने किसी को पैर हिलाकर बात करते देखा है क्या.?’
भाषण सुनकर नेहरू ने कहा था यह लड़का एक दिन प्रधानमंत्री बनेगा
अटल जी 1957 में जब पहली बार बलरामपुर से सांसद बनकर लोकसभा में पहुंचे थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनका भाषण सुनकर कहा था कि यह लड़का एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा. अटलजी के भाषणों को लेकर आम जनता में इस तरह दीवानगी थी कि उनका भाषण सुनने के लिए विरोधी दल के लोग भी सभाओं में चुपके से पहुंच जाते थे.
संयुक्त राष्ट्र के एक अधिवेशन में पाकिस्तान को दिया करारा जवाब
1994 में यूएन के एक अधिवेशन में पाकिस्तान ने कश्मीर पर भारत को घेर लिया था. प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने भारत का पक्ष रखने के लिए नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था. वहां पर पाक नेता ने कहा कि कश्मीर के बगैर पाकिस्तान अधूरा है. तो जवाब में वाजपेयी ने कहा कि वो तो ठीक है, पर पाकिस्तान के बगैर हिंदुस्तान अधूरा है. पाकिस्तान के ही मुद्दे पर अटल बिहारी की बड़ी आलोचना होती कि ताली दोनों हाथ से बजती है. अटल जी अकेले ही उत्साहित हुए जा रहे हैं. वाजपेयी ने जवाब में कहा कि एक हाथ से चुटकी तो बज ही सकती है.
पं जवाहरलाल नेहरू के अवसान पर
भारत माता का लाड़ला राजकुमार खो गया
एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूंगा हो गया, एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गयी. सपना था एक ऐसा संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूंज और गुलाब की गंध, लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अंधेरे में, निर्वाण को प्राप्त हो गया.
मृत्यु ध्रुव सत्य है, शरीर नश्वर है. कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आये, उसका नाश निश्चित था. लेकिन क्या यह जरूरी था कि मौत इतनी चोरी-छुपे आती. जब संगी-साथी सोये पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की अमूल्य निधि लुट गयी. भारत माता आज शोकमग्न है- उसका सबसे लाडला राजकुमार खो गया. मानवता आज खिन्न है- उसका पुजारी सो गया. शांति आज अशांत है- उसका रक्षक चला गया. दलितों का सहारा छूट गया. जन-जन की आंख का तारा टूट गया. यवनिका-पात हो गया, विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अंतर्ध्यान हो गया.
महर्षि बाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के संबंध में कहा है कि वे असंभवों के समन्वय थे. पंडित जी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है. वह शांति के पुजारी, किंतु क्रांति के अग्रदूत थे, वे अहिंसा के उपासक थे, किंतु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लड़ने के हिमायती थे.
वे व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे, किंतु आर्थिक समानता लाने के लिए कटिबद्ध थे. उन्होंने किसी से समझौता करने में भय नहीं खाया, किंतु किसी से भयभीत होकर समझौता भी नहीं किया. चीन और पाकिस्तान के प्रति उनकी नीति इसी अद्भुत सम्मिश्रण की प्रतीक थी जिसमें उदारता थी, दृढ़ता भी थी. यह दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया, कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा.
मुझे याद है, चीनी आक्रमण के दिनों में जब हमारे पश्चिमी मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि हम कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान से कोई समझौता कर लें, तब एक दिन मैंने उन्हें बड़ा क्रुद्ध पाया. जब उनसे कहा गया कि कश्मीर के प्रश्न पर समर्पण नहीं होगा, तो हमें दो मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा तो वे बिगड़ गये और कहने लगे, अगर जरूरत पड़ेगी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे. किसी दबाव में आकर वे बातचीत करने के भी खिलाफ थे.
जिस स्वतंत्रता के वे सेनानी और संरक्षक थे, आज वह स्वतंत्रता संकटापन्न है. संपूर्ण शक्ति के साथ हमें उसकी रक्षा करनी होगी, जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे उन्नायक थे, आज वह भी विपदाग्रस्त है.
हर मूल्य चुका कर हमें उसे कायम रखना होगा. जिस भारतीय लोकतंत्र की उन्होंने स्थापना की, उसे सफल बनाया, आज उसके भविष्य के प्रति भी आशंकाएं प्रकट की जा रही हैं. हमने अपनी एकता से, अनुशासन से, अपने आत्मविश्वास से उस लोकतंत्र को भी सफल करके दिखाया है.
नेता चला गया, अनुयायी रह गये. सूर्य अस्त हो गया, तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूंढ़ना है. महान उद्देश्य के लिए भारत सशक्त हो, समर्थ हो और समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्व शांति की चिर स्थापना में अपना योग दें, तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे.
संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा. शायद तीन मूर्ति को उन जैसा व्यक्ति कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नहीं करेगा. वह व्यक्तित्व, वह जिंदादिली, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह मानवता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी. मतभेद होते हुए भी, उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रामाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति, उनके अटूट साहस और दुर्दम्य धैर्य के प्रति हमारे हृदय में, आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.
(राज्यसभा, 29 मई, 1964)
डॉ राम मनोहर लोहिया के अवसान पर अमर है उनका सपना
एक-एक पुरानी पीढ़ी के प्रकाश स्तंभ ढहते जा रहे हैं, एक-एक कर हमारे मार्गदर्शक हमसे मुंह मोड़ते जा रहे हैं, एक-एक कर हमारे कर्णधार राष्ट्र की नौका को मंझधार में छोड़कर अनंत में अदृश्य होते जा रहे हैं. जो जीवन-भर आजादी के लिए जूझे, जिनकी जवानी जेल में जली और कष्टों के कांटों में खिली, स्वतंत्रता की गंगा लाने के लिए, जिन्होंने भगीरथ प्रयत्र किया और स्वाधीन भारत के नव-निर्माण में जिन्होंने अपनी शक्ति के अनुसार योगदान दिया. हम हृदय से उनके प्रति कृतज्ञ हैं.
डॉ लोहिया के निधन का समाचार मुझे बैंकाक में मिला. मेरे साथ स्वतंत्र पार्टी के श्री सोलंकी और कांग्रेस के चौ. रामसेवक जी भी थे. एक क्षण के लिए हम स्तब्ध हो गये, जड़ से रह गये, अपनी सुध-बुध भूल गये, मानो वज्रपात हो गया हो. हर मोर्चे पर संघर्ष लेने वाले योद्धा, हर अन्याय और अभाव के विरुद्ध सबको लड़ने के लिए ललकारने वाला सेनानी, हर परिस्थिति को अपने अदम्य आत्मविश्वास और अपनी कर्तव्य शक्ति से अनुकूल मोड़ देने वाले नेता, इतनी जल्दी जीवन की बाजी हार जायेगा. ऐसा हमने कभी सोचा था.
डॉ लोहिया एक महान देशभक्त, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता, मौलिक विचारक और क्रांतिदर्शी व्यक्ति थे. उनका व्यक्तित्व अनूठा, विविधताओं से परिपूर्ण और बहुमुखी प्रतिभाओं से संपन्न था. वे स्वयं विवाद का विषय रहते थे और नये-नये विवाद खड़ा करने में रस लेते थे.
वे जीवन से बागी थे और बगावत जैसे उनके स्वभाव का अंग बन गयी थी. उन्होंने राष्ट्र के जीवन को एक नयी दिशा देने का प्रयत्न किया. उनके विचारों से किसी को मतभेद हो सकता है किंतु दलितों के लिए, पीड़ितों के लिए उनके हृदय में जो अग्नि जलती थी वह उनके निकट आनेवाले को बिना सुलगाये आलोकित किये नहीं रहती थी.
डॉ लोहिया अब नहीं रहे, उनका स्थान शायद रिक्त ही रह जायेगा. राष्ट्र जीवन में उनकी कमी शायद पूरी नहीं हो सकेगी. समाजवादी होते हुए साहूकार सेठों पर भी प्रहार करनेवाले पुराने राजा-महाराजाओं के साथ-साथ नये राजा-महाराजाओं के विरुद्ध तर्क के तेज तीर और व्यंग्य के बाण छोड़नेवाले, अंग्रेजी हटाओ का नारा देनेवाले, भारतीय भाषाओं की अवहेलना करनेवालों को भारत-माता की जीभ काटने का अभियुक्त बतानेवाले, एवरेस्ट को सगरमाथा, और नेफा को उर्वशी कहने पर जोर देनेवाले डॉक्टर लोहिया संसार से उठ गये.
अटल जी से जुड़ीं कुछ रोचक बातें
1. अटल जी का नाम बाबा श्यामलाल वाजपेयी ने अटल रखा था. माता कृष्णा देवी दुलार से उन्हें अटल्ला कहकर पुकारती थीं.
2. अटल िबहारी वाजपेयी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में ही सम्पन्न हुई. 1939 में जब वे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे, तभी से राष्ट्रीय स्वयं संघ में जाने लगे थे.
3. राष्ट्र के सबसे अच्छे वक्ता अटल जी का भाषण सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे. उनका भाषण उनकी पहचान थी.
4. भाषण के बीच में व्यंग्य विनोद की फुलझड़ियां सुनने वाले के मन में कभी मीठी गुदगुदी उत्पन्न करती, तो कभी ठहाकों के साथ हंसा देती थी.
5. अपने पहले भाषण का जिक्र करते हुए अटल जी कहते थे, कि मेरा पहला भाषण जब मैं कक्षा पांचवीं में था तब रट कर बोलने गया था और मैं बोलने में अटक रहा था, मेरी खूब हंसाई हुई थी. तभी से मैंने संकल्प लिया था कि रट कर भाषण नहीं दूंगा.
6. अटल जी स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी थे. मिठाई तो उनकी कमजोरी थी. काशी से जब चेतना दैनिक का प्रकाशन हुआ तो अटल जी उसके संपादक नियुक्त किये गये. शाम को प्रेस से लौटते समय रामभंडार नामक मिठाई की दुकान पड़ती थी. उस समय अटल जी के पास इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि रोज खाया जाये, तो दुकान से कुछ पहले ही कहने लगते थे कि ”आंखें बंद कर लो वरना ये परवल सामने आकर बड़ी पीड़ा देंगे.
6. 1994 में उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ और 1998 में ‘सबसे ईमानदार व्यक्ति’ के रूप में सम्मानित किया गया था.
7. 1992 में “पद्मभूषण” जैसी बड़ी उपाधि और ‘हिन्दी गौरव’ के सम्मान से सम्मानित किया गया था.
8. अटल जी ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था और राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का मान बढ़ाया.
9. वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे.
10. उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारंभ किया था और उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया भी.
11. सन् 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परंतु सफलता नहीं मिली. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1957 में बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे.
12. सन् 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे.
13. मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा.
14. परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए साहसी कदम भी उठाये.
15. सन्1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया, जिसे अमेरिका की सीआइए को भनक तक नहीं लगने दी.
16. विख्यात गजल गायक जगजीत सिंह ने अटल जी की चुनिंदा कविताओं को संगीतमय करके एक एल्बम भी निकाला था, जिसमें से एक कविता में अभिनेता शाहरुख खान द्वारा अभिनय भी किया था.
अटल जी की टिप्पणियां
चाहे प्रधानमंत्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष; बेशक देश की बात हो या क्रांतिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की, नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके. यहां पर उनकी कुछ टिप्पणियां दी जा रही हैं.
1. “भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो.”
2. “क्रान्तिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रांतिकारियों को भूल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ.
3. मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं. वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है. वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है.