ओजोन संरक्षण दिवस पर विशेष : पर्यावरण अपकर्षण से हुआ है ओजोन परत में छिद्र

ओजोन में छिद्र होने से बढ़ेगा पृथ्वी का संकट संजय सागर ओजोन गैस हमारा जीवन है. हमारा रक्षक है. ओजोन से ही पृथ्वी टिकी हुई है. लेकिन अफसोस है, कि ओजोन परत में ओजोन गैस के मात्रा कम हो रही है. इसका मुख्य कारण प्रकृति और पर्यावरण को दोहन करने वाले स्वार्थी मानव ही हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 16, 2018 8:58 AM
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ओजोन में छिद्र होने से बढ़ेगा पृथ्वी का संकट

संजय सागर

ओजोन गैस हमारा जीवन है. हमारा रक्षक है. ओजोन से ही पृथ्वी टिकी हुई है. लेकिन अफसोस है, कि ओजोन परत में ओजोन गैस के मात्रा कम हो रही है. इसका मुख्य कारण प्रकृति और पर्यावरण को दोहन करने वाले स्वार्थी मानव ही हैं. पर्यावरण को प्रदूषित होने या जंगलों को, पेड़ पौधों को काटने में मानव के साथ-साथ उद्योगपति वर्ग सबसे बड़ा जिम्मेवार है. और उद्योगपतियों का संरक्षक कहीं ना कहीं हमारे सरकारी तंत्र भी है.

पर्यावरण क्रश होने के कारण ही आज ओजोन परत में ओजोन गैस की मात्रा घट रही है, इससे पृथ्वी पर बड़े संकट के बादल मंडरा रहे हैं इससे बचने के लिए विश्व ओजोन दिवस या ओजोन परत संरक्षण दिवस 16 सितंबर को पूरी दुनिया में मनायी जाती है. मनुष्य को धरती पर अपने अस्तित्व के लिए प्रकृति के साथ काफी संघर्ष करना पड़ा है. हजारों साल बाद वह प्रकृति से सामंजस्य बनाकर अपने जीवन की रक्षा करता रहा है.

विकास की इस प्रक्रिया में धरती पर जीवन की उत्पत्ति के बाद इस रूप में आने के लिए लंबा समय तय करना पड़ा है. लेकिन जो चीज इंसान को कड़ी मेहनत और प्रकृति से फलस्वरूप मिली है उसे आज खुद इंसान ही मिटाने पर लगा हुआ है. लगातार प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप कर इंसान ने खुद को प्रकृति के सामने ला खड़ा किया है.

मनुष्य अपनी असीमित वासना की पूर्ति के लिए प्रकृति का दोहन करके पूरे तंत्र को असंतुलित बना दिया है. जंगलों, वनों की कटाई, पहाड़ों के चट्टानों को डायनामाइट लगाकर उड़ाना आम बात है. प्रकृति के लगातार दोहन ने मनुष्य और प्रकृति, वायुमंडल के बीच एक असंतुलन पैदा कर दिया है. गाड़ियों ने हवा को प्रदूषित कर दिया है तो वहीं उस जल को भी इंसान ने नहीं बख्शा जिसकी वजह से धरती पर जीवन संचालित होता है.

प्रौद्योगिकी के इस युग में इंसान हर उस चीज का हरण कर रहा है जो उसकी प्रगति की राह में रोड़ा बन रही है. ओजोन परत के इसी महत्त्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के लिये कार्य किये जा रहे हैं. 23 जनवरी 1995 को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिये 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. उस समय यह लक्ष्य रखा गया कि 2010 तक हम पूरे विश्व ओजोन फ्रेंडली वातावरण के रूप में परिवर्तित कर देंगे. लेकिन लक्ष्य के छह वर्ष बीत जाने के बाद भी हम उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकें हैं. फिर भी विश्व स्तर पर ओजोन के संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम किया गया है. आज पूरा विश्व ओजोन के संरक्षण के लिये संवेदनशील है.

क्‍या है ओजोन परत

पूरे विश्व में इतने हो-हल्ला के बाद भी आज आम आदमी यह नहीं जानता की ओजोन क्या है. दरअसल, ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है. जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनती है. यह गैस वातावरण में बहुत कम मात्रा में पायी जाती है. ओजोन परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पायी जाती है.

वायुमंडल के समताप मंडल क्षेत्र में ओजोन गैस का एक झीना सा आवरण है. वायुमंडल के आयतन के संदर्भ में ओजोन परत की सांद्रता लगभग 10 पीपीएम है. यह ओजोन परत पर्यावरण का रक्षक है. ऊपरी वायुमण्डल में इसकी उपस्थिति परमावश्यक है. इसकी सघनता 10 लाख में 10 वां हिस्सा है.

यह गैस प्राकृतिक रूप से बनती है. जब सूर्य की किरणें वायुमंडल से ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन से टकराती हैं तो उच्च ऊर्जा विकिरण से इसका कुछ हिस्सा ओजोन में परिवर्तित हो जाता है. साथ ही विद्युत विकास क्रिया, बादल, आकाशीय विद्युत एवं मोटरों के विद्युत स्पार्क से भी ऑक्सीजन ओजोन में बदल जाती है. यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से मनुष्य और जीव-जंतुओं की रक्षा करने का काम करती है.

यदि सूर्य से आने वाली सभी पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंच जाएं तो पृथ्वी पर सभी प्राणी कैंसर से पीड़ित हो जायेंगे और पृथ्वी के सभी पेड़ पौधे नष्ट हो जायेंगे. लेकिन सूर्य विकिरण के साथ आने वाली पराबैगनी किरणों का लगभग 99 फीसदी भाग ओजोन मंडल द्वारा सोख लिया जाता है. जिससे पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी वनस्पति तीव्र ताप व विकिरण से सुरक्षित बचे हुए हैं. इसीलिए ओजोन मंडल या ओजोन परत को सुरक्षा कवच कहते हैं.

ओजोन की परत को नुकसान पहुंचाने में मनुष्य की सुविधाभोगी चीजें मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. ओजोन को नुकसान पहुंचाने में मुख्य रूप से रेफ्रिजरेटर व वातानुकूलित उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली गैस, क्लोरोफ्लोरो कार्बन और हैलोन हैं. यह गैसें ऐरोसोल में तथा फोम की वस्तुओं को फुलाने और आधुनिक अग्निशमन उपकरणों में प्रयोग की जाती हैं. यही नहीं, सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड भी ओजोन की मात्रा को कम करने में मदद करती है.

मनुष्य यदि समय रहते नहीं चेता तो ओजोन परत में क्षरण की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. यह मानव जीवन को तबाह करके रख देगा. ओजोन के कारण मनुष्य और जीव-जंतुओं में त्वचा-कैंसर की दर बढ़ने के साथ-ही-साथ त्वचा में रुखापन, झुर्रियों से भरा चेहरा और असमय बूढ़ा भी कर सकता है. यह मनुष्य तथा जंतुओं में नेत्र-विकार विशेषकर मोतियाबिंद को बढ़ा सकती है.

यह मनुष्य तथा जंतुओं की रोगों की लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर सकता है. सिर्फ मानव जीवन ही नहीं यह हमारे पेड़-पौधों के साथ ही वनस्पतियों पर भी व्यापक असर डालेगा. सूर्य के पराबैंगनी विकिरण वृद्धि से पत्तियों का आकार छोटा हो सकता है. बीजों के अंकुरण का समय बढ़ा सकती हैं. यह मक्का, चावल, सोयाबीन, मटर गेहूं, जैसी फसलों से प्राप्त अनाज की मात्रा कम कर सकती है.

फिलहाल, पूरे विश्व में ओजोन परत के संरक्षण को लेकर जागरुकता बढ़ रही है. रसायनों एवं खतरनाक गैसों के उत्सर्जन को कम करने की कोशिश जारी है. यदि विश्व समुदाय इस खतरे पर वैज्ञानिक ढंग से निपटने का तरीका नहीं अपनाता है तो आने वाले दिन हमारे लिए खतरनाक साबित होंगे. फिर भी वैज्ञानिकों को अनुमान है कि यदि हम ओजोन पर संरक्षण की प्रतिबद्धता पर इसी तरह काम करते रहें तो 2050 तक हम इस समस्या को हल कर सकते हैं.

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