भारतीय सर्वाधिक अवसादग्रस्त, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत, जानें अवसाद के कारण व बचाव के उपाय
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत भारतीय सर्वाधिक अवसादग्रस्त आज दुनिया भर में 300 मिलियन लोग डिप्रेशन (अवसाद) के शिकार हैं और इनमें भारत अव्वल है. पूंजी के खेल ने लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान से ऊपर उठाकर, अन्य आकांक्षाओं की तरफ ढकेला है. बच्चों और युवाओं पर पढ़-लिखकर काबिल बनने का दबाव […]
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत
भारतीय सर्वाधिक अवसादग्रस्त
आज दुनिया भर में 300 मिलियन लोग डिप्रेशन (अवसाद) के शिकार हैं और इनमें भारत अव्वल है. पूंजी के खेल ने लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान से ऊपर उठाकर, अन्य आकांक्षाओं की तरफ ढकेला है. बच्चों और युवाओं पर पढ़-लिखकर काबिल बनने का दबाव है, तो औरतों के कंधों पर घर-बाहर, दोनों का पहाड़.
कहीं खोखली सामाजिक प्रतिष्ठाएं इंसान को घेर रही हैं, तो कहीं तमाम लोग पैसे और शोहरत के पीछे भाग रहे हैं. सभी इस अंतहीन, अंधी दौड़ में शामिल हैं और इसका अंत डिप्रेशन के रूप में हो रहा है. आज, देश का हर छठा इंसान डिप्रेशन का शिकार है. इसलिए इसे जानना और समझना बहुत जरूरी है. डिप्रेशन के प्रभावों और उपायों पर केंद्रित है आज का इन दिनों…
विश्वभर में 30 करोड़ लोग अवसाद की गिरफ्त में
मानसिक स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल में जारी रिपोर्ट भयावह तस्वीर पेश करती है. इस रिपोर्ट के अनुसार,
30 करोड़ (300 मिलियन) लोग विश्वभर में अवसाद की समस्या से जूझ रहे हैं.
8,00,000 लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या कर लेते हैं, जबकि 15 से 29 आयु वर्ग के बीच मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या बच चुका है वैश्विक स्तर पर.
1 प्रतिशत से भी कम अनुदान दिया जाता है वैश्विक स्तर पर सरकारों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य विभाग को क्योंकि प्राथमिकता सूची में वह शामिल नहीं है.
2.5 ट्रिलियन डॉलर वैश्विक स्तर पर खर्च होता है मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिवर्ष. लेकिन अगर मानसिक विकार दूर करने के लिए समय पर कदम नहीं उठाया गया तो अनुमान है कि वर्ष 2030 तक मानसिक रोगियों के इलाज का खर्च बढ़कर 6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा.
9 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हो सकता है भारत और चीन की अर्थव्यवस्था को 2016 से 2030 के बीच आत्महत्या और मानसिक विकार के कारण.
भारत में निरंतर बढ़ रही मनोरोगियों की संख्या
सामाजिक ताने-बाने में परिवर्तन, वर्जनाएं, जागरूकता की कमी और सही समय पर उचित उपचार नहीं मिलने से यहां मनोरोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है.
6.5 प्रतिशत के करीब भारतीय जनसंख्या गंभीर मानसिक विकार से जूझ रही है, जिसके 2020 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ जाने की आशंका है.
80प्रतिशत मानसिक विकार से जूझ रहे लोग इससे निबटने के लिए किसी प्रकार का उपचार नहीं लेते हैं.
10.9लोग प्रति एक लाख पर औसतन आत्महत्या करते हैं अपने देश में और आत्महत्या करनेवाले अधिसंख्य लोग 44 साल से कम उम्र के होते हैं.
100,000लोगों पर महज एक मनोवैज्ञानिक, मनाेविश्लेषक या चिकित्सक उपलब्ध हैं, 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, जो मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी को दर्शाते हैं.
4,000मनोचिकित्सक, 3,500 मनोवैज्ञानिक और 3,500 ही मानसिक स्वास्थ्य सामाजिक कार्यकर्ता हैं हमारे देश में.
स्रोत : विश्व स्वास्थ्य संगठन व लैंसेट रिपोर्ट
भारतीय किशोरों की स्थिति चिंताजनक
एनएमएचएस 2015-16 की रिपोर्ट कहती है कि 13 से 17 साल के 7.3 प्रतिशत भारतीय किशोर मानसिक विकार से ग्रस्त हैं और यह विकार लड़के और लड़कियों में समान मात्रा में विद्यमान है.
स्थिति इतनी गंभीर है कि मनोरोग से ग्रस्त 13-17 वर्ष के लगभग 98 लाख यानी 9.8 मिलियन भारतीय युवाओं को तत्काल इलाज की जरूरत है. वहीं एक सच यह भी है कि ग्रामीण किशारों के 6.9 प्रतिशत की तुलना में महानगरों में रहने वाले किशारों के बीच मानसिक विकार दोगुना (13.5 प्रतिशत) है.
14 वर्ष से कम के 50 प्रतिशत बच्चे अवसादग्रस्त
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर राजेश सागर की मानें तो वैश्विक स्तर पर हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन चुका अवसाद भारतीय किशारों और बच्चों को भी अब बड़े पैमाने पर प्रभावित करने लगा है.
आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पिछले दशक में हमारे देश में अवसाद के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. यहां चिंतित करने वाली बात यह है कि आज भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के 50 प्रतिशत बच्चे और 25 वर्ष से कम उम्र के 75 प्रतिशत युवा अवसाद की चपेट में हैं.
अवसाद क्या है
आमतौर पर, डिप्रेशन या अवसाद वह अवस्था है, जिसमें इंसान दुख, हानि, व्यर्थता और अक्षमता की सर्वव्यापी भावना का अनुभव करता है.
जिन विषयों में पहले उसकी रुचि रही हो, उसमें भी उसका मन नहीं लगता और आत्महत्या करने जैसे आत्मघाती खयाल आते हैं. डिप्रेशन भावात्मक अथवा मूड डिसऑर्डर माना जाता है. यहां मूड से मतलब उस भावनात्मक अवस्था से है, जो निरंतर बनी रहती है. यह भावनात्मक स्वभाव आस-पास के वातावरण एवं समाज में सहभागिता के प्रति व्यक्ति की उदासीन मान्यताओं के रूप में परिलक्षित होता है. ऐसे निश्चित लक्षण जो कम से कम दो हफ्तों तक बने रहते हैं, क्लिनिकल डिप्रेशन की चिकित्सकीय अवस्था मानी जाती है. ज्यादातर केसों में, देखने में आता है कि यह लक्षण महीनों अथवा सालों तक बने रहते हैं.
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लक्षणों के आधार पर समय से डिप्रेशन की पहचान नहीं हो पाती और स्थिति बहुत खराब होती जाती है. जिन लोगों में क्लिनिकल डिप्रेशन की पहचान होती है, उनको सालों बाद पता चलता है कि उन्हें मदद की जरूरत थी. आज, हमारा पूरा समाज अंधी दौड़ में शामिल है. पैसे और प्रसिद्धि की चाह लोगों में बेचैनी व चिंता पैदा कर रही है और उन्हें अवसाद का शिकार बना रही है.
अवसाद के आम लक्षण
निरंतर बदलती मनोदशा, चिंता, आंदोलन और उदासीनता
अनिद्रा
सुबह उठने में कठिनाई
सुस्ती और उनींदापन, दैनिक मामलों में रुचि की कमी
थकान और थकान के परिणामस्वरूप धीमा और निष्क्रिय होना
अधिक खाने या इसके विपरीत भूख की कमी
शरीर में अकारण दर्द और मोच लगना
शराब, तंबाकू और कैफीन की खपत बढ़ना
आत्महत्या की प्रवृत्ति
ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और कार्यों को पूरा करने के लिए अधिक समय लेना
सब कुछ व्यर्थ लगना, निराशा और असहाय भावनाएं
अवसाद से बचने के कुछ उपाय
अपने काम के तनाव में आकर परिवार और दोस्तों से खुद को दूर रखें. अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताने की कोशिश करें. अपने दोस्तों से मिलें, घूमने जाएं.
रोजाना वाक पर जाएं, जॉगिंग करें, संभव हो तो स्विमिंग (तैरना) भी करें. आप योग भी सीख सकते हैं. व्यायाम करने और फिट रहने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है और जीवन में सकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है. नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म होती है.
स्वस्थ भोजन न केवल आपके शारीरिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में मदद करता है, बल्कि आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है. अपने आहार में विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, मांस, कम वसा वाले डेयरी खाद्य पदार्थ और मछली आदि शामिल करें. साथ ही ढेर सारा पानी भी पीएं.
अपने कार्य और जीवन में संतुलन बनाये रखें. कोशिश करें कि ऑफिस के काम को घर पर न लाएं. काम से संबंधित स्ट्रेस का मुकाबला करने के अपने तरीके इजाद करें.
शराब, तंबाकू और कैफीन का सेवन तात्कालिक तौर पर मूड को ठीक कर सकता है. लेकिन, लंबी अवधि में, वे केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं. अत: इन्हें त्यागने की कोशिश करें.
अवसाद के कारण आप चीजों को भूलने लगते हैं. इससे कई बार कई तरह के भ्रम पैदा होते हैं और आत्म-सम्मान प्रभावित होता है. इस स्थिति से निबटने का एक तरीका यह हो सकता है कि आप निरंतर नोट्स लेते रहें, तािक चीजें याद रहें.
याद रखें कि मानसिक स्वास्थ्य ठीक हो सकता है, लेकिन हार मान लेना कभी ठीक नहीं हो सकता है. खुद को कम नहीं आंकना चाहिए. अपने आप को भी प्यार करना चाहिए. इसके लिए, उन कार्यों की एक सूची बनाएं, जो आपको हर्षित करती हैं और हर दिन कम से कम एक करने का लक्ष्य रखें.
क्या कहते हैं राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के नतीजे
10.6 प्रतिशत भारतीय किसी न किसी प्रकार के मानसिक विकार से ग्रस्त हैं.
0.64 प्रतिशत लोग सिजोफ्रेनिया व अन्य मानसिक विकार से पीड़ित हैं.
5.6 प्रतिशत लोग मूड संबंधी विकारों से पीड़ित हैं.
6.93 प्रतिशत लोग स्ट्रेस की गिरफ्त में हैं.
प्रति 40 में से एक व्यक्ति अवसाद का शिकार
40 में से एक व्यक्ति (2.7 प्रतिशत) यहां अवसादग्रस्त है , जबकि प्रति 20 में से एक व्यक्ति (5.2 प्रतिशत) अपने जीवन में कभी न कभी अवसाद का शिकार रह चुका है.
40-49 वर्ष की उम्र की महिलाओं, वयस्कों में अवसाद का उच्च स्तर पाया गया था सर्वेक्षण के दौरान.
30 से 49 साल के लोग मानसिक विकार से सबसे ज्यादा प्रभावित
तकरीबन 1.9 प्रतिशत भारतीय आबादी अपने जीवन में गंभीर मानसिक विकार से जूझती है, जिनमें 0.8 प्रतिशत लोग वर्तमान में गंभीर मनोविकार की गिरफ्त में हैं.
एनएमएचएस 2015-16 की रिपोर्ट यह भी कहती है कि सिजोफ्रेनिया, बाइपोलर इफेक्टिक डिसऑर्डर जैसे गंभीर मानसिक रोगों की पहचान पुरुषों और महानगरों में रहनेवाले लोगों के बीच ज्यादा हुई है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मानसिक रोगों से प्रभावित होनेवालों में प्रोडक्टिव एज ग्रुप यानी 30 से 49 वर्ष (इस उम्र में मनुष्य सर्वाधिक क्रियाशील रहता है) के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. इस सर्वेक्षण के दौरान यह भी पाया गया कि महिलाओं के 7.5 प्रतिशत के मुकाबले पुरुषों में मानसिक रुग्णता 13.9 प्रतिशत के साथ कहींअधिक थी.
विभिन्न आयु वर्ग में मानसिक रुग्णता का प्रतिशत
आयु वर्ग प्रतिशत
18-29 वर्ष 7.5
30-39 वर्ष 14.6
40-49 वर्ष 18.4
50-59 वर्ष 16.1
60 वर्ष और अधिक 15.1
स्रोत : एनएमएचएस 2015-16
डिप्रेशन के फेज से गुजर रहा देश
भारत में लोग अवसाद से इसलिए ग्रसित हैं, क्योंकि यहां ज्यादातर लोग अपनी भावनाओं को दबाकर रखते हैं. मैं सोशल मीडिया पर उबल रही भावनाओं की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि उनकी निजी जिंदगी में जो भावनाएं हैं, उनकी बात कर रहा हूं. इस एतबार से भारत एक अवसाद के फेज से होकर गुजर रहा है.
लोगों की बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं और इच्छाएं हैं, जिनके पूरा न होने पर तरह-तरह की मानसिक स्थितियां पैदा होती रहती हैं, जहां से अवसाद का जन्म होता है. एक तरफ जहां हम अपनी भावनाओं को दबाये रखते हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसी बड़ी-बड़ी बातें भी करते हैं कि हम ये कर देंगे, वो कर देंगे. यह भी अवसाद का एक प्रतीक ही है, कि जिसमें हमें करना कुछ और होता है, मगर करते कुछ और ही हैं.
इच्छाओं के दमन की नहीं, बल्कि ऐसे नियंत्रण की जरूरत है, जिससे हम इच्छाओं को नियंत्रित कर सकें, ताकि कुछ एक के पूरा न होने पर मानसिक व्याधियों का शिकार न होने पाएं. दरअसल, एक अरसे से भारत एक ऐसी अवस्था में है, जहां यह संभव नहीं रहा है कि लोग अपनी इच्छाओं-भावनाओं को खुलकर जीएं. यह फेज समाज के हर क्षेत्र में है और अभी यह फेज कब तक रहेगा, कुछ कहा भी नहीं जा सकता. हां, इतना जरूर है कि इसके लिए हम सबको जागरूक होना पड़ेगा, ताकि हम अपनी इच्छाओं-भावनाओं पर जरूरी नियंत्रण कर सकें. योग या मेडिटेशन इसमें फायदा पहुंचा सकता है. दवा से अवसाद खत्म
करना थोड़ा मुश्किल है, इसलिए जागरूकता और योग का ही सहारा लेना चाहिए.
डॉ केके अग्रवाल, पूर्व प्रेसिडेंट, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
इन देशों में भी बड़ी संख्या में हैं मानसिक रोगी
चीन
2.35 प्रतिशत ही अपने बजट का मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है चीन. अवसाद जैसे मानसिक विकार से ग्रस्त 91.8 प्रतिशत चीनी नागरिक उिचत इलाज हािसल नहीं कर पाते है.
अमेरिका
5 में से एक अमेरिकी वयस्क को प्रतिवर्ष किसी न किसी प्रकार के मानसिक रोग से जूझना पड़ता है, लेकिन बीते वर्ष महज 41 प्रतिशत रोगियों को ही स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पायी थीं.
इंडोनेशिया
90 लाख लोग यानी कुल 3.7 प्रतिशत को अवसाद से जूझना पड़ रहा है. अगर इसमें चिंता को भी शामिल कर लिया जाये तो 15 वर्ष से अधिक उम्र के मानसिक रोगियों की संख्या बढ़कर 6 प्रतिशत पर पहुंच जायेगी.
रूस
5.5 प्रतिशत रूसी जनता अवसाद की शिकार है. 3 गुना ज्यादा थी रूस में आत्महत्या की दर वैश्विक औसत से (वर्ष 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार).
पाकिस्तान
750 प्रशिक्षित मनोचिकित्सक हैं पाकिस्तान में 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक. यहां मानसिक रोगों को सामाजिक कलंक माने जाने की वजह से अवसाद ग्रस्त रोगियों की सही संख्या ज्ञात नहीं है.
विश्व में टीनेजर्स की मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण आत्महत्या
10 से 19 वर्ष का प्रति छह में से एक व्यक्ति अवसाद से जूझ रहा है,
10-19 वर्ष के लोगों के बीच वैश्विक स्तर पर होनेवाली बीमारी और चोट का 16 प्रतिशत हिस्सा मानसिक रोगों का है.
14 वर्ष की नाजुक उम्र में ही 50 प्रतिशत मानसिक रोग लोगों को अपनी चपेट में ले लेते हैं, जिनमें से अधिकतर मामलों में न ही बीमारी की पहचान हो पाती है, न ही उनका उपचार हो पाता है.
वैश्विक स्तर पर किशारों के बीच बीमारी और अक्षमता का एक प्रमुख कारण अवसाद है.
15-19 वर्ष के आयुवर्ग के बीच मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण आत्महत्या है.
किशार अवस्था के मनोविकार अगर वयस्क हाेने तक भी बने रहे तो रोगी की शारीरिक और मानसिक अवस्था दोनों प्रभावित होती है, नतीजतन व्यक्ति अपने वयस्क जीवन को आनंद से जीने में अक्षम हो जाता है.
स्रोत : विश्व स्वास्थ्य संगठन