जो साहसी नहीं, वह कभी कामयाब नहीं हो सकता : सज्जन भजनका
1974 में 22 वर्षीय सज्जन भजनका ने असम के तिनसुकिया में पहली बार प्लाई बनाने का एक छोटा सा कारखाना के बंद होने के बाद बिना हिम्मत हारे छोटी पूंजी के साथ स्वतंत्र रूप से किराये पर कारखाना लेकर प्लाई बनाने का काम शुरू किया. फिर तिनसुकिया और नागालैंड में प्लाई बनाने की नयी यूनिट […]
1974 में 22 वर्षीय सज्जन भजनका ने असम के तिनसुकिया में पहली बार प्लाई बनाने का एक छोटा सा कारखाना के बंद होने के बाद बिना हिम्मत हारे छोटी पूंजी के साथ स्वतंत्र रूप से किराये पर कारखाना लेकर प्लाई बनाने का काम शुरू किया. फिर तिनसुकिया और नागालैंड में प्लाई बनाने की नयी यूनिट लगायी. 1986 में कोलकाता आये और जोका में प्लाई बनाने का कारखाना खोला.
इसके बाद चेन्नई, करनाल, गुवाहाटी, रूड़़की, कांडा व होशियारपुर में बड़े कारखाने लगाये. देश के बाहर म्यांमार के लाओस में भी यूनिट लगायी. दस हजार करोड़ तक का कारोबार पहंुचाने वाले सेंचुरी प्लाई बोर्ड्स (इंडिया) लिमिटेड व स्टार सीमेंट लिमिटेड के चेयरमैन सज्जन भजनका से पुरुषोत्तम तिवारी ने बातचीत की. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.
Q कारोबार में आना कैसा हुआ ?
जब से होश संभाला तब से एक सफल बिजनेसमैन बनना चाहता था, पर स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान सामाजिक सेवाओं के प्रति सक्रिय हुआ. सोचा कि समाजसेवा में एक कार्यकर्ता के रूप में पहचान बनाऊंगा.
इस तरह करियर के बदले सामाजिक कार्यों में ज्यादा से ज्यादा वक्त देने लगा, लेकिन 1973 में मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा और मैंने उद्योगपति बनने का संकल्प किया. 1973 में मेरी शादी में तिनसुकिया (असम) के एक भी बड़ा आदमी नहीं आया, तभी मेरे मन में विचार आया कि आर्थिक स्वावलंबन के बिना केवल सामाजिक कार्यों से जीवन नहीं चल सकता और न ही हमारे समाज में प्रतिष्ठा मिल सकती है.
Q प्लाई के व्यवसाय से कैसे जुड़े ?
प्लाई के व्यवसाय से मैं अचानक नहीं जुड़ा. स्कूली दिनों में मैं जहां रहता था, उसके आसपास प्लाईवुड की विभिन्न कंपनियों के प्रशासनिक अधिकारी एवं मैनेजर रहते थे. उस समय असम का तिनसुकिया प्लाईवुड का गढ़ माना जाता था. उसी समय प्लाईवुड के मैनेजर के साथ उनके कारखाने, जंगल और कार्यालय जाना होता था. उनसे चर्चा होती थी. इस तरह प्लाई के प्रति आकर्षण पैदा हुआ. जब व्यवसाय करने का संकल्प लिया, तो तब यही निर्णय किया कि प्लाईवुड के कारोबार से किस्मत का दरवाजा क्यों न खोलूं.
Q व्यावसायिक शुरुआत कब और कैसे हुई ?
तिनसुकिया कॉलेज में बी कॉम करते हुए 22 वर्ष की उम्र में वर्ष 1974 में ताऊजी और उनके पुत्रों के सहयोग से संयुक्त रूप में प्लाई बनाने का एक छोटा कारखाना लगाया, जिसे दो वर्ष चलने के बाद आपसी मतभेदों के कारण बंद करना पड़ा. उस समय मेरे पास कुल पूंजी 75 हजार रुपये थी, लेकिन 80 हजार रुपये का कर्ज था. पूंजी के नाम पर मेरे पास पांच हजार का कर्ज था.
1976 में सबसे पहले स्वंतत्र रूप से प्लाई बनाने का छोटा कारखाना तिनसुकिया के मारघ्रेटा में किराये पर लेकर शुरू किया था. कड़ी मेहनत करते हुए बाजार की नब्ज को पहचानता गया. इसी के साथ व्यवसाय बढ़ने लगा, लाभ भी खूब होने लगा. इससे मन में काफी उत्साह रहता था. बाद में तिनसुकिया और नागालैंड में प्लाई बनाने की नयी यूनिट (कारखाना) लगायी. ईश्वर की कृपा से आज मेरी कंपनी का कुल टर्न ओवर दस हजार करोड़ रुपये का हो गया है.
Q कारोबार में लंबी छलांग का साहस कहां से आया?
कारोबार ही क्यों किसी भी क्षेत्र में छलांग लगाने का साहस व्यक्ति के भीतर से आता है. आप कोई भी बड़ा काम करना चाहेंगे, उसमें साहस की जरूरत होती है. जो साहसी नहीं, वह कामयाब कभी नहीं हो सकता. असम में प्लाई का व्यवसाय जम चुका था. इसलिए व्यवसाय को विस्तार देने के लिए घरेलू सीमाओं से बाहर निकालने का निर्णय किया.
986 में कोलकाता के जोका में प्लाई बनाने का कारखाना खोला. बाद में क्रमशः चेन्नई, करनाल, गुवाहाटी, रूड़की, कांडा व होशियारपुर में विशाल कारखाना स्थापित किया. देश के बाहर पहली बार वर्मा के लाओस में खोला. 2004 से कंपनी लैमिनेट प्लाई बनाने लगी.
इसके अलावा प्लाई के अंदर विभिन्न पार्टिकल बोर्ड, सनमाइका व प्लाई में लगनेवाले केमिकल आदि का भी उत्पादन शुरू किया. 2001 में श्याम ग्रुप के साथ गुवाहाटी में फेरो एलाइट में कारखाना लगाया, जो काफी सफल रहा. फिर मेघालय और असम में स्टार सीमेंट ब्रांड से सीमेंट का कारखाना खोला. यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि निजी क्षेत्र में पूर्वोंत्तर भारत का सर्वोंत्तम ब्रांड स्टार सीमेंट है.
Q कारोबारी चुनौतियां कब-कब आयीं और कैसे उनका मुकाबला किया?
कारोबार में समय-समय पर विभिन्न प्रकार की चुनौतियां आती रहीं. कभी इंपोर्ट का वर्चस्व बढ़ा, तो कभी लघु उद्योगों का. यहां तक कि सरकारी नीतियों के चलते भी चुनौतियां बढ़ीं, परंतु व्यावसायिक साख एवं उत्पाद की गुणवत्ता के चलते हम लोग अपना कारोबार उत्तरोत्तर बढ़ाते गये. 1996 का वर्ष हमारे कारोबार के लिए सबसे बड़ी चुनौती लेकर आया, तो दूसरी तरफ प्रगति का मार्ग खोलने भी आया. माननीय सर्वोच्च न्यायालय के जंगलों की कटाई एवं कारखानों के संचालन पर रोक लगाने के बाद वहां के कारखाने बंद हो गये. कारखाने देश के विभिन्न भागों में स्थापित करने में संघर्ष तो खूब करना पड़ा पर अप्रत्याशित लाभ हुआ. नोटबंदी एवं जीएसटी के चलते कारोबार में ठहराव तो आया, पर इससे कारोबार में दूरगामी स्थिरता परिलक्षित हो रही है. हमारे कारोबार के लिए जीएसटी फायदेमंद साबित हो रहा है.
Q आपके कौन-कौन से उत्पाद किस नाम से बाजार में उपलब्ध हैं ?
हमारे प्लाईवुड व सनमाइका उत्पाद का ब्रांड ‘सेंचुरी’ है और सीमेंट का ब्रांड ‘स्टार सीमेंट’ है. 1995 तक हमारे प्लाईवुड कारोबार में पंख लग चुके थे. जरूरत थी उड़ान भरने की और नाम के पहचान की. ब्रांड के नामकरण के लिए हमने एक इनामी योजना के तहत ‘ब्रांड का नाम क्या हो’ इसके लिए सुझाव मांगे. लगभग 13000 लोगों ने सेंचुरी को ब्रांड के रूप में सुझाव दिया, विजेताओं को लॉटरी के माध्यम से इनाम दिया गया. आज सेंचुरी हमारी कंपनी की ही नहीं, मेरी भी व्यक्तिगत पहचान बन गयी है, ब्रांड को शिखर पर पहुंचाने के लिए हमने ‘सर्वदा सर्वोत्तम’ मंत्र का जाप किया.
Q ग्राहक सेंचुरी प्लाई ही क्यों खरीदे ?
ग्राहक कोई भी उत्पाद खरीदता है, उसकी इच्छा होती है कि वह लंबे समय तक उसका साथ दे. सेंचुरी प्लाईवुड की दुनिया में नंबर वन ब्रांड है और यह संभव हो पाया है क्योंकि हमने गुणवत्ता के साथ कभी समझौता नहीं किया. प्लाई लंबे समय तक टिकाऊ बना रहे, इसके लिए प्लाई बनाते समय विभिन्न कीटनाशक रसायन पदार्थ मिलाते रहे, कोटिंग करवाते रहें ताकि उस में घुन-दीमक न लगे. समय के साथ हुआ भुरभुरा (वोरल) न बने. कंपनी के कारखाने में ही ज्यादातर कीटनाशक केमिकल बनाये जाते हैं. साथ ही ग्राहकों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए भी हम प्लाई बनाते हैं. सनमाइका के उत्पादन में हम ग्राहकों के मन पसंद डिजाइन व रंग को प्राथमिकता देते हैं. हमारा अनुभव है कि किसी भी ब्रांड को लोकप्रिय बनाने के लिए उत्पाद की गुणवत्ता व ग्राहकों की संतुष्टि की बड़ी भूमिका होती है. यही कारण है कि सेंचुरी सब से जुबान पर है.
Q एक व्यवसाय का सामाजिक सरोकार क्या होना चाहिए ?
एक व्यवसायी का ही क्यों, हर व्यक्ति का अपना सामाजिक सरोकार होना चाहिए. मेरा अनुभव है कि पहले व्यक्ति अपने को संपन्न और मजबूत बनाये, तभी कोई समाज के लिए पुष्कर ही कर सकता है. मेरा मानना है कि आर्थिक संपन्नता भागवत कृपा एवं भाग्य प्रदत्त ज्यादा होती है.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम समस्त उपलब्धियों के न्यासी मात्र हैं. हमें सभी उपलब्ध साधनों का समाज एवं दीन-हीन व्यक्तियों के लिए सार्थक उपयोग करना चाहिए. दान धन की सर्वोत्तम गति है. इसके अलावा और दो गति है – भोग और नाश. कारोबार के साथ सामाजिक कार्यों में मेरी गहरी गहरी रुचि बचपन से ही थी. स्कूली दिनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जुड़ा हूं. कॉलेज के दिनों में छात्र संघ के संगठन से जुड़ा रहा, यही जुड़ाव मेरे सामाजिक कार्यों का आधार बना.
आपकी सफलता का मूल मंत्र क्या है?
मेरी सफलता का मूल मंत्र कड़ी मेहनत, ईमानदारी और ईश्वरीय कृपा है. साथ ही अपनी व्यावसायिक सूझ-बूझ व कर्मचारियों के टीम वर्क के चलते सफलता मिली. मेरी सफलता में परिवार और मित्रों का भी पूरा सहयोग रहा. यह देखकर अच्छा लगता है कि पुत्र केशव भजनका पार्टनर संजय अग्रवाल के साथ कारोबार को नया आयाम देने के लिए सक्रिय हैं.
सफलता में परिवार की क्या भूमिका रही है ?
मेरी सफलता में मेरे परिवार की बड़ी भूमिका रही है. मेरी धर्मपत्नी संतोष ने बच्चों को अच्छे संस्कार दिये हैं. पुत्र केशव और पुत्रियां श्रद्धा, सोनू और पायल को शिक्षा-दीक्षा में पत्नी ने विशेष ध्यान दिया. मुझे तो व्यवसाय के सिलसिले में भागदौड़ करनी पड़ती थी, जहां मैंने व्यावसायिक मोर्चे को संभाला, तो पत्नी ने घरेलू मोर्चे को. मेरी सफलता में कंपनी के कर्मचारियों, वितरकों की मेहनत की भी बड़ी भूमिका है.
ब्रांड को पहचान दिलाने में विज्ञापन की भूमिका क्या है ?
आज के स्पर्धा के युग में उत्पाद की क्वालिटी के साथ कारोबार को बढ़ाने में विज्ञापन की बड़ी भूमिका है. आपके ब्रांड को ग्राहक आसानी से विज्ञापन के जरिये पहचान लेते हैं और प्रयोग करते हैं. विश्वास पैदा करते हैं. विज्ञापन ग्राहकों तक अपनी बात पहुंचाने का बढ़िया माध्यम है. मेरी निजी राय यह है कि कारोबार को बढ़ाने में गुणवत्ता पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, इसी प्राथमिकता के चलते सेंचुरी नये-नये कीर्तिमान को गढ़ रहा है.
आपके जीवन में किसका ज्यादा प्रभाव पड़ा है?
बचपन से लेकर आज तक कई लोगों का मेरे जीवन पर प्रभाव पड़ा है. अाध्यात्मिक क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद का एवं व्यावसायिक क्षेत्र में घनश्यामदास बिड़ला और जेआरडी टाटा के जीवन ने मुझे प्रभावित किया है. मैंने स्वामी विवेकानंद का साहित्य का अध्ययन किया है. उनके कर्मयोग के प्रति मेरी गहरी आस्था है. विशेष स्कूली शिक्षा न होने के बावजूद, अपना खुद का रास्ता चुना है.
आपका शौक ?
फोटोग्राफी एवं शतरंज का शौक बचपन से है लेकिन कपड़े का शौक नहीं है. व्यक्तिगत रूप से मेरे पास बहुत कम कपड़े हैं. एक-दो कलर के कपड़े पहनता हूं. कई लोग मुझे टोकते हैं वही पुराना. मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरा मानना है कि कपड़ों पर ज्यादा खर्च करना धन का अपव्यय है. ईश्वर की कृपा से बचपन से अच्छे कार्यों में सहयोग के प्रति रुझान रहा है.