नयी पीढ़ी को वैचारिक ऊर्जा देने वाले संत सच्चिदानंद सिन्हा

अनिल प्रकाश समाजवादी विचारधारा को विकसित करने और उसको अद्यतन स्वरूप प्रदान करने में सच्चिदानंद सिन्हा ने अमूल्य योगदान दिया है. आज 90 वर्ष की उम्र में भी वे इस दिशा में निरंतर सक्रिय और अग्रसर दिखाई देते हैं. इंटर की पढ़ाई के बाद ही वे समाजवादी आंदोलन में सक्रिय हो गये थे और मुंबई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2018 7:42 AM
अनिल प्रकाश
समाजवादी विचारधारा को विकसित करने और उसको अद्यतन स्वरूप प्रदान करने में सच्चिदानंद सिन्हा ने अमूल्य योगदान दिया है. आज 90 वर्ष की उम्र में भी वे इस दिशा में निरंतर सक्रिय और अग्रसर दिखाई देते हैं. इंटर की पढ़ाई के बाद ही वे समाजवादी आंदोलन में सक्रिय हो गये थे और मुंबई (तब का बम्बई) में मजदूरों के संगठन में लग गये थे. बाद में जब डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने अंग्रेजी में मैनकाइंड और हिंदी में जन नामक पत्रिकाओं की शुरुआत की तो युवा सच्चिदानंद सिन्हा की प्रतिभा और योग्यता को पहचान कर उन्हें उसके संपादकमंडल में शामिल किया गया.
सन 1974 के जेपी के नेतृत्ववाले छात्र युवा आंदोलन के दौरान जब सच्चिदा जी मुजफ्फरपुर में सक्रिय हुए तब पहली बार उनसे मेरी मुलाकात हुई थी. जब-जब उनसे चर्चा होती, एक नयी वैचारिक ऊर्जा मिलती. चौरंगी वार्ता पहले कलकत्ते से निकलती थी. दिनेश दास गुप्ता उसका संपादन करते थे. जेपी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के दौरान उसे पटना से निकालने की जरूरत महसूस की गयी और सामयिक वार्ता के नाम से किशन पटनायक के संपादन में लोहानीपुर, पटना से प्रकाशित होने लगी. इस पत्रिका को किशन पटनायक और सच्चिदानंद सिन्हा की जोड़ी ने इतनी वैचारिक धार दी कि सामयिक वार्ता समाजवाद और संपूर्ण क्रांति की प्रेरणा और शिक्षण का केंद्र बन गयी थी. आपातकाल के बाद छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का राष्ट्रीय स्तर पर भी गठन हुआ. राजेंद्र नगर, पटना में राष्ट्रीय कार्यालय बना. सामयिक वार्ता का कार्यालय एकदम पास में था. वहां किशन जी रहते भी थे. हम अक्सर वहां जाते रहते थे. जब भी वहां सच्चिदा जी मिलते, हमें लिखने के लिए प्रेरित करते. छात्र युवा संघर्ष वाहिनी को वैचारिक रूप से समृद्ध करने में सच्चिदानंद सिन्हा और किशन पटनायक का उल्लेखनीय योगदान रहा है. समता संगठन से जुड़े युवाओं को तो उन्होंने प्रेरित और संगठित किया ही था.
1974 के दौरान प्रो उदयशंकर ने मुझे सच्चिदानंद जी की किताब, समाजवाद के बढ़ते चरण दी थी. संभवतः यह उनकी पहली पुस्तक थी. आपातकाल के बाद उनकी एक दूसरी पुस्तक आयी थी, जिसमें उन्होंने बताया है कि समाजवादी और साम्यवादी आंदोलन इसलिए ठिठक रहा है कि लकीर का फकीर बना हुआ है, जबकि परिस्थितियां काफी बदल गयी हैं.
देश के अंदर आंतरिक उपनिवेश बनने के संदर्भ में उनकी पुस्तक द इंटरनल कॉलोनी (आंतरिक उपनिवेश) संभवतः इस विषय की पहली पुस्तक है. समाजवाद के अद्यतन स्वरूप के संदर्भ में लिखी उनकी पुस्तक विकास के मॉडल, विज्ञान, प्रकृति, संस्कृति तथा मानव जीवन के अंतर्संबंधों की नयी दृष्टि देती है. एक जमाने में वे दिल्ली में रहकर लिखते-पढ़ते थे, लेकिन दशकों से मनिका गांव के अपने साधारण से घर में रहते हैं, बिल्कुल एक संत की तरह. जब वे बीमार पड़ते हैं तो उनके छोटे भाई प्रो प्रभाकर सिन्हा उन्हें मुजफ्फरपुर बुला लेते हैं.

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