मिथिलेश
16 दिसंबर, 1946. संविधान सभा की बैठक चल रही थी. पंडित जवाहर लाल नेहरू के लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर अपना पक्ष रखते हुए डाॅ श्री कृष्ण सिंह ने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल को खूब फटकार लगायी.
इन दिनों देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. बिहार भी इससे अछूता नहीं था. लेकिन बिहार की सरकार ने सांप्रदायिक सदभाव बनाये रखने और उपद्रव को दबाने के लिए बल प्रयोग करने में तनिक भी देरी नहीं की थी. इसके बाद भी चर्चिल ने अपने एक भाषण में बिहार की हालत को बदतर बताया था.
श्री बाबू ने अपने संबोधन में कहा कि बतौर शासक मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ऐसा नहीं बोध कर पाता कि अंग्रेजों ने भारतीयों को शांतिपूर्वक सत्ता हस्तांतरित करने का निश्चय कर लिया है. चर्चिल के भाषण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उस महान साम्राज्यवादी की ओर से हमें एक भी उत्साहवर्द्धक शब्द नहीं मिला है.
भारतीय इतिहास के ऐसे समय में भी जब देश का विधान बनाने के लिए इतने लोग समवेत हुए हैं तो बजाय इसके कि आशा और उत्साह की बात कहें, वह अपनी पुरानी चाल चल रहे हैं. चर्चिल ने अपने भाषण में कांग्रेस पर कीचड़ उछाला है, पंडित नेहरू पर छींटा मारा है. मध्यकालीन सरकार में जवाहर लाल नेहरू के आ जाने के बाद से मिस्टर चर्चिल को बिहार में निर्दोष मनुष्य की नृशंस हत्या ही दिखायी दे रही है. सात समुद्र पार बसने वाले मिस्टर चर्चिल को मैं कहूंगा कि जनाब, आपको किसी स्वार्थी ने झूठी खबर दी है और आप जानबूझ कर इस झूठ का प्रचार कर रहे हैं.
बिहार सरकार ने इस उपद्रव को दबाने के लिए बल प्रयोग करने में एक क्षण भी आनाकानी नहीं की और प्रांत के लाखों अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए उसने तुरंत अपनी सारी शक्ति लगा दी. बिहार सरकार को इस बात का अभिमान है कि जब तक सन 1935 के एक्ट के अनुसार उसका काम चल रहा है वह भारत सरकार का आदेश लेने के लिए तैयार नहीं है. पंडित जवाहर लाल नेहरू हमारे नेता हैं और इस नाते वह बिहार पधारे थे. उनसे हम सबों को प्रेरणा प्राप्त होती है, उत्साह मिलता है.
मैं मिस्टर चर्चिल को बता दूं कि चंद दिनों के तूफानी दौरे में उन्होंने बिहार की जनता को अपना इरादा बता दिया. मैंने इस देश के सर्वोच्च अधिकारी को यह बात कही थी कि वह खुद भी बिहार में इतने अल्प समय में शांति नहीं स्थापित कर पाते जितने में कि हम लोगों ने की.
वहां शीघ्र शांति होने का कारण न तो बिहार सरकार की गोलियां हैं और न भारत सरकार के सैनिक ही हैं, जो बिहार सरकार को मदद के लिए भेजे गये थे. शीघ्र शांति स्थापित करने का एकमात्र श्रेय है पंडित नेहरू के व्यक्तित्व को, बाबू राजेंद्र प्रसाद जैसे साधु पुरूष की मौजूदगी को और महात्मा जी के आमरण अनशन की धमकी को.
श्री बाबू ने कहा, मिस्टर चर्चिल ने इस झूठ का प्रचार कर बड़ी शैतानी का काम किया है. एक कानूनदां की हैसियत से मैंने ब्रिटिश मंत्री-प्रतिनिधि मंडल की घोषणा नहीं पढ़ी है. मैं जीवन भर सिपाही रहा हूं और सिपाही की दृष्टि से इसे देखता हूं. ब्रिटिश राजनीतिज्ञों के वक्तव्यों से हमें कुछ भी मदद नहीं मिलती. उन लोगों की पैदा की हुई मुश्किलों की वजह से मुमकिन है कि इस विधान परिषद को भी एक दिन वही रास्ता अख्तियार करने पड़े जिसे सन 1799 में फ्रांसीसी विधान–परिषद को, तत्कालीन राजा और राजनीतिज्ञों के रूख के कारण अपनाना पड़ा था.
प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने के पहले सदस्यों से उन्होंने कहा, अगर हम यह प्रस्ताव पास करते हैं तो हमें इस बात का पक्का संकल्प लेना होगा कि हम भरत के मौजूदा राजनीतिक ढ़ांचे को, जो सन 1935 के एक्ट पर मायावी वैधानिक जाल खड़ा है, चकनाचूर कर देंगे और उस तरह का प्रजातंत्र कायम करेंगे जिसकी कल्पना इस प्रस्ताव में की गयी है, चाहे हमारे रास्ते में कितनी ही मुश्किलें क्यों न आये. प्रस्ताव का समर्थन करते हुए श्री बाबू ने कहा, भारत को संसार के राष्ट्रों में समुचित स्थान मिलना चाहिये. प्रत्येक भारतीय की यह उत्कट पर उचित अभिलाषा है कि एक दिन भारत समस्त एशिया का नेतृत्व करे. हम भारत में एक विकेंद्रित गणतंत्र की सफलतापूर्वक स्थापना करके जिसमें भिन्न-भिन्न भाषा और धर्म के गुट आपस में सम्मिलित होकर इस विशाल प्रजातंत्र में रह सकें.
उम्मीद की जाती है कि शीघ्र ही पाश्चात्य साम्राज्यवाद की लहर एशिया से उठ जायेगी. भारत के पड़ोसी एशियाई मुल्कों को हमें ठीक-ठीक नेतृत्व देना है. जिससे यह प्रदेश बाल्कन राष्ट्रों की तरह पश्चिमी साम्राज्यवाद की रणभूमि न बन सके. इसके लिए यह आवश्यक है कि हम भारत में एक ऐसे राज्य की स्थापना कर आदर्श पेश करें जो समस्त भारत का हो और जिसमें सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों की हर प्रकार की सुरक्षा की व्यवस्था हो. यह जानकारी बिहार अभिलेखागर की पुस्तक सलेक्टेड स्पीच आफ डा श्रीकृष्ण सिंह इन द लेजिस्लेचर से ली गयी है.