पुस्तक का नाम- मैं कविता कहूं, तुम सुनो रातभर

प्रकाशक – नोशन प्रेस मूल्य – 100 रुपये फ्लिपकार्ट, अमेजन, इंफिबीम व नोशन प्रेस की साइट पर उपलब्ध. इसके और क्या है शायरी मेरी/हर्फ़-हर्फ़ उसकी शबाहत है क्या कीजै…’ ग़ज़लगो कुमार राहुल की पहली किताब ‘मैं कविता कहूं, तुम सुनो रातभर’ का यह शेर ही इस किताब का परिचय है. पटना के इस युवा शायर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2018 8:21 AM

प्रकाशक – नोशन प्रेस

मूल्य – 100 रुपये

फ्लिपकार्ट, अमेजन, इंफिबीम व नोशन

प्रेस की साइट पर उपलब्ध.

इसके और क्या है शायरी मेरी/हर्फ़-हर्फ़ उसकी शबाहत है क्या कीजै…’ ग़ज़लगो कुमार राहुल की पहली किताब ‘मैं कविता कहूं, तुम सुनो रातभर’ का यह शेर ही इस किताब का परिचय है. पटना के इस युवा शायर की यह किताब इसी महीने आयी है.

और ऑनलाइन मार्केटिंग पोर्टलों पर जहां-तहां बिक रही हैं. दिलचस्प है कि यह किताब बिहार सरकार की उस योजना के जरिये सामने आयी है, जिसके तहत लेखकों को उनकी पहली अप्रकाशित पुस्तक प्रकाशित करने का अनुदान मिलता है. इस साल सचिवालय(राजभाषा) विभाग से जिन दो किताबों को छपने का अंशानुदान मिला है, यह उनमें से एक किताब है.

इस किताब के लेखक कुमार राहुल पटना के रहने वाले हैं. 1991 में यहीं जनमे और यहीं पढ़ाई-लिखाई की. वह कहते हैं, प्रेम में जिये अनुभवों का कविताई सफर है, मेरी किताब ‘मैं कविता कहूं, तुम सुनो रातभर’. बकौल शायर उन्होंने जब जैसा जीया, जैसा महसूस किया, उसे गज़लों और गीतों में पिरोते चले गये. मसलन कभी जो मुंतज़िर रहे तो लिख दिया, ‘ठहरी नदी में जैसे बल होते हैं/इंतज़ार के वैसे ही पल होते हैं’, जिंदगी से जब रब्त छूटने लगा तो कहा, ‘हम तो ख़ैर बुत हुए जाते हैं मगर/जिंदगी तेरा रुख तेरी अंगड़ाई देखेंगे’.

उन्स के दिनों में जिये खट्टे-मीठे हर लम्हात चाहे वो खुशी के रहे हों, ख़लिश के रहे हों, शिकायत के रहे हों या फिर नदामत के ही क्यों न हों उन सब को अपने कलेवर अपने अंदाज़ में संजोने की पहली कोशिश है ये संग्रह.

कवि का परिचय- जन्म 9 जून, 1991 को बिहार के पटना जिले में. पटना विश्वविद्यालय से वाणिज्य विषय में परास्नातक की शिक्षा प्राप्त की और फिलहाल पटना में ही अध्यापन कार्य कर रहे हैं.

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