एक बार फिर आ सकती है मंदी

अमेरिकी बैंक लेहमन ब्रदर्स के कर्ज में डूब जाने और उसके बाद वैश्विक मंदी आने के 10 साल पूरे हो चुके हैं. हालांकि, अब मंदी से पूरी दुनिया उबर चुकी है और अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर विस्तार पा रही है. यह विस्तार अगले वर्ष भी जारी रहने की उम्मीद है. लेकिन, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 20, 2018 6:39 AM
अमेरिकी बैंक लेहमन ब्रदर्स के कर्ज में डूब जाने और उसके बाद वैश्विक मंदी आने के 10 साल पूरे हो चुके हैं. हालांकि, अब मंदी से पूरी दुनिया उबर चुकी है और अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर विस्तार पा रही है. यह विस्तार अगले वर्ष भी जारी रहने की उम्मीद है. लेकिन, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की मानें, तो साल 2020 तक आर्थिक संकट गहराने के आसार हैं, जिससे संपूर्ण विश्व मंदी की चपेट में आ सकता है. आखिर वे कौन से कारण हैं, जो मंदी की वजह बन सकते हैं?
वैसी वित्तीय नीतियां जो अमेरिकी वार्षिक वृद्धि दर की दो प्रतिशत की क्षमता को इस समय तीव्र करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, वे अस्थिर हैं. साल 2020 तक यह वित्तीय प्रोत्साहन खत्म हो जायेगा, नतीजा वृद्धि दर में मामूली गिरावट दर्ज होगी और यह तीन प्रतिशत से गिरकर दो प्रतिशत से थोड़ा नीचे आ जायेगा.
अमेरिका को मिलनेवाले वित्तीय प्रोत्साहन का समय गलत था, इस वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था जरूरत से ज्यादा तेज गति से आगे बढ़ रही है. इस प्रकार फेडरल द्वारा वर्ष 2020 तक फेडरल फंड की वर्तमान दो प्रतिशत की दर में वृद्धि कर उसे कम से कम 3.5 प्रतिशत की दर पर लाया जायेगा. इस वृद्धि के पश्चात संभवतया लघु और दीर्घ अवधि के ब्याज दरों के साथ ही यूएस डॉलर में भी वृद्धि दर्ज हो सकती है.अमेरिकी व्यापार युद्ध (ट्रेड वार) के अभी और बढ़ने के आसार हैं, जिससे निश्चित रूप से वृद्धि धीमी होगी और मुद्रास्फीति बढ़ेगी.
अमेरिकी नीतियों की वजह से मुद्रास्फीति व बेरोजगारी का दबाव बढ़ेगा, जिससे फेडरल द्वारा ब्याज दरों में उच्च वृद्धि की जायेगी. प्रशासन द्वारा अंदरूनी/ बाहरी निवेश व तकनीकी हस्तानांतरण पर प्रतिबंध लगाये जाने के कारण सप्लाई चेन ध्वस्त हो जायेगा.
बाकी दुनिया में वृद्धि की संभावना धीमी होने की आशंका है, क्योंकि अमेरिकी संरक्षणवाद के खिलाफ बाकी के देश प्रतिशोध लेना चाहेंगे.अत्यधिक क्षमता और अत्यधिक लाभ से निपटने के लिए अगर चीन अपनी वृद्धि धीमी नहीं करता है, तो हालात बुरे हो सकते हैं. उभरते बाजारों की हालत पहले से खस्ता है, ऐसे में अमेरिका की संरक्षणवादी नीति व कड़ी मौद्रिक स्थितियां उभरते बाजारों को और परेशान करेंगी.
मौद्रिक नीति के कड़े होने और व्यापार युद्ध के कारण यूरोप की आर्थिक वृद्धि भी धीमी हो जायेगी. इसके अलावा इटली जैसे देशों की लोक-लुभावन नीतियां भी यूरोजोन के भीतर अस्थिर ऋण गतिशीलता पैदा करेंगी.
इतना ही नहीं, सरकारों और सार्वजनिक ऋण वाले बैंकों के बीच के अनसुलझे ‘डूम लूप’ अधूरे मौद्रिक संघ की वर्तमान समस्या को बढ़ायेंगे. ऐसी परिस्थिति में एक और वैश्विक मंदी इटली और दूसरे देशों को यूरोजाेन से बाहर आने के लिए उकसा सकती है.
अमेरिकी और वैश्विक बाजार अस्थिर हैं. अमेरिका की प्राइस-टू-अर्निंग अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक है व निजी इक्विटी वैल्यूएशन भी अत्यधिक हो चुका है. इसके अलावा, कई उभरते बाजार और कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में लाभ की मात्रा स्पष्ट तौर पर अत्यधिक है. ऐसे में निवेशक यह मानकर चल रहे हैं कि यह आर्थिक तेजी 2020 से धीमी होनी शुरू हो जायेगी.
एक बार सुधार होने के बाद संपत्तियों का न बिकना (इलिक्विडिटी) और संपत्तियों के कम दाम पर बिकने का संकट ज्यादा गहरा हो जायेगा. शेयरों की खरीदी-बिक्री अत्यधिक तेज होने से कमोडिटीज या सिक्योरिटीज की कीमतों में तेजी से गिरावट दर्ज हो सकती है.

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