बाजार पर सियासत का असर कच्चे तेल की बढ़ती कीमत
-प्रसेनजित बोस- (अर्थशास्त्री) अंतरराष्ट्रीय बाजार और राजनीति के दांव-पेंच के कारण कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से देश में भी पेट्रोल और डीजल महंगे होते जा रहे हैं. रुपये की गिरती कीमत तथा सरकारी शुल्क ने भी उपभोक्ताओं का बोझ बढ़ाया है. तेल उत्पादन और निर्यात से संबंधित वैश्विक हलचलों के विश्लेषण तथा देश में […]
-प्रसेनजित बोस-
(अर्थशास्त्री)
अंतरराष्ट्रीय बाजार और राजनीति के दांव-पेंच के कारण कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से देश में भी पेट्रोल और डीजल महंगे होते जा रहे हैं. रुपये की गिरती कीमत तथा सरकारी शुल्क ने भी उपभोक्ताओं का बोझ बढ़ाया है. तेल उत्पादन और निर्यात से संबंधित वैश्विक हलचलों के विश्लेषण तथा देश में मूल्यों पर अंकुश लगाने के उपायों की विवेचना के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
कम की जा सकती हैं तेल की कीमतें
पेट्रोल एवं डीजल की कीमतें अभूतपूर्व स्तरों का स्पर्श कर रही हैं, जिसका नतीजा व्यापक जन असंतोष और विपक्ष द्वारा विरोध के रूप में सामने आया है. सितंबर महीने के अंतर्गत दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 80 रुपये प्रति लीटर, जबकि डीजल की रुपये 72 प्रति लीटर को पार कर चुकी है. देश के अन्य शहरों में राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये वैट के चलते इनकी कीमतें और भी ऊंचे स्तरों पर जा चढ़ी हैं.
कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक वृद्धि तथा रुपये के अवमूल्यन की दलीलें देते हुए मोदी सरकार के प्रवक्ता इस स्थिति के प्रति निरुपायता दर्शा रहे हैं, जो टिकनेवाली नहीं है. जैसा नीचे दिये गये टेबल से स्पष्ट है, दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देशों में ही पेट्रोल तथा डीजल की कीमतें भारत की अपेक्षा कहीं कम हैं.
भारत में पेट्रोल तथा डीजल की खुदरा कीमतें आखिर क्यों इतनी ऊंची हैं? इसकी वजह सिर्फ यही है कि उन पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क तथा राज्यों द्वारा लगाये जानेवाले वैट (मूल्य वर्धित कर) की दरें ऊंची हैं. केंद्रीय सरकार पेट्रोल के प्रति लीटर के लिए 19.48 रुपये, जबकि डीजल के लिए प्रति लीटर 15.33 रुपये का उत्पाद शुल्क वसूलती है. राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये वैट इसके अलावा होते हैं. पेट्रोल के मामले में अप्रत्यक्ष कर (केंद्रीय उत्पाद शुल्क तथा वैट एक साथ लेने पर) दरों का हिस्सा 100 प्रतिशत से, जबकि डीजल के लिए 70 प्रतिशत से भी ऊपर पहुंच गया है. कच्चे तेल की कीमतों के वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर भी इन करों के बगैर, पेट्रोल एवं डीजल की खुदरा कीमतें 40 रुपये के आसपास होतीं.
टेबल 2 यूपीए-II तथा मोदी सरकार के अधीन पेट्रो उत्पादों पर उत्पाद संग्रहण, कॉरपोरेट कर एवं आयकर जैसे प्रमुख कर मदों के अनुसार कुल कर राजस्व का वार्षिक अनुमान बताता है.
टेबल 3 में यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि पेट्रो उत्पादों से उत्पाद संग्रहण पर केंद्रीय सरकार की निर्भरता मोदी सरकार के अंतर्गत विशेष रूप से बढ़ी है. वर्ष 2009-10 से लेकर 2013-14 तक के पांच वर्षों में कुल कर राजस्व (जीटीआर) के अंतर्गत पेट्रो उत्पादों से उत्पाद संग्रहण का हिस्सा औसतन 8.8 प्रतिशत रहा. मगर वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के दौरान यह औसत 12.5 प्रतिशत तक बढ़ गया. इसी दौरान, कुल कर राजस्व में कॉरपोरेट कर संग्रहण का हिस्सा यूपीए-II सरकार के अंतर्गत
औसतन 36.5 प्रतिशत की अपेक्षा मोदी सरकार के अंतर्गत घटकर 30.7 प्रतिशत पर पहुंच गया. जहां तक आयकर संग्रहण की बात है, कुल कर राजस्व संग्रहण में इसका हिस्सा यूपीए-II सरकार के अंतर्गत 19 प्रतिशत से बढ़कर मोदी सरकार के चार वर्षों के दौरान बढ़कर 21 प्रतिशत हो गया.
ये आंकड़े मोदी सरकार की राजस्व उगाही रणनीति के अंतर्गत वर्ग पूर्वाग्रह का खुलासा करते हैं. जहां बड़े कारपोरेशनों के कर हिस्से में खासी कमी हुई है, ईंधन उपभोक्ताओं तथा आयकर दाताओं के कर हिस्से ऊपर चढ़े हैं. इस तरह, गरीब तथा मध्य वर्ग की कीमत पर कॉरपोरेट वर्ग लाभान्वित हुआ है. कर उगाही की यह सामाजिक रूप से असमान तथा अनुचित रणनीति को अविलंब छोड़े जाने की जरूरत है.
किरासन तथा एलपीजी की ही तरह पेट्रोल तथा डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए. यदि पेट्रोल तथा डीजल पर जीएसटी की 28 प्रतिशत वाली अधिकतम दर लागू की जाये, फिर भी, इनकी कीमतें रुपये 55 प्रति लीटर से अधिक नहीं पड़ेंगी. इसके नतीजे में होनेवाली राजस्व हानि की भरपाई कॉरपोरेट करों की अधिक उगाही तथा कॉरपोरेट कर छूटों से छुट्टी पाकर की जा सकती है. कॉरपोरेट कर प्रोत्साहन की वजह से पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान छोड़ दिया गया कुल राजस्व रुपये 85 हजार करोड़ प्रतिवर्ष बैठता है. राजस्व उगाही की रणनीति से यह कॉरपोरेट हितैषी झुकाव सही किये जाने की जरूरत है.(अनुवाद: विजय नंदन)
टेबल-1 एक सितंबर, 2018 को भारत तथा पड़ोसी देशों में पेट्रोल तथा डीजल की प्रति लीटर खुदरा विक्रय कीमतें (रुपये में)
देश पेट्रोल डीजल
भारत (दिल्ली) 78.68 70.42
पाकिस्तान 53.55 61.47
बांग्लादेश 73.48 55.54
श्री लंका 63.96 52.05
नेपाल (काठमांडो) 69.94 59.86
(स्रोत : पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय)
टेबल-2 केंद्र सरकार के कर राजस्व
कुल कर पेट्रो-उत्पादों पर कॉरपोरेट आयकर
राजस्व उत्पाद शुल्क कर
2009-10 624528 64012 244725 122475
2010-11 793072 76546 298688 139069
2011-12 889177 74829 322816 164485
2012-13 1036235 84188 356326 196512
2013-14 1138733 88065 394678 237817
2014-15 1244886 106653 428925 258326
2015-16 1455648 198793 453228 287628
2016-17 1715822 276551 484924 349436
2017-18 1946119 229019* 563745 439255
सभी आंकड़े रुपये में
(स्रोत : बजट प्राप्तियांु, 2018-19; कैग रिपोर्ट सं. 42/2017, राजस्व विभाग (अप्रत्यक्ष कर–केंद्रीय उत्पाद) एवं कैग रिपोर्ट सं. 17/2013, राजस्व विभाग (अप्रत्यक्ष करों पर अनुपालन अंकेक्षण-केंद्रीय उत्पाद एवं सेवाएं)
नोट: वर्ष 2017-2018 के लिए पेट्रो उत्पादों पर उत्पाद शुल्क के आंकड़े औपबंधिक हैं और उन्हें पीपीएसी रेडी रेकनर, जून 2018, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय, से लिया गया है.
टेबल-3.
केंद्र सरकार के कुल कर राजस्व (जीटीआर)
में मुख्य करों का हिस्सा
पेट्रो उत्पादों पर कॉरपोरेट कर आयकर उत्पाद शुल्क जीटीआर जीटीआर
2009-10 10.2 39.2 19.6
2010-11 9.7 37.7 17.5
2011-12 8.4 36.3 18.5
2012-13 8.1 34.4 19.0
2013-14 7.7 34.7 20.9
2014-15 8.6 34.5 20.8
2015-16 13.7 31.1 19.8
2016-17 16.1 28.3 20.4
2017-18 11.8 29.0 22.6
सभी आंकड़े प्रतिशत में
(स्रोत : टेबल 2 के ही)
ये आंकड़े मोदी सरकार की राजस्व उगाही रणनीति के अंतर्गत वर्ग पूर्वाग्रह का खुलासा करते हैं. जहां बड़े कारपोरेशनों के कर हिस्से में खासी कमी हुई है, ईंधन उपभोक्ताओं तथा आयकर दाताओं के कर हिस्से ऊपर चढ़े हैं. इस तरह, गरीब तथा मध्य वर्ग की कीमत पर कॉरपोरेट वर्ग लाभान्वित हुआ है. कर उगाही की यह सामाजिक रूप से असमान तथा अनुचित रणनीति को अविलंब छोड़े जाने की जरूरत है.