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सांप्रदायिकता और धार्मिक हिंसा के जहर से लड़ेगी एआई आधारित प्रणाली

धर्म, जाति या नस्ल आधारित हिंसा समाज के लिए जहर है. हालिया शोध में यह सामने आया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) हमें सांप्रदायिकता व धार्मिक हिंसा के कारणों को बेहतर ढंग से समझने और इसे संभावित रूप से नियंत्रित करने में मदद कर सकती है. कंप्यूटर मॉडलिंग और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का उपयोग करके […]

धर्म, जाति या नस्ल आधारित हिंसा समाज के लिए जहर है. हालिया शोध में यह सामने आया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) हमें सांप्रदायिकता व धार्मिक हिंसा के कारणों को बेहतर ढंग से समझने और इसे संभावित रूप से नियंत्रित करने में मदद कर सकती है.
कंप्यूटर मॉडलिंग और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का उपयोग करके सक्षम एआई प्रणाली बनायी जा सकती है, जो मनुष्य की धार्मिकता का अध्ययन कर सकती है. इसके माध्यम से धार्मिक हिंसा के लिए पैदा की गयी स्थितियों, कारणों और तरीकों को बेहतर ढंग से समझने की क्षमता प्राप्त की जा सकेगी. इस महत्वपूर्ण शोध के तमाम पहलू आज के इन्फो टेक में…
शोध : मनुष्य स्वभाव से शांतिपूर्ण, लेकिन सांप्रदायिक हिंसा में शामिल
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक सहयोगी समूह के मुताबिक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आनेवाले वक्त में हमें धार्मिक हिंसा के कारणों को ठीक से समझने और संभावित रूप से इसे नियंत्रित करने में मदद कर सकती है.
यह अध्ययन मनोवैज्ञानिक तौर पर यथार्थवादी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर किया गया है और यह मशीनी ज्ञान से विपरीत है. द जर्नल फॉर आर्टिफिशियल सोसाइटीज एंड सोशल सिमुलेशन में प्रकाशित यह शोध, कंप्यूटर मॉडलिंग और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान के संयुक्त अभियान पर आधारित है. इसके माध्यम से ऐसा एआई सिस्टम बनाया जा सकता है, जो मानव धार्मिकता की नकल करने में सक्षम होगा. इसके द्वारा धार्मिक हिंसा के लिए तैयार की जाने वाली जमीन, उसके कारणों और पैमानों को समझा जा सकेगा.
शोध के दौरान किया गया अध्ययन इस सवाल के जवाब ढूंढ़ने के लिए किया गया है कि क्या लोग स्वाभाविक रूप से ही हिंसक होते हैं, या धर्म जैसे कारक विभिन्न समूहों के बीच सांप्रदायिक, नस्लभेदी (जेनोफोबिक) तनाव और डर पैदा करने का कारण बनते हैं, जो उन्हें हिंसा के रास्ते पर ले जाता है. अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि मनुष्य जाति स्वभाव से शांतिपूर्ण है.
हालांकि, इतिहास या किन्हीं संदर्भों के जीवन का हिस्सा बनते ही वे हिंसा का समर्थन करने के इच्छुक दिखने लगते हैं- खासकर जब अन्य उनकी पहचान को परिभाषित करने वाली मूल मान्यताओं के खिलाफ जाते हैं.
यद्यपि यह शोध विशिष्ट ऐतिहासिक घटनाओं पर केंद्रित हैं, लेकिन इसका निष्कर्ष धार्मिक हिंसा की किसी भी घटना पर लागू किया जा सकता है, और इसके पीछे की प्रेरणा और मंशा को समझने के लिए उपयोग किया जा सकता है. इस शोध से उम्मीद लगायी जा रही है कि इसके परिणामों का इस्तेमाल सामाजिक संघर्षों और आतंकवाद को रोकने के लिए सरकारों की मदद करने के लिए किया जा सकता है.
ऑक्सफोर्ड, बोस्टन विश्वविद्यालय और नॉर्वे विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह शोध, शोध के लिए हिंसा का अनुकरण नहीं करता, बल्कि उन स्थितियों के पीछे केंद्रित है जो दो विशिष्ट अवधि के बीच नस्लभेदी सामाजिक तनावों को पैदा करता है और चरमपंथी शारीरिक हिंसा को बढ़ावा देता है. इस शोध के िलए दुनियाभर के िवभिन्न समुदायों के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का आर्टिफिशियल इंटेलिजंेस तकनीक आधारित अध्ययन किया गया है.
निष्कर्षों से पता चला है कि पारस्परिक रूप से बढ़ते और लंबे समय तक समाज को डंसने वाले नस्लभेद या सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाली सबसे आम स्थितियां वह हैं, जिसमें धर्म के ठेकेदार धार्मिक प्रतीकों, मूल मान्यताओं या पवित्र मूल्यों के माध्यम से लोगों को भावुक बनाते हैं, उनमें धर्मांधता फैलाते हैं, अनावश्यक श्रेष्ठता बोध भरते हैं, लोगों के भीतर से तार्किकता समाप्त करते हैं. शोध के अनुसार, ये ठेकेदार सामाजिक खतरा हैं जो लोगों का इस्तेमाल कर हिंसा में शामिल करवाते हैं.
जब लोगों में यह भ्रम घर कर जाता है कि उनके मूल विश्वासों या आस्था को चुनौती दी जा रही है, उनका अपमान किया जा रहा है या वे महसूस करते हैं कि उनकी मान्यताओं के प्रति उनकी ही वचनबद्धता पर सवाल उठाया गया है, तो सांप्रदायिकता फैलती है और हिंसा की जाती है. दुनियाभर में हुई हिंसा का 20 फीसदी केवल इस सामाजिक जहर द्वारा फैलायी जा रही हिंसा है. धर्मों में एक निश्चित आस्था एवं भक्ति के चरम प्रदर्शन की प्रवृत्ति रहती है.
इससे पैदा होने वाला श्रेष्ठता बोध ही किसी समूह, किसी व्यक्ति, किसी अन्य धारा की आस्था, दूसरा धर्म मानने वालों के खिलाफ या नास्तिक हो गये मनुष्य के प्रति, जाति, नस्ल के आधार पर हिंसा करने की भावना को जन्म देता है. इससे पहले तक देखा गया है कि अन्य शोध धार्मिक हिंसा को समझने के लिए पारंपरिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दृष्टिकोणों का उपयोग करने की कोशिश करते हैं और मिश्रित परिणामों को वितरित करते हैं. कई बार उनके परिणामों में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ पक्षपात भी दिखायी दिया है, जो नैतिक तौर पर गलत है. लेकिन इस शोध ने एक नया आयाम हासिल किया है.
यह शोध पहली बार इस बात को चिह्नित कर रहा है कि बहु-एजेंट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग मनोवैज्ञानिक यथार्थवादी कंप्यूटर मॉडल बनाने और सांप्रदायिकता के प्रश्न से निबटने में किया सकता है. जानकारों के अनुसार, धर्म या संस्कृति का अध्ययन करने के लिए एआई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है और मनुष्य के मॉडलों को मनोवैज्ञानिक तौर पर सक्षम बनाया जा रहा है. हमारा मनोविज्ञान ही धर्म और संस्कृति की नींव है, इसलिए धार्मिक हिंसा जैसी चीजों के मूल कारणों में यही बात काम करती है कि हमारे दिमाग उस जानकारी को कैसे संसाधित करते हैं, जो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होती हैं.
धार्मिक हिंसा के मूल कारण को समझकर मॉडलों द्वारा लोगों को इन सांप्रदायिक संघर्षों में शामिल होने से रोका जा सकता है. हालांकि, मॉडल के गलत हाथों में जाने से सामाजिक हिंसा को बढ़ावा भी मिल सकता है. सही उद्देश्य के साथ एवं बेहतर तरीके से इसका उपयोग किया जाये, तो यह शोध स्थिर समाजों और सामुदायिक एकीकरण के लिए एक सकारात्मक साधन साबित हो सकता है.
कैसे काम करती है यह तकनीक
अध्ययन के लिए मानव के मनोवैज्ञानिक यथार्थवादी मॉडल बनाने के लिए बहु-एजेंट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है. इसके माध्यम से यह जाना जा सकेगा कि वे कैसे सोचते हैं, और विशेष रूप से समूहों के साथ खुद को कैसे पहचाने जाना चाहते हैं.
इससे यह भी समझने की दिशा में हम बढ़ पायेंगे कि कोई खुद को ईसाई, यहूदी, हिंदू या मुस्लिम इत्यादि के रूप में क्यों पहचाने जाना चाहते हैं. सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा समझने की कोशिश की जायेगी कि हमारी व्यक्तिगत मान्यताएं समूह में शामिल होने के बाद खुद को कैसे परिभाषित करने लगती हैं. मनोवैज्ञानिक रूप से यथार्थवादी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एजेंटों को बनाने के लिए, ज्ञानात्मक मनोविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग करने के लिए मनुष्य के मॉडल तैयार करती है, ताकि यह पता चल सके कि मानव स्वाभाविक रूप से सोचता कैसे है और किसी जानकारी को कैसे संसाधित करता है. यह नया या कोई क्रांतिकारी दृष्टिकोण नहीं है.
लेकिन यह पहली बार हुआ है कि इस तरह के सामाजिक शोधों के अनुसंधान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक और इस तकनीक को भौतिक रूप से लागू किया जा रहा है. सैद्धांतिक साहित्य का एक पूरा हिस्सा है, जो मानव मस्तिष्क की कंप्यूटर प्रोग्राम से तुलना करता है.
लेकिन किसी ने भी इससे पहले इस जानकारी को प्रयोग में नहीं लाया है और शारीरिक रूप से इसे कंप्यूटर में प्रोग्राम नहीं किया गया है.
शोध में संज्ञानात्मक बातचीत के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के भीतर इन नियमों को प्रोग्राम किया गया. इसका उपयोग करके यह सामने लाया जा सकेगा कि एक व्यक्ति की मान्यताएं समूह के भीतर आने के बाद कैसे सामंजस्य बिठाती है. इस शोध में देखा गया है कि मनुष्य अपने व्यक्तिगत अनुभवों के सामने किसी जानकारी को कैसे संसाधित करते हैं.
कुछ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल (मनुष्यों के मॉडल) के संयोजनों के अलग-अलग धर्मों के लोगों के साथ सकारात्मक अनुभव हुए हैं और कुछ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल के संयोजनों के नकारात्मक या तटस्थ अनुभव हुए हैं. इसके साथ, एक समय के अंतराल में हिंसा की प्रवृत्ति में वृद्धि और गिरावट को समझा गया है और यह जानने की कोशिश हो रही है कि इस प्रवृत्ति को कैसे कम किया जा सकता है अथवा खत्म किया जा सकता है, या इसकी कोशिश की जा सकती है.

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