संजय सागर
हिंदी हमारी मातृभाषा है. हिंदी में ही हम बात करते हैं. हिंदी में ही पड़ते हैं हिंदी में ही लिखते हैं हिंदी में ही हम सब एक साथ रहते हैं. क्योंकि हम हिंदुस्तानी हिंदी में जन्म लिए हैं. और हिंदी के गोद में पल -बढ़ रहे हैं। इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को जनमानस का भाषा कहा.
हिंदी भाषा हमारी एकता व भाईचारगी का मिसाल है. हिंदी में ही देश को एक सूत्र में बांधे रखने की क्षमता है. हिंदी देश की एकता का मंत्र है. गुजरात में जन्मे आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद ने अपनी रचना प्रकाश को हिंदी में लिखा और इस बात का उद्घोष किया कि आजादी की लड़ाई में भी हिंदी की भूमिका जबरदस्त रही है. आजादी के समय से ही हिंदी की शक्ति को समझा गया. आजादी के समय महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर, बाल गंगाधर तिलक, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और लाला लाजपत राय जैसे महापुरुषों एवं साहित्यकारों में काका कालेलकर मैथिलीशरण गुप्त हजारी प्रसाद द्विवेदी सेठ गोविंददास जैसे आधी लेखक व कवियों ने भी हिंदी के महत्व को बनाया है वर्तमान युग की लेखकों और कवियों ने भी हिंदी को विशिष्ट पहचान दिया है. एक समय था हजारी प्रसाद द्विवेदी महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने मुख्य भाषा हिंदी न होने के बावजूद देश में जन जागरण लाने के लिए हिंदी का ही प्रयोग उचित समझा. 21वीं सदी में हिंदी ने एक नई ऊंचाई को छुआ और नए-नए आयाम गढ़े.
हिंदी का रोजगारपरक होना इसकी सबसे बड़ी खूबी
21वीं सदी में हिंदी का महत्व बढ़ गया क्योंकि अब हिंदी को हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. रोजगारपरक होना इसकी सबसे बड़ी खूबी है. भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के दौर में बाजार के लिए हिंदी अनिवार्य और एक जरूरत बन गयी है. हिंदी ने लाखों-करोड़ों भारतीयों को रोजगार मुहैया कराया है. हिंदी की प्रासंगिकता और उपयोगिता ने हिंदी में अनुवाद कार्य का मार्ग प्रशस्त किया है, जिसके चलते हिंदी बाजार और रोजगार से जुड़ी है.
हिंदी के कायल हुए बिल गेट्स
हिंदी की देवनागरी लिपि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लिपि मानी जाती है. माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स भी हिंदी के कायल रह चुके हैं. गेट्स ने एक बार अपने बयान में कहा था कि जब बोलकर लिखने की तकनीक उन्नत हो जाएगी, तब हिन्दी अपनी लिपि की श्रेष्ठता के कारण सर्वाधिक सफल होगी. यह बात आज चरितार्थ होते देखी जा सकती है.
मंडारिन और अंग्रेजी पर भारी पड़ती हिंदी
विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से हिंदी एक है. हिंदी केवल अंग्रेजी से ही नहीं चीन की मंडारिन से भी आगे है. चीन की मंडारिन भाषा समूचे चीन में नहीं बोली जाती, जो भाषा बीजिंग में बोली जाती है, वह शंघाई में बोली जाने वाली भाषा से अलग है. चीन में स्थान विशेष की भाषा अलग-अलग है. संख्या के लिहाज से देखा जाए तो दुनियाभर में जितने लोग अंग्रेजी बोलते हैं, उससे कहीं ज्यादा करीब 70 करोड़ लोग अकेले भारत में हिंदी बोलते हैं. पूरा पाकिस्तान हिंदी बोलता है। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी हजारों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं. यही नहीं, फिजी, गुयाना, सुरिनाम, त्रिनिदाद जैसे देश तो हिंदी भाषियों के ही बसाए हुए हैं। एक तरह से देखें तो हिंदी समाज की जनसंख्या लगभग एक अरब का आंकड़ा छूती है.
संयुक्त राष्ट्र में भाषा के तौर पर शामिल नहीं हो पाई हिंदी
दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हिंदी अभी संयुक्त राष्ट्र में भाषा के तौर पर शामिल नहीं हो सकी है. हिंदी के पास भाषिक क्षमता इतनी ज्यादा है कि वह आसानी से विश्वभाषा बन सकती है. दुनिया के कुछ ताकतवर देशों ने अंग्रेजी के प्रचार की कमान संभाल रखी है. ये देश लगातार अंग्रेजी को विश्व की श्रेष्ठतम भाषा स्थापित करने में जुटे हैं.
हिंदी की विकास यात्रा
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही हिंदी को लेकर चिंता और चिंतन शुरू हो गया था. 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गुजरात के भरुच में सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता प्रदान की थी. इसके बाद 14 सितंबर, 1949 को देश की संविधान सभा ने सर्वसम्मति से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने का फैसला लिया था. आजादी के बाद यानी 1950 में संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत हिन्दी को देवनागरी लिपि में राजभाषा का दर्जा दिया गया. 14 सितंबर 1953 को पहली बार हिंदी दिवस मनाया गया. तब से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग का गठन किया गया. राष्ट्रपति के आदेश द्वारा 1960 में आयोग की स्थापना के बाद 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित हुआ, तत्पश्चात 1968 में राजभाषा संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया.