विश्व एड्स दिवस आज : मल्टीपल सेक्स पार्टनर से होता है एचआइवी का खतरा, एक भी असुरक्षित यौन संबंध फैला सकता है संक्रमण

डॉ अविनाश सिंह डीएम क्लीनिकल हिमेटोलॉजिस्ट, पारस एचएमआरआइ, पटना भारतीय उपमहाद्वीप के 44 फीसदी एचआइवी से संक्रमित युवाओं (18 से 24 साल की उम्र के) को इस बारे में पता ही नहीं है कि वे इस भयावह रोग की गिरफ्त में आ चुके हैं. वहीं, विश्व में बाइ सेक्सुअल और गे पुरुष जो एचआइवी इन्फेक्टेड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 1, 2018 6:28 AM
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डॉ अविनाश सिंह
डीएम क्लीनिकल हिमेटोलॉजिस्ट, पारस एचएमआरआइ, पटना
भारतीय उपमहाद्वीप के 44 फीसदी एचआइवी से संक्रमित युवाओं (18 से 24 साल की उम्र के) को इस बारे में पता ही नहीं है कि वे इस भयावह रोग की गिरफ्त में आ चुके हैं. वहीं, विश्व में बाइ सेक्सुअल और गे पुरुष जो एचआइवी इन्फेक्टेड हैं, उनमें से 80 फीसदी युवा हैं. इसलिए इस इन्फेक्शन से खुद को और अपने परिवार को बचाने के लिए समय-समय पर रक्त जांच कराना समझदारी भरा कदम है. विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि यदि आप एक बार भी असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं, तो आप एचआइवी के शिकार हो सकते हैं. इस पर विस्तृत जानकारी दे रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
ज्यादातर लोग एचआइवी को ही एड्स मानते हैं. मगर एचआइवी एड्स का प्राथमिक स्तर है. एचआइवी का मतलब है ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस. यही वायरस शरीर में धीरे-धीरे संक्रमण फैलाता है. एचआइवी फैलने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है.
इसकी वजह से शरीर पर अन्य बीमारियां हावी होने लगती हैं और कई तरह के इन्फेक्शन होने लगते हैं, क्योंकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी घट जाती है कि वह बैक्टिरिया और वायरस से मुकाबला करने के लायक नहीं रहता. इसलिए पीड़ित मरीज दिन-प्रतिदिन कई बीमारियों की चपेट में आ जाता है.
एचआइवी पॉजिटिव होने यानी एचआइवी के इन्फेक्शन के संपर्क में आने के तकरीबन 8-10 साल बाद जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शून्य के बराबर हो जाती है और कई बीमारियों के लक्षण शरीर में नजर आने लगते हैं, तब इस स्थिति को एड्स कहा जाता है.
एचआइवी का दो तरीके से पता चलता है. ए-सिंटेमेटिक, इसमें कोई भी लक्षण नहीं दिखता. खून लेने या डोनेट करते समय जांच में वह एचआइवी पॉजिटिव पाया जाता है. दूसरा सिंटमेटिक इसमें रोगी में कुछ प्रारंभिक लक्षण दिखायी पड़ते हैं, जिनके आधार पर रोगी की जांच की जाती है और उसमें वह एचआइवी पॉजिटिव पाया जाता है.
प्रमुख परेशानियां :
– यह इंसान के नर्वस सिस्टम को खराब कर सकता है.
– इसमें पानी की कमी महसूस होती है और डायरिया के लक्षण भी देखने को मिलते हैं.
– इससे विटामिन डी डेफिशियेंसी, थाइरॉइड और डायबिटीज भी हो सकता है.
– रिप्रोडक्टिव सिस्टम प्रभावित करता है.
– मेटाबॉलिक सिस्टम को भी खराब कर देता है.
– इससे फेफड़े का भी इन्फेक्शन होता है.
यह हृदय संबंधी रोगों का भी कारण बन सकता है .
प्रीवेंशन ऑफ मदर टू चाइल्ड ट्रांसमिशन ऑफ एचआइवी (PMTCT) : एचआइवी के ट्रांसमिशन का एक जरिया मां से उसके बच्चे में होना भी है. अत: इससे रोकना बेहद जरूरी है. एचआइवी पॉजिटिव मां से उसके बच्चे तक इन्फेक्शन को फैलने से रोकने के प्रयास किये जाते हैं. प्रेग्नेंसी के दौरान, प्रसव के दौरान या ब्रेस्टफीडिंग से यह मां से बच्चे में ट्रांसमिटेड हो सकता है.
एक रिपोर्ट के अनुसार 33 फीसदी बच्चों में मां से एचआइवी इन्फेक्शन होने का खतरा होता है. वहीं, 14 फीसदी बच्चे जो स्तनपान दो साल तक करते हैं, उन्हें इससे इन्फेक्टेड होने का खतरा होता है. हालांकि, बच्चों में होनेवाले इस इन्फेक्शन का यह 40-64 प्रतिशत तक है. यदि मां को यह इन्फेक्शन प्रेग्नेंसी या ब्रेस्टफीडिंग के दौरान हो, तो बच्चों में इन्फेक्शन का खतरा और बढ़ जाता है. इससे बचाने के लिए एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) ट्रीटमेंट दिया जाता है. इससे न सिर्फ बच्चों में इन्फेक्शन का खतरा कम होता है.
– एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी : एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) और एंटीरेट्रोवायरल (एआरवी) ड्रग्स से एचआइवी पॉजिटिव मरीजों का ट्रीटमेंट किया जाता है. इसमें रोकथाम और ट्रीटमेंट दोनों पर ध्यान दिया जाता है. यह न सिर्फ इस इन्फेक्शन के असर को कम करने का काम करता है, बल्कि एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी से इस वायरस को आगे फैलने से भी रोका जाता है.
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