सर्वमंगल की कामना पूरी करते हैं विघ्नहर्ता गणेश
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्।।विनायक वरद चतुर्थी भगवान श्रीगणेश के जन्म का महोत्सव है. हिंदू धर्म में गणेशजी को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदायक माना गया है. वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को ‘संकष्टी गणेश चतुर्थी’ व शुक्लपक्ष की चतुर्थी को ‘वैनायकी […]
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्।।विनायक वरद चतुर्थी भगवान श्रीगणेश के जन्म का महोत्सव है. हिंदू धर्म में गणेशजी को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदायक माना गया है. वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को ‘संकष्टी गणेश चतुर्थी’ व शुक्लपक्ष की चतुर्थी को ‘वैनायकी गणेश चतुर्थी’ मनायी जाती है,
लेकिन वार्षिक गणेश चतुर्थी को गणेश जी के प्रकट होने के कारण उनके भक्त इस तिथि के आने पर उनकी विशेष पूजा करके पुण्य अर्जित करते हैं.
इस वर्ष 13 सितंबर, गुरुवार को यह महापर्व मनाया जायेगा. इस दिन स्वाति नक्षत्र, ब्रह्म योग रहेगा, जो बेहद शुभ योग बन रहा है.
श्री गणेश जीवन की विघ्न-बाधाएं दूर कर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. गणेशजी को सभी देवों में सबसे अधिक महत्व दिया गया है. आज के युग में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मानव जाति को गणेशजी के मार्गदर्शन की सर्वाधिक आवश्यकता है. आज हर व्यक्ति का सपना है कि उसे रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ निरंतर प्राप्त होता रहे.
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को सभी देवताओं में सबसे पहले पूजे जानेवाले देवता भगवान गणेश का जन्म मध्यकाल में हुआ था. वे विघ्नहर्ता और विघ्नकर्ता दोनों हैं. इन्हें बुद्धि का देवता भी माना गया है. भगवान गणेश की उपासना से जहां कार्यों में सफलता मिलती है, वहीं तमाम अवरोध हटते हैं और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के मुताबिक श्रीगणेश की दो पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि तथा पुत्र लाभ व क्षेम हैं, जिनको लोक परंपराओं में शुभ-लाभ भी कहते हैं. जहां ऋद्धि-सिद्धि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनाती हैं, वहीं शुभ-लाभ सुख-सौभाग्य देने के साथ स्थायी और सुरक्षित रखते हैं.
शास्त्रों के अनुसार सुख-सौभाग्य की चाहत पूरी करने के लिए बुधवार व चतुर्थी को गणेश पूजन में श्रीगणेश के साथ ऋद्धि-सिद्धि व लाभ-क्षेम का विशेष मंत्रों से स्मरण अति फलदायी माना गया है. कहा गया है- भक्ति गणपति, शक्ति गणपति, सिद्धि गणपति, लक्ष्मी गणपति, महा गणपति… अत: सच्चे मन से उनकी पूजा से आपको सबकुछ की प्राप्ति होती है.
इस दिन वर्जित है चंद्र दर्शन
शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन चंद्र दर्शन से मिथ्या आरोप लगता है. भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि चोरी का झूठा कलंक लगा था. नारद जी यह दुर्दशा देख बताये कि उन्होंने भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गलती से चंद्र दर्शन किया था, इसलिए वे तिरस्कृत हुए, क्योंकि चंद्रमा को गणेशजी ने श्राप दिया था. नारद की सलाह पर श्रीकृष्ण ने चतुर्थी व्रत किया और दोष मुक्त हुए. इसलिए चतुर्थी पूजा व व्रत से झूठे आरोपों से मुक्ति होती है. अगर भूल से चंद्र दर्शन हो जाये, तो निवारण के लिए इस मंत्र का जाप 108 बार करें- सिंहः प्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
इस विशेष मंत्र से पूरी होंगी आपकी मनोकामनाएं
गणेश चतुर्थी उत्सव 13 सितंबर से 23 सितंबर तक चलेगा. इस बार काफी शुभ संयोग है. इस दिन प्रात: स्नान कर उपवास पर रहें और दोपहर में मंदिर या घर में गणेश जी की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर विधि-विधान से पूजा करें. सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है. लड्डू का भोग लगाते हुए उन्हें 11 या 21 दूर्वा भी चढ़ाएं. इससे भगवन प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. दूर्वा चढ़ाते हुए इस मंत्र का जाप 108 बार करें –
श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।
गणेश चतुर्थी मुहूर्त
13 सितंबर मध्याह्न गणेश पूजा का
समय 11:03 से 13:30. अवधि : 2 घंटे 27 मिनट.
12 सितंबर चंद्रमा दर्शन नहीं करने
का समय 16:07 से 20:33. अवधि : 4 घंटे 26 मिनट.
13 सितंबर चंद्रमा दर्शन नहीं करने
का समय 9:31 से 21:12. अवधि : 11 घंटे 40 मिनट
चतुर्थी तिथि प्रारंभ 12 सितंबर, 2018 को 18:36 बजे.
चतुर्थी तिथि समाप्त 13 सितंबर, 2018 को 17:41 बजे.
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श्री गणेश जीवन की विघ्न-बाधाएं दूर कर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इसलिए उन्हें सभी देवों में सबसे अधिक महत्व दिया गया है. भगवान गणेश की उपासना से जहां कार्यों में सफलता मिलती है, वहीं तमाम अवरोध हटते हैं और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. इसलिए कहा गया है- भक्ति गणपति, शक्ति गणपति, सिद्धि गणपति, लक्ष्मी गणपति, महागणपति…
श्रीपति त्रिपाठी
ज्योतिषाचार्य