अर्थव्यवस्था के लिए झटका: गंभीर संकट में आईएलएंडएफएस, जानें कैसे हुई संकट की शुरुआत

इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी विभिन्न बड़ी परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) दिवालिया हो गयी है और अपने 91,000 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज चुकाने में भी असमर्थ है. शेयर बाजार पर तो इसका बुरा असर पड़ा ही है, कई बड़े बैंकों पर भी संकट मंडरा रहा है, भविष्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 7, 2018 4:43 AM

इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी विभिन्न बड़ी परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) दिवालिया हो गयी है और अपने 91,000 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज चुकाने में भी असमर्थ है.

शेयर बाजार पर तो इसका बुरा असर पड़ा ही है, कई बड़े बैंकों पर भी संकट मंडरा रहा है, भविष्य निधि व पेंशन निधि में जमा आम लोगों की मेहनत की कमाई डूब जाने के हालात पैदा हो गये हैं. विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में पैसा लगाने को लेकर चिंतित दिख रहे हैं. इस संकट को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने आईएलएंडएफएस को अपने नियंत्रण में ले लिया है. इस संकट और उससे पैदा हुई स्थितियों के विश्लेषण पर केंद्रित है आज का इन दिनों…

संदीप बामजई

आर्थिक मामलों के जानकार

आईएल एंड एफएस तीस साल पुरानी एक बड़ी और होल्डिंग कंपनी है, जिसके नीचे तीन कंपनियां काम करती हैं. इस कंपनी का एक अजीब सा ‘वाटर फॉल स्ट्रक्चर’ है, जिसमें ऊपर से नीचे तक कंपनियां ही कंपनियां हैं, जिनकी संख्या 334 है. इन 334 में भी 50 के करीब विदेश में फैली हुई हैं.

ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसका बिजनेस यह कंपनी न करती हो. नोएडा के टोल ब्रिज से लेकर तमिलनाडु के पानी प्रोजेक्ट तक, गुजरात इंटरप्राइजेज फाइनेंस से लेकर कश्मीर में टनल प्रोजेक्ट तक, बनारस के गंगाघाटों की सफाई से लेकर देश के तमाम क्षेत्रों में बननेवाले स्मार्ट सिटी तक में यह कंपनी काम कर रही है. यानी अर्थव्यवस्था के हर हिस्से में इसने अपने पैर पसारे हुए हैं. तकरीबन तीस साल से एक ही मैनेजमेंट इस कंपनी के ऊपर बैठा हुआ है, और तीस सालों से यह मैनेजमेंट लूटे जा रहा है.

इसमें सरकारी बैंकों और संस्थाओं की शेयर भागीदारी देखते हैं, तो यह समझ में आता है कि आईएलएंडएफएस कंपनी भारत सरकार का एक ‘शैडो बैंक’ है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया इसे ‘कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी’ करार देता है.

यह कंपनी शैडो बैंकों की तरह लैंडर का काम करती है और प्रोजेक्ट कंपनियों को फाइनेंस करती है. जाहिर है, देश की अर्थव्यवस्था के कोने-कोने में इसके तार जुड़े हुए है. बीते तीस साल का रिकॉर्ड देखें, तो इस साल मार्च में आईएलएंडएफएस ने 91 हजार करोड़ रुपये का कर्जा लिया था भारतीय बैंकों से और वित्तीय संस्थानों से. इसका मतलब साफ है कि अगर 91 हजार करोड़ रुपये का कर्ज चुकता नहीं होता है, यह पैसा एक तरह से एनपीए हो जायेगा.

आईएलएंडएफएस कंपनी की जो हालत है इस वक्त, इसके लिए एक अमेरिकी स्लोगन है- ‘टू बिग टू फेल.’ यानी जितनी बड़ी कंपनी, उसके बरबाद होने से देश को उतना ही बड़ा नुकसान. साल 2008 में अमेरिका की एक बहुत बड़ी कंपनी लेहमन ब्रदर्स जब बरबाद हुआ था, तब उसका कितना नुकसान हुआ था.

वही हालत इस वक्त आईएलएंडएफएस कंपनी के डूबने से हो सकता है. विडंबना तो यह है कि इतनी बड़ी कंपनी के इतना बड़े कर्ज को लेकर सरकार तब जागी है, जब कुछ मीडिया संस्थानों ने इस पर बोलना-लिखना शुरू किया. जिन छोटे-बड़े प्रोजेक्ट में आईएलएंडएफएस कंपनी का जुड़ाव है, उन सभी को नुकसान होगा.

पिछले साल अक्तूबर में आईएलएंडएफएस कंपनी को दुनिया की बड़ी-बड़ी रेटिंग एजेंसियों ने ‘ट्रिपल-ए’ की रेटिंग दी थी, यानी सबसे बेहतरीन रेटिंग. लेकिन, इस साल अगस्त में आईएलएंडएफएस कंपनी को ‘डी’ रेटिंग मिली है, यानी सबसे खराब. बीते दस साल में ही सबसे बेहतरीन से सबसे खराब की रेटिंग अगर इस कंपनी को आयी है, तो सवाल उठता है कि इस बीच एजेंसियां क्या कर रही थीं?

क्या उन्हें दिखायी नहीं दे रहा था कि आईएलएंडएफएस क्या कर रही थी? एक अरसे से इस कंपनी का मैनेजमेंट लूट और अय्याशी में लगा हुआ था, कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहा था? अब जाकर कहीं सरकार की नींद खुली है. लेकिन, अगर सरकार टेकओवर करती भी है, तो 334 कंपनियों को कहां-कहां टेकओवर करेगी. सरकार तो यही कर सकती है कि कुछ को बेचे या कुछ को किसी और को चलाने के लिए दे दे, या फिर कहीं राइटऑफ (माफ) करे. सरकार मुश्किल से करीब 50 हजार करोड़ बचा पायेगी, बाकी 35-40 हजार करोड़ तक राइटऑफ करना पड़ेगा, जो एनपीए बन जायेगा. यह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़े झटके की तरह साबित हो सकता है.

आईएलएंडएफएस संकट

इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) कंपनी समूह पर 91, 000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है, जिसमें 57,000 करोड़ रुपये का अकेले बैंक ऋण है. पैसों की कमी की वजह से यह समूह अपने कर्जों की किस्त चुका पाने में असमर्थ है. इस वजह से न केवल कई बड़े बैंकों पर संकट मंडरा रहा है, बल्कि भविष्य निधि और पेंशन निधि में जमा आम लोगों की मेहनत की कमाई भी दांव पर लग गयी है.

यही वजह है कि इस कंपनी के संकटग्रस्त होने की खबर फैलते ही शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर गिरावट देखी गयी. इस संकट से कंपनी को निकालने के लिए सरकार आगे आयी और इसका नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी में याचिका दायर की. सरकार की दायर याचिका पर एनसीएलटी ने पहली अक्तूबर को आईएलएंडएफएस के बोर्ड को भंग कर नये बोर्ड के गठन की मंजूरी दे दी.

आईएलएंडएफएस क्या है

इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज यानी ‘आईएलएंडएफएस’ सरकारी क्षेत्र की कंपनी है. इसकी कई सहायक कंपनियां हैं और इसे नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) का दर्जा भी मिला हुआ है. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया और हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कंपनी ने साल 1987 में इंफ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादों ढांचे की परियोजनाओं को कर्ज देने के उद्देश्य के साथ आईएलएंडएफएस का निर्माण किया था.

आईडीबीआई और आईसीआईसीआई जैसी कंपनियां कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट्स पर जोर लगा रही थीं. वहीं आईएलएंडएफएस सरकारी प्रोजेक्ट्स पर काम करता रहा. कंपनी ने साल 1992-93 में जापान की ओरिक्स कॉर्पोरेशन के साथ तकनीक और वित्तीय साझेदारी के लिए करार भी किया था.

आईएलएंडएफएस ने वित्तीय वर्ष 1996-97 में दिल्ली-नोएडा टोल ब्रिज का निर्माण किया था. उसके बाद यह बड़ी चर्चा में शामिल हुई, जब भारत ने उदारीकरण आने के बाद इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने के निवेश की घोषणा की. उसके पहले तक आईएलएंडएफएस कंपनी ज्यादातर सड़क निर्माण तक सीमित थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय वर्ष 2014-15 में राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, सड़कों, सुरंगों और सस्ते घरों के निर्माण की व्यापक योजनाओं की घोषणा की थी. तो आईएलएंडएफएस भी अपनी महत्वाकांक्षा के साथ शामिल हुआ, जिसके बाद उसे कई प्रोजेक्ट्स मिले और कई दूसरे प्रोजेक्ट्स में साझेदारी भी हासिल की. कंपनी की परियोजनाओं में एशिया की सबसे लंबी द्वि-दिशात्मक सुरंग चेनानी-नाशरी भी शामिल थी.

दिलचस्प है कि आईएलएंडएफएस कंपनी ने अगस्त तक कई कंपनियों द्वारा ‘एएए’ रेटिंग हासिल की थी. तब तक रेटिंग एजेंसियों कंपनी की आर्थिक स्थितियों का पता नहीं था और जब पता चला, कंपनी की रेटिंग नीचे चली गयी. यह उन निवेशकों के साथ गड़बड़ हुई, जिन्होंने रेटिंग देखकर अपना पैसा निवेश किया था.

कैसे हुई संकट की शुरुआत

संकट की शुरुआत तब हुई, जब सितंबर में सिडबी (स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया) से लिए गये अल्पावधि ऋण को चुकाने में आईएलएंडएफएस असफल रही. डिफॉल्टर होने की वजह से आईएलएंडएफएस की रेटिंग लगातार गिरने लगी. कंपनी ने छोटी अवधि में लौटाने वाला बहुत ज्यादा कर्ज ले लिया और उसकी तुलना में उतनी आमदनी नहीं हो रही थी.

इधर बैंकों के बढ़ते एनपीए के कारण रिजर्व बैंक ने अपने नियम भी कड़े कर दिये हैं और बैंकों से कहा है कि अगर डूबने का खतरा दिखायी दे, तो कर्ज चुकाने की अवधि को और अधिक न दिया जाये. आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज, आईएलएंडएफएस की सहायक कंपनी भी 440.46 करोड़ रुपए का ऋण चुकाने में असफल रही. दरअसल, आईएलएंडएफएस 10 वर्षों से अधिक अवधि की परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है, लेकिन इसके द्वारा लिये गये उधार कम अवधि के होते हैं, जो परिसंपत्ति-देयता अंतर को बढ़ा देता है. जब ऋण का बहिर्वाह संपत्ति के अंतर्वाह से अधिक हो जाता है, तब परिसंपत्ति-देयता विसंगति नकारात्मक हो जाती है. विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, कंपनी की तीन वर्षों तक 17 प्रतिशत विसंगतियां नकारात्मक रहीं. आईएलएंडएफएस संकट को भारत का लेहमन संकट कहा जा रहा है.

साल 2008 में अमेरिकी फेडरल बैंक लेहमन ब्रदर्स पर भी नकदी तथा कर्ज का संकट आ गया था, जिससे वैश्विक आर्थिक संकट की स्थिति पैदा हो गयी थी. आईएलएंडएफएस ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भी कह दिया है कि उसे लंबी अवधि में विभिन्न परियोजनाओं से बड़ी आमदनी होगी. कर्ज चुकाने के लिए कंपनी को दो-तीन साल चाहिए. कंपनी को भारतीय रिजर्व बैंक से फाइनेंस का दर्जा हासिल है. इसके अतिरिक्त, कंपनी अधिकतर सरकारी परियोजनाओं में शामिल है और इसने अपना कर्ज भी अधिकतर सरकारी कंपनियों को ही दिया है.

इसका अर्थ स्पष्ट है कि आम आदमी के पैसे डूबने का खतरा बन गया है. कंपनी पर कई म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियों और पेंशन स्कीम का पैसा लगा हुआ है. इससे पहले आईएलएंडएफएस ने मौजूदा संकट का सामना करने के लिये तीन रणनीतियों के तहत काम करने की बात की थी. इसमें राइट शेयर जारी करना, ऋण चुकाने के लिए संपत्ति की बिक्री और लिक्विडिटी शेयर संबोधित करना शामिल है.

एलआईसी है सबसे बड़ी निवेशक

25.34 % के साथ भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी इस समूह में सबसे बड़ी भागीदार है.

23.54 % की भागीदारी है इसमें जापान की ओरिक्स कॉरपोरेशन की, जो एलआईसी के बाद इसका दूसरा सबसे बड़ा निवेशक है.

12.56 % का निवेश है इस कंपनी समूह में अबू धाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी का.

12.48 % की भागीदारी है इसमें हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन की.

7.06 % की हिस्सेदारी है सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की इस समूह में.

7.32 % की भागीदारी है स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की इस कंपनी समूह में.

कंपनी समूह पर 91,000 रुपये का कर्ज

एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईएलएंडएफएस समूह पर कुल 91,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. अकेले आईएलएंडएफएस ट्रांस्पोर्टेशन पर 34,544 करोड़ रुपये और आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज पर 17,000 करोड़ रुपये का कर्ज है.

लंबी अवधि क्रेडिट रेटिंग में आयी कमी

आईएलएंडएफएस समूह में परेशानी का पहला संकेत जून में दिखायी दिया, जब कंपनी द्वारा अंतर-कॉरपोरेट जमा और वाणिज्यिक कागजात (उधार) पर 450 करोड़ रुपये का डिफॉल्ट किया गया.

इसके बाद अगले दो-तीन महीने में दो रेटिंग एजेंसियों ने कंपनी की दीर्घकालिक क्रेडिट रेटिंग घटा दी. कंपनी का संकट पहली बार खुलकर तब सामने आया, जब पिछले महीने चार सितंबर को सिडबी का एक हजार करोड़ का लघु अवधि ऋण चुकाने में यह असफल रही थी. यहां तक कि इसकी सहायक कंपनी द्वारा भी 440.46 करोड़ रुपये का डिफॉल्ट किया गया था.

आईएलएंडएफएस को नियंत्रण में लेना सरकार की मजबूरी

भारत सरकार द्वारा प्राइवेट कंपनी को नियंत्रण में लेना आम बात नहीं रही है. संकट में घिरे आईएलएंडएफएस को अपने नियंत्रण में ले लेना सरकार की मजबूरी बन गयी थी.

एक तो इसमें एलआईसी, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, जापान की ओरिक्स कॉरपोरेशन और अबू धाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी जैसी कंपनियों का शेयर था, दूसरी तरफ आईएलएंडएफएस भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी विभिन्न बड़ी परियोजनाओं में हिस्सेदारी करनेवाली नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों में से भी सबसे बड़ी कंपनी बनकर उभर रही थी. एक तथ्य यह भी है कि लगभग सात महीने में लोकसभा चुनाव होने हैं.

उसके पहले मोदी सरकार किसी भी बड़े वित्तीय संकट को पैदा होने देने का खतरा नहीं उठा सकती है. पहले से ही डीजल-पेट्रोल दामों, रुपये में गिरावट और किसानों के आंदोलनों को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है. आम चुनावों से पहले सरकार विपक्ष को कोई और मौका भी नहीं देना चाहेगी.

उदय कोटक नवगठित बोर्ड के अध्यक्ष बनाये गये

आईएलएंडएफएस समूह के बोर्ड को भंग करने के बाद सरकार ने नये बोर्ड का गठन कर दिया है. छह सदस्यीय नवगठित बोर्ड में कोटक महिंद्रा बैंक के एमडी और सीईओ उदय कोटक को गैर-कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जबकि टेक महिंद्रा के पूर्व उपाध्यक्ष विनीत नैय्यर को समूह का उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बनाया गया है.

पूर्व सेबी प्रमुख जीएन वाजपेयी, आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व अध्यक्ष जीसी चतुर्वेदी, अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारी मालिनी शंकर और अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारी नंद किशोर को भी इस नवगठित बोर्ड में शामिल किया गया है. इस नये बोर्ड की पहली बैठक चार अक्तूबर को मुंबई में हुई.

इससे पहले सत्यम कंप्यूटर्स को सरकार ले चुकी है अपने नियंत्रण में

आईएलएंडएफएस के बोर्ड को भंग करने के बाद नये बोर्ड के गठन के संबंध में वित्त मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि देश की गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी को इस परेशानी से बाहर निकालने के लिए ही सरकार ने यह कदम उठाया है.

सरकार के इस कदम से बाजार में विश्वास बढ़ेगा. 2009 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब वित्तीय संकट में फंसी किसी कंपनी को बचाने का प्रयास सरकार कर रही है. इससे पहले 2009 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स और उसकी सहायक कंपनियों में होनेवाली वित्तीय अनियमितता के उजगार होने के बाद इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था.

इस प्रकार संकट से गुजर रही इस कंपनी के शेयरधारकों के हितों की रक्षा हो पायी थी. करोड़ों के कर्ज में फंसी आईएलएंडएफएस को भी इसी तर्ज पर बचाने के आज प्रयास किये जा रहे हैं. इस संबंध में सरकार का तर्क है कि कंपनी कानून की धारा 241 और 242 के तहत एनसीएलटी को ऐसे मामलों में दखल का अधिकार है.

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