जैन मुनि महाराज का देवलोक गमन
दिल्ली के कृष्णा नगर इलाके के राधापुरी जैन मंदिर में अंतिम सांस लेने वाले महान जैन संत तरुणसागरजी महाराज का जन्म 26 जनवरी, 1967 को मध्यप्रदेश के दमोह जिले के गुहांची गांव में हुआ था. उनका बचपन का नाम पवन कुमार जैन था. 13 वर्ष की आयु में उन्होंने क्षुल्लक की दीक्षा ली.
गृह त्याग के बाद मध्यप्रदेश के अलकतारा में उन्होंने आचार्य प्रवर 108 श्रीपुष्पदंतसागरजी से दिगंबरी दीक्षा ग्रहण की. दीक्षा ग्रहण करने के बाद श्रीपुष्पदंतजी ने उनका नाम मुनि तरुण सागर रखा. 13 वर्ष की उम्र में संन्यास, 20 वर्ष में दिगंबरी दीक्षा और 37 वर्ष में गुरुमंत्र दीक्षा प्राप्त करने की उन्होंने परंपरा की शुरुआत की.
उनके प्रवचन लोगों पर गहरा असर डालते थे. प्रवचन कहने की भिन्न शैली और क्रांतिकारी विचारधाराओं के कारण लोग उन्हें क्रांतिकारी राष्ट्रसंत भी कहते थे. कभी धीमे और कभी तेज आवाज में दिये जाने वाले उनके प्रवचनों का लोगों पर बहुत गहरा असर होता था. जैन मुनि तरुण सागरजी महाराज आस्था के अनंत सागर थे. मन की अतल गहराइयों में छिपी किसी भी समस्या को भांपने में उन्हें पलभर की भी देर नहीं लगती थी.
उनका मानना था कि अभावों से घिरे इलाके शोषण का सबसे बड़ा मुकाम होते हैं. दरिद्रता लोगों को अन्याय से रूबरू कराती है. लोगों के विद्रूपताओं और विसंगतियों से भरे जीवन को मुनि तरुण सागरजी ने बचपन से देखा था. उनके विचारों में निहित क्रांति के भावों की बुनियाद में इन्हीं प्रसंगों की कोई-न-कोई भूमिका रही.
जैन मुनिश्री तरुणसागरजी महाराज के बोल-
जिस घर में बेटी न हो, वहां न लें भिक्षा
जिनकी बेटी न हो, उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए जिस घर में बेटी न हो, वहां शादी करनी ही नहीं चाहिए जिस घर में बेटी न हो, उस घर से साधु-संत भिक्षा न लें
धर्म पति है, राजनीति पत्नी
तरुण सागर महाराज का कहना था कि राजनीति को हम धर्म से ही कंट्रोल कर सकते हैं. धर्म पति है, राजनीति पत्नी. जिस प्रकार हर पति की यह ड्यूटी होती है कि वह अपनी पत्नी को सुरक्षा दे, हर पत्नी का धर्म होता है कि वह पति के अनुशासन को स्वीकार करे. ऐसा ही राजनीति और धर्म के भी साथ भी होना चाहिए, क्योंकि बिना अंकुश के हर कोई खुले हाथी की तरह हो जाता है. उसे दूसरों का ध्यान नहीं रहता.
नेताओं और महिलाओं में होती है समानता
नेताओं व महिलाओं में एक समानता है प्रसव की. महिला के लिए नौ माह व नेताओं के लिए पांच साल का प्रसव काल होता है. गर्भवती महिला आठ माह अपने परिवार का ख्याल रखती है और नौवें महीने परिवार महिला का ख्याल रखता है. नेता ठीक इसके विपरीत होते हैं. जनता चार साल तक नेताओं का ख्याल रखती है और नेता चुनाव आते समय एक साल जनता का ख्याल रखता है.
पुण्य की चादर छोटी और इच्छाओं के पैर बड़े
चादर छोटी है, तो पैर सिकोड़ना सीखो. आज आपके पुण्य की चादर छोटी है, पर इच्छाओं के पैर बड़े हैं. मन को वश में रखने की जरूरत है. घर में कई रूम होते हैं, लेकिन कंट्रोल रूम अवश्य होना चाहिए. अगर आपके घर का सदस्य कोई कंट्रोल के बाहर हो जाये, तो उसे कंट्रोल रूम में भेज दो.
जब भी मौका मिले तो जरूर मुस्कुराइए
हंसने का गुण केवल मानव को ही मिला है. इसलिए जब भी मौका मिले, मुस्कुराइए. कुत्ता चाहकर भी मुस्कुरा नहीं सकता. गुलाब कांटों में भी हंसता है. इसलिए लोग उससे प्रेम करते हैं.
आरएसएस ने बदल दी चमड़े की बेल्ट
‘राष्ट्रीय स्वंय सेवक जिस चमड़े की बेल्ट का इस्तेमाल करते हैं, वह अहिंसा के विपरीत है.’ जैन मुनि तरुण सागर के इस बयान के बाद आरएसएस ने अपनी ड्रेस से चमड़े की बेल्ट हटा ली और उसकी जगह कैनवास की बनी बेल्ट इस्तेमाल करने लगे.
जलेबी खाते-खाते बन गये जैन मुनि
जैन मुनि तरुण सागर छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान जलेबी खाते-खाते संन्यासी बन गये थे. इस चर्चित वाकये पर तरुण सागर ने बताया था, ‘मैं एक दिन स्कूल से घर जा रहा था. बचपन में मुझे जलेबियां बहुत पसंद थीं. स्कूल से वापस लौटते वक्त पास में ही एक होटल पड़ता था, जहां बैठकर मैं जलेबी खा रहा था. पास में आचार्य पुष्पधनसागरजी महाराज का प्रवचन चल रहा था. वह कह रहे थे कि तुम भी भगवान बन सकते हो, यह बात मेरे कानों में पड़ी और मैंने संत परंपरा अपना ली.’
मन-जीवन में खोट नहीं इसलिए तन पर लंगोट नहीं
आम लोग कपड़े पहनते हैं, लेकिन दिगंबर मुनि चारों दिशाओं को कपड़ा मानते हैं. उनकी मान्यता है कि दुनिया में नग्नता से बेहतर कोई पोशाक नहीं है. वस्त्र तो विकारों को ढंकने के लिए होते है. जो विकारों से परे हैं, ऐसे शिशु और मुनि को वस्त्रों की क्या जरूरत है?
‘कड़वे प्रवचन’ के लिए प्रसिद्ध जैनमुनि श्री तरुण सागर जी महाराज के निधन के बारे में सुनकर दुखी हूं. उन्होंने समाज में शांति और अहिंसा का संदेश फैलाया. हमारे देश ने एक सम्मानीय धार्मिक नेता को खो दिया. उनके अनगिनत शिष्यों के प्रति मेरी संवेदनाएं.
-रामनाथ कोविंद, राष्ट्रपति
जैन मुनि श्रद्धेय तरुण सागर जी महाराज के असामयिक महासमाधि लेने के समाचार से मैं स्तब्ध हूं. वे प्रेरणा के स्रोत, दया के सागर एवं करुणा के आगार थे. भारतीय संत समाज के लिए उनका निर्वाण एक शून्य का निर्माण कर गया है. मैं मुनि महाराज के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
– राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री
कीर्तिमान
आचार्य कुन्दकुन्द के पश्चात पिछले दो हजार वर्षों के इतिहास में महज 13 वर्ष की उम्र में दिगंबर जैन मुनि का संन्यास धारण करनेवाले प्रथम योगी
राष्ट्र के प्रथम मुनि जिन्होंने लाल किले से राष्ट्र को किया संबोधित
भारतीय सेना को संबोधित करने वाले देश के पहले संत
मुनिश्री तरुण सागर जी के खास मंत्र
1. रोज सूरज को उगता हुआ देखें.
2. दिन में कम-से-कम तीन लोगों की प्रशंसा करें.
3. खुद की भूल स्वीकारने में कभी भी संकोच न करें.
4. किसी के सपनों पर मत हंसो.
5. अपने पीछे खड़े व्यक्ति को भी कभी आगे जाने का मौका दो.
6. कर्ज और शत्रु को कभी भी बड़ा मत होने दो.
7. कुछ पाने के लिए कुछ खोना नहीं, बल्कि कुछ करना पड़ता है.
8. सफलता उनको ही मिलती है, जो कुछ करते हैं.
9. स्वयं पर पूरा भरोसा रखो. हमेशा सकारात्मक सोच रखो.
10. प्रार्थना करना कभी मत भूलो, प्रार्थना में अपार शक्ति होती है.