गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत

एस इरफान हबीब इतिहासकार एवं लेखक रोजगार मिलने के लिहाज से दुनिया के शीर्ष सौ संस्थानों में शामिल होने के लिए आईआईटी और आईआईएससी जैसे संस्थानों पर हम रस्क तो कर सकते हैं, लेकिन इस रैंकिंग में कुछ खास नया नहीं है, क्योंकि यह संख्या बहुत कम है. यहां पहली बात समझनेवाली यह है कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 18, 2018 5:40 AM

एस इरफान हबीब

इतिहासकार एवं लेखक

रोजगार मिलने के लिहाज से दुनिया के शीर्ष सौ संस्थानों में शामिल होने के लिए आईआईटी और आईआईएससी जैसे संस्थानों पर हम रस्क तो कर सकते हैं, लेकिन इस रैंकिंग में कुछ खास नया नहीं है, क्योंकि यह संख्या बहुत कम है.

यहां पहली बात समझनेवाली यह है कि आईआईटी, आईआईएससी और आईआईएम जैसे शीर्ष संस्थानों में बहुत दक्ष लोग ही दाखिला ले पाते हैं. इसके लिए एक कठिन प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजरना पड़ता है, जो जरूरी भी है. दूसरी बात यह कि हमने अपने यूनिवर्सिटी सिस्टम को सुधारने की कोई कोशिश ही नहीं की, जिसका नुकसान यह हुआ है कि अच्छे-खासे डिग्रीधारक युवा रोजगार के काबिल नहीं बन पाते. दो-चार विश्वविद्यालयों को छोड़ दें, तो देश के बाकी विश्वविद्यालयों का बहुत बुरा हाल है.

यही वजह है कि ये विवि रोजगार मिलने के लिहाज से किसी रैंकिंग में नहीं आ पाते हैं, क्योंकि शैक्षिक गुणवत्ता का स्तर निम्न होने के चलते पासआउट युवा रोजगार नहीं पा सकते. कंपनियां और हम खुद भी उन युवाओं पर इल्जाम तो लगाते हैं कि वे किसी काम के नहीं हैं, लेकिन हम शैक्षिक संस्थानों की व्यवस्था को दोष नहीं देते कि वे सिर्फ डिग्रियां क्यों बांट रहे हैं, गुणवत्ता क्यों नहीं बढ़ा रहे हैं.

रोजगार मिलने के लिहाज से शीर्ष संस्थानों में ही प्रतिस्पर्धा रहती है, इसीलिए रैंकिंग में इनमें से किसी-किसी का नाम आ जाता है और हम खुश हो जाते हैं.

हमें खुश तो तब होना चाहिए, जब विश्व के शीर्ष सौ संस्थानों में हमारे बीस-तीस संस्थान रैंकिंग में शामिल हो पाते. लेकिन इसके लिए हमें अपनी शिक्षा-व्यवस्था में व्यापक स्तर पर सुधार और कुछ बदलाव करने होंगे. प्रोफेशनल कॉलेजों और प्रोफेशनल ट्रेनिंग देनेवाले बड़े और सुविधासंपन्न संस्थानों को खोले जाने की जरूरत है, ताकि स्कूलिंग के बाद से ही बच्चों में एक समझ विकसित हो सके कि उन्हें एक बेहतरीन कैरियर की ओर जाना है. अच्छे विश्वविद्यालयों के साथ ही हमें ऐसे संस्थानों की भी जरूरत है, क्योंकि हर बच्चा विश्वविद्यालयों में पढ़कर शौध जैसा काम नहीं कर सकता. हर बच्चे की अपनी क्वॉलिटी होती है, उसे उसकी क्वॉलिटी के ऐतबार से शिक्षा मिले, तो रोजगार का स्तर खुद ही बढ़ जायेगा.

जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था हमारे यहां चल रही है, ऐसी हालत में देशभर के विश्वविद्यालयों से यह उम्मीद करना बेमानी है कि इनसे निकले बच्चों को बड़ी नौकरियां मिलेंगी. हमने सिर्फ संस्थानों की संख्या बढ़ायी है, गुणवत्ता पर जरा भी ध्यान नहीं दिया है. जबकि, देश की तरक्की के लिए गुणवत्तापरक शिक्षा की जरूरत है और इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा के बजट में कटौती न करे, बल्कि बजट और बढ़ाये.

यह सिर्फ इस सरकार की बात नहीं है, बल्कि पिछली सरकारों ने भी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया. तमाम फैकल्टियों में नियुक्तियां नहीं हो रही हैं और न ही रोजगार बढ़ाने के लिहाज से प्रोग्राम ही चलाये गये हैं. इधर सरकार इन चीजों पर ध्यान नहीं देती और उधर बेशुमार निजी संस्थान खुलते जा रहे हैं, जो सिर्फ संख्या मात्र हैं, इनमें गुणवत्ता गायब है. हमारी बुनियाद इतनी कमजाेर है कि हमें इसे मजबूत किये बिना हम किसी भी रैंकिंग में आने के काबिल नहीं हो सकते हैं.

वर्ष 2018-19 में उच्च शिक्षा केलिए राशियों का आवंटन

विभाग 2017-18 2018-19 अंतर(प्रतिशत में)

केंद्रीय विश्वविद्यालय 7,261 6,445 -11.2

आईआईटी 8,245 6,326 -23.3

यूजीसी व एआईसीटीई 5,408 5,028 -4

एनआईटी 3,668 3,203 -12.7

आईआईएम 1,068 1,036 -3

आईआईआईटी 369 364 -1.5

आईआईएसईआर 715 689 -3.6

डिजिटल इंडिया ई-लर्निंग 518 456 -12

एचईएफए 250 2,750 1,000

स्टूडेंट्स फाइनेंशियल एड 2,244 2,600 15.9

आरयूएसए 1,300 1,400 7.7

शोध व नवाचार 319 350 9.7

अन्य 3,496 4,182 20

कुल 34,862 35,010 0.4

स्रोत : एमएचआरडी, केंद्रीय बजट 2018-19, पीआरएस

बातचीत : वसीम अकरम

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