गांधी के स्वच्छता-संकल्प को साकार करते मोदी

डॉ शिवशक्ति बख्शी इतिहासविद् महात्मा गांधी के लिए ‘स्वच्छता’ बहुस्तरीय अर्थ एवं संदर्भ रखता था. इसका संदर्भ उनकी आध्यात्मिकता-नैतिकता से भी था, राजनीतिक लक्ष्यों से भी था, व्यक्तिगत-सामाजिक पहलुओं से भी था, सिद्धांत एवं व्यवहार से भी था. महात्मा गांधी के लिए ‘मानसिक’ एवं ‘आंतरिक’ स्वच्छता, आध्यात्मिक एवं नैतिकता की अनिवार्य शर्त हैं. बाह्य और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2018 7:08 AM
डॉ शिवशक्ति बख्शी
इतिहासविद्
महात्मा गांधी के लिए ‘स्वच्छता’ बहुस्तरीय अर्थ एवं संदर्भ रखता था. इसका संदर्भ उनकी आध्यात्मिकता-नैतिकता से भी था, राजनीतिक लक्ष्यों से भी था, व्यक्तिगत-सामाजिक पहलुओं से भी था, सिद्धांत एवं व्यवहार से भी था. महात्मा गांधी के लिए ‘मानसिक’ एवं ‘आंतरिक’ स्वच्छता, आध्यात्मिक एवं नैतिकता की अनिवार्य शर्त हैं.
बाह्य और सामाजिक स्वच्छता के लिए, आंतरिक स्वच्छता पहली वस्तु है, जिसका अभ्यास एवं प्रशिक्षण आवश्यक है. इस कारण इसे पढ़ाया जाना चाहिए. बाकी बातें इसे पढ़ाने के बाद ही लागू की जानी चाहिए. उनके अनुसार स्वच्छता की शुरुआत नि:संदेह रूप से ‘व्यक्ति’ से होगी, क्योंकि ‘कोई व्यक्ति यदि स्वच्छ नहीं है, तब स्वस्थ नहीं हो सकता. और यदि वह स्वस्थ नहीं है, तो स्वस्थ मनोदशा नहीं हो सकती. स्वस्थ मनोदशा से ही स्वस्थ चरित्र का विकास होगा.’ और स्वस्थ चरित्र से ही आदर्श व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और मानवता का अस्तित्व संभव होगा.
महात्मा गांधी भारतीय व्यक्ति की मानसिक बुनावट और उसके व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहारों के अंतर्विरोधों से परिचित थे. इस कारण वह जोर देकर कहते हैं कि ‘यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वच्छता के साथ दूसरों की स्वच्छता के प्रति संवेदनशील नहीं है, तो ऐसी स्वच्छता बेमानी है.’
उदाहरण के लिए इसे अपना घर साफ कर कूड़ा दूसरे के घर के बाहर फेंक देने के रूप में देखा जा सकता है. अगर सभी लोग एेसा करने लगें, तो ऐसे में स्वच्छ लोग अस्वच्छ वातावरण तथा अस्वच्छ समाज का ही निर्माण करेंगे. इसी विस्तृत समझ के कारण गांधीजी का ‘स्वच्छता चिंतन’ संपूर्ण पर्यावरण दर्शन में रूपांतरित होता प्रतीत होता है.
जब वे महसूस करते हैं कि ‘नदियां हमारे देश की नाड़ियों की तरह हैं. यदि हम इन्हें गंदा करना जारी रखेंगे, तब वह दिन दूर नहीं, जब हमारी नदियां जहरीली हो जायेंगी.’
साल 1915 में जब गांधीजी दो दशक बाहर रहने पर देश लौटे, तो सालभर भारत भ्रमण के पश्चात अपना पहला भाषण ‘स्वच्छता’ पर ही दिया था.
चार फरवरी, 1916 को बनारस हिंदू विवि के उद्घाटन के अवसर पर गांव, शहर की गलियों से लेकर बड़े-बड़े मंदिरों तक में स्वच्छता का प्रश्न उठाते हुए उन्होंने ‘स्वच्छता’ को ‘स्वराज’ से जोड़ते हुए कहा था- ‘स्वराज की दिशा में बढ़ने के लिए हमें बिना शक इन सारी बातों को सुधारनी चाहिए.’
कार्यकर्ताओं के लिए 1941 में लिखी अपनी पुस्तिका ‘रचनात्मक कार्यक्रम- उसका रहस्य और स्थान’ में उन्होंने ‘पूर्ण स्वराज’ प्राप्त करने के लिए अठारह कार्यक्रमों में से ‘गांव की सफाई’ एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था. गांधी जी का स्वच्छता के प्रति इतना विशेष आग्रह रहता था कि उनके आश्रम में रहने की पहली शर्त आश्रम की सफाई का काम अनिवार्य था, जिसमें शौच का वैज्ञानिक निस्तारण शामिल था. ‘मेरे सपनों का भारत’ में उन्होंने लिखा था- ‘अपनी गंदी आदतों से हम अपनी पवित्र नदियों के किनारे बिगाड़ते हैं.
जहां-तहां शौच के लिए बैठ जाना, नाक साफ करना या सड़क पर थूकना ईश्वर और मानव-जाति के अपराध है.’ उनका मानना था कि गंदगी को न ढकनेवाला भारी सजा का पात्र है, वहीं वे इसके निदान के लिए भी विस्तार में उपाय सुझाते हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं कि गांधीजी स्वच्छता को राष्ट्रीय जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग मानते थे. वे इसे एक जनांदोलन की भांति चलाना चाहते थे. एक स्वच्छता आधारित जन-संस्कृति का विकास करना चाहते थे. दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद विभिन्न सरकारों द्वारा उनके इस कार्यक्रम को उतनी प्रमुखता नहीं दी गयी, जिससे आम जन-जीवन में नयी ऊर्जा भरी जा सके. प्रधानमंत्री मोदी ने गांधीजी के इसको साकार करने के लिए सकारात्मक प्रयास किये हैं. इसका प्रभाव भी दिखने लगा है.
एक जनांदोलन बनता हुआ यह आग्रह बच्चे-बच्चे के मन को छू रहा है. ‘स्वच्छता मिशन’ के भी लाभकारी परिणाम आ रहे हैं. बड़ी संख्या में गांव जन-जागरण के माध्यम से ‘खुले में शौच’ से मुक्त घोषित हो रहे हैं. विद्यालयों से लेकर घर-बार तक शौचालय का निर्माण हो रहा है. एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में स्वच्छता की भूमिका को लोग समझ रहे हैं और इस मिशन में उत्साहपूर्वक अपनी भागीदारी दे रहे हैं.
गांधीजी के बताये रास्ते को इस मिशन में अपनाया जा रहा है, जिसका परिणाम भी सामने आ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प को साकार करते हुए यदि हर नागरिक स्वच्छता के प्रति अपना व्यक्तिगत एवं सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करे, तब अवश्य ही गांधीजी की 150वीं जयंति पर एक ‘स्वच्छ भारत’ के रूप में हम उन्हें अपनी सच्ची श्रद्धांजलि दे पायेंगे.
मैं यह मानता हूं कि हमारे समय के राजनीतिज्ञों में गांधी के विचार सबसे ओजस्वी थे. हमें उनके दिखाये रास्ते पर चलना चाहिए- हिंसा का प्रयोग किये बगैर, बुराई से लड़ने के लिए असहयोग का रास्ता अपनाना.
-अल्बर्ट आइंस्टाइन
मैं और अन्य क्रांतिकारी महात्मा गांधी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शिष्य हैं, न इससे कम न इससे अधिक.
– हो ची मिह्न
अगर मानवता को प्रगति करनी है, तो गांधी जी को भुलाया नहीं जा सकता. मानवता की भावना को गांधीजी ने जिया, उस पर विचार किया और विश्व में शांति व सौहार्द कायम करने की दिशा काम करते रहे. अगर हम उनकी अनदेखी करते हैं, तो इससे हमारा ही ‍अहित होगा.
– मार्टिन लूथर किंग (जूनियर)
आधुनिक इतिहास में किसी भी एक व्यक्ति ने अपने चरित्र की वैयक्तिक शक्ति, ध्येय की पवित्रता और अंगीकृत उद्देश्य के प्रति नि:स्वार्थ निष्ठा से लोगों के दिमागों पर इतना असर नहीं डाला, जितना महात्मा गांधी का असर दुनिया पर हुआ.
-फिलिप नोएल बेकर
महात्मा गांधी आये और भारत के करोड़ों निराश्रितों का सहारा बन गये. उन्होंने उनके जैसे कपड़े धारण किये और उनकी ही भाषा में बात करते रहे. गांधी के अलावा और कौन हुआ, जिसने इतनी सादगी से व्यापक भारतीय जनसाधारण को अपना खून मान कर स्वीकार किया था.
– रबींद्रनाथ टैगोर

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