मलेरिया के मामलों में आयी कमी, लेकिन बड़ी चुनौतियां बरकरार
पूर्व एशिया सम्मेलन 2015 में प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2030 तक भारत मलेरिया उन्मूलन के लिए पूर्णत: प्रतिबद्ध है. इसी संकल्प के साथ बीते वर्ष मलेरिया मुक्ति के लिए व्यापक राष्ट्रीय सामरिक योजना शुरू की गयी. सार्वजनिक स्वास्थ्य की तमाम चुनौतियों बावजूद इस दिशा में किये जा रहे प्रयास सफल होते नजर आ रहे […]
पूर्व एशिया सम्मेलन 2015 में प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2030 तक भारत मलेरिया उन्मूलन के लिए पूर्णत: प्रतिबद्ध है. इसी संकल्प के साथ बीते वर्ष मलेरिया मुक्ति के लिए व्यापक राष्ट्रीय सामरिक योजना शुरू की गयी.
सार्वजनिक स्वास्थ्य की तमाम चुनौतियों बावजूद इस दिशा में किये जा रहे प्रयास सफल होते नजर आ रहे हैं. हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट-2018 के अनुसार, भारत में मलेरिया के मामलों में 24 प्रतिशत की गिरावट आयी है. हालांकि, ओडिशा, महाराष्ट्र समेत कुछ राज्यों में अपेक्षित सफलता के लिए बड़े प्रयास की दरकार बनी हुई है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के संदर्भों और देश में मलेरिया के मामलों तथा कार्यक्रमों की जानकारी के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
गंभीर और संक्रामक बीमारी है मलेरिया
मलेरिया एक प्रकार की जटिल और संक्रामक मानव बीमारी है, जिससे दुनियाभर में हर साल लाखों मौतें हो जाती हैं. यह एनॉफिलीज मादा मच्छरों से फैलती है. जनन प्रक्रिया के लिए मादा मच्छर मानव रक्त का इस्तेमाल करती हैं. इस प्रक्रिया को एंटीरियर स्टेशन ट्रांसफर कहा जाता है. माना जाता है कि प्लाजमोडियम परजीवी का जीवन दो चक्रों में दो अलग-अलग जीवधारियों (मच्छर और मानव शरीर में) में पूरा होता है. प्लाजमोडियम परजीवी को रोगाणुओं और मानव प्रतिरक्षा तंत्र से चुनौती मिलती है. इसके अलावा दवाओं और वैक्सीन के माध्यम से भी इसकी रोकथाम की जाती है. हालांकि, कम अवधि का जीवन (लेकिन उच्च उद् विकास दर) होने के बावजूद भी परजीवी तेजी से कंडीशन के मुताबिक ढल जाते हैं. यही वजह कि कारगर इलाज के लिए कई बार प्रयास नाकाफी साबित हो जाते हैं. ऐसे में मलेरिया रिसर्च के क्षेत्र में अभी लगातार प्रयास करते रहने की जरूरत है.
11 देशों में लगभग 70 प्रतिशत पीड़ित
70 प्रतिशत (15.1 करोड़) मलेरिया के मामले सामने आये केवल 11 देशों से वर्ष 2017 में और इसी कारण 2,74,000 लोगों की जान गयी इन देशों में. इन 11 देशों में 10 अफ्रीकी देश (बुर्किना फासो, कैमरून, कॉन्गो, घाना, माली, मोजाम्बिक, नाइजर, नाइजीरिया, युगांडा व तंजानिया) और भारत शामिल हैं.
35 लाख अधिक मरीज सामने आये मलेरिया के इन 10 अफ्रीकी देशाें में 2017 में पिछले वर्ष के मुकाबले, जबकि भारत में मरीजों की संख्या में कमी दर्ज की गयी.
80 प्रतिशत के करीब मलेरिया पीड़ित, कुल वैश्विक प्रतिशत का 15 प्रतिशत सब-सहारा अफ्रीकी देशों और भारत में हैं.
स्रोत : विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2018
विश्वभर में 21 करोड़ से अधिक लोग मलेरिया संक्रमित
एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2017 में दुनियाभर में 21.9 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित रहे. इससे पहले 2016 में पीड़ितों की संख्या 21.7 करोड़ थी. हालांकि, पूर्व के वर्षों में रोगियों की संख्या में तेजी से कमी आ रही थी.
मलेरिया संक्रमित लोगों की संख्या वर्ष 2010 में 23.9 करोड़ थी, जो 2015 में घटकर 21.4 करोड़ पर पहुंच गयी. मलेरिया से वर्ष 2017 में होनेवाली मौत की कुल संख्या अनुमानत: 4,35,000 रही. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसी महीने जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2018 के अनुसार.
बड़े प्रयासों की दरकार
मलेरिया संभावित क्षेत्रों में बहुआयामी प्रयासों की जरूरत, मलेरिया को खत्म करने के लिए सामुदायिक स्तर पर जागरूकता और बचाव कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
मलेरिया का फैलाव रोकने के लिए शुरुआती स्तर पर जांच और इलाज सुनिश्चित करना जरूरी है. राज्य स्तर पर सरकारों को मलेरिया उन्मूलन के लिए विशेष कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए, साथ ही निजी क्षेत्र के अस्पतालों को इस आशय की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को भेजनी चाहिए.
व्यापक निगरानी और आंकड़ा एकत्रीकरण से सही स्थिति की जानकारी के साथ-साथ कार्यक्रमों का मूल्यांकन भी किया जा सकेगा. इन्सेक्टिसाइड-ट्रीटेड नेट (आईटीएन) मलेरिया से बचाव में बेहद महत्वपूर्ण है, इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जरूरत है.पड़ोसी देश श्रीलंका से सीखने की जरूरत, हेल्थ डिप्लोमेसी के माध्यम से इस क्षेत्र में सफल हो चुके देशों के साथ आनेवाले वर्षों में साझा प्रयास कर नये कार्यक्रम बनाये जा सकते हैं.
कई देशों में मिले सकारात्मक परिणाम
मलेरिया उन्मूलन की दिशा में काम कर रहे कई देशों में इसमें अपेक्षित कामयाबी हासिल की है. पड़ोसी देश श्रीलंका को मलेरिया मुक्त देश घोषित किया जा चुका है. इसके पहले किर्गिजिस्तान यह सफलता प्राप्त कर चुका है. इसके अलावा जांबिया समेत 21 अन्य देश 2021 तक मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ रहे हैं.
देश के पिछड़े क्षेत्रों में मलेरिया का असर सर्वाधिक
दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में मलेरिया से होनेवाली मौतों के मामले में भारत सबसे अधिक प्रभावित देश है. हाल के वर्षों में मलेरिया के ज्यादातर मामले सीमांत क्षेत्रों, वन्य क्षेत्रों और आदिवासी क्षेत्रों में सामने आये हैं. इनमें ओड़िशा सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित राज्य रहा. रोगों से बचाव संबंधित जानकारी नहीं होने के कारण वेक्टर बॉर्न डिसीजेज (कीटाणु जनित) के मामले बच्चों में अधिक पाये जाते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार मलेरिया के 80 प्रतिशत मामले देश की 20 फीसदी आबादी में पाये गये, जो देश के 200 भारी जोखिम वाले जिलों में रहती है.
आर्थिक स्थिति भी होती है प्रभावित
मलेरिया गंभीर स्वास्थ्य समस्या ही नहीं, बल्कि देश की बड़ी आबादी पर पड़नेवाला बड़ा आर्थिक बोझ भी है. मलेरिया जैसी कई गंभीर बीमारियों के चलते देश में हर साल छह करोड़ लोग भयावह गरीबी के जाल में फंस जाते हैं. मलेरिया के ज्यादातर मामलों में इलाज के लिए लोग सरकारी अस्पतालों में जाने के बजाय निजी अस्पतालों में जाते हैं, जिससे अचानक आये आर्थिक बोझ में उबर पाना कई परिवारों के लिए काफी मुश्किल हो जाता है.
मलेरिया उन्मूलन में हैं अभी कई बाधाएं
मलेरिया उन्मूलन के लिए सबसे पहले निगरानी तंत्र को बेहतर बनाये जाने की जरूरत है. अभी भी देश में ज्यादातर हिस्सों में मलेरिया से संबंधित मामलों की जानकारी एकत्र नहीं हो पाती है और न ही उनका समय रहते उचित इलाज हो पाता है.
इलाज का खर्च वहन करने के लिए प्रति व्यक्ति व्यय भुगतान की उचित व्यवस्था नहीं हो पाने से कई बार जरूरतमंद इलाज से वंचित रह जाते हैं. दक्षिणी वियतनाम में मलेरिया परजीवी के दवा-प्रतिरोधी होने के मामले भी आये हैं. इससे इलाज की पुरानी विधा कमजोर पड़ रही है. वियतनाम के भारत के पूर्वोत्तर सीमा क्षेत्र के नजदीक होने के कारण इस गंभीर समस्या का भय तेजी से बढ़ रहा है.
मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय सामरिक योजना
वर्ष 2030 तक स्थानीय स्तर पर मच्छर जनित रोगों की रोकथाम के लिए भारत ने नेशनल स्ट्रेटेजिक प्लान फॉर मलेरिया एलिमिनेशन की शुरुआत की है. कार्यक्रम के तहत मच्छरों से होनेवाले संक्रमण को रोकने और जनजागरूकता बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध कार्य किया जायेगा. कार्यक्रम में आधारभूत कार्ययोजना, योजना को प्रभावी तरीके से लागू करने और निगरानी पर विशेष रूप से फोकस किया जायेगा.
भारत में मलेरिया मामलों में 24 प्रतिशत गिरावट
24 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी वर्ष 2017 में भारत में मलेरिया पीड़ितों की संख्या में वर्ष 2016 की तुलना में.2,76,488 मलेरिया के मामले सामने आये हैं इस वर्ष सितंबर तक भारत में, जिनमें सर्वाधिक मामले ओडिशा से दर्ज किये गये हैं. वहीं इस बीमारी से महाराष्ट्र में इस वर्ष सितंबर तक सर्वाधिक लोगों की जान गयी है.
29 मामले ही इस वर्ष सितंबर तक दर्ज हुए हैं मलेरिया से होनेवाली मौतों के भारत में, जबकि 2017 में 194 व 2016 में 331 लोगों की जान चली गयी थी इस बीमारी से.
इस वर्ष सितंबर तक मलेरिया ने मध्य प्रदेश, मणिपुर व पुद्दुचेरी में एक-एक, असम, गुजरात, पश्चित बंगाल व त्रिपुरा में दो-दो, झारखंड, मेघालय व ओडिशा में चार-चार और महाराष्ट्र में छह लोगों की जान ली है.
मलेरिया प्रभावित राज्य
वर्ष 2017 (प्रोविजनल)
राज्य कुल मामले मृत्यु
बिहार 4,020 2
छत्तीसगढ़ 1,40,727 81
झारखंड 94,114 0
ओडिशा 3,47,860 24
पश्चिम बंगाल 31,265 29
वर्ष 2018 (सितंबर तक)
राज्य कुल मामले मृत्यु
बिहार 827 0
छत्तीसगढ़ 49,925 0
झारखंड 40,008 4
ओडिशा 55,365 4
पश्चिम बंगाल 12,415 2
स्रोत : स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार
ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य, जो मलेरिया से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं, में इस वर्ष रोगियों की संख्या और मृत्यु की संख्या में पर्याप्त कमी आयी है.
पराग्वे मलेरिया मुक्त घोषित
इस स्थिति को प्राप्त करने वाला पराग्वे 45 वर्षों में दक्षिण अमेरिका का पहला देश बन गया है. वहीं अल्जीरिया, अर्जेंटीना व उज्बेकिस्तान ने भी आधिकारिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन से इस बात का आग्रह किया है कि वह उन्हें भी मलेरिया मुक्त देश घोषित करे. 46 देश मलेरिया उन्मूलन के करीब रहे वर्ष 2017 में, जबकि 2010 में 37 देश ही इस लक्ष्य को प्राप्त करने के करीब थे.
चीन और अल सल्वाडोर में लंबे समय तक मलेरिया स्थानिक रहा था, लेकिन पिछले वर्ष इसके स्थानीय संचरण की कोई रिपोर्ट सामने नहीं आयी.
4,36,000 कम मामले सामने आये हैं इस बीमारी के 2017 में 2016 के मुकाबले रवांडा में, जबकि इसी अवधि में 2,40,000 कम मामले दर्ज हुए इथियोपिया और पाकिस्तान में भी.
प्रति दो मिनट में एक बच्चे की मृत्यु : जिन इलाकों में मलेरिया का संचरण बहुत ज्यादा है, वहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इसके संक्रमण, बीमार होने और मृत्यु का खतरा ज्यादा होता है. मलेरिया से होनेवाली कुल मौतों में दो तिहाई से अधिक (70 प्रतिशत) मृत्यु इसी आयु वर्ग के रोगियों की होती है.
हालांकि, इस बीमारी की वजह से इस आयु वर्ग के बच्चों की होनेवाली मृत्यु में कमी आयी है और वह 2010 के 4,40,000 के मुकाबले 2016 में घटकर 2,85,000 पर पहुंच गयी. लेकिन इसके बावजूद मलेरिया आज भी पांच वर्ष से छोटी उम्र के बच्चों की मौत का प्रमुख कारण है. मलेरिया के उच्च संचरण वाले क्षेत्रों में यह बीमारी प्रति दो मिनट एक बच्चे की जान ले रही है.