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बिहार केसरी के रूप में लोकप्रिय थे श्री बाबू

निखिल कुमार बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह का मेरे परिवार से श्री बाबू का आत्मीय रिश्ता था. मेरे प्रथम जन्म दिन पर वो हमारे घर आये. उनके हाथ में मेरे लिये चांदी का कटोरा और चम्मच था. मेरी मां जब तक रही उसने उसे संजो कर रखा. आज भी मेरे घर पर वह सुरक्षित है. […]

निखिल कुमार
बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह का
मेरे परिवार से श्री बाबू का आत्मीय रिश्ता था. मेरे प्रथम जन्म दिन पर वो हमारे घर आये. उनके हाथ में मेरे लिये चांदी का कटोरा और चम्मच था. मेरी मां जब तक रही उसने उसे संजो कर रखा. आज भी मेरे घर पर वह सुरक्षित है.
जब मेरे पितामह अनुग्रह नारायण सिंह का निधन हो गया तो श्री बाबू मेरे घर आये और मेरी मां से कहा, बाबू साहेब अब नहीं हैं, लेकिन तुम चिंता मत करना. तुम यह मत सोचना कि बाबू साहेब नहीं हैं. एक दिन सबको जाना है, मैं हूं ना. जब भी जरूरत हो मुझे याद करना.
जब मैने इंटर की परीक्षा पास की तो उन्होंने मुझे खूब शाबाशी दी. एक वाकया याद है, 1959 में मेरे चचेरे छोटे भाई की शादी में वो घर आये और पिता की भूमिका में खड़े रहे.
एक बार मेरे पितामह से उन्होंने मेरे पिता के चुनाव लड़ने की जानकारी दी. मेरे पितामह ने कहा कि मै उनसे पूछ कर बताउंगा. इस पर श्री बाबू ने कहा, आप उनसे घर जाकर पूछियेगा लेकिन, सत्येंद्र मेरे उम्मीदवार हैं. घर आकर पितामह ने पिता जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि हां, मेरी उनसे बात हुई है. ऐसा संबंध मेरे और उनके परिवार के बीच रहा.
राजनीतिक रिश्तों में कड़ुवाहट के चर्चा के दिनों में भी पारिवारिक आत्मीयता में कमी नहीं आयी. वह पीढ़ी ही अलग थी. उन लोगों ने एक साथ ब्रिटिश साम्राज्य के साथ संघर्ष किया, जेल गये और यातनाएं सही. एक जुनून था, देश के लिए काम करने का, किसे क्या मिला यह कहीं था ही नहीं.

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