इंदिरा गांधी की 101 वीं जयंती पर विशेष : कठिन फैसलों ने इंदिरा को बनाया आयरन लेडी

जन्म: 19 नवंबर 1917, इलाहाबाद मृत्यु : 31 अक्तूबर 1984, नयी दिल्ली देश की प्रथम और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री भारत रत्न इंदिरा गांधी का आज 101वां जन्म दिन है. भारतीय राजनीति में वह एक मिथक थीं और उनका कार्यकाल एक युग के तौर पर रेखांकित किया जाता है. उन्होंने राष्ट्र के संदर्भ में कई ऐसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 19, 2018 4:42 AM

जन्म: 19 नवंबर 1917, इलाहाबाद

मृत्यु : 31 अक्तूबर 1984, नयी दिल्ली

देश की प्रथम और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री भारत रत्न इंदिरा गांधी का आज 101वां जन्म दिन है. भारतीय राजनीति में वह एक मिथक थीं और उनका कार्यकाल एक युग के तौर पर रेखांकित किया जाता है. उन्होंने राष्ट्र के संदर्भ में कई ऐसे फैसले लिये, जिनका वैश्विक स्तर पर ऐतिहासिक प्रभाव हुआ और भारत की पहचान एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरी. इन फैसलों के कारण उन्हें भारत की ‘जॉन ऑफ आर्क’ और ‘आयरन लेडी’ भी कहा गया. उनके जन्मदिन पर पेश है यह विशेष आयोजन.

इंदिरा गांधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए विश्व राजनीति के इतिहास में जानी जाती हैं. उनका मानना था कि संतोष प्राप्ति से नहीं, बल्कि प्रयास से मिलता है और पूरा प्रयास पूर्ण विजय है.

वह खुद पर यकीन करती थीं. इसी यकीन की बदौलत उन्होंने अपने कार्यकाल को भारतीय राजनीति और सत्ता का एक युग बना दिया, अपने प्रयोगों को भारत के भविष्य की लकीर बना दी और बाद की राजनीतिक पीढ़ी को एक समृद्ध-चिंतनशील परंपरा विरासत में दी.

उन्हें इस बात का भरोसा था कि वह किसी अन्य भारतीय की तुलना में यह बेहतर तरीके से जानती हैं कि भारत के लिए क्या अच्छा और श्रेष्ठ हो सकता है. हालांकि इंदिरा को एक राजनीतिक नेता के रूप में बहुत ही निष्ठुर माना जाता है, किंतु इस निष्ठुरता में मूल में भारतीय मन की वह संवेदना निहित थी, जिसमें राष्ट्र को सर्वोपरि मानने की प्रतिबद्धता और गढ़ने की बेचैनी थी. इसी प्रतिबद्धता और बेचैनी में उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री प्रशासन का केंद्रीकरण किया.

भारत की सार्वभौमिकता का वैश्विक शक्तियों को एहसास कराने के लिए बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत-पाक युद्ध की परिस्थितियों को स्वीकार किया और बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी. हालांकि आपातकाल और पंजाब से आतंकवाद का सफाया करने के लिए अमृतसर स्थित सिखों के पवित्र स्थल ‘स्वर्ण मंदिर’ में सेना और सुरक्षा बलों को भेजकर ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के फैसले के लिए उनकी आलोचना अब भी होती है, किंतु दोनों फैसलों में भी उनकी दृढ़ता के पूर्ण प्रमाण मिलते हैं.

ऑपरेशन ब्लू स्टार उनके राजनीतिक जीवन की अहम घटना तो थी ही, उनके अपने जीवन के लिए भी बड़ी घटना थी. इस ऑपरेशन के बाद ही उनके दो अंगरक्षकों ने धार्मिक उन्माद में उनकी हत्या कर दी. इंदिरा जी को इसका एहसास पहले ही हो चला था. तभी उन्होंने अपनी हत्या के पहले ही कहा था कि अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूं, तो मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं.

इंदिरा जी की भारत ही नहीं, वैश्विक राजनीति और संस्कृति, खास कर एशियाई देशों के बीच सहयोग और शांति में बड़ी देन है. इसके लिए उन्हें 1972 में भारत रत्न, 1972 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए मेक्सिकन अकादमी पुरस्कार, 1973 में एफएओ का दूसरा वार्षिक पदक, 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा साहित्य वाचस्पति (हिंदी) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.

कड़े फैसले लिये, आलोचनाएं झेलीं

इंदिरा गांधी भारत की सबसे सफल और ताकतवर प्रधानमंत्री रहीं, लेकिन, वह शुरू से ऐसी नहीं थी. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया तो इंदिरा को ‘गूंगी गुड़िया’ कहा करते थे, परंतु वह इन सबसे नहीं घबरायीं.

उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कड़ी साधना की, कड़े फैसले लिये, आलोचनाएं झेलीं. इसमें उनके निजी सचिव पीएन हक्सर का बड़ा सहयोग रहा. इंदिरा जी ने गूंगी गुड़िया के इमेज से निकलकर एक ‘लौह महिला’ के रूप में लोकप्रियता हासिल की. बैंकों के राष्ट्रीयकरण, अपने मजबूत विरोधी मोरारजी देसाई को वित्त मंत्रालय से हटाने और बांग्लादेश गठन में सहयोग का फैसला, सबमें उनकी आयरन लेडी की छवि दिखी.

कांपते थे हाथ, पर हिम्मत नहीं छोड़ी

संसद में मीनू मसानी, नाथ पाई और राम मनोहर लोहिया जैसे दिग्गज इंदिरा गांधी के एक-एक शब्द में नुख्स निकालते थे. सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में संसद में किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए खड़ी होने पर उनके हाथ बुरी तरह से कांपने लगते थे, लेकिन उन्होंने अपनी इस कमजोरी पर विजयी पायी और तब उनमें जो आत्मविश्वास आया, उसने साथ कभी नहीं छोड़ी.

मैं रहूं या न रहूं, मुझे इसकी चिंता नहीं

30 अक्तूबर, 1984 को इंदिरा गांधी ने भुवनेश्वर में अपना अंतिम चुनावी भाषण दिया था. भाषण को उनके सूचना सलाहकार एचवाइ शारदा प्रसाद ने तैयार किया था. भाषण के वक्त अचानक उन्होंने लिखा हुआ भाषण पढ़ने की बजाय दूसरी ही बातें बोलनी शुरू कर दी.

उन्होंने कहा कि मैं आज यहां हूं. कल शायद यहां न रहूं. मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं. मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है. मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी, तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा. उनके इस भाषण से लोग आश्चर्यचकित रह गये थे. पार्टी के लोग भी यह नहीं समझ पाये थे कि आखिर इंदिरा जी ने ऐसा क्यों कहा था?

इंदिरा ने अपने आपको कभी बड़ा नहीं समझा

एक तेज तर्रार एवं कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर पहचान रखने वाली इंदिरा गांधी के जीवन के कई शेड्स थे, जो कई मौकों पर लोगों को देखने को मिले.

बदइंतजामी से हुईं परेशान खुद लगाया भुट्टो का पलंग

1972 में पाक के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो शांति वार्ता के लिए शिमला आये. हिमाचल भवन में ठहरने का इंतजाम खुद इंदिरा ने किया. उन्होंने खुद उस शयन कक्ष को सजाया, जिसमें भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर के साथ ठहरने वाले थे.

तौलिया भिंगोने की दी सलाह

एक बार इंदिरा जी पश्चिम बंगाल के सर्किट हाउस में ठहरी थीं. उनके इस्तेमाल के लिए बाथरूम में नया तौलिया रखा गया. इस पर उन्होंने जिला के कलक्टर से कहा कि नया तौलिया तब तक गीलापन नहीं पोंछता, जब तक उसे एक बार धोया नहीं जाये.

देखते ही की साड़ी की पहचान

एक यात्रा के दौरान उन्होंने एक लड़की को देख कर अपने पीछे बैठे आइबी निदेशक गोपाल दत्त से पूछा कि क्या आप बता सकते हैं कि वह लड़की कौन-सी साड़ी पहनी हुई है? गोपाल दत्त ने कहा कि लगता है सिल्क की साड़ी है मैम. इंदिरा गांधी ने तुरंत उन्हें सही करते हुए कहा कि यह सिल्क नहीं है मिस्टर दत्त, यह कोयंबटूर की हैंडलूम है.

1969 में इसरो की स्थापना

इंदिरा ने स्वतंत्र वैज्ञानिक अनुसंधान की नीतियों को आगे बढ़ाते हुए अगस्त, 1969 में इसरो की स्थापना की. अंतरिक्ष आयोग का गठन कर जून, 1972 में अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की.

प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत

इंदिरा ने भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1973 में की. एक अवसर पर सोनिया ने बताया कि उनकी सास 1960 के दशक में दिल्ली के प्रख्यात नेहरू पार्क के निर्माण के समय वहां घंटों बैठ कर योजना बनाती थीं कि वहां कौन-कौन से पेड़ और फूल लगाये जाने चाहिए.

फैसले, जिनसे देश में आया बड़ा बदलाव

भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी को एक तेज तर्रार और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता वाली नेता के रूप में याद किया जाता है. वह देश ही नहीं, दुनिया की सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार की जाती हैं. इंदिरा ने अपनी जिंदगी में जो फैसले लिये, उसने देश की तस्वीर बदल दी. डालते हैं कुछ ऐसे ही फैसलों पर नजर –

20 सूत्री कार्यक्रम

प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने 1975 में देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र से गरीबी हटाने के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम की शुरुआत की थी. इसमें गरीबी हटाओ, रोजगार और शिक्षा महत्वपूर्ण मुद्दे थे. ये वैसे मुद्दे थे, जिनसे उस समय ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्र जूझ रहे थे.

बैंकों का राष्ट्रीयकरण

इंदिरा गांधी ने 1969 में 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया. तत्कालीन वित्त मंत्री मोराजी देसाई ने इसे अस्वीकार कर दिया. बाद में 19 जुलाई, 1969 को एक अध्यादेश के जरिये बैंकों के स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिये गये. उस समय बैंक के पास देश की 70 प्रतिशत जमापूंजी थी.

महाराजाओं की मान्यता समाप्त

लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए इंदिरा गांधी ने राजा-महाराजाओं की मान्यता समाप्त करने हेतु एक प्रस्ताव लोकसभा से 23 जून, 1967 को पारित करवाया. इस प्रस्ताव को राज्यसभा में ठुकरा दिया गया था, लेकिन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने इस प्रस्ताव को अनुमति दे दी.

भारत-पाकिस्तान युद्ध

पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता था. 1971 में इंदिरा गांधी के शासनकाल में भी पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ा. इंदिरा जी उस समय सशक्त निर्णय लेने वाली प्रधानमंत्री थीं. उनके नेतृत्व में भारत ने ऐसी जंग लड़ी, जिसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.

पोखरण परमाणु परीक्षण

18 मई, 1974 को सुबह आठ बजकर पांच मिनट पर भारत ने पोखरण में एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया. इस परमाणु परीक्षण को इंदिरा गांधी के आदेश पर किया गया था तथा इस परीक्षण के बाद भारत पूरे विश्व की नजरों में आ गया. साथ ही, भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश भी बन गया.

बांग्लादेश का उदय

आजादी से पहले अंग्रेजों ने हिंदू बंगालियों के लिए प बंगाल और मुस्लिम बंगालियों के लिए पूर्वी पाकिस्तान बना दिये थे. 1971 में जब बांग्ला शरणार्थी भारत आ रहे थे, तब पाक सेना ने जंग छेड़ दी. भारत ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया. 16 दिसंबर को भारतीय सेना ढाका पहुंची और पाक फौज को आत्मसमर्पण करना पड़ा. इसके बाद नये देश बांग्लादेश का उदय हुआ.

एशियाई खेलों का आयोजन

इंदिरा गांधी ने 1982 में एशियाई खेलों का आयोजन कर पूरी दुनिया को बता दिया कि भारत भी एशियाई खेलों का आयोजन कर सकता है. इन खेलों के आयोजन के लिए इंदिरा गांधी ने स्वयं बहुत मेहनत की थी. हर चीज की जांच और व्यवस्था उन्होंने खुद करवायी थी.

हरित क्रांति

एक समय ऐसा भी था, जब देश अकाल और भुखमरी से जूझ रहा था. उस समय भी इंदिरा गांधी ने धैर्य के साथ इस मुसीबत का सामना किया. उन्होंने अमेरिका के साथ मिलकर हरित क्रांति पर काम किया. देश में बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके किसानों को कम ब्याज दर पर कर्ज मुहैया कराये.

गरीबी हटाओ

आजादी के बाद से ही देश में गरीबी और बेरोजगारी थी. इंदिरा गांधी ने पीएम रहते हुए भारत की गरीबी हटाने का निश्चय किया. उनके गरीबी हटाओ के नारे ने ही उन्हें दूसरी बार चुनावों में भारी मतों से विजयी बनाया. भारत की जनता की चहेती पीएम इंदिरा ने गरीबी हटाने के अथक प्रयास किये.

इमरजेंसी

देश के आंतरिक हालात को बिगड़ता देख देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी. 26 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया गया. विरोधियों की गिरफ्तारी के आदेश दे दिये. पूरे देश में आपातकाल लगाया गया. इस आपातकाल का असर उनके चुनावी परिणाम पर हुआ जिसमें उनकी हार हुई.

भारतीय सेना से था विशेष लगाव

इंदिरा जी सिर्फ कठोर फैसले लेने वाली एक नेता नहीं थीं, उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलू थे. कभी वह प्रकृति प्रेमी के रूप में नजर आतीं, तो कभी किसी कठिन मिशन में लोगों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हो जातीं. भारतीय सेना के साथ उनका लगाव अद्भुत था.

इंदिरा गांधी किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करती थीं. सभी धर्मों को वह बराबर सम्मान देती थीं. वैष्णो देवी के दर्शन करने गुफा में जातीं इंदिरा गांधी.इंदिरा गांधी को प्रकृति से बड़ा प्रेम था. पशुओं से वह बहुत स्नेह रखती थीं. बाघों की घटती संख्या पर उन्होंने प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की.

गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेने आये एनसीसी कैडेटों को खाना परोसतीं इंदिरा गांधी

राजस्थान में एक चुनावी यात्रा के दौरान पानी लाने वाली महिलाओं का हालचाल जाना. उनकी जैसी वेशभूषा धारण कर पानी ढोया.

सेना के जवानों के बीच जाकर वह अक्सर उनका उत्साह बढ़ातीं. उनके बीच खुशियां बांटतीं. ऐसे ही एक मौके पर सेना के जवानों को ऑटोग्राफ देतीं इंदिरा गांधी.

Next Article

Exit mobile version