सुप्रीम कोर्ट ने दी केंद्र सरकार को राहत आधार को हरी झंडी

इस हफ्ते अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार को खुलकर सांस लेने का मौका दे दिया है. जजों के बीच बहुमत के आधार पर लिये गये इस फैसले में आधार को संवैधानिक ठहराया गया है और बैंक अकाउंट या सिम कार्ड को आधार से लिंक करने की अनिवार्यता हटाने जैसे कुछ छोटे बदलावों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2018 8:34 AM
इस हफ्ते अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार को खुलकर सांस लेने का मौका दे दिया है. जजों के बीच बहुमत के आधार पर लिये गये इस फैसले में आधार को संवैधानिक ठहराया गया है और बैंक अकाउंट या सिम कार्ड को आधार से लिंक करने की अनिवार्यता हटाने जैसे कुछ छोटे बदलावों के अतिरिक्त, आधार के समावेशी चरित्र होने के सरकार के दावों को सही मान लिया गया है.
हालांकि, संविधान पीठ के ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने भिन्न राय रखते हुए, इसे असंवैधानिक बताया है और आधार को बतौर मनी बिल पारित करने को धोखा कहा है. फैसला आने के बाद से ही, आधार को लेकर देशभर से मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. भारतीय परिदृश्य में आधार कार्ड के समावेशी होने से लेकर असंवैधानिक होने के दावों की पड़ताल आज के इन दिनों में….
डॉ गोपाल कृष्ण
संयोजक, सिटीजंस फोरम फॉर
सिविल लिबर्टीज
मेटा डेटा का एक अर्थ है- आकड़ों के बारे में आंकड़ा और दूसरा अर्थ है संग्रहित सूचना. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली संविधान पीठ के 1,448 पन्नों के फैसले में इस शब्द का लगभग 50 बार जिक्र किया गया है. यह शब्द आधार कानून 2016 में परिभाषित नहीं है. पृष्ठ 121 पर कहा गया है कि आधार कानून भारतवासियों और नागरिकों का मूल बायोमेट्रिक (उंगलियों व आंखों की पुतलियों) की जानकारी, जनसंख्या संबंधी जानकारी और मेटा डेटा का साइबर सूचना संग्रहालय तैयार करता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला मेटा डेटा (अधि-आंकड़ा) के संबंध में मौजूदा प्रावधान को निरस्त करता है और उसमें संशोधन करने का निर्देश देता है.
सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित संसदीय समिति ने फरवरी 2014 की अपनी एक रिपोर्ट में अमेरिकी नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी द्वारा किये जा रहे खुफिया हस्तक्षेप और विकिलिक्स के खुलासे और साइबर क्लाउड तकनीकी और वैधानिक खतरों के संबध में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जे सत्यनारायण (वर्तमान में चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार) से पूछा था. संसदीय समिति उनके जवाब से संतुष्ट नहीं लगी. हैरत की बात है कि इन्हें विदेशी सरकारों और कंपनियों द्वारा सरकारी लोगों और देशवासियों के मेटा डाटा एकत्रित किये जाने से कोई परेशानी नहीं थी.
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने दो अलग-अलग फैसला दिया है. दोनों फैसलों में समानता और अंतर है. समानता यह है कि दोनों फैसलों में आधार कानून पर सवाल उठाया गया है. अंतर यह है कि न्यायमूर्ति एके सीकरी द्वारा लिखे चार जजों के आदेश ने आधार के कई प्रावधानों पर सवाल उठाया है और कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक बताया है.
उन्होंने आधार कानून के बहुत से प्रावधानों को रद्द कर दिया है और सरकार को उनमें संशोधन करने का आदेश दिया है. इस फैसले से अलग न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने पूरे आधार कानून को असंवैधानिक बताया है.
मोटे तौर पर ‘आधार’ तो बारह अंकों वाला एक अनूठा पहचान संख्या है, जिसके द्वारा देशवासियों के संवेदनशील आकड़ों को सूचीबद्ध किया जा रहा है. लेकिन यही पूरा सच नहीं है. असल में यह 16 अंकों वाला है, मगर 4 अंक छुपे रहते हैं. इस परियोजना के कई रहस्य अब भी उजागर नहीं हुए हैं. शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पांच जजों में से चार जज सरकार द्वारा गुमराह हो गये प्रतीत होते हैं.
यूआईडी/आधार और नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (राष्ट्रीय खुफिया तंत्र) एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. आधार संख्या सम्मिलित रूप से राजसत्ता और कंपनियां विभिन्न कारणों से नागरिकों पर नजर रखने का उपकरण हैं.
यह परियोजना न तो अपनी संरचना में और न ही अमल में निर्दोष है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 10 अप्रैल, 2017 को राज्यसभा में आधार पर चर्चा के दौरान कहा कि सरकार नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड और आधार संख्या को नहीं जोड़ेगी. इसी सरकार ने आधार को स्वैच्छिक बता कर बाध्यकारी बनाया है. सुप्रीम कोर्ट के दोनों फैसलों ने ऐसे प्रयासों पर रोक लगा दिया है. फिक्की और एसोचैम की रिपोर्टों से स्पष्ट है कि नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड और बायोमेट्रिक आधार संरचनात्मक तौर पर जुड़े हुए हैं.
आधार परियोजना पर होनेवाले अनुमानित खर्च का आज तक खुलासा नहीं किया गया है. देशवासियों को अंधकार में रखकर बायोमेट्रिक-डिजिटल पहलों से जुड़े हुए उद्देश्य को अंजाम दिया जा रहा है.
अदालत ने दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नोलाॅजी कंपनी आईबीएम के कारनामों की अनदेखी की है. आईबीएम ने नाजियों के साथ मिलकर यहूदियों की संपत्तियों को हथियाने, उन्हें नारकीय बस्तियों में महदूद कर देने, उन्हें देश से भगाने और आखिरकार उनके सफाये के लिए पंच-कार्ड (कंप्यूटर का पूर्व रूप) और इन कार्डों के माध्यम से जनसंख्या के वर्गीकरण की प्रणाली के जरिये यहूदियों की निशानदेही की, उसने मानवीय विनाश के मशीनीकरण को संभव बनाया. इसकी आशंका प्रबल है कि आधार से वही होने जा रहा है, जो जर्मनी में हुआ था.
गौरतलब है कि चार जजों ने आधार के बहुत सारे प्रावधानों पर सवाल उठाया है. एक जज ने पूरे आधार कानून को असंवैधानिक बताया है. कोर्ट ने आधार कानून की धारा 57 को खत्म कर दिया है. आधार एक्ट के तहत प्राइवेट कंपनियां 2010 से ही आधार की मांग कर रही थी. धारा 57 के अनुसार सिर्फ राज्य ही नहीं, बल्कि बॉडी कॉरपोरेट या फिर किसी व्यक्ति को चिह्नित करने के लिए आधार संख्या मांगने का अधिकार अब नहीं है.
इस प्रावधान के तहत मोबाइल कंपनी, प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर्स के पास वैधानिक सपोर्ट था, जिससे वे पहचान के लिए आपका आधार संख्या मांगते थे. ऐसे नाजायज प्रावधान को धन विधेयक का हिस्सा बनाया गया था, जिसे लोकसभा और लोकसभा अध्यक्ष ने कानून बना दिया था. बीते 26 सितंबर तक इस प्रावधान के तहत देशवासियों के साथ कानून के नाम पर घोर अन्याय किया गया. इस अन्याय के लिए लोकसभा और लोकसभा अध्यक्ष को नागरिकों से माफी मांगनी चाहिए. इस प्रावधान से देश के हित और नागरिकों के हित के साथ खिलवाड़ हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने फैसले में कहा है कि आधार कानून धन विधेयक है. ये जज हैं- प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति अशोक भूषण. इन जजों का मानना है कि लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को संवैधानिक चुनौती दी जा सकती है.
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा है कि वह सरकार की इस दलील से सहमत नहीं है कि आधार कानून धन विधेयक है और उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को गलत बताया है.
उन्होंने आधार को लागू करनेवाले भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के साथ हुए विदेशी निजी कंपनियों के करार का हवाला देते हुए कहा कि नयी इन बायोमेट्रिक तकनीकी कंपनियों की सहभागिता से होनेवाले राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी खतरे और नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के हनन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने आधार परियोजना और कानून को खारिज कर दिया और इसकी जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने की अनुशंसा की है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली पर आरोप है कि इन्होंने तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया है. सूचना के अधिकार के तहत जो कॉन्ट्रेक्ट एग्रीमेंट निकाले गये हैं, उसमें स्पष्ट लिखा गया है कि ऐक्सेंचर, साफ्रान ग्रुप, एर्नेस्ट यंग नाम की ये कंपनियां भारतवासियों के इन संवेदनशील बाॅयोमेट्रिक आंकड़ों को सात साल के लिए अपने पास रखेंगी.
इस का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट के एक जज वाले फैसले में लिया गया है. इसी कारण चार जजों ने भी निजी कंपनियों को आधार सूचना देने पर पाबंदी लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अभी यह तय नहीं किया है कि यदि आधार परियोजना और विदेशी कंपनियों के ठेका और संविधान में द्वंद्व हो, तो संविधान प्रभावी होगा कि ठेका. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि संविधान प्रभावी होगा. बाकी के चार जजों ने फिलहाल इस मामले में चुप्पी साध ली है.
आधार को लागू करनेवाले प्राधिकरण द्वारा अब तक 120 करोड़ से अधिक भारतीय निवासियों को आधार संख्या प्रदान किये जा चुके हैं. यह नागरिकता का पहचान नहीं है. यह आधार पंजीकरण से पहले देश में 182 दिन रहने का पहचान प्रदान करता है. कोई बुरुंडी, टिंबकटू, सूडान, चीन, तिब्बेत, पाकिस्तान, होनोलुलू या अन्य देश का नागरिक भी इसे बनवा सकता है. नागरिकों के अधिकार को उनके बराबर करना और इसे बाध्यकारी बनाकर और इस्तेमाल करके उन्हें मूलभूत अधिकारों से वंचित करना तर्कसंगत और न्यायसंगत नहीं है.
अरुण जेटली ने आधार के जरिये जुटाये जा रहे बाॅयोमेट्रिक आंकड़ों को पूरी तरह सुरक्षित बताया था. मीडिया में हुए खुलासों ने इस दावे की पोल खोल दी है. आधार परियोजना का आपातकाल के दौर के संजय गांधी की बाध्यकारी परिवार नियोजन वाली विचारधारा से कोई रिश्तेदारी सी दिखती है. ऐसी विचारधारा का खामियाजा उन्होंने भोगा था. आधार परियोजना के पैरोकार भी उनके रास्ते ही चल रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आधार की संवैधानिकता पर चल रही बहस की दिशा सुप्रीम कोर्ट ने बदल दी है. प्रावधानों में कुछ बदलावों के साथ सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत के तहत आधार की संवैधानिकता को वैध ठहराया है.
इस फैसले के बाद, आधार कार्ड को बैंक खाते से लिंक करना जरूरी नहीं रह गया है और टेलीकॉम कंपनियां मोबाइल सिम का कनेक्शन प्रदान करने के लिए आधार की मांग नहीं कर सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि आधार अधिनियम के तहत डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक जानकारी देना गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है.
सरकार द्वारा डाटा काे संग्रहित करने और इस्तेमाल करने से गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, आधार कानून का काम व्यापक निगरानी का नहीं है. फैसले को लेकर संविधान पीठ से अलग राय रखते हुए, जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार एक्ट को धन विधेयक की तरह पास करना संविधान के साथ धोखा बताया है, उन्होंने कहा- यह संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन है.
आधार की अनिवार्यता
कहां जरूरी है
पैन कार्ड व ड्राइविंग लाइसेंस से आधार को जोड़ना और आयकर दाखिल करते समय आधार संख्या लिखना अनिवार्य है.
कहां जरूरी नहीं है
यूजीसी व निफ्ट की परीक्षा, सीबीएसई व स्कूलाें में प्रवेश के लिए, मोबाइल और बैंक खाता से आधार लिंक करना और निजी कंपनियों द्वारा प्रमाणीकरण के लिए आधार की अनिवार्यता अब खत्म हो गयी है.
आधार कालक्रम
मार्च 2006 : संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय, भारत सरकार ने गरीब परिवारों के लिए विशिष्ट पहचान योजना (यूनिक आईडी स्कीम) को मान्यता प्रदान की.
दिसंबर 2006 : दो योजनाओं, नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत राष्ट्रीय जनसंख्या पंजिका और यूआईडी योजनाओं के अध्ययन के लिए मंत्रियों के आधिकारिक समूह (इंपावर्ड ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) का गठन किया गया.
वर्ष 2007 : अपनी पहली बैठक में ईजीओएम ने नागरिकों के डाटाबेस बनाने की जरूरत महसूस की, जिसने आधार की नींव रखी.
जनवरी 2009 : भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी यूआईडीएआई की स्थापना हुई और नंदन निलेकणी इसके पहले अध्यक्ष बनाये गये.
दिसंबर 2010 : भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण विधेयक , 2010 (एनआईएआई बिल) संसद में पेश किया गया.
नवंबर 2012 : कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुट्टास्वामी व अन्य ने उच्चतम न्यायालय में आधार की वैधता को चुनौती देनेवाली याचिका दाखिल की.
सितंबर 2013 : उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि आधार कार्ड नहीं होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को तकलीफ नहीं होनी चाहिए.
नवंबर 2013 : उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रतिवादी के तौर पर पक्षकार बनेंगे.
मार्च 2014 : एजेंसियों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार नंबर मांगने के आदेश को उच्चतम न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया. साथ न्यायालय ने यूआईडीएआई को आधार डाटाबेस में दी गयी व्यक्तिगत जानकारी को बिना उस व्यक्ति की रजामंदी के किसी भी एजेंसी से साझा करने से मना कर दिया.
अगस्त 2015 : उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने कुछ कल्याणकारी याेजनाओं के लिए आधार को सीमित कया और आदेश दिया कि आधार कार्ड न होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
3 मार्च, 2016 : आधार विधेयक को संसद में पेश किया गया, जो बाद में धन विधेयक के तौर पर पारित हुआ.
जनवरी-मार्च 2017 : अनेक मंत्रियों ने कल्याणकारी योजनाओं, पेंशन व रोजगार योजनाओं और आयकर रिटर्न के लिए आधार को अनिवार्य किया.
मई 2017 : पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गये.
24 अगस्त, 2017 : सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने फैसला देते हुए कहा कि निजता का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है.
15 दिसंबर, 2017 : उच्चतम न्यायालय ने अनेक सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं से आधार जोड़ने की अंतिम तिथि बढ़ाकर 31 मार्च, 2018 कर दिया.
17 जनवरी, 2018 : पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने आधार मामले की सुनावाई शुरू की.
7 मार्च, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अखिल भारतीय परीक्षा में विद्यार्थियों के नामांकन में आधार संख्या अनिवार्य नहीं है.
3 अप्रैल, 2018 : केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आधार कानून निष्पक्ष और सही है.
17 अप्रैल, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने आधार डाटा के गलत इस्तेमाल के खतरे को लेकर चिंता जतायी.
25 अप्रैल, 2018 : आधार नंबर को मोबाइल के साथ जोड़ने की अनिवार्यता पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा.
10 मई, 2018 : आधार कार्ड की वैधता पर उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया.
26 सितंबर, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने आधार को संवैधानिक तोर पर वैध माना, हालांकि उसने कई सेवाओं में इसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी.
प्रतिदिन 10 लाख लोगों का नामांकन
121 करोड़ आधार कार्ड जारी किये जा चुके हैं इस वर्ष जुलाई तक भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा.
10 लाख लोग प्रतिदिन आधार कार्ड के लिए नामांकन/ नवीनीकरण करा रहे हैं, यूआईडीएआई के सीईओ, अजय भूषण पांडे के अनुसार.
14,200 कुल आधार नामांकन केंद्र हैं देश भर में (इस वर्ष जुलाई तक), जिनमें लगभग 13,000 भारतीय डाक विभाग द्वारा स्थापित किये गये हैं.
85.9 करोड़ (859 मिलियन) बार उपयोग हुआ आधार का प्रमाणीकरण के लिए, जो एक वर्ष में इसका न्यूनतम इस्तेमाल है. इस प्रकार पिछले वर्ष सितंबर महीने के 148 करोड़ (1.48 बिलियन) के मुकाबले जून महीने में आधार के इस्तेमाल में 40 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी थी, यूआईडीएआई के मुताबिक.
996 मिलियन बार आधार का इस्तेमाल हुआ था प्रमाणीकरण के लिए इस वर्ष फरवरी में जबकि यह मार्च में बढ़कर 1.125 बिलियन पर पहुंच गया (केवल मार्च ही ऐसा महीना रहा, जब आधार के इस्तेमाल में वृद्धि देखी गयी, वर्ना पिछले वर्ष सितंबर से हर महीने इसके उपयोग में कमी आयी है), यूआईडीएआई वेबसाइट के अनुसार.
समाजार्थिक विभाजन का परिणाम है यूआईडीएआई
रीतिका खेड़ा
आईआईटी, दिल्ली
बीते 26 सितंबर के दिन आधार पर दिये अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट में बहुमत वाले न्यायाधीशों द्वारा सेक्शन 7 को बरकरार रखना बेहद निराशाजनक है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि न्यायाधीशों ने सरकार के सभी ‘दावे’ स्वीकार करने का फैसला किया है, जो तथ्यों के आधार पर गलत हैं. उन्होंने इसके पीछे यह दलील दी है कि इस कार्यक्रम को लांच करने का उद्देश्य उन योग्य व्यक्तियों का ‘समावेश’ करना है, जिन्हें लाभ प्राप्त करना चाहिए. कोर्ट द्वारा सरकार के दावों को तथ्यों के रूप में स्वीकार किये जाने के कई उदाहरण हैं.
मसलन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने अदालत के सामने यह तथ्य प्रस्तुत किया कि आंख की पुतली और उंगली प्रमाणीकरण का असफल होने का प्रतिशत क्रमशः 8.54 और 6 है. वहीं निर्णय के पेज नं 384 में कहा गया है कि यूआईडीएआई ने 99.76 प्रतिशत की बॉयोमेट्रिक सटीकता का दावा किया है. साफ है कि अदालत में दो अलग-अलग विफलता दरें जमा की गयी हैं.
लोगों के साथ-साथ जजों के मन में भी यह धारणा घर कर गयी है कि आधार समाज को समावेशी बनायेगा. यह विश्वास भ्रामक है. अगर इसका मतलब यह है कि आधार प्राप्त करना आसान है, तो यह शायद सच है. ‘शायद’ केवल इसलिए, क्योंकि अनेक लोगों ने आधार प्राप्त करने के लिए भुगतान किया है, भले ही यह प्रक्रिया मुफ्त बनायी गयी है. कई बार लोगों को आधार पाने में मशक्कत करनी पड़ती है. विकलांगों के लिए तो नामांकन करना ही बहुत दूभर रहा है और बहुत बार वे नामांकन में असफल हुए हैं.
आधार पाने से वंचितों की संख्या जनसंख्या के प्रतिशत के बिना पर भले छोटी हो सकती है, लेकिन वे समाज के सबसे कमजोर लोग हैं, जिनमें बेहद बूढ़े, बीमार, दुर्घटनाग्रस्त, देखने में असमर्थ लोग शामिल हैं. एक गलतफहमी भी लोगों में घर कर गयी है कि आधार ही लाखों भारतीयों के लिए अकेली या पहली आईडी है. एक आरटीआई के जवाब के मुताबिक, आधार संख्या पानेवाले 99.97 प्रतिशत लोगों ने पहले से मौजूद पहचान-पत्र के आधार पर आवेदन किया था.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार का कोई भी प्रतिनिधि यह समझाने में सक्षम नहीं है कि आधार कैसे सरकारी कल्याणकारी योजनाओं को समावेशी बनाता है. प्रत्येक सरकारी कार्यक्रम के अपने मानदंड हैं.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में राज्यों के अपने समावेशी मानदंड हैं, जिनका आधार से कोई लेना-देना नहीं है. कुछ राज्यों में, भले आपके पास सरकारी नौकरी है या कंक्रीट/ पक्का घर है, लेकिन आपको पीडीएस राशन कार्ड नहीं मिल सकता है- भले ही आपके पास आधार हो. वहीं, यदि आप झोपड़ी में रहते हैं या आदिवासी हैं, तो आपको पीडीएस राशन कार्ड मिलेगा. लेकिन, आधार के आने के बाद पीडीएस राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक अनिवार्य किया गया था.
जजों के बीच बहुमत की राय कहती है कि ‘आधार अधिनियम का उद्देश्य कमियों को नियंत्रित करना है’ और ‘हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यह सभी उद्देश्यों को पूरा करता है’ (पृष्ठ 386). यह परेशान करनेवाली बात है कि मीडिया इन मिथ्या निरूपणों को चुनौती क्यों नहीं दे रहा है.
दरअसल, यह समूची परिघटना भारतीय समाज में गहरे सामाजिक और आर्थिक विभाजन का परिणाम प्रतीत होती है. जो लोग इन कार्यक्रमों से लाभ उठाते हैं और जो यह समझ पाते हैं कि आधार समावेशी नहीं हो सकता है, उनकी मीडिया में या नीति-निर्माण में कोई आवाज शामिल नहीं होती है. साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण के विपरीत, हमने इस मामले में जो देखा है, वह अतिक्रमण-आधारित नीति-निर्माण ही है.
दरअसल, न्यायाधीशों के निर्णय ने समाज में जाति और वर्ग के आधार पर गहरे विभाजन के शिकार समुदायों को धोखा दिया है. गनीमत है कि जहां चार न्यायाधीशों ने फैसले में सरकार की ही कहानी पर गौर किया, वहीं उनके पांचवें साथी ने बहुमत के बहाव में न बहते हुए अपनी स्वतंत्र सोच का उपयोग किया और कहा कि आप हर समय सभी लोगों को गुमराह नहीं कर सकते हैं.
कमेंट
आधार असंवैधानिक है. यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि इससे व्यक्तियों व मतदाताओं की सोच और उनके व्यवहार का विश्लेषण किया जा सकता है.
– न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़
मोबाइल के साथ आधार जोड़ना स्वायत्तता, गरिमा और निजता के लिए खतरा है. इसका उद्देश्य तर्कसंगत हो सकता है, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधन अनुचित नहीं हो सकते.
– न्यायमूर्ति अशोक भूषण
कुल मिलाकर यह एक अच्छा निर्णय है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कहना है कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है, इससे मैं व्यक्तिगत रूप से खुश हूं.
– सोली सोराबजी, पूर्व अटॉर्नी जनरल, भारत सरकार
न्यायालय ने आधार के संस्थापक सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से मान्यता प्रदान की है.
– नंदन नीलेकणी, यूआईडीएआईके पूर्व अध्यक्ष
बैंक खाता से आधार को जोड़ना अब आावश्यक नहीं है और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को भी इसे देने की जरूरत नहीं है, अदालत के इस निर्णय से मैं बहुत खुश हूं.
– तहसीम पूनावाला, आधार मामले में एक याचिकाकर्ता

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